Osho Ke Sannidhya Mein (ओशो के सान्निध्य में)
- ओशो के सान्निध्य में आंतरिक उत्क्रांति का उदय होता है। मेरा यह सौभाग्य है कि मुझे ओशो का सान्निध्य मिला। ओशो के साथ उपनिषद घटित हुआ। आज से पचपन वर्ष पहले जब मैं ओशो से मिली थी, तब मेरी उम्र छब्बीस या अट्ठाईस वर्ष की थी। उस समय मुझे धर्म यानी क्या कुछ पता नहीं था। ओशो ने सच्चे धर्म से परिचय करवाया। वे अत्यंत क्रांतिकारी थे। विधि-विधान वाले धर्मों से अलग उन्होंने आत्म-क्रांति का सच्चा मार्ग प्रस्तावित किया। उनके बताए हुए मार्ग पर चलकर मेरे अस्तित्व में जागृति संभावित हुई। ओशो इस युग के सच्चे धर्म प्रणेता हैं। उनके समय में उनके सान्निध्य को पाना ऐसा हजारों वर्षों में कभी-कभार ही संभव होता है। पूरी दुनिया के कोने-कोने में किसी न किसी तरह से उनका संदेश पहुंच चुका है और वे भविष्य की प्रज्ञा के लिए नई सुबह लेकर आए हैं। यह पुस्तक लिखकर ओशो के प्रति मैं अपने अहोभाव प्रकट कर रही हूं। पारिवारिक और सामाजिक विरोध के बावजूद मैं ओशो के सान्निध्य में रह पाई, इससे ओशो के साथ का महत्व का पता चला है।
- author
- Ma Prema Nivedita (Jaya Ma)
- language
- Hindi
- notes
editions
ओशो के सान्निध्य में
![]() Back cover with manuscript of Letter written on 11 Jun 1970 |