Dhyan Geeta (ध्यान गीता): Difference between revisions
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description = Dhyan Geeta (Songs of Meditation) -- Osho's Teachings in poetry form | description = Dhyan Geeta (Songs of Meditation) -- Osho's Teachings in poetry form | ||
:This booklet contains | :This booklet contains songs based on Osho's teachings. They are collectively sung by participants of the DHYAN-SAMADHI Program at [http://oshodhara.org.in OSHODHARA], at the beginning of each session in 6 days. | ||
:There are 17 songs, earlier there were 18. | |||
:The booklet got reprinted at least 10 times in the last 15 years. | |||
:For the music and lyrics, see [[{{PAGENAME}}#music album|below]]. | |||
:ध्यान गीता | :ध्यान गीता | ||
:इस पुस्तिका में ओशो की शिक्षाओं के आधार पर 18 गीत शामिल हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से 6 दिनों में, प्रत्येक सत्र की शुरुआत में, ध्यान-समाधि शिविर के प्रतिभागियों द्वारा गाया जाता है, साथ में मा ओशो प्रिया की मधुर आवज में ऑडियो एमपी-3 चलाया जाता है। | :इस पुस्तिका में ओशो की शिक्षाओं के आधार पर 18 गीत शामिल हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से 6 दिनों में, प्रत्येक सत्र की शुरुआत में, ध्यान-समाधि शिविर के प्रतिभागियों द्वारा गाया जाता है, साथ में मा ओशो प्रिया की मधुर आवज में ऑडियो एमपी-3 चलाया जाता है। | ||
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author= Songwriter [[Sw Anand Siddharth]] (Osho Siddharth)| | author= Songwriter : [[Sw Anand Siddharth (Indian)|Sw Anand Siddharth]] (aka Osho Siddharth, Dr. Virendra Kumar Singh, ओशो सिद्धार्थ) | ||
:Music : [[Sw Dev Geet]] (Jalil Mohammed) | |||
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language = Hindi| | language = Hindi| | ||
notes = | | notes = | | ||
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}} | }} | ||
== music album == | |||
;Artists | |||
:[[Ma Amrit Priya]] - main singer | |||
:[[Sw Dev Geet]] (Jalil Mohammed) - main singer | |||
;Recorded | |||
:2003 | |||
;Released | |||
:2003 | |||
;Length | |||
:2:15:49 | |||
'''Tracks''' - full length | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 01 || [[file:01 Samyak Khoj.mp3]] || [[Samyak Khoj (सम्यक खोज)]] 9:04 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: घर से बाहर सब निकल पड़े, कुछ मंदिर, कुछ मयखाने में। | |||
: धन के पीछे कुछ लोग लगे, कुछ पागल कुर्सी पाने में। | |||
: अब कौन भला समझाये इन्हें, घर का हीरा दिखलाए इन्हें। | |||
: अथ गेहं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: क्या होगा तीरथ जाने से, क्या होगा यज्ञ कराने से? | |||
: शास्त्रों को पढ़कर क्या होगा, क्या होगा गंग नहाने से? | |||
: मूरत, मस्जिद, देवालय में, क्या रखा कहो हिमालय में? | |||
: आत्मानं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: चुकता जाता है तेल, और जलती जाती तन की बाती। | |||
: रह जाती तब भी रात बहुत, जिन्दगी न खुद को पढ़ पाती। | |||
: इसके पहले कि दीप बुझे, खुद की किताब पढ़ ले पगले। | |||
: स्वाध्यायं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जीवन को दाँव लगाने का, यदि नहीं हृदय में साहस है। | |||
: यदि नहीं ब्रह्म की प्यास जगी, विषयों में ही केवल रस है। | |||
: मृत्यु के क्षण पछताओगे, अतृप्त विदा हो जाओगे। | |||
: जागरणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: माना तुमने भूगोल पढ़ा, माना तुमने इतिहास पढ़ा। | |||
: पर अपने जीवन में लिखा जो, क्या तुमने वह पाठ पढ़ा? | |||
: यदि नहीं तो फिर कुछ शरमाओ, कुछ गीत जिंदगी के गाओ। | |||
: स्वाध्यायं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 02 || [[file:02 Samyak Drishti.mp3]] || [[Samyak Drishti (सम्यक दृष्टि)]] 8:59 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: जीवन विराट है सागर-सा, हम ऊपर-ऊपर जीते हैं; | |||
: घटनाएं हैं लहरों जैसी, हम बहुत अर्थ दे देते हैं। | |||
: क्या हुआ जो एक साकी रूठी? क्या हुआ जो एक प्याली फूटी? | |||
: अथ अमृत शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: सोचो, यदि प्याली ना फूटे, सोचो, यदि साकी ना रूठे; | |||
: तो कैसे होश में आएं हम? कैसे अपने घर जाएं हम? | |||
: यदि प्यास न थोड़ी हो बाकी, कैसे मुर्शिद मिले साकी? | |||
: अथ सद्गुरु शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: बीते का जिसको शोक नहीं, जो वर्तमान में जीता है; | |||
: वह पा लेता अपनी मंजिल, उसका जीवन एक गीता है। | |||
: पढ़ लेता जो अपनी किताब, पा जाता जीवन का सुराग। | |||
: स्वाध्यायं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: माना अस्वीकृति दुखदायी, पर देखो कितना जग विशाल; | |||
: फूलों की कोई कमी नहीं, हे भ्रमर, विगत का क्यों मलाल? | |||
: फैलाओ पंख उड़ान भरो, कुछ नए गीत, सुर, तान भरो। | |||
: अथ नूतन शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जो जीवन दुख में पका नहीं, कच्चे घट-सा रह जाता है; | |||
: जो दीप हवाओं से न लड़ा, वह जलना सीख न पाता है। | |||
: इसलिए दुखों का स्वागत कर, दुख ही मुक्ति का है आकर। | |||
: अथ सत्यं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 03 || [[file:03 Samyak Jagriti.mp3]] || [[Samyak Jagriti (सम्यक जागृति)]] 8:52 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: है कौन सही, है कौन गलत, क्या रखा इस नादानी में; | |||
: कौड़ी की चिंता करने में, हीरा बह जाता पानी में। | |||
: जब भी शिकवा शिकायत हो, जानना तुम्हीं खलनायक हो। | |||
: अथ प्रेमं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: मूढ़ों का रस है प्रभुता में, प्रतिभाशाली झुक जाते हैं; | |||
: जीवन की ऊर्जा को सज्जन, यूं ही लड़कर न गंवाते हैं। | |||
: सीना ताने चलता दुर्जन, नम्रता संत का है लक्षण। | |||
: नम्रत्वं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: प्रतिक्रिया कभी हो तो समझो, तुमने घटना को मूल्य दिया; | |||
: थी लहर जरा-सी लेकिन तुमने, सागर-सा बहुमूल्य किया। | |||
: अब छोड़ो सब प्रतिशोध अहो, करते जाओ अनुरोध अहो। | |||
