चिदात्मन्,
प्रेम। पत्र मिले हैं। इधर मैं इतना व्यस्त हूँ कि उत्तर नहीं देपाता हूँ। सिवाय क्षमा मांगने के और कोई उपाय नहीं है। बहुत लम्बे पत्र तो स्वयं पढ़ भी नहीं पाता हूँ। प्रश्नों के उत्तर देना तो और भी असंभव हो गया है। जिज्ञासाओं के समाधान के लिए ही कुछ शिविर आयोजित किये जारहे हैं, जहां मैं सामूहिक रूप से प्रश्नों के उत्तर देपाता हूँ। अभी ४-५-६ फ़रवरी जूनागढ़ में ३०० मित्रों के लिए ऐसा ही शिविर होरहा है। आसपास कोई शिविर होगा तो मैं खबर दूंगा। उसमें आजावें। तभी आपके प्रश्नों के साथ न्याय होसकताहै। शेष शुभ। वहां सबको मेरे प्रणाम कहें।