Dekh Kabira Roya (देख कबीरा रोया)

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मेरी दृष्टि में तो भारत के विचार की शक्ति खो गई है; भारत के पास विचार की ऊर्जा नष्ट हो गई है। भारत ने हजारों साल से सोचना बंद कर दिया है। भारत सोचता ही नहीं है। यह इतना बड़ा पत्थर भारत के प्राणों पर है कि अगर कुछ हजार लोग अपने सारे जीवन को लगा कर इस पत्थर को हटा दें, तो भारत का जितना हित हो सकता है, उतना ये तथाकथित रचनात्मक कहे जाने वाले कामों से नहीं।... समाज को बदले बिना सारे रचनात्मक काम पुराने समाज को बचाने वाले, टिकाने वाले सिद्ध होते हैं। समाज की जीवन-व्यवस्था में आमूल-रूपांतरण न हो, तो समाज में चलने वाली सेवा, समाज में चलने वाला रचनात्मक आंदोलन पुराने समाज के मकान में ही पलस्तर बदलने, रंग-रोगन करने, खिड़की-दरवाजों को पोतने वाला सिद्ध होता है। नहीं, आज समाज को रचनात्मक काम की नहीं, विध्वंसात्मक काम की जरूरत है; आज समाज को कंस्ट्रक्शन की नहीं, एक बहुत बड़े डिस्ट्रक्शन की जरूरत है। आज समाज के पास इतना कचरा, इतना कूड़ा है हजारों साल का कि उसमें आग देने की जरूरत है। इस वक्त जो लोग हिम्मत करके विध्वंस करने को राजी हैं, वे ही लोग एकमात्र रचनात्मक काम कर रहे हैं। यह समाज जाए, यह सड़ा-गला समाज नष्ट हो, इसके लिए सब-कुछ किया जाना आज जरूरी है।
notes
This title serves as the title both of a three-volume series and of the last and largest of the three volumes, arranged thusly:
  • Aswikriti Mein Utha Haath ch 1-8 of the 30-chapter whole series
  • Gandhiwaad Ek Aur Sameeksha ch 0-11
  • Dekh Kabira Roya (देख कबीरा रोया) ch 12-30
Title is also the title of a 1957 Bollywood romantic comedy.
None of the titles in his series have been published, but all are available in audio form, excepting five missing discourses: 7 and 8 from AMUH and 26, 28 and 29.
time period of Osho's original talks/writings
(unknown)
number of discourses/chapters
19, 30


editions