The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
- तंत्र-सूत्र (विज्ञान भैरव तंत्र) भाग चार
- ओशो द्वारा भगवान शिव के विज्ञान भैरव तंत्र पर दिए गए 80 प्रवचनों में से 49 से 64 प्रवचनों का संकलन।
- translated from
- English : The Book of the Secrets, Vol 4
- notes
- This is the fourth volume of the five-volume set of Tantra-Sutra (तंत्र-सूत्र) (series), translations from the English series of talks on Vigyan Bhairav Tantra. Each of the five volumes was subsequently republished under a new title, this one as Atma-Sadhana (आत्म-साधना). See the series' discussion page for more traces of its elusive publishing history.
- time period of Osho's original talks/writings
- May 22, 1973 to Jul 5, 1973 : timeline
- number of discourses/chapters
- 16 (numbered 49-64) (see table of contents)
editions
|
Tantra-Sutra, Bhag 4 (तंत्र-सूत्र, भाग चार) (5 volume set)
- Year of publication : Nov 1993
- Publisher : Rebel Publishing House Pvt Ltd
- ISBN
- Number of pages : 316
- Hardcover / Paperback / Ebook : H?
- Edition notes :
|
|
Tantra-Sutra, Bhag 4 (तंत्र-सूत्र, भाग चार) (5 volume set)
- Year of publication : 1999
- Publisher : Rebel Publishing House, Pune, India
- ISBN 9788172611187 (click ISBN to buy online)
- Number of pages : 316
- Hardcover / Paperback / Ebook : H
- Edition notes : See discussion for more about this edition.
|
|
Tantra-Sutra, Bhag 4 (तंत्र-सूत्र, भाग चार) (5 volume set)
- Year of publication : 2003
- Publisher : Rebel Publishing House, Pune, India
- ISBN
- Number of pages :
- Hardcover / Paperback / Ebook :
- Edition notes :
|
table of contents
edition 1993.11 chapter titles
|
discourses
|
event
|
location
|
duration
|
media
|
49
|
कृत्य नहीं, होना महत्वपूर्ण है
- ७३. निरभ्र आकाश की निर्मलता हो जाओ
७४. समस्त अंतरिक्ष को अपने सिर में अनुभव करो ७५. अपने को प्रकाश समझो
|
22 May 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 32min
|
audio
|
50
|
तुम अपने भाग्य के मालिक हो
- १. क्या अंतस के रूपांतरण के लिए बाह्य की बिलकुल उपेक्षा भूल नहीं है?
२. क्या सभी ध्यान-विधियां भी कृत्य नहीं हैं? ३. सुस्पष्टता के लिए क्या मन का परिपक्व होना जरूरी नहीं है? ४. हम क्यों दुख निर्मित करना जारी रखते हैं?
|
23 May 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 23min
|
audio
|
51
|
अंधकार की साधना
- ७६. अंधकार में खो जाओ
७७. आंतरिक अंधकार को बाहर लाना ७८. शुद्ध ध्यान का विकास करो
|
24 May 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 32min
|
audio
|
52
|
ध्यान को हंसी-खेल बना लो
- १. यदि सभी फिलासफी ध्यान-विरोधी हैं तो क्यों बुद्ध पुरुष दार्शनिक मीमांसा की मजबूत श्रृंखला अपने पीछे छोड़ जाते हैं?
२. क्या विचार से समस्याएं हल हो सकती हैं? ३. खुले, निर्मल आकाश को एकटक देखने, प्रज्ञावान सदगुरु के फोटो पर त्राटक करने और अंधकार को अपलक देखने में क्या फर्क है? ४. क्या विज्ञान और धर्म का कहीं मिलन हो सकता है? ५. हम अपने अधैर्य को कैसे वश में करें? ६. आधुनिक विज्ञान को ध्यान में रखकर कृपया अंधकार एवं प्रकाश के संबंध में कुछ और कहें।
|
27 May 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 29min
|
audio
|
53
|
जब हरि हैं मैं नाहिं
- ७९. अग्नि-ध्यान
८०. कल्पना करो कि संपूर्ण जगत जल रहा है ८१. सब कुछ तुममें लीन हो रहा है
|
28 May 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 28min
|
audio
|
54
|
समग्र मनुष्य: संतुलित संस्कृति
- १. ध्यानी व्यक्ति नकारात्मक तरंगों से अपना बचाव कैसे करे?
