Letter written on 2 Nov 1964
Letter written to Sohan Bafna on 2 Nov 1964. It has been published in Prem Ke Phool (प्रेम के फूल) as letter #124, however most of first paragraph left out in the book.
आचार्य रजनीश २ २ नवम्बर १९६४ प्रिय सोहन बाई, आपने लिखा है कि मेरे शब्द आपके कानों में गूंज रहे हैं। उनकी गूंज आप की अंतरात्मा को उस लोक में लेजाये जहां शून्य है और सब निःशब्द है, यही मेरी कामना है। शब्द से शून्य पे चलना हैः वहीँ पहुँचकर स्वयं से मिलन होता है। मैं आनंद में हूँ। मेरे प्रेम को स्वीकार करें। उसके अतिरिक्त मेरे पास कुछ भी नहीं है। वही मेरी संपदा है और आश्चर्य तो यह है कि वह एक एैसी संपदा है कि उसे जितना बांटों वह उतनी ही बढ़ती जाती है। वस्तुतः संपदा वही है जो बाटने से बढ़े, जो घट जावे वह कोई संपदा नहीं है ! श्री. माणिक लाल जी को और आप सबको मेरा प्रेम कहें। पत्र दें। आप ही नहीं, पत्र की मैं भी प्रतीक्षा करता हूँ ! रजनीश के प्रणाम |
- See also
- Prem Ke Phool ~ 124 - The event of this letter.
- Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.