Talk:Tao Upanishad, Bhag 1 (ताओ उपनिषद, भाग एक): Difference between revisions

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:9. महत्वाकांक्षा का जहर व जीवन की व्यवस्था
:9. महत्वाकांक्षा का जहर व जीवन की व्यवस्था
:10. भरे पेट और खाली मन का राज—ताओ
:10. भरे पेट और खाली मन का राज—ताओ
:11. कोरे ज्ञान से इच्छा—मुक्ति व अक्रिय व्यवस्था की ओर
:11. कोरे ज्ञान से इच्छा-मुक्ति व अक्रिय व्यवस्था की ओर
:12. वह परम शून्य, परम उदगम, परम आधार—ताओ
:12. वह परम शून्य, परम उदगम, परम आधार—ताओ
:13. अहंकार—विसर्जन और रहस्य में प्रवेश
:13. अहंकार—विसर्जन और रहस्य में प्रवेश

Revision as of 13:55, 10 August 2018

why did you remove the cover image? --Rudra (talk) 02:32, 25 October 2015 (UTC)


It looked to me like it was in error, the image was of the wrong vol, vol 6. It looks exactly like vol 6 and, though the resolution is so poor i can't be 100% sure, the Devanagari text for the vol # looks more like भाग छह (Bhag 6) than भाग एक (Bhag 1) when i blow it up. -- doofus-9 06:17, 25 October 2015 (UTC)


Oh yes, well spotted ! --Rudra (talk) 15:25, 25 October 2015 (UTC)


TOC below is from the audiobook places, osho.com and Osho World. Titles are the same in each except for a number of hyphens in OW vs long dashes in o.com, which are preferred. The discourse numbering is also the same, with numbers going from 1 to 127 over the six volumes of this mega-series, with each volume comprising 21 talks except for this one, with 22. -- doofus-9 07:43, 31 March 2017 (UTC)

1. सनातन व अविकारी ताओ
2. रहस्यमय परम स्रोत—ताओ
3. ताओ की निष्काम गहराइयों में
4. अज्ञान और ज्ञान के पार—वह रहस्य भरा ताओ
5. सापेक्ष विरोधों से मुक्त—सुंदर और शुभ
6. विपरीत स्वरों का संगीत
7. निष्क्रिय कर्म व निःशब्द संवाद—ज्ञानी का
8. स्वामित्व और श्रेय की आकांक्षा से मुक्त कर्म
9. महत्वाकांक्षा का जहर व जीवन की व्यवस्था
10. भरे पेट और खाली मन का राज—ताओ
11. कोरे ज्ञान से इच्छा-मुक्ति व अक्रिय व्यवस्था की ओर
12. वह परम शून्य, परम उदगम, परम आधार—ताओ
13. अहंकार—विसर्जन और रहस्य में प्रवेश
14. प्रतिबिंब उसका, जो कि परमात्मा के भी पहले था
15. समझ, शून्यता, समर्पण व पुरुषार्थ
16. निष्पक्ष हैं तीनों—स्वर्ग, पृथ्वी और संत
17. विरोधों में एकता और शून्य में प्रतिष्ठा
18. घाटी-सदृश, स्त्रैण व रहस्यमयी परम सत्ता
19. स्त्रैण-चित्त के अन्य आयाम: श्रद्धा, स्वीकार और समर्पण
20. धन्य हैं वे जो अंतिम होने को राजी हैं
21. जल का स्वभाव ताओ के निकट है
22. लाओत्से सर्वाधिक सार्थक—वर्तमान विश्व-स्थिति में