Letter written on 14 Nov 1966 am
Letter written to Shree Ajit Kumar Jain (Sw Prem Akshat), Jabalpur, editor of Yukrand (युक्रांद) magazine, on 24 December 1966 in the morning.
प्रभात -- २४/१२/१९६६ प्रिय अजित, मैं जैसा हूँ, जो हूँ, और जहां हूँ, उसे स्वीकार करते ही भय विलीन हो जाता है। और स्वयं हो जीना सीख लेना, स्वयं में आमूल क्रांति का सूत्र है। एकांत में जाना और स्वयं में झांकना। वहां क्या है? शून्य और शून्य। शब्दों के थोड़े बबूले हैं और जब वे भी शांत हो जाते हैं तो क्या है? शून्य और शून्य। इस शून्य से भागना ही भय है। इस शून्य से भागना ही संसार है। और इस शून्य में जाग जाना और इस शून्य से एक हो जाना--मोक्ष। वहां सबको प्रणाम। रजनीश के प्रणाम |
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- Letters to Ajit ~ 02 - The event of this letter.