: अनुरोधं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: संबंध बढ़ाते हो जब-जब, जानना एक दिन टूटेगा; | |||
: जो मान दे रहा आज तुझे, वह यार एक दिन रूठेगा। | |||
: उस दिन मत तनिक ग़िला करना, कहकर शुक्रिया विदा करना। | |||
: भवितव्यं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: तुम क्षमाशील हो क्षमा करो, उनको जो अपराधी तेरे; | |||
: तुम भी तो क्षमा चाहते हो, अपराध किए जो बहुतेरे। | |||
: प्रतिशोध अग्नि का शमन करो, अब क्षमाशीलता वरण करो। | |||
: अथ प्रेमं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 04 || [[file:04 Samyak Sambandh.mp3]] || [[Samyak Sambandh (सम्यक संबंध)]] 7:23 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: गौतम ने कहा-भिक्षुओ सुनो, मन ही सुख-दुख का मूल अहो; | |||
: जो है उसका करता न मान, कुछ नहीं मिला तो परेशान। | |||
: मन है अशांत तो जो भी करो, आएगा दुःख अनिवार्य अहो। | |||
: अथ शांतिं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जैसे चक्का पीछे-पीछे, बैलों के चलता जाता है; | |||
: वैसे ही हो यदि मन चंगा, सुख की गंगा ले आता है। | |||
: सारा जग है मन की माया, मन से ही धूप, मन से छाया। | |||
: प्रमुदित मन शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: लगता होगा यह बहुत बार, कुछ लोग नहीं सुनते तुमको; | |||
: घायल हो जाता अहंकार, दुख पागल कर देता मन को। | |||
: मत कथा गढ़ो या चिल्लाओ, नूतन अनुरोध किए जाओ। | |||
: अनुरोधं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जो नहीं हुआ उसकी खातिर, यदि ज्यादा शोर मचाओगे; | |||
: जो है वह भी खो जाएगा, तुम व्यर्थ खड़े पछताओगे। | |||
: इसलिए नहीं जो मिला तुम्हें, उसके न लिए हो ग़िला तुम्हें। | |||
: सद्भावं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: कुछ करो मगर मत जिद्द करो, दुनिया चलती ही रहती है; | |||
: अंगद जैसा मत पांव टेक, बाजी उल्टी पड़ सकती है। | |||
: कोई न जरूरी दसकंधर, खा जाएगा पथ में ठोकर। | |||
: निर्दंभं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 05 || [[file:05 Samyak Karm.mp3]] || [[Samyak Karm (सम्यक कर्म)]] 9:31 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: हम अपना लिखते भाग्य स्वयं, पर समय बीत जब जाता है; | |||
: ख़ुद का ही लिखा न पढ़ पाते, अक्षर धुंधला हो जाता है। | |||
: इसलिए नियति को मत मानो, अपना हस्ताक्षर पहचानो। | |||
: दायित्वं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: हम जो भी करते कर्म यहाँ, फल पीछे-पीछे आता है। | |||
: पुरुषार्थ कालक्रम में पककर, प्रारब्ध अटल बन जाता है। | |||
: है रची तुम्हीं ने आत्मकथा, मत कहो विधाता ने लिखा। | |||
: पुरुषार्थं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: सोना, सज्जन या साधु-संत, सौ बार टूट जुड़ जाते हैं; | |||
: दुर्जन कुम्हार के घट-से दरक गए न कभी मिल पाते हैं। | |||
: यदि हो जाओ सोना जैसा, जीवन में फिर रोना कैसा। | |||
: निरबैरं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: यदि थोड़ा भी हो रस बाकी, कर पहल दोस्ती कर लेना। | |||
: सौ तीरथ जाने से बढ़कर, एक रूठा यार मना लेना। | |||
: कहने को कोई हमारा है, तब तक ही यह जग प्यारा है। | |||
: अथ मैत्री शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जुगनू जैसे थोड़ा जल-जल, जिंदगी न शोला बनती है; | |||
: पूजा, जप, स्तुति से न कभी, धूनी समाधि की जलती है। | |||
: साक्षी, प्रज्ञा, हरिनाम बिना, संबोधि मिली कब ध्यान बिना। | |||
: अथ ध्यानं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 06 || [[file:06 Samyak Vani.mp3]] || [[Samyak Vani (सम्यक वाणी)]] 7:49 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: हीरा को हीरा कहने से, पत्थर पत्थर रह जाता है। | |||
: कंकड़ को कंकड़ कहो अगर, वक़्ता कंकड़ हो जाता है। | |||
: इसलिए श्रेष्ठ की प्रिफक करो, मत लघुताओं का जिक्र करो। | |||
: अथ श्रेष्ठं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: चंदन, बेला, जूही या कमल, कितने सुरभित, कितने सुन्दर! | |||
: पर सुरभि अनूठी, जिसके जीवन में खिलता है शील-कमल। | |||
: भीतर-बाहर का भेद नहीं, वह जो बोले है वेद वही। | |||
: अथ शीलं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: मनसा, वाचा, कर्मणा कभी, कटुता जीवन में मत लाओ। | |||
: सबका मंगल सोचो प्रतिपल, मंगल के गीत सदा गाओ। | |||
: सबसे मीठी वाणी बोलो, सबसे प्यारा नाता जोड़ो। | |||
: अथ मंगल शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: यदि हृदय प्रेम से भरा, अधर पर कैसे फिर गाली होगी? | |||
: मन में कड़वाहट भरी अगर, मीठी कैसे वाणी होगी? | |||
: इसलिए न विष का जिक्र करो, बस अमृत की तुम फिक्र करो। | |||
: अथ अमृत शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: कहने वाले की बात सुनो, फिर कहो कि क्या तुमने समझा। | |||
: जब लगे कि वह सुन रहा प्रेम से, तब ही पक्ष रखो अपना। | |||
: पहले समझो, फिर समझाओ, यह सूत्र शील का अपनाओ। | |||
: संवादम शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 07 || [[file:07 Samyak Sankalp.mp3]] || [[Samyak Sankalp (सम्यक संकल्प)]] 8:46 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: जब भी बाधा आए पथ में, उसको सोपान बना लेना। | |||
: अपमान करे कोई, शिव-सा विषपान बना लेना। | |||
: मत कभी शोक या मोह करो, हो कृत्य कोई तुम योग करो। | |||
: अथ योगं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जो टूट गए संकल्प कभी, फिर से उनका उद्धार करो। | |||
: जो साथी पथ में रूठ गए, उनसे फिर आँखें चार करो। | |||
: तुम पहल करो, आलस छोड़ो, टूटे संबंधों को जोड़ो। | |||
: प्रतिबद्धं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: हो मार्ग कहीं अवरूद्ध अगर, कुछ नूतन राह तलाश करो। | |||
: बहती दरिया से कुछ सीखो, सम्यक रह सतत प्रयास करो। | |||
: हर शिला खड़ी रह जाती है, सरिता आगे बढ़ जाती है। | |||
: अथ प्रज्ञा शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: निष्ठापूर्वक निज कर्म करो, जग को जो भाए कहने दो। | |||
: हाथी-सा तुम मदमस्त चलो, कुत्ते भूंकते हैं भूंकने दो। | |||
: निष्ठा की आग न छुपती है, संकल्प नदी कब रुकती है? | |||
: अथ निष्ठा शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: बेहतर होगा तुम लिख डालो, अपने जीवन का संविधान। | |||
