Manuscripts ~ Reports: Difference between revisions

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:संकलन : नटूभाई मेहता
 
:"शांति में, मौन में, शून्य में खड़े होकर जीवन को देखना ही धर्म है| वही है धर्म की कला| उसीसे उसमें मिलनहोता है, जो कि सत्य है| प्रेम की भाषा में वह सत्यही परमात्मा है|"
 
:बम्बई, क्रासमैदानमें विराट सत्संग:
आचार्य श्री ७ अप्रैल की दोपहर बंबई पधारे| संध्या ही उन्होंने क्रास मैदान में आयोजित सत्संग की प्रथम सभा को संबोधित किया| जैसे ग्रीष्म के उत्ताप के बाद भूमि जल के लिए प्यासी होती है वैसे ही हज़ारों व्यक्ति उनके अमृत शब्दों के लिए आतुर रहते हैं| और जो उनके शब्दों के साथ यात्रा करने में सफल होता है, वह उन्हें सुनते-सुनते ही किसी और ही लोक में प्रविस्ट हो जाता है| उनके श्रोताओं में इसीलिए सैकड़ों व्यक्ति ध्यानस्थ देखे जा सकते हैं| उनकी उपस्थिति मात्र से ही जैसे चित्त शांत और शीतलहो जाता है| उन्होंने अपने इस प्रथम उद्द्बोधनमें यहाँ कहा: "विचार परमात्मा का मार्ग नहीं है| विचार सत्य का द्वार नहीं है| सत्या तो है अज्ञान| और विचार केवल उसे हीविचार सकता है जो किजाना ही हुआ है| वह ज्ञान का अतिक्रमण करने में समर्थ नहीं है| वह ज्ञांत में ही गति है| वह स्मृति में ही परिभ्रमण है|और इसीलिए वह नये मेंऔर अनजान में और अज्ञान में नहीं ले जाता है| वह तो अतीत में की बासे में और मृत में ही भटकता रहता है| और सत्य अतीत नहीं है| वह चिर नूतन है| वह तो नित नवीन है| वह तो सदा ही नया और जीवंत है| इसलिए उसे जानने और जीने के लिए विचार से बिल्कुल ही भिन्न दिशा उपलब्ध करनी होती है| वह दिशा है निर्विचार की| विचार को जाने दें और निर्विचार को आने दें| विचार की तरंगों में ही सत्य का शांत सागर छिपा है| शांत होकर, शून्य होकर जीवन को देखें| उसी दर्शन में उससे मिलन होता है जो कि सत्य है| और उस एक को ही प्रेम परमात्मा कहता है|"
 
:"जीवन को प्रेम करो----जीवन को उसकी गहराइयों में जिओ----क्योंकि जीवन के मंदिर में ही परमात्मा का आवास है"
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Revision as of 17:58, 2 March 2018

Reports of Nation-Wide Programmes of Acharya Shri

year
A: 7 - 22 Apr 1968
B: 5 May - 29 Jul 1968
C: 2 Aug - 20 Sep 1968
D: 11 Nov 1968 - 18 Jan 1969
E: 4 Feb - 2 Apr 1969
notes
69 pages in groups A to E.
A: 4 sheets
B: 13 sheets plus 10 written on reverse
C: 17 sheets
D: 8 sheets plus 2 written on reverse
E: 9 sheets plus 7 written on reverse
Page numbers showing "R" and "V" refer to "Recto and Verso".


page no original photo enhanced photo Hindi transcript English translation
A-1
समाचारविभाग
धर्म चक्र प्रवर्तन:
आचार्यश्री के देशव्यापीकार्यक्रम
संकलन : नटूभाई मेहता
"शांति में, मौन में, शून्य में खड़े होकर जीवन को देखना ही धर्म है| वही है धर्म की कला| उसीसे उसमें मिलनहोता है, जो कि सत्य है| प्रेम की भाषा में वह सत्यही परमात्मा है|"
बम्बई, क्रासमैदानमें विराट सत्संग:

आचार्य श्री ७ अप्रैल की दोपहर बंबई पधारे| संध्या ही उन्होंने क्रास मैदान में आयोजित सत्संग की प्रथम सभा को संबोधित किया| जैसे ग्रीष्म के उत्ताप के बाद भूमि जल के लिए प्यासी होती है वैसे ही हज़ारों व्यक्ति उनके अमृत शब्दों के लिए आतुर रहते हैं| और जो उनके शब्दों के साथ यात्रा करने में सफल होता है, वह उन्हें सुनते-सुनते ही किसी और ही लोक में प्रविस्ट हो जाता है| उनके श्रोताओं में इसीलिए सैकड़ों व्यक्ति ध्यानस्थ देखे जा सकते हैं| उनकी उपस्थिति मात्र से ही जैसे चित्त शांत और शीतलहो जाता है| उन्होंने अपने इस प्रथम उद्द्बोधनमें यहाँ कहा: "विचार परमात्मा का मार्ग नहीं है| विचार सत्य का द्वार नहीं है| सत्या तो है अज्ञान| और विचार केवल उसे हीविचार सकता है जो किजाना ही हुआ है| वह ज्ञान का अतिक्रमण करने में समर्थ नहीं है| वह ज्ञांत में ही गति है| वह स्मृति में ही परिभ्रमण है|और इसीलिए वह नये मेंऔर अनजान में और अज्ञान में नहीं ले जाता है| वह तो अतीत में की बासे में और मृत में ही भटकता रहता है| और सत्य अतीत नहीं है| वह चिर नूतन है| वह तो नित नवीन है| वह तो सदा ही नया और जीवंत है| इसलिए उसे जानने और जीने के लिए विचार से बिल्कुल ही भिन्न दिशा उपलब्ध करनी होती है| वह दिशा है निर्विचार की| विचार को जाने दें और निर्विचार को आने दें| विचार की तरंगों में ही सत्य का शांत सागर छिपा है| शांत होकर, शून्य होकर जीवन को देखें| उसी दर्शन में उससे मिलन होता है जो कि सत्य है| और उस एक को ही प्रेम परमात्मा कहता है|"

"जीवन को प्रेम करो----जीवन को उसकी गहराइयों में जिओ----क्योंकि जीवन के मंदिर में ही परमात्मा का आवास है"

बंबई, सी. जे. हॉल में प्रश्नोत्तरी: || English translation..... coming soon....

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