Kan Thore Kankar Ghane (कन थोरे कांकर घने)
- बाबा मलूकदास—यह नाम ही मेरा हृदय-वीणा को झंकृत कर जाता है। जैसे अचानक वसंत आ जाय! जैसे हजारों फूल अचानक झर जायं! नानक से मैं प्रभावित हूं; कबीर से चकित हूं; बाबा मलूकदास से मस्त। ऐसे शराब में डूबे हुए वचन किसी और दूसरे संत के नहीं हैं। नानक में धर्म का सारसूत्र है, पर रूखा-सूखा। कबीर में अधर्म को चैनौती है—बड़ी क्रांतिकारी, बड़ी विद्रोही। मलूक में धर्म की मस्ती है; धर्म का परमहंस रूप; धर्म को जिसने पीया है, वह कैसा होगा। न तो धर्म के सारतत्व को कहने की बहुत चिंता है, न अधर्म से लड़ने का कोई आग्रह है। धर्म की शराब जिसने पी है, उसके जीवन में कैसी मस्ती की तरंग होगी, उस तरंग से कैसे गीत फूट पड़ेंगे, उस तरंग से कैसे फूल झरेंगे, वैसे सरल अलमस्त फकीर का दिग्दर्शन होगा मलूक में।
- notes
- Talks in Pune on Maluk Das, a poet-mystic of the Mughal era. Osho speaks on Maluk Das also in Ramduware Jo Mare (रामदुवारे जो मरे), in 1979. See discussion for a TOC and Osho on Maluk from Books I Have Loved.
- time period of Osho's original talks/writings
- May 11, 1977 to May 20, 1977 : timeline
- number of discourses/chapters
- 10
editions
Kan Thore Kankar Ghane (कन थोरे कांकर घने)
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Kan Thore Kankar Ghane (कन थोरे कांकर घने)मलुकदास वानी (Malukdas Vani)
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Kan Thore Kankar Ghane (कन थोरे कांकर घने)मलुकदास वानी (Malukdas Vani)
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