: संकल्प सहित पालन करना, अब शेष रहे या जाए प्राण। | |||
: जो रहता है संकल्पहीन, उसका जीवन है अर्थहीन। | |||
: संकल्पं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 08 || [[file:08 Samyak Sweekar.mp3]] || [[Samyak Sweekar (सम्यक स्वीकार)]] 7:08 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: संसारी हो या साधक हो, फल की आकांक्षा बाधक है; | |||
: उद्देश्य कर्म का पूरा हो, यह तो न सदा आवश्यक है। | |||
: जो हुआ, मील का है पत्थर, योगी बढ़ता आगे पथ पर। | |||
: अथ योगं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: कुछ होता है अनुकूल यहाँ, कुछ होता है प्रतिकूल यहाँ; | |||
: हम व्यर्थ पात से कंपते हैं, कुछ फूल यहाँ, कुछ शूल यहाँ। | |||
: लहरों को बनने-मिटने दो, भीतर चैतन्य न कंपने दो। | |||
: निष्कंपं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जब भी तुम ठोकर खाते हो, प्रतिशोध छलककर आता है; | |||
: पर नहीं शिकायत हो मन में, तब ही जानना तथाता है। | |||
: जिसके दिल में न शिकायत है, वह दिल कुरान की आयत है। | |||
: अशिकायत शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जो रहता अपनी मस्ती में, जिन्दगी बोध की गीता है; | |||
: निष्काम और निरअहंकार, जो धन्यवाद में जीता है। | |||
: वह बोधिसत्व है, वंदित है, उसका बुद्धत्व सुनिश्चित है। | |||
: संबोधिं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: अब गाओ गीत तथाता के, पांवों में घुंघरु बंधने दो; | |||
: नाचो हे नटनागर नटवर, बांसुरी शून्य की बजने दो। | |||
: स्वीकार भरा यदि जीवन है, हर गाँव-नगर वृन्दावन है। | |||
: कृष्णत्वं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 09 || [[file:09 Paramatma.mp3]] || [[Paramatma (परमात्मा)]] 8:38 - अष्टांग योग / अजपा समाधि | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: मंदिर-मस्जिद में सीस झुका, तुम जिसको सजदा करते हो। | |||
: भीतर पुकारता कब से वह, आवाज नहीं क्यों सुनते हो? | |||
: है नाम बिना निस्तार नहीं, प्रियतम बिन होता प्यार नहीं। | |||
: अथ अनहद शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: सबके भीतर प्रभु बैठ स्वयं, है चला रहा सबकी मशीन। | |||
: आश्चर्य सभी हैं देख रहे, फिर भी न कोई करता यकीन। | |||
: यह अंधों का है गाँव अरे, हम कहाँ दिखाएं राम अरे? | |||
: अथ रामं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: धुंधली हो गई नजर हो तो, ऐनक अपनी कुछ साफ करो। | |||
: सब आँखों से वह झाँक रहा, हर हाथ उसी का हाथ अहो। | |||
: वह दिग-दिगंत से गाता है, सुन लो यदि सुनना आता है। | |||
: अथ श्रवणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: गंगा तट पर सब खड़े हुए पर पूछ रहे हैं गंग कहाँ? | |||
: है नामपट्ट पर नजर टिकी, कोई लिख दे है गंग यहाँ। | |||
: तुम जहाँ कहो मैं वहीं लिखूं, पर किस भाषा में हरि लिखूं? | |||
: अथ नादं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: भीतर भी वही गूंजता है, बाहर भी वही गूंजता है। | |||
: अनहद में है वह निराकार, कोयल बन वही कूंजता है। | |||
: है ओंकार का ख्याल जिसे, क्या कर पाएगा काल उसे। | |||
: अथ नादं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 10 || [[file:10 Karmyog.mp3]] || [[Karmyog (कर्म योग)]] 7:50 - योग क्या है? | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: कर्मस्थल बन जाए मंदिर, घर को आश्रम बन जाने दो। | |||
: हर साँस बोध के साथ चले, हर बात भजन बन जाने दो। | |||
: गुरु साकी तू पीनेवाला, जीवन बन जाए मधुशाला। | |||
: अथ साक्षी शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जिन्दगी एक सीता-सी है, संसार भयानक कानन है; | |||
: पल भर जो प्रहरी दूर हुआ, हरने को खड़ा दशानन है। | |||
: इसलिये स्वर्णमृग मत मांगो, लक्ष्मणरेखा को मत लांघो। | |||
: अथ साक्षी शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: तन से हो या कि मन से हो, हो साक्षी की निगरानी में। | |||
: वरना तुम जो भी करते हो, जुड़ जाता आनी-जानी में। | |||
: साक्षी होकर सब कर्म करो, है यही सनातन धर्म अहो। | |||
: अथ साक्षी शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: कर्मों की आपाधापी में, तुम होश नहीं अपना खोना। | |||
: अनुकूल हुआ तो मत नाचो, प्रतिकूल हुआ तो मत रोना। | |||
: है नहीं कृत्य कोई महान, है किया होश में मूल्यवान। | |||
: अथ ध्यानं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: तुम कर्म करो लेकिन सोचो, जो भी होगा अच्छा होगा। | |||
: वह आज भले प्रतिकूल लगे, कल निश्चय ही अच्छा होगा। | |||
: जग का जो भी है निर्माता, मंगल की ओर लिए जाता। | |||
: भवितव्यं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 11 || [[file:11 Tantrayog.mp3]] || [[Tantrayog (तंत्र योग)]] 7:09 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: साकी रख गई भरी बोतल, है जाम सजा मेरे आगे। | |||
: सब रिंद जमा हो पूछ रहे, जो आया भोगें या त्यागें। | |||
: मैं कहता बस अब पीता जा, बस जाग जरा और जीता जा। | |||
: जागरणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: तू बना फकीरा वेश जगत का देख तमाशा साक्षी बन। | |||
: आनंद सहित स्वीकार करो, प्रभु पिला रहा है साकी बन। | |||
: क्यों प्याज छीलता है मुल्ला, रब परस रहा जब रसगुल्ला। | |||
: आनंदं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: पीने को जब भी जाम उठा, प्याले का हरदम होश रहे। | |||
: मंजिल पाकर भी कुछ आगे चलने का भीतर जोश रहे। | |||
: पल भर की मूर्च्छा जीवन में, सीता लुट जाती है वन में। | |||
: अमूर्च्छा शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जो नहीं काम में उतर सका, निष्काम भला वह क्या होगा। | |||
: जिसने न कभी भी प्रेम किया, भगवान भला वह क्या होगा। | |||
: है काम राम का द्वार अहो, राधा बिन कैसा श्याम कहो। | |||
: निष्कामं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: कल की हम बात करें कैसे, क्या पता कि कल क्या मौसम हो। | |||
: हों कौन रिंद पीने वाले किसकी क्या खुशियाँ, क्या गम हो। | |||
: इसलिए आज जी भर के पी, बस अभी यहीं जी भर के जी। | |||
: अथ अद्यं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 12 || [[file:12 Hathyog.mp3]] || [[Hathyog (हठ योग)]] 5:50 - विपस्सना ध्यान | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: सब एक साल में एक बार होली का पर्व मनाते हैं। | |||
