Jyoti Se Jyoti Jale (ज्योति से ज्योति जले)
- ज्योति से ज्योति जले संत सुंदरदास के पदो पर ओशो द्वारा दिए गए प्रथम दस प्रवचनों का संकलन। संत सुंदरदास ने उजाले की इस यात्रा को ‘ज्योति से ज्योति जले’ कहा है। इस पृथ्वी पर एक व्यक्ति का दीया जलता है, पूरी पृथ्वी उसकी ज्योति से प्रकाशित होने लगती है, एक व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध होता है, तो हजारों लोगों के जीवन में रसधार प्रवाहित होने लगती है। ओशो कहते हैं कि और फिर यह श्रृंखला रुकती नहीं। इसी श्रृखंला से वस्तुत परंपरा पैदा होती है। सच्ची परंपरा इसी श्रृंखला का नाम है। एक झूठी परंपरा होती है जो जन्म से मिलती है। तुम हिंदू घर में पैदा हुए तो तुम मानते हो मैं हिंदू हूं। यह झूठी परंपरा है।
- notes
- Osho's second book on Sunderdas, a major 17th c Hindi author and disciple of Dadu Dayal, a sort of companion volume to Hari Bolo Hari Bol (हरि बोलौ हरि बोल), which discourses Osho had given a month earlier. See discussion for a TOC and more.
- Later ch.11-21 published as Samadhi Ke Nratya-Geet (समाधि के नृत्य-गीत).
- time period of Osho's original talks/writings
- from Jul 11, 1978 to Jul 31, 1978 : timeline
- number of discourses/chapters
- 21 / 10 **
editions
Jyoti Se Jyoti Jale (ज्योति से ज्योति जले)
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Jyoti Se Jyoti Jale (ज्योति से ज्योति जले)Sant Sundardas Ke Pado Par (संत सुंदरदास के पदो पर)
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Jyoti Se Jyoti Jale (ज्योति से ज्योति जले)
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