Letter written on 28 Jun 1968 am

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Letter written to Shobhana (Ma Yoga Shobhana) on 28 Jun 1968 in the morning. It has been published in Dhai Aakhar Prem Ka (ढ़ाई आखर प्रेम का) as letter 9 and also in Wah Pati Ab! Wah Kahan! (वह पाती अब! वह कहाँ!) (p.32).

प्रभात
२८/६/१९६८

प्यारी शोभना,
प्रेम। तेरा पत्र। निश्चय ही विरह में आनंद के साथ-साथ पीड़ा भी है लेकिन वह पीड़ा भी आनंद है।
प्रेम की पीड़ा से बड़ा और गहरा आनंद और कहां हो सकता है?
प्रेम की पीड़ा से गुजर कर सारा व्यक्तित्व ही कुन्दन हो जाता है।

और मैं आनंदित हूँ कि तू उससे गुजर रही है।
xxx

कहती है कि मेरे आगे तू बलशाली नहीं रह पाती है?
कमजोर हो जाती है?

शत्रु के सामने बलशाली हुआ जा सकता है।
मेरे सामने कैसे?

क्या मैं तेरा इतना अपना नहीं हूँ कि मेरे सामने तेरे होने की भी जरूरत न रहे?

देखना: अभी कमजोर पड़ती है, फिर धीरे-धीरे मिट ही जायेगी!
xxx


रजनीश के प्रणाम


See also
Dhai Aakhar Prem Ka ~ 009 - The event of this letter.