Letter written on 3 Sep 1963
Letterhead reads, in Devanagari:
- Acharya Rajneesh (oriented vertically)
- 115, Napier Town, Jabalpur (M.P.) (oriented normally)
It is dated the afternoon of 3rd September 1963 in Jabalpur and signed with "Rajneesh ke pranaam". It is not known to have been previously published.
The recipient is Rajendranath Tripathi, who worked for the Life Insurance Corp of India in Nagpur, then transferred to Bombay. It is one of four letters known to have been written to him.
The envelope belonging to the letter is underneath. Both the letter and the envelope have material written on the backside which is included here.
आचार्य रजनीश ११५, नेपियर टाउन, जबलपुर (म. प्र:)
प्रिय आत्मन्, व्यक्ति समग्र कि सत्ता से पृथक् नहीं है। सत्ता से कुछ भी भिन्न और अन्य कैसे होसकता है ? 'जो है' एक है। इस 'एक' में स्व को छोड़ देना है। तैरना नहीं बहना है। तैरना अहंता है। वह सर्व से स्व को भिन्न मानना है। वह है असहजता, प्रयास और पकड़। एक शब्दः में संसार। और बहना -- बहना है मुक्ति। जो न होने को राजी हैः वह सब पालेता है। 'मिट जाओः' पर शायद यह कहना भी ठीक नहीं है ! उसमें भी कुछ 'करने' की गंध है ! न बनना है, न मिटना है। 'जो है' उसे जानते ही स्व-कानिपट अहम् विसर्जित होजाता है। 'जो है' उसे जानना होता है शून्यता में। जब मन मौन होता हैः शून्य और निस्पंद तब कोई अज्ञात प्रकाश-किरण सारे अंधेरे को मिटा जाती है। वह प्रकाश-किरण निश्चित आती हैः केवल शांति और शून्य में प्रतीक्षा करनी है।
प्रभु प्रतीक्षा को प्राप्ति बनाये यही कामना है। सबको मेरा प्रेम कहना। रजनीश के प्रणाम दोपहरः |
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पुनश्चः मैं उधर आया तो लिखूँगा। तुम श्री एम. आर. पारधी जी से मिलना। आनंद अनुभव होगा। वे भी मेरे प्यारों में से एक हैं। उनका पता दे रहा हूँ: श्री एम.आर. पारधी, पारधी-निवास, वुटी रोड, सीताबर्डी, नागपुर। (फोनः २९६१) |
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To -- Residence 4915 |
Other letters to RN Tripathi:
- See also
- Letters to Rajendranath Tripathi ~ 01 - The event of this letter.