Letter written on 16 Mar 1962 om

From The Sannyas Wiki
Jump to navigation Jump to search

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 16 Mar 1962 in afternoon.

This letter has been published, in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 44 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 105 (2002 Diamond edition).

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म.प्र.)

प्रिय मां,
कल एक जगह बोला हूँ :

कहा : मैं तुम्हें असंतुष्ट करना चाहता हूँ। एक दिव्य-प्यास, एक अलौकिक-अतृप्ति सब में पैदा हो यही मेरी कामना है। मनुष्य जो है उसमें तृप्त रह जाना मृत्यु है। मनुष्य विकास का अंत नहीं है। वह भी एक सीढ़ी है : एक विकास-सोपान है। जो उसमें प्रगट है वह अप्रगट की तुलना में कुछ भी नहीं है। जो वह है, वह उसकी तुलना में जो कि वह हो सकता है, कुछ न होने के बराबर ही है।

धर्म तृप्ति की इस मृत्यु से प्रत्येक को जगाना चाहता है।
मनुष्य को मनुष्यता का अतिक्रमण करना है।
यह अतिक्रमण ही उसे दिव्यता में प्रवेश देता है।
यह अतिक्रमण कैसे होगा?
एक परिभाषा को समझें तो अतिक्रमण की प्रक्रिया भी समझ में आसकती है।
पशुता = विचार-प्रकिया के पूर्व की स्थिति।
मनुष्यता = विचार-प्रक्रिया की स्थिति।
दिव्यता = विचार-प्रक्रिया के अतीत की स्थिति।
विचार-प्रक्रिया के घेरे के पार चलें तो चेतना दिव्यता में पहुँच जाती है।
विचार को पार करना मनुष्य को अतिक्रमण कर जाना है।

रजनीश के प्रणाम

दोपहर
१६ मार्च १९६२

Partial translation
"Yesterday at one place, I have said..."
See also
Krantibeej ~ 044 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.