: योगी सालों भर मस्ती का गुलाल-अबीर उड़ाते हैं। | |||
: साँसो का लेकर इकतारा, मस्ती का गीत सुना प्यारा। | |||
: आनंदं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: सूर्योदय से पहले घंटे भर, साधक नियमित चला करे। | |||
: रात्रि में सोने से पहले, चक्रमण घड़ी भर किया करे। | |||
: बल, बुद्धि, वीर्य बढ़ता इससे, साधक निरोग रहता इससे। | |||
: निर्व्याधिं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: हर आती साँस जनम नूतन, हर जाती साँस मौत का क्षण। | |||
: दोनों के मध्य ठहर जाओ, तो काहे का फिर जन्म-मरण? | |||
: है आदि नहीं, है अंत नहीं, वह अलख निरंजन सत्य तुम्हीं। | |||
: अथ शाश्वत शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जाती साँसें गहरी हों तो, जीवन अमृत बन जाता है। | |||
: आती साँसें लंबी हों तो, आनंद मधुर छा जाता है। | |||
: शांति से पुलक जो आता है, आनंद वही कहलाता है। | |||
: आनंदं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: हर साँस राम-सागर से लहरों जैसी उठने-गिरने दो। | |||
: साँसों की माला से साक्षी को हरि का नाम सुमिरने दो। | |||
: हर वृत्ति लहर बन जाने दो, साक्षी सुमिरन बच जाने दो। | |||
: अथ मौनं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 13 || [[file:13 Bhakti yog.mp3]] || [[Bhakti yog (भक्ति योग)]] 7:02 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: जग कहता उसको दुश्चरित्र, जो प्यार किसी से करता है। | |||
: और सच्चरित्र कहता उसको, जो रूखा-सूखा रहता है। | |||
: नासमझों का यह गाँव अरे, आ चलें जहाँ सद्भाव अरे। | |||
: सद्भावं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: मत सुनो शेख की, पंडित की, तुम अपने दिल का गीत सुनो। | |||
: कुछ कहो हालेदिल रहबर से, जो कहे तुम्हारा मीत सुनो। | |||
: मत गीता, ग्रंथ, कितेब पढ़ो, ढाई आखर का वेद पढ़ो। | |||
: अथ श्रवणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: चाहे तैरा हो सप्त सिंधु, चाहे गौरी शंकर जीता। | |||
: डूबा जो न प्रिय की आँखों में, उसका जीवन यूं ही बीता। | |||
: जो समझ न पाया आँखों से, वह क्या समझेगा बातों से। | |||
: अथ दृष्टि शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: यदि हाथ चाहते ईश्वर का, पहले दिलवर का हाथ गहो। | |||
: मन से मन का स्पर्श करो, आत्मा से आत्मा को छू लो। | |||
: जब गहन प्रेम में जाओगे, हर हाथ उसी का पाओगे। | |||
: स्पर्शं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: है जहाँ प्रेम है धर्म वहीं, हर प्रेयसि राधा रानी है। | |||
: हर प्रेमी ब्रज का कृष्ण और गीता हर प्रेम-कहानी है। | |||
: जिसने न कभी है प्रेम किया, उसने यह जीवन व्यर्थ जिया। | |||
: अथ प्रेमं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 14 || [[file:14 Gyan yog.mp3]] || [[Gyan yog (ज्ञान योग)]] 7:37 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में, जा कब तक शीश झुकाओगे? | |||
: कब तक रामायण, गीता से, अपने मन को बहलाओगे? | |||
: कब खुद को शीश झुकाओगे, कब खुद गीता बन जाओगे? | |||
: आत्मानं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: शास्त्रों को पढ़कर क्या होगा? शब्दों को रटकर क्या होगा? | |||
: जब तलक शेष है राग-द्वेष, जब तलक वासना, मोह शेष। | |||
: जब तलक धर्म अचारण न हो, तबतलक न कोई श्रमण अहो। | |||
: आचरणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: है काम, क्रोध, मद, लोभ लहर, ईर्ष्या, विद्वेष, विमोह लहर। | |||
: हर विदा लहर, हर मेल लहर, धन, योवन का सब खेल लहर। | |||
: लहरों को जिसने पहचाना, उसने ही सागर को जाना। | |||
: जागरणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: साक्षी धूनी बन जाने दो, ईर्ष्या-विद्वेष करो स्वाहा। | |||
: आनंद-धूप का धुआँ उठे, खुशबू बनकर निकले आहा। | |||
: कुछ ऐसा ध्यान-दीप बारो, घर आ जाएं धाम चारों। | |||
: अथ साक्षी शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: कामना छोड़ वासना छोड़, कल्पना छोड़कर जाग अभी। | |||
: जो है उसका स्वीकार करो, अन्यथा हेतु मत भाग कभी। | |||
: छोड़ो तृष्णा विश्राम करो, साक्षी होकर आराम करो। | |||
: विश्रामं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 15 || [[file:15 Dhyan yog.mp3]] || [[Dhyan yog (ध्यान योग)]] 7:15 | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: कितना आपाधापी धन का, पद, मान, कामिनी, कंचन का। | |||
: यह दौड़ कहाँ ले जाएगी, क्या सार यही है जीवन का? | |||
: छोड़ो असार अब ध्यान करो, जीवन का कुछ सम्मान करो। | |||
: अथ ध्यानं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जैसे किसान टूटी छप्पर, वर्षा के भय से छाता है। | |||
: वैसे ही राग रोकने को, साधक भी ध्यान लगाता है। | |||
: जिसके जीवन में ध्यान घटा, उसका दुख-दारूण, राग कटा। | |||
: वीतरागं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: घर-घर में चर्चित काम यहाँ, मंदिर में बंदी राम यहाँ। | |||
: मूर्च्छा का आसव पी-पीकर, कुछ लेते हरि का नाम यहाँ। | |||
: छोड़ो प्रमाद अब ध्यान करो, कुछ भीतर अनुसंधान करो। | |||
: ओंकारं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: जो भी करता है सतत ध्यान, ऊर्जा हो जाती उर्ध्वमान। | |||
: भर जाती है गागर उसकी, बन जाती है किस्मत उसकी। | |||
: छोड़ो आलस अब ध्यान करो, प्रज्ञाजल से स्नान करो। | |||
: अथ प्रज्ञा शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: अाँखों के पीछे शून्य गगन में, अपनी साँसें स्वाहा कर। | |||
: दुख, शोक, ताप की आहुति दे, तू अभी आह से आहा कर। | |||
: सुमिरन से बढ़कर कर्म नहीं, साक्षी से बढ़कर धर्म नहीं। | |||
: अथ सुमिरन शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 16 || [[file:16 Sankhya yog.mp3]] || [[Sankhya yog (सांख्य योग)]] 7:49 - मैं कौन हूं? | |||
|} | |||
;lyrics | |||
: कुछ लोग जमा हैं मंदिर में, कुछ लोग जमा मयखाने में। | |||
: कुछ उलझ गए हैं पूजा में, कुछ उलझ गए पैमाने में। | |||
: मंदिर जाओ या मयखाना, जीवन रह जाता अनजाना। | |||
: अथ बोधं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: यदि देह, इंद्रियाँ, प्राण, हृदय, मन, अहंकार खुद को माना। | |||
: यदि नहीं बोध, चैतन्य रूप में खुद को अब तक है जाना। | |||
