Letter written on 6 Feb 1963

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This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 6 Feb 1963.

This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 29 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 198 (2002 Diamond edition: with incorrect date 6 Feb 1962).

Osho starts this letter by referring to his retuning from the journey (at Rajnagar) and having met sadhus - sadhvies. He observes that: "Surprised to know - how much Sadhna (meditation practices) has been deviated in to different direction from the core of Yoga. It is also difficult to believe that so many people are dragging the corpse of religion - leaving the very soul of it." He elaborates this further....... till 'Rajneesh Ke Pranam.' OK.

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म. प्र.)

६ फरवरी १९६३

मां,
एक यात्रा से लौटा हूँ। साधु-साध्वियों से मिलना हुआ है। साधना के केन्द्र से कितनी भिन्न दिशा में चली गई है यह जानकर बहुत आश्चर्य होता है। यह विश्वास भी लाना कठिन होता है कि धर्म की आत्मा को छोड़कर इतने लोग उसकी लाश को ढ़ोरहे हैं!

योग के अभाव में साधना केवल दमन होजाती है। शरीर दमन, मन दमन, और स्वयं अपने से सतत्‌ संघर्ष। और संघर्ष भी अनंत। जीवन की समाप्ति है पर उसकी नहीं; क्योंकि जिसे दबाया है वह मरता नहीं है केवल और गहरे अचेतन स्तरों पर सरक जाता है। इस गहराई पर दमन से बनी ग्रंथियां और रह रह कर उनके उभार जीवन को नरक बना देते हैं।

एक ओर भोग की पीड़ायें हैं : वासनाओं के अनुकरण और उनकी अनंत अतृप्ति की ज्वालायें हैं। तृष्णा की अपूर दौड़ का दुख है। और दूसरी ओर दमन और आत्म संघर्ष का नारकीय जीवन है। इन दोनों में से कोई भी मार्ग नहीं है पर मनुष्य का अज्ञान ऐसा है कि एक को छोड़ते ही दूसरे को पकड़ लेता है। यह पकड़ना ही उसका अज्ञान है। इस पकड़ने से ही अज्ञान जीता है। वही उसका भोजन है।

कोई पूछता था कि फिर योग क्या है?

योग पकड़ को छोड़ना है। एक अति से दूसरी अति नहीं जाना है। एक भूल छोड़ दूसरी नहीं पकड़नी है। पकड़ ही भूल है। उसे ही छोड़ना है। उसे छोड़ना ज्ञान से होता है। इस पकड़ के प्रति जागना है। इस पकड़ का निरीक्षण करना है। उसे देखते ही उससे मुक्ति है।

मैं कहता हूँ : कुछ करने को मत पूछो। कोई क्रिया नहीं है। वरन्‌ क्रियाओं के प्रति जागना है। प्रत्येक क्रिया पकड़ लेती है। प्रत्येक क्रिया बंधन है। धर्म एक नई क्रिया नहीं है। वह क्रियाओं के प्रति सम्यक्‌ जागरण है। इस जागरण से निष्कर्म आत्मा का दर्शन होता है। महावीर ने कहा है : कर्म से कर्म का नाश नहीं होता है; कर्म का नाश अकर्म से होता है। इस कर्म-मुक्ति से ‘जो है’ वह उपलब्ध होता है और यही उपलब्धि मोक्ष है।

रजनीश के प्रणाम


See also
Krantibeej ~ 029 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.