प्रिय सोहन बाई,
स्नेह. बहुत बहुत स्नेह. मैं बाहर से लौटा हूं. तो आपका पत्र मिला है. उसके शब्दों से आपके ह्रदय की पूरी आकुलता मुझ तक संवादित होगई है. जो आकांक्षा आपके अंतः करण को आंदोलित कर रही है, और जो प्यास आप की आंखों में आंसू बन जाती है, उसे मैं भलीभांति जानता हूं. वह कभी मुझ में भी थी, और कभी मैं भी उससे पीड़ित हुआ हूं.
मैं आपके ह्रदय को समझ सकता हूं, क्योंकि प्रभु की तलाश में मैं भी उन्हीं रास्तों से निकला हूं, जिनसे कि आपको निकलना है. और, उस आकुलता को मैंनें भी अनुभव किया है, जो की एक दिन प्रज्वलित अग्नि बन जाती है, ऐसी अग्नि जिसमें कि स्वयं को ही जल जाना होता है. पर वह जल जाना ही एक नए जीवन का जन्म भी है. बूंद मिटकर ही तो सागर होपाती है.
समाधि साधना के लिये सतत प्रयास करती रहें. ध्यान को गहरे से गहरा करना है. वही मार्ग है. उससे ही, और केवल उससे ही, जीवन सत्य तक पहुँचना संभव हो पाता है.
और, जो संकल्प से और संपूर्ण समर्पण से साधनारत होता है, स्मरण रखें कि उसका सत्य तक पहुंचना अपरिहार्य है. वह शाश्वत नियम है. प्रभु की ओर उठाये कोई चरण कभी व्यर्थ नहीं जाते हैं.
वहां सबको मेरा प्रेम कहें. श्री. माणिकलाल जी को नये वर्ष की शुभकामनायें मिलीं हैं. परमात्मा उनके अंतस को ज्योतिर्मय करे, यही मेरी प्रार्थना है.
.रजनीश के प्रणाम.
.११ नवम्बर १९६४.
Partial translation
"Received your letter as I returned from the outing."