Letter written on 10 Jan 1971 (Kranti)

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Letter written by Osho on 10th of Jan 1971 to his cousin Ma Yoga Kranti. It has been published in Pad Ghunghru Bandh (पद घुंघरू बांध) as letter #14 in 1974 and also in Tera Tujhko Arpan... (तेरा तुझको अर्पण…) in 2001 (letter #8). There are English and Gujarati translations which available in the latter book.

acharya rajneesh

A-1 WOODLAND PEDDAR ROAD BOMBAY-26. PHONE: 382184

प्यारी मौनू,
प्रेम। जीवन में छिपी है मृत्यु।
और मृत्यु में पुन: जीवन।
लेकिन, जीवन में मृत्यु कहां दिखती हैं ?
और मृत्यु में जीवन की पदध्वनि कहां सुनाई पड़ती है ?
यही अज्ञान है।
सुख में छिपा है दु:ख।
दु:ख में छिपा है सुख|
लेकिन यह स्मरण कहां रहता है ?
यही अज्ञान है।
एक सम्राट ने कभी देश के सभी बुद्धिमानों को एकत्रित करके बड़ी कठिनाई में डाल दिया था।
क्योंकि उसने उनसे कहा था कि मुझे एक ऐसा ज्ञान-सूत्र दो जिससे कि मैं सुख में उदास और दुःख में प्रफुल्लित हो सकूं ?
बुद्धिमान मुश्किल में पड़े।
वर्ष भर का समय मांगा।
लेकिन, वर्ष बीतने को आया और कोई हल हाथ न लगा।
शास्त्र खोजे|
चिंतन किया - विचार किया|
पर कहीं कोई किनारा दिखाई न पड़ा।
फिर थक गये और तब एक वृद्ध फकीर के पास गये।
वह फकीर उनकी हालत देखकर हंसने लगा|
उसने उनसे कहा : "नासमझो ! तुम खुद ही दुखी हो और प्रफुल्लित नहीं हो पा रहे हो तो तुम सम्राट को क्या और कैसे ऐसा ज्ञान-सूत्र दे सकोगे जिसे पाकर कि सम्राट रात्रि में सुबह और सुबह में रात्रि का आगमन देख सके?"
और फिर उस वृद्ध फकीर ने उन्हें एक अंगूठी दी और कहा यह अंगूठी सम्राट को जाकर दे दो|
उस अंगूठी पर ज्यादा नहीं बस चार ही शब्द लिखे थे : "यह भी बीत जायेगा ! (This, too, will pass!)"
और सम्राट उस अंगूठी पर लिखे सूत्र को पढ़कर हंसने लगा और फिर रोने लगा और फिर हंसने लगा और फिर रोने लगा !
क्योंकि, जब वह हंसा तो उसे याद आया : "यह भी बीत जायेगा।"
और इसलिये वह रोने लगा !
लेकिन, जब रोया तो उसे याद आया : "यह भी बीत जायेगा !"
और इसलिये वह हंसने लगा !

रजनीश के प्रणाम

१०/१/१९७१

See also
Pad Ghunghru Bandh ~ 014 - The event of this letter.