Letter written on 25 Jan 1963

From The Sannyas Wiki
Revision as of 03:46, 25 May 2022 by Dhyanantar (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 25 Jan 1963.

This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 86 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 193-194 (2002 Diamond edition).

The PS reads: "Your letter is received. The gift of Sharda full of love and affection is acceptable to me. His name to be kept : 'PARARTH'. Rest OK. I will start for Udaipur on 29th. From Bombay, Sunderlal Bhai, Jaya Bahin, ILA and other 15 persons are reaching." It appears that Sharda has sent a gift to Osho and requested to name her new born baby boy - for that Osho insists that the baby to be named - PARARTH.

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म. प्र.)

मां,

एक युवक ने आकर कहा है : ‘मैं नास्तिक होगया हूँ।’

मैं उसे देखता हूँ। उसे पहले से जानता हूँ। जीवन-सत्य को जानने की उसकी प्यास तीव्र है। वह किसी भी मूल्य पर सत्य को अनुभव करना चाहता है। उसमें तीव्र प्रतिभा है और सतही आस्थायें उसे तृप्त नहीं करती हैं। संस्कार, परंपरा और रूढ़ियां उसे कुछ भी नहीं दे पारही हैं। वह संदेहों और शंकाओं से घिर गया है। सारे मानसिक सहारे और धारणायें खंडित हो गई हैं और वह उसके एक घने नकार में डूब गया है।

मैं चुप हूँ। वह दुबारा बोला है : ‘ईश्वर पर से मेरी श्रद्धा हट गई है। कोई ईश्वर नहीं है। मैं अधार्मिक हो गया हूँ।’

मैं उससे कहता हूँ कि ‘यह मत कहो। नास्तिक होना, अधार्मिक होना नहीं है। वास्तविक आस्तिकता पाने को नकार में से गुजरना ही होता है। वह अधार्मिक होने का नहीं, वस्तुतः धार्मिक होने का लक्षण है। संस्कारों से, शिक्षण से, विचारों से मिली आस्तिकता कोई आस्तिकता नहीं है। जो उससे तृप्त है, वह भ्रांति में है। वह विपरीत विचारों में पलता तो उसका मन विपरीत निर्मित होसकता था। और फिर वह उससे ही तृप्त हो जाता। मन पर पड़े संस्कार परिधि की, सतह की घटना है। वह मृत पर्त है। वह उधार और बासी स्थिति है। कोई भी सचमुच आत्मिक जीवन के लिये प्यासा व्यक्ति उस काल्पनिक जल से अपनी प्यास नहीं बुझा सकता है। और इस अर्थ में वह व्यक्ति धन्यभागी है क्योंकि वास्तविक जल को पाने की खोज इसी बेबुझी प्यास से प्रारंभ होती है। ईश्वर को धन्यवाद दो कि तुम ईश्वर की धारणा से सहमत नहीं हो क्योंकि यह असहमति ईश्वर के सत्य तक तुम्हें ले जासकती है।’

मैं उस युवक के चेहरे पर एक प्रकाश फैलते देखता हूँ। एक शांति और एक आश्वासन उसकी आंखों में आगया है। जाते समय में उससे कहा हूँ : ‘इतना स्मरण रखना नास्तकिता धार्मिक जीवन की शुरुआत है। वह अंत नहीं है। वह पृष्ठभूमि है पर उस पर ही रुक नहीं जाना है। वह रात्रि है; उसमें ही डूब नहीं जाना है। उसके बाद ही उससे ही सुबह का जन्म होता है।’

दि. २५ - १ - ६३

रजनीश के प्रणाम


पुनश्च: तुम्हारा पत्र मिला है। शारदा का प्रीतिपूर्ण उपहार मुझे स्वीकार है। उसका नाम रखना है : परार्थ। शेष शुभ। मैं २९ जन. को उदयपुर के लिए निकल रहा हूँ। बम्बई से सुन्दरलाल भाई, जया बहिन, इला और अन्य १५ व्यक्ति पहुँच रहे हैं।

See also
Krantibeej ~ 086 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.