: तो मानुष तन में आए क्यों, जननी को कष्ट दिलाए क्यों? | |||
: जागरणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: कुछ त्यागों में कुछ भोगों में, कुछ उलझ गए हठ योगों में। | |||
: कुछ अतिशय औषधि का सेवन कर उलझ गए बहु रोगों में। | |||
: पांडित्य सरीखा रोग नहीं, साक्षीत्व सरीखा योग नहीं। | |||
: अथ साक्षी शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: यदि बोध तुम्हारा हो गहरा, घर भी आश्रम हो सकता है। | |||
: कुछ मूढ़ इकट्ठे हो जाएं, तीरथ मरघट हो सकता है। | |||
: यदि समझ विदा हो जाती है, गंगा गंदी हो जाती है। | |||
: अथ प्रज्ञा शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: हो बोध मात्र तेरा परिचय, हो काम एक रहना अकाम। | |||
: प्रार्थना एक-‘प्रभु धन्यवाद’, कहना-सुनना बस राम-राम। | |||
: कोई तेरा तादात्म्य नहीं, कुछ रूप नहीं, कुछ नाम नहीं। | |||
: अथ बोधं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
{| /*class="wikitable" */ | |||
|- | |||
| 17 || [[file:17 Sahaj yog.mp3]] || [[Sahaj yog (सहज योग)]] 7:07 | |||
|} | |||
: अब एक पहेली बूझो तो जानूं तू बड़ा सयाना है। | |||
: क्या वस्तु गुरु देता जिसको संतों ने अमोलक माना है। | |||
: क्या राम रतन धन मीरा का, गुरु नानक, संत कबीरा का? | |||
: ओंकारं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: लज्जा बिन नारी है सूनी, प्रज्ञा के बिना है नर सूना। | |||
: हर सेज पिया बिन है सूनी, साधू हरिनाम बिना सूना। | |||
: परमात्मा है असली भराव, है नहीं राम बिन कहीं ठाँव। | |||
: अथ रामं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: अनहद से कोई जड़-चेतन, कोई गुरु है कोई चेला। | |||
: अनहद से धरम-करम सब है, वरना है मूल्य न इक धेला। | |||
: अनहद से सूरज जलता है, अनहद से जीवन चलता है। | |||
: अथ अनहद शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: सुन लिया कृष्ण की वंशी को, क्या रहा और सुनना बाकी। | |||
: पी राम नाम रस लिया अगर, क्या और रहा पीना बाकी। | |||
: अब दुनिया से किसलिए आस, हर क्षण चलता है महारास। | |||
: अथ उत्सव शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
:<br> | |||
: हरि स्वयं सृष्टि की वीणा पर अनहद का राग बजाता है। | |||
: फिर भी न सुनाई दे जिसको कितना वह मनुज अभागा है। | |||
: इस धुन से जिसकी लगन लगी, सच उसकी सहज समाधि जगी। | |||
: अथ समाधि शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।। | |||
; mp3-collection | |||
: | |||
:Label (Distributor) : | |||
:OMA Catalog No : - | |||
:Format : mp3 | |||
:Artwork : | |||
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[[Category:Books on Osho by Sannyasin Authors]] | |||
[[category:Song Books]] | |||
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Latest revision as of 18:54, 2 April 2022
- Dhyan Geeta (Songs of Meditation) -- Osho's Teachings in poetry form
- This booklet contains songs based on Osho's teachings. They are collectively sung by participants of the DHYAN-SAMADHI Program at OSHODHARA, at the beginning of each session in 6 days.
- There are 17 songs, earlier there were 18.
- The booklet got reprinted at least 10 times in the last 15 years.
- For the music and lyrics, see below.
- ध्यान गीता
- इस पुस्तिका में ओशो की शिक्षाओं के आधार पर 18 गीत शामिल हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से 6 दिनों में, प्रत्येक सत्र की शुरुआत में, ध्यान-समाधि शिविर के प्रतिभागियों द्वारा गाया जाता है, साथ में मा ओशो प्रिया की मधुर आवज में ऑडियो एमपी-3 चलाया जाता है।
- author
- Songwriter : Sw Anand Siddharth (aka Osho Siddharth, Dr. Virendra Kumar Singh, ओशो सिद्धार्थ)
- Music : Sw Dev Geet (Jalil Mohammed)
- language
- Hindi
- notes
editions
ध्यान गीता
|
music album
- Artists
- Ma Amrit Priya - main singer
- Sw Dev Geet (Jalil Mohammed) - main singer
- Recorded
- 2003
- Released
- 2003
- Length
- 2:15:49
Tracks - full length
01 | Samyak Khoj (सम्यक खोज) 9:04 |
- lyrics
- घर से बाहर सब निकल पड़े, कुछ मंदिर, कुछ मयखाने में।
- धन के पीछे कुछ लोग लगे, कुछ पागल कुर्सी पाने में।
- अब कौन भला समझाये इन्हें, घर का हीरा दिखलाए इन्हें।
- अथ गेहं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- क्या होगा तीरथ जाने से, क्या होगा यज्ञ कराने से?
- शास्त्रों को पढ़कर क्या होगा, क्या होगा गंग नहाने से?
- मूरत, मस्जिद, देवालय में, क्या रखा कहो हिमालय में?
- आत्मानं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- चुकता जाता है तेल, और जलती जाती तन की बाती।
- रह जाती तब भी रात बहुत, जिन्दगी न खुद को पढ़ पाती।
- इसके पहले कि दीप बुझे, खुद की किताब पढ़ ले पगले।
- स्वाध्यायं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जीवन को दाँव लगाने का, यदि नहीं हृदय में साहस है।
- यदि नहीं ब्रह्म की प्यास जगी, विषयों में ही केवल रस है।
- मृत्यु के क्षण पछताओगे, अतृप्त विदा हो जाओगे।
- जागरणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- माना तुमने भूगोल पढ़ा, माना तुमने इतिहास पढ़ा।
- पर अपने जीवन में लिखा जो, क्या तुमने वह पाठ पढ़ा?
- यदि नहीं तो फिर कुछ शरमाओ, कुछ गीत जिंदगी के गाओ।
- स्वाध्यायं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
02 | Samyak Drishti (सम्यक दृष्टि) 8:59 |
- lyrics
- जीवन विराट है सागर-सा, हम ऊपर-ऊपर जीते हैं;
- घटनाएं हैं लहरों जैसी, हम बहुत अर्थ दे देते हैं।
- क्या हुआ जो एक साकी रूठी? क्या हुआ जो एक प्याली फूटी?
- अथ अमृत शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- सोचो, यदि प्याली ना फूटे, सोचो, यदि साकी ना रूठे;
- तो कैसे होश में आएं हम? कैसे अपने घर जाएं हम?
- यदि प्यास न थोड़ी हो बाकी, कैसे मुर्शिद मिले साकी?
- अथ सद्गुरु शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- बीते का जिसको शोक नहीं, जो वर्तमान में जीता है;
- वह पा लेता अपनी मंजिल, उसका जीवन एक गीता है।
- पढ़ लेता जो अपनी किताब, पा जाता जीवन का सुराग।
- स्वाध्यायं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- माना अस्वीकृति दुखदायी, पर देखो कितना जग विशाल;
- फूलों की कोई कमी नहीं, हे भ्रमर, विगत का क्यों मलाल?
