Doobne Ka Aamantran (डूबने का आमन्त्रण)
- ओशो के शब्द हमारे युग की अनिवार्यता हैं। - डाॅ. हरिवंश राय बच्चन ओशो के पास प्रेम है। प्रेम की शराब है। थोड़ा - थोड़ा पिलाने में उनका भरोसा नहीं। डुबा देना चाहते हैं प्रेम की शराब में। वह आमन्त्रण देते हैं - डूबने का। वह आमन्त्रण देते हैं - मुक्त हो जाओ! संन्यास से मुक्ति की बात कहते हैं और यह कि भगवान डुबो तो सकता है, पार नहीं लगा सकता। फिर क्या करें? ओशो ही कहते हैं, मुक्त हो जाओ! वह निश्चित रूप से डुबो सकते हैं, पार नहीं लगा सकते। उसमें उनका विश्वास नहीं है। पार कहीं कोई है भी नहीं। जो डूब गया, वही पहुंच गया। डूबना ही परमात्मा में डूबना है। यहां तो जो डूब जाए, उसी को किनारा मिलता है। विश्व के महान गुरु ओशो का है यह महामन्त्र। वही सारी दुनिया में बसने वाले लाखों लोगों को आमन्त्रित करते हैं, डूबने के लिए और फिर मुक्त हो जाने के लिए। एक भी क्षण गंवाए बिना डूब जाओ! क्या पता फिर कभी मौक़ा मिले, न मिले?
- notes
- For TOC see discussion.
- Originally published as ch.1-5 of Bahuri Na Aisa Daanv (बहुरि न ऐसा दांव).
- time period of Osho's original talks/writings
- (unknown)
- number of discourses/chapters
- 5
editions
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