Letter written on 10 Jan 1963

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This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 10th January 1963. The letterhead has a simple "रजनीश" (Rajneesh) in the top left area, in a heavy but florid font, and "115, Napier Town, Jabalpur (M.P.) in the top right, in a lighter but still somewhat florid font.

The salutation is "प्रिय मां", Priya Maan, Dear Mom. There are a couple of the hand-written marks which have been found on many of Anandmayee's letters, a black tick mark in the upper right corner and a pale mirror-image number in the bottom right. And in fact, in a new variation on that theme, there are two numbers there: "160" is clear, the other seems to be a crossed-out "158", preceded by "patra nan", or "letter number".

This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 65 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 189 (2002 Diamond edition).

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म. प्र.)

प्रिय मां,

एक साधु कल कह रहे थेः
‘मैं संसार की ओर प्रवृत्ति छोड़ दिया हूँ अब तो प्रवृत्ति मोक्ष की ओर है। यही निवृत्ति है। संसार की ओर प्रवृत्ति मोक्ष के प्रति निवृत्ति है : मोक्ष के प्रति प्रवृत्ति संसार के प्रति निवृत्ति है।’

यह बात दीखने में कितनी ठीक और समझ भरी मालुम होती है! कहीं कोई चूक दिखाई नहीं देती है। बिल्कुल बुद्धि और तर्क युक्त है पर उतनी ही व्यर्थ भी है। ऐसे ही शब्दों के खेल में कितने लोग प्रवंचना में पड़े रहते हैं। बुद्धि और तर्क आत्मिक जीवन के सम्बंध में कहीं भी लेजाते मालुम नहीं होते हैं।

मैं उनसे कहा : ‘आप शब्दों में उलझ गये हैं। ‘संसार की ओर प्रवृत्ति’ का कोई अर्थ नहीं है; असल में, प्रवृत्ति ही संसार है। वह किस ओर है इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है : बस, उसका होना ही संसार है। वह धन की ओर हो तो, वह धर्म की ओर हो तो – उसका स्वरूप एक ही है। प्रवृत्ति मनुष्य को अपने से बाहर ले जाती है। वह वासना है। वह फलासक्ति है। वह कुछ होने की तृष्णा और दौड़ है। ‘अ’ ‘ब’ होना चाहता है – यह उसका रूप है। और जबतक कुछ होने की वासना है तब तक वह ‘जो है’ उसका होना नहीं होपाता है। इस ‘है’ का उद्घाटन ही मोक्ष है। ‘मोक्ष’ कोई वस्तु नहीं है जिसे कि पाना है। वह वासना का कोई बिषय नहीं है। इससे उसकी ओर प्रवृत्ति नहीं होसकती है। वह तो तब है जब कोई प्रवृत्ति नहीं होती है। वह प्रवृत्ति में नहीं, प्रवृत्ति-शून्यता में है। प्रवृत्ति बंधन है और जब कोई प्रवृत्ति नहीं होती – मोक्ष की भी नहीं – तब जो होता है उसका नाम ही मोक्ष है। प्रवृत्ति संसार है, प्रवृत्ति का न होना मोक्ष है। इससे, मोक्ष को पाना नहीं है; असल में पाना छोड़ना है और मोक्ष पालिया जाता है।‘

१० - १ - ६३

रजनीश के प्रणाम


See also
Krantibeej ~ 065 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.