- फैलाओ पंख उड़ान भरो, कुछ नए गीत, सुर, तान भरो।
- अथ नूतन शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जो जीवन दुख में पका नहीं, कच्चे घट-सा रह जाता है;
- जो दीप हवाओं से न लड़ा, वह जलना सीख न पाता है।
- इसलिए दुखों का स्वागत कर, दुख ही मुक्ति का है आकर।
- अथ सत्यं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
03 | Samyak Jagriti (सम्यक जागृति) 8:52 |
- lyrics
- है कौन सही, है कौन गलत, क्या रखा इस नादानी में;
- कौड़ी की चिंता करने में, हीरा बह जाता पानी में।
- जब भी शिकवा शिकायत हो, जानना तुम्हीं खलनायक हो।
- अथ प्रेमं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- मूढ़ों का रस है प्रभुता में, प्रतिभाशाली झुक जाते हैं;
- जीवन की ऊर्जा को सज्जन, यूं ही लड़कर न गंवाते हैं।
- सीना ताने चलता दुर्जन, नम्रता संत का है लक्षण।
- नम्रत्वं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- प्रतिक्रिया कभी हो तो समझो, तुमने घटना को मूल्य दिया;
- थी लहर जरा-सी लेकिन तुमने, सागर-सा बहुमूल्य किया।
- अब छोड़ो सब प्रतिशोध अहो, करते जाओ अनुरोध अहो।
- अनुरोधं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- संबंध बढ़ाते हो जब-जब, जानना एक दिन टूटेगा;
- जो मान दे रहा आज तुझे, वह यार एक दिन रूठेगा।
- उस दिन मत तनिक ग़िला करना, कहकर शुक्रिया विदा करना।
- भवितव्यं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- तुम क्षमाशील हो क्षमा करो, उनको जो अपराधी तेरे;
- तुम भी तो क्षमा चाहते हो, अपराध किए जो बहुतेरे।
- प्रतिशोध अग्नि का शमन करो, अब क्षमाशीलता वरण करो।
- अथ प्रेमं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
04 | Samyak Sambandh (सम्यक संबंध) 7:23 |
- lyrics
- गौतम ने कहा-भिक्षुओ सुनो, मन ही सुख-दुख का मूल अहो;
- जो है उसका करता न मान, कुछ नहीं मिला तो परेशान।
- मन है अशांत तो जो भी करो, आएगा दुःख अनिवार्य अहो।
- अथ शांतिं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जैसे चक्का पीछे-पीछे, बैलों के चलता जाता है;
- वैसे ही हो यदि मन चंगा, सुख की गंगा ले आता है।
- सारा जग है मन की माया, मन से ही धूप, मन से छाया।
- प्रमुदित मन शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- लगता होगा यह बहुत बार, कुछ लोग नहीं सुनते तुमको;
- घायल हो जाता अहंकार, दुख पागल कर देता मन को।
- मत कथा गढ़ो या चिल्लाओ, नूतन अनुरोध किए जाओ।
- अनुरोधं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जो नहीं हुआ उसकी खातिर, यदि ज्यादा शोर मचाओगे;
- जो है वह भी खो जाएगा, तुम व्यर्थ खड़े पछताओगे।
- इसलिए नहीं जो मिला तुम्हें, उसके न लिए हो ग़िला तुम्हें।
- सद्भावं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- कुछ करो मगर मत जिद्द करो, दुनिया चलती ही रहती है;
- अंगद जैसा मत पांव टेक, बाजी उल्टी पड़ सकती है।
- कोई न जरूरी दसकंधर, खा जाएगा पथ में ठोकर।
- निर्दंभं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
05 | Samyak Karm (सम्यक कर्म) 9:31 |
- lyrics
- हम अपना लिखते भाग्य स्वयं, पर समय बीत जब जाता है;
- ख़ुद का ही लिखा न पढ़ पाते, अक्षर धुंधला हो जाता है।
- इसलिए नियति को मत मानो, अपना हस्ताक्षर पहचानो।
- दायित्वं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- हम जो भी करते कर्म यहाँ, फल पीछे-पीछे आता है।
- पुरुषार्थ कालक्रम में पककर, प्रारब्ध अटल बन जाता है।
- है रची तुम्हीं ने आत्मकथा, मत कहो विधाता ने लिखा।
- पुरुषार्थं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- सोना, सज्जन या साधु-संत, सौ बार टूट जुड़ जाते हैं;
- दुर्जन कुम्हार के घट-से दरक गए न कभी मिल पाते हैं।
- यदि हो जाओ सोना जैसा, जीवन में फिर रोना कैसा।
- निरबैरं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- यदि थोड़ा भी हो रस बाकी, कर पहल दोस्ती कर लेना।
- सौ तीरथ जाने से बढ़कर, एक रूठा यार मना लेना।
- कहने को कोई हमारा है, तब तक ही यह जग प्यारा है।
- अथ मैत्री शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जुगनू जैसे थोड़ा जल-जल, जिंदगी न शोला बनती है;
- पूजा, जप, स्तुति से न कभी, धूनी समाधि की जलती है।
- साक्षी, प्रज्ञा, हरिनाम बिना, संबोधि मिली कब ध्यान बिना।
- अथ ध्यानं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
06 | Samyak Vani (सम्यक वाणी) 7:49 |
- lyrics
- हीरा को हीरा कहने से, पत्थर पत्थर रह जाता है।
- कंकड़ को कंकड़ कहो अगर, वक़्ता कंकड़ हो जाता है।
- इसलिए श्रेष्ठ की प्रिफक करो, मत लघुताओं का जिक्र करो।
- अथ श्रेष्ठं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- चंदन, बेला, जूही या कमल, कितने सुरभित, कितने सुन्दर!
- पर सुरभि अनूठी, जिसके जीवन में खिलता है शील-कमल।
- भीतर-बाहर का भेद नहीं, वह जो बोले है वेद वही।
- अथ शीलं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- मनसा, वाचा, कर्मणा कभी, कटुता जीवन में मत लाओ।
- सबका मंगल सोचो प्रतिपल, मंगल के गीत सदा गाओ।
- सबसे मीठी वाणी बोलो, सबसे प्यारा नाता जोड़ो।
- अथ मंगल शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- यदि हृदय प्रेम से भरा, अधर पर कैसे फिर गाली होगी?
- मन में कड़वाहट भरी अगर, मीठी कैसे वाणी होगी?
- इसलिए न विष का जिक्र करो, बस अमृत की तुम फिक्र करो।
- अथ अमृत शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- कहने वाले की बात सुनो, फिर कहो कि क्या तुमने समझा।
- जब लगे कि वह सुन रहा प्रेम से, तब ही पक्ष रखो अपना।
- पहले समझो, फिर समझाओ, यह सूत्र शील का अपनाओ।
- संवादम शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
07 | Samyak Sankalp (सम्यक संकल्प) 8:46 |
- lyrics
- जब भी बाधा आए पथ में, उसको सोपान बना लेना।
- अपमान करे कोई, शिव-सा विषपान बना लेना।
- मत कभी शोक या मोह करो, हो कृत्य कोई तुम योग करो।
- अथ योगं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जो टूट गए संकल्प कभी, फिर से उनका उद्धार करो।
- जो साथी पथ में रूठ गए, उनसे फिर आँखें चार करो।
- तुम पहल करो, आलस छोड़ो, टूटे संबंधों को जोड़ो।
- प्रतिबद्धं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- हो मार्ग कहीं अवरूद्ध अगर, कुछ नूतन राह तलाश करो।
- बहती दरिया से कुछ सीखो, सम्यक रह सतत प्रयास करो।
- हर शिला खड़ी रह जाती है, सरिता आगे बढ़ जाती है।
- अथ प्रज्ञा शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- निष्ठापूर्वक निज कर्म करो, जग को जो भाए कहने दो।
- हाथी-सा तुम मदमस्त चलो, कुत्ते भूंकते हैं भूंकने दो।
- निष्ठा की आग न छुपती है, संकल्प नदी कब रुकती है?
