Letter written on 10 Sep 1968 (Shobhana)

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Letter written to Shobhana (Ma Yoga Shobhana) on 10 Sep 1968. It has been published in Dhai Aakhar Prem Ka (ढ़ाई आखर प्रेम का) as letter 21 and also in Wah Pati Ab! Wah Kahan! (वह पाती अब! वह कहाँ!) (p.39).

acharya rajneesh

kamala nehru nagar : jabalpur (m. p.). phone : 2957

प्यारी शोभना,
प्रेम। तेरा पत्र मिला है -- अभी अभी। मैं बहुत से पत्र लिखकर बैठा था। पोस्ट स्टांप नहीं थे और किसी के आने की प्रतीक्षा कर रहा था ताकि पोस्ट ऑफिस से उन्हें बुलाया जा सके। और तू है कि अचानक ही ढेर सारे स्टांप लेकर आ गई है! देख! इसे ही कहते हैं न चमत्कार! आह! और तेरा वह पत्र जो कि तूने साथ में नहीं भेजा है! मैं उसे पढ़ता हूँ और पढ़ता हूँ और वह है कि पूरा होता ही नहीं है! लिखा हुआ तो चुक जाता है लेकिन अनलिखा चुके भी तो कैसे चुके? शब्द जहां नहीं हैं, वहां भी तो हृदय कुछ कहना चाहता है। और शरीर जहां स्पर्श को नहीं है, वहां भी तो हृदय कुछ स्पर्श करना चाहता है।

तू वहीं मुझे स्पर्श कर रही है।
और तू वही मुझसे कह रही है जो कि कहा नहीं जा सकता है।
लेकिन, आश्चर्य तो यही है कि जो नहीं लिखा जा सकता वह भी पढ़ा जा सकता है और जो नहीं कहा जा सकता, वह भी सुना सुना जा सकता है। क्योंकि, अभिव्यक्ति मनुष्य की सीमित है लेकिन अनुभूति तो असीम है।

रजनीश के प्रणाम

१०/९/१९६८


See also
Dhai Aakhar Prem Ka ~ 021 - The event of this letter.