Hasya-Phooljhadiyan (हास्य-फुलझड़ियां)
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- मनुष्य जीवन को यदि गौर से देखा जाये तो यह एक धूप-छांव के खेल से अधिक कुछ नहीं है। जीवन में अनेक रंग उभरते हैं और सब न जाने कहां बिखर जाते हैं। मनुष्य एक रंग में रंगकर उससे निकलता है तो दूसरे में उलझ जाता है। जीवन के खेल में निष्पाप चैतन्य, अपनी सहयात्री माया की सहायता से, जो उसे ठग-ठग कर सिखाती है, अपने ज्ञान अर्जन की यात्रा पर जीव को कभी इधर तो कभी उधर खींचता है और उलझाता है। इस खेल में जो बाहर रंगों में उलझता है वह बाहर ही रंगों में खो जाता है और जो रंगों से खेलते हुए अपने मूल गंतव्य को बिना रंगों से उलझे वापस लाता है वह शुद्ध चेतन में समा कर मुक्ति पाता है।
- हमारा मुल्ला नसरुद्दीन अपने में सब कुछ समाये हुए है। उसका चरित्र, जीवन के सभी आयामों की रंगीनियत- सुख-दुख, प्रेम-ईर्ष्या, राग-द्वेष, क्रोध-क्षमा, लोभ-मोह, माया-वैराग्य, अच्छा-बुरा, धर्म-अधर्म, सभी रंगों को अपने में समाहित किये हुए है। इन सब, बहुरंगी, बहु-आयामी लीलाओं की माया को, उजागर करने वाले रंगों में रंगकर, ओशो द्वारा अपनी चर्चाओं में- प्रवचनों में, मुल्ला के चरित्र को रचते हुए उन रंगों को मुखरित किया है, और यह सब रची गयी रचनाएं ओशो द्वारा इस सदी के मनुष्य को उनकी करुणा की महानतम देन है।
- मुल्ला की कहानी हम सब की ही कहानी है। चुटकुलों के माध्यम से मुल्ला के साथ हम हंसेंगे, रोयेंगे, क्रोधित होंगे, निराश होंगे, आश्चर्य में डूबेंगे- जीवन में बहेंगे। लेकिन, यह सब हमें जीवन के स्वप्न-बोध पर छोड़ जाएगा। बह जायेंगी हमारी परतें, हमारे चेहरे, हमारे मुखौटे, हमारा मान-अभिमान और भीतर छूट जाएगा- एक हल्कापन, एक निर्विकारिता, एक ताजगी। और इस जीवन-बोध से भीतर अनायास ही निर्मित हो जाता है एक केन्द्र साक्षी का, चेतना का- ‘स्व’ सत्ता का। भीतर जन्म होता है उसका जो रंगो का, तरंगो का, बदलियों का, धूप-छांव का, परिवर्तनों का, प्रवाहों का अतिक्रमण कर जाता है।
- यह मुल्ला निर्मित हुआ है ओशों की विनोदप्रिय-रहस्यमयी करुणा से। मुल्ला को बनाया है उन्होंने एक दर्पण। जिसमें श्रोताओं को अपना प्रतिबिम्ब ही बार-बार वापिस लौटता दिखाई देता है।
- ओशो तो ओशो... उनके अनुज स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती जी ने उनके काम को आगे बढ़ाते हुए अपने ढंग से मुल्ला के चरित्र को बहुत ही सुन्दर ढंग से अपरिहार्य रूप में अपने प्रेमपूर्ण चुटकी लेने वाले लहजे में फिर से सजीव कर दिया है। ना केवल मुल्ला, उसकी पत्नी गुलजान और बेटे फजलू को अपितु ओशो द्वारा गढ़े अन्य चरित्रों- चन्दूलाल मारवाड़ी, विचित्तर सिंह आदि को भी फिर उसी रूप में जीवित कर दिया है जिस रूप में कभी ओशो ने उन चरित्रों को गढ़ा था। अपनी बात समझाने में सही जगह सही चुटकुलों का प्रयोग और उसके साथ उनकी सटीक टिप्पणियां जीवन के विभिन्न आयामों के रहस्यों की परत-दर-परत उघाड़ कर सच्चाई को सहजता और सरलता के साथ उजागर कर देती हैं। साधकों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए शैलेन्द्र जी अधिकतर चुटकुलों का प्रयोग करते हैं, जहां उनकी प्रज्ञापूर्ण करुणा स्पष्ट रूप में दिखाई देती है वहीं यह समझ भी देती है कि जीवन की सहजता रूपी गंभीरता में जीने के अनाड़ीपन और भोलेपन के मज़ाक, चुटकी लेते चुटकुले और जीवंतता लिए लतीफे कितने अर्थपूर्ण और महत्वपूर्ण हैं।
- स्वामी शैलेन्द्र जी के चुटकुले कहने के अंदाज और उनका अर्थपूर्ण प्रयोग स्पष्ट कर देता है कि आप चुटकुलों को कितना महत्व देते हैं और उनसे ऐसी प्रेरणा और मार्गदर्शन पाकर ही चुटकुलों का संग्रह बनाने का मासूम सा प्रयास फलित हो रहा है।
- author
- Sw Shailendra Saraswati
- language
- Hindi
- notes
editions
हास्य-फुलझड़ियांमुल्ला नसरुद्दीन के प्रेरणादायी लतीफे
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