- अथ निष्ठा शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- बेहतर होगा तुम लिख डालो, अपने जीवन का संविधान।
- संकल्प सहित पालन करना, अब शेष रहे या जाए प्राण।
- जो रहता है संकल्पहीन, उसका जीवन है अर्थहीन।
- संकल्पं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
08 | Samyak Sweekar (सम्यक स्वीकार) 7:08 |
- lyrics
- संसारी हो या साधक हो, फल की आकांक्षा बाधक है;
- उद्देश्य कर्म का पूरा हो, यह तो न सदा आवश्यक है।
- जो हुआ, मील का है पत्थर, योगी बढ़ता आगे पथ पर।
- अथ योगं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- कुछ होता है अनुकूल यहाँ, कुछ होता है प्रतिकूल यहाँ;
- हम व्यर्थ पात से कंपते हैं, कुछ फूल यहाँ, कुछ शूल यहाँ।
- लहरों को बनने-मिटने दो, भीतर चैतन्य न कंपने दो।
- निष्कंपं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जब भी तुम ठोकर खाते हो, प्रतिशोध छलककर आता है;
- पर नहीं शिकायत हो मन में, तब ही जानना तथाता है।
- जिसके दिल में न शिकायत है, वह दिल कुरान की आयत है।
- अशिकायत शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जो रहता अपनी मस्ती में, जिन्दगी बोध की गीता है;
- निष्काम और निरअहंकार, जो धन्यवाद में जीता है।
- वह बोधिसत्व है, वंदित है, उसका बुद्धत्व सुनिश्चित है।
- संबोधिं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- अब गाओ गीत तथाता के, पांवों में घुंघरु बंधने दो;
- नाचो हे नटनागर नटवर, बांसुरी शून्य की बजने दो।
- स्वीकार भरा यदि जीवन है, हर गाँव-नगर वृन्दावन है।
- कृष्णत्वं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
09 | Paramatma (परमात्मा) 8:38 - अष्टांग योग / अजपा समाधि |
- lyrics
- मंदिर-मस्जिद में सीस झुका, तुम जिसको सजदा करते हो।
- भीतर पुकारता कब से वह, आवाज नहीं क्यों सुनते हो?
- है नाम बिना निस्तार नहीं, प्रियतम बिन होता प्यार नहीं।
- अथ अनहद शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- सबके भीतर प्रभु बैठ स्वयं, है चला रहा सबकी मशीन।
- आश्चर्य सभी हैं देख रहे, फिर भी न कोई करता यकीन।
- यह अंधों का है गाँव अरे, हम कहाँ दिखाएं राम अरे?
- अथ रामं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- धुंधली हो गई नजर हो तो, ऐनक अपनी कुछ साफ करो।
- सब आँखों से वह झाँक रहा, हर हाथ उसी का हाथ अहो।
- वह दिग-दिगंत से गाता है, सुन लो यदि सुनना आता है।
- अथ श्रवणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- गंगा तट पर सब खड़े हुए पर पूछ रहे हैं गंग कहाँ?
- है नामपट्ट पर नजर टिकी, कोई लिख दे है गंग यहाँ।
- तुम जहाँ कहो मैं वहीं लिखूं, पर किस भाषा में हरि लिखूं?
- अथ नादं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- भीतर भी वही गूंजता है, बाहर भी वही गूंजता है।
- अनहद में है वह निराकार, कोयल बन वही कूंजता है।
- है ओंकार का ख्याल जिसे, क्या कर पाएगा काल उसे।
- अथ नादं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
10 | Karmyog (कर्म योग) 7:50 - योग क्या है? |
- lyrics
- कर्मस्थल बन जाए मंदिर, घर को आश्रम बन जाने दो।
- हर साँस बोध के साथ चले, हर बात भजन बन जाने दो।
- गुरु साकी तू पीनेवाला, जीवन बन जाए मधुशाला।
- अथ साक्षी शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जिन्दगी एक सीता-सी है, संसार भयानक कानन है;
- पल भर जो प्रहरी दूर हुआ, हरने को खड़ा दशानन है।
- इसलिये स्वर्णमृग मत मांगो, लक्ष्मणरेखा को मत लांघो।
- अथ साक्षी शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- तन से हो या कि मन से हो, हो साक्षी की निगरानी में।
- वरना तुम जो भी करते हो, जुड़ जाता आनी-जानी में।
- साक्षी होकर सब कर्म करो, है यही सनातन धर्म अहो।
- अथ साक्षी शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- कर्मों की आपाधापी में, तुम होश नहीं अपना खोना।
- अनुकूल हुआ तो मत नाचो, प्रतिकूल हुआ तो मत रोना।
- है नहीं कृत्य कोई महान, है किया होश में मूल्यवान।
- अथ ध्यानं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- तुम कर्म करो लेकिन सोचो, जो भी होगा अच्छा होगा।
- वह आज भले प्रतिकूल लगे, कल निश्चय ही अच्छा होगा।
- जग का जो भी है निर्माता, मंगल की ओर लिए जाता।
- भवितव्यं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
11 | Tantrayog (तंत्र योग) 7:09 |
- lyrics
- साकी रख गई भरी बोतल, है जाम सजा मेरे आगे।
- सब रिंद जमा हो पूछ रहे, जो आया भोगें या त्यागें।
- मैं कहता बस अब पीता जा, बस जाग जरा और जीता जा।
- जागरणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- तू बना फकीरा वेश जगत का देख तमाशा साक्षी बन।
- आनंद सहित स्वीकार करो, प्रभु पिला रहा है साकी बन।
- क्यों प्याज छीलता है मुल्ला, रब परस रहा जब रसगुल्ला।
- आनंदं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- पीने को जब भी जाम उठा, प्याले का हरदम होश रहे।
- मंजिल पाकर भी कुछ आगे चलने का भीतर जोश रहे।
- पल भर की मूर्च्छा जीवन में, सीता लुट जाती है वन में।
- अमूर्च्छा शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जो नहीं काम में उतर सका, निष्काम भला वह क्या होगा।
- जिसने न कभी भी प्रेम किया, भगवान भला वह क्या होगा।
- है काम राम का द्वार अहो, राधा बिन कैसा श्याम कहो।
- निष्कामं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- कल की हम बात करें कैसे, क्या पता कि कल क्या मौसम हो।
- हों कौन रिंद पीने वाले किसकी क्या खुशियाँ, क्या गम हो।
- इसलिए आज जी भर के पी, बस अभी यहीं जी भर के जी।
- अथ अद्यं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
12 | Hathyog (हठ योग) 5:50 - विपस्सना ध्यान |
- lyrics
- सब एक साल में एक बार होली का पर्व मनाते हैं।
- योगी सालों भर मस्ती का गुलाल-अबीर उड़ाते हैं।
- साँसो का लेकर इकतारा, मस्ती का गीत सुना प्यारा।
- आनंदं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- सूर्योदय से पहले घंटे भर, साधक नियमित चला करे।
- रात्रि में सोने से पहले, चक्रमण घड़ी भर किया करे।
- बल, बुद्धि, वीर्य बढ़ता इससे, साधक निरोग रहता इससे।
- निर्व्याधिं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- हर आती साँस जनम नूतन, हर जाती साँस मौत का क्षण।
- दोनों के मध्य ठहर जाओ, तो काहे का फिर जन्म-मरण?
