Letter written on 4 Feb 1962 pm
This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 4 Feb 1962 in the evening.
This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज), as letter #35.
रजनीश ११५, नेपियर टाउन रात्रि: ४ फर. १९६२ प्रिय मां, मैं हंसने लगा तो बच्चों ने पूछा : “क्यों हंसते हैं?” यह बात ही होती थी कि महल भर-भरा कर गिर गया। बच्चे उदास होगये। गृहणी बोलीं : “देखा?“ मैंने कहाः “देखा; पर मैंने और महल भी देखे हैं और सब महल ऐसे ही गिर जाते हैं।“ पत्थर के ठोस महल भी पत्तों के ही महल हैं। बच्चों के ही नहीं, बूढ़ों के महल भी पत्तों के ही महल होते हैं! हम सब महल बनाते हैं : कल्पना और स्वप्नों के महल और फिर हवा का एक झोंका सब मिट्टी कर जाता है। इस अर्थ में सब बच्चे हैं। प्रोढ़ होना कभी कभी होता है। अन्यथा अधिक लोग बच्चे ही मर जाते हैं। सब महल तास के महल हैं यह जानने से व्यक्ति प्रोढ़ होजाता है। फिर भी वह उन्हें बनाने में संलग्न होसकता है पर तब सब अभिनय होता है। यह जानना कि जगत् अभिनय है, जगत् से मुक्त होजाना है। इस स्थिति में जो पाया जाता है वही भर किसी झोके से नष्ट नहीं होता है। रजनीश के प्रणाम |
- See also
- Krantibeej ~ 035 - The event of this letter.
- Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.