- है आदि नहीं, है अंत नहीं, वह अलख निरंजन सत्य तुम्हीं।
- अथ शाश्वत शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जाती साँसें गहरी हों तो, जीवन अमृत बन जाता है।
- आती साँसें लंबी हों तो, आनंद मधुर छा जाता है।
- शांति से पुलक जो आता है, आनंद वही कहलाता है।
- आनंदं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- हर साँस राम-सागर से लहरों जैसी उठने-गिरने दो।
- साँसों की माला से साक्षी को हरि का नाम सुमिरने दो।
- हर वृत्ति लहर बन जाने दो, साक्षी सुमिरन बच जाने दो।
- अथ मौनं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
13 | Bhakti yog (भक्ति योग) 7:02 |
- lyrics
- जग कहता उसको दुश्चरित्र, जो प्यार किसी से करता है।
- और सच्चरित्र कहता उसको, जो रूखा-सूखा रहता है।
- नासमझों का यह गाँव अरे, आ चलें जहाँ सद्भाव अरे।
- सद्भावं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- मत सुनो शेख की, पंडित की, तुम अपने दिल का गीत सुनो।
- कुछ कहो हालेदिल रहबर से, जो कहे तुम्हारा मीत सुनो।
- मत गीता, ग्रंथ, कितेब पढ़ो, ढाई आखर का वेद पढ़ो।
- अथ श्रवणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- चाहे तैरा हो सप्त सिंधु, चाहे गौरी शंकर जीता।
- डूबा जो न प्रिय की आँखों में, उसका जीवन यूं ही बीता।
- जो समझ न पाया आँखों से, वह क्या समझेगा बातों से।
- अथ दृष्टि शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- यदि हाथ चाहते ईश्वर का, पहले दिलवर का हाथ गहो।
- मन से मन का स्पर्श करो, आत्मा से आत्मा को छू लो।
- जब गहन प्रेम में जाओगे, हर हाथ उसी का पाओगे।
- स्पर्शं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- है जहाँ प्रेम है धर्म वहीं, हर प्रेयसि राधा रानी है।
- हर प्रेमी ब्रज का कृष्ण और गीता हर प्रेम-कहानी है।
- जिसने न कभी है प्रेम किया, उसने यह जीवन व्यर्थ जिया।
- अथ प्रेमं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
14 | Gyan yog (ज्ञान योग) 7:37 |
- lyrics
- मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में, जा कब तक शीश झुकाओगे?
- कब तक रामायण, गीता से, अपने मन को बहलाओगे?
- कब खुद को शीश झुकाओगे, कब खुद गीता बन जाओगे?
- आत्मानं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- शास्त्रों को पढ़कर क्या होगा? शब्दों को रटकर क्या होगा?
- जब तलक शेष है राग-द्वेष, जब तलक वासना, मोह शेष।
- जब तलक धर्म अचारण न हो, तबतलक न कोई श्रमण अहो।
- आचरणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- है काम, क्रोध, मद, लोभ लहर, ईर्ष्या, विद्वेष, विमोह लहर।
- हर विदा लहर, हर मेल लहर, धन, योवन का सब खेल लहर।
- लहरों को जिसने पहचाना, उसने ही सागर को जाना।
- जागरणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- साक्षी धूनी बन जाने दो, ईर्ष्या-विद्वेष करो स्वाहा।
- आनंद-धूप का धुआँ उठे, खुशबू बनकर निकले आहा।
- कुछ ऐसा ध्यान-दीप बारो, घर आ जाएं धाम चारों।
- अथ साक्षी शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- कामना छोड़ वासना छोड़, कल्पना छोड़कर जाग अभी।
- जो है उसका स्वीकार करो, अन्यथा हेतु मत भाग कभी।
- छोड़ो तृष्णा विश्राम करो, साक्षी होकर आराम करो।
- विश्रामं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
15 | Dhyan yog (ध्यान योग) 7:15 |
- lyrics
- कितना आपाधापी धन का, पद, मान, कामिनी, कंचन का।
- यह दौड़ कहाँ ले जाएगी, क्या सार यही है जीवन का?
- छोड़ो असार अब ध्यान करो, जीवन का कुछ सम्मान करो।
- अथ ध्यानं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जैसे किसान टूटी छप्पर, वर्षा के भय से छाता है।
- वैसे ही राग रोकने को, साधक भी ध्यान लगाता है।
- जिसके जीवन में ध्यान घटा, उसका दुख-दारूण, राग कटा।
- वीतरागं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- घर-घर में चर्चित काम यहाँ, मंदिर में बंदी राम यहाँ।
- मूर्च्छा का आसव पी-पीकर, कुछ लेते हरि का नाम यहाँ।
- छोड़ो प्रमाद अब ध्यान करो, कुछ भीतर अनुसंधान करो।
- ओंकारं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- जो भी करता है सतत ध्यान, ऊर्जा हो जाती उर्ध्वमान।
- भर जाती है गागर उसकी, बन जाती है किस्मत उसकी।
- छोड़ो आलस अब ध्यान करो, प्रज्ञाजल से स्नान करो।
- अथ प्रज्ञा शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- अाँखों के पीछे शून्य गगन में, अपनी साँसें स्वाहा कर।
- दुख, शोक, ताप की आहुति दे, तू अभी आह से आहा कर।
- सुमिरन से बढ़कर कर्म नहीं, साक्षी से बढ़कर धर्म नहीं।
- अथ सुमिरन शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
16 | Sankhya yog (सांख्य योग) 7:49 - मैं कौन हूं? |
- lyrics
- कुछ लोग जमा हैं मंदिर में, कुछ लोग जमा मयखाने में।
- कुछ उलझ गए हैं पूजा में, कुछ उलझ गए पैमाने में।
- मंदिर जाओ या मयखाना, जीवन रह जाता अनजाना।
- अथ बोधं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- यदि देह, इंद्रियाँ, प्राण, हृदय, मन, अहंकार खुद को माना।
- यदि नहीं बोध, चैतन्य रूप में खुद को अब तक है जाना।
- तो मानुष तन में आए क्यों, जननी को कष्ट दिलाए क्यों?
- जागरणं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- कुछ त्यागों में कुछ भोगों में, कुछ उलझ गए हठ योगों में।
- कुछ अतिशय औषधि का सेवन कर उलझ गए बहु रोगों में।
- पांडित्य सरीखा रोग नहीं, साक्षीत्व सरीखा योग नहीं।
- अथ साक्षी शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- यदि बोध तुम्हारा हो गहरा, घर भी आश्रम हो सकता है।
- कुछ मूढ़ इकट्ठे हो जाएं, तीरथ मरघट हो सकता है।
- यदि समझ विदा हो जाती है, गंगा गंदी हो जाती है।
- अथ प्रज्ञा शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- हो बोध मात्र तेरा परिचय, हो काम एक रहना अकाम।
- प्रार्थना एक-‘प्रभु धन्यवाद’, कहना-सुनना बस राम-राम।
- कोई तेरा तादात्म्य नहीं, कुछ रूप नहीं, कुछ नाम नहीं।
- अथ बोधं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
17 | Sahaj yog (सहज योग) 7:07 |
- अब एक पहेली बूझो तो जानूं तू बड़ा सयाना है।
- क्या वस्तु गुरु देता जिसको संतों ने अमोलक माना है।
- क्या राम रतन धन मीरा का, गुरु नानक, संत कबीरा का?
- ओंकारं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- लज्जा बिन नारी है सूनी, प्रज्ञा के बिना है नर सूना।
- हर सेज पिया बिन है सूनी, साधू हरिनाम बिना सूना।
- परमात्मा है असली भराव, है नहीं राम बिन कहीं ठाँव।
- अथ रामं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- अनहद से कोई जड़-चेतन, कोई गुरु है कोई चेला।
- अनहद से धरम-करम सब है, वरना है मूल्य न इक धेला।
- अनहद से सूरज जलता है, अनहद से जीवन चलता है।
- अथ अनहद शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- सुन लिया कृष्ण की वंशी को, क्या रहा और सुनना बाकी।
- पी राम नाम रस लिया अगर, क्या और रहा पीना बाकी।
- अब दुनिया से किसलिए आस, हर क्षण चलता है महारास।
- अथ उत्सव शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
- हरि स्वयं सृष्टि की वीणा पर अनहद का राग बजाता है।
- फिर भी न सुनाई दे जिसको कितना वह मनुज अभागा है।
- इस धुन से जिसकी लगन लगी, सच उसकी सहज समाधि जगी।
- अथ समाधि शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
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