२. बोधपूर्ण होने पर भी जो मैं-भाव बना रहता है, उसे कैसे विलीन किया जाए? ३. क्या ऐसी संस्कृति संभव है जो मनुष्य को समग्रतः स्वीकार करे?
|
29 May 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 22min
|
audio
|
55
|
दो विचारों के अंतराल में झांको
- ८२. सोचो मत, अनुभव करो
८३. अपना ध्यान अंतरालों पर एकाग्र करो
|
30 May 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 25min
|
audio
|
56
|
अहंकार की यात्रा और अध्यात्म
- १. कृपया बताएं कि कोई शून्यता के साथ जीना कैसे सीखे?
२. क्या सारा आध्यात्मिक प्रयोग झूठे अहंकार के सच्चे रूपांतरण के लिए है? ३. अगर अहंकार झूठ है तो क्या अचेतन मन, स्मृतियों का संग्रह और रूपांतरण की प्रक्रिया, यह सब भी झूठ है? ४. कोई कैसे जाने कि उसकी आध्यात्मिक खोज अहंकार की यात्रा न होकर एक प्रामाणिक धार्मिक खोज है?
|
31 May 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 20min
|
audio
|
57
|
स्वतंत्रता: शरीर-मन के पार
- ८४. शरीर की आसक्ति से अपने को दूर करो
८५. ना-कुछ का विचार
|
28 Jun 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 33min
|
audio
|
58
|
अपनी नियति अपने हाथ में लो
- १. क्या त्वरित विधियां स्वभाव के, ताओ के विपरीत नहीं हैं?
२. हम अब तक बुद्धत्व को प्राप्त क्यों नहीं हुए? ३. यदि समग्र बोध और समग्र स्वतंत्रता को उपलब्ध होकर प्राकृतिक विकास के करोड़ों जन्मों को टाला जा सकता है तो क्या यह तर्क नहीं किया जा सकता कि ऐसा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? ४. क्या अकर्म और विस्तृत बोध पर्यायवाची हैं?
|
29 Jun 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 27min
|
audio
|
59
|
स्वयं को असीमत: अनुभव करो
- ८६. अकल्पनीय की कल्पना करो
८७. भाव करो: 'मैं हूं'
|
30 Jun 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 26min
|
audio
|
60
|
डरने से मत डरो
- १. क्या स्वतंत्रता और समर्पण परस्पर विरोधी नहीं हैं?
२. सूत्र का सिर्फ 'यह यह है' पर इतना जोर क्यों? ३. क्या भगवत्ता या परमात्मा संसार का ही हिस्सा है? और वह क्या है जो दोनों के पार जाता है? ४. तंत्र के अनुसार भय से कैसे मुक्त हुआ जाए? ५. ऐसी ध्वनियां सुनने लगा हूं जो बहती नदी या झरने की ध्वनियों जैसी हैं। यह ध्वनि कया है?
|
1 Jul 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 24min
|
audio
|
61
|
तुम्हारा घर जल रहा है
- ८८. ज्ञाता और ज्ञेय को जानो
८९. सब कुछ को अपने में समाहित कर लो
|
2 Jul 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 17min
|
audio
|
62
|
आरंभ से आरंभ करो
- १. मंजिल को पाने की 'जल्दी' और 'प्रयल-रहित खेल' में संगति कैसे बिठाएं?
२. अपने शत्रु को भी अपने में समाविष्ट करने की शिक्षा कया दमन पर नहीं ले जाती है?
|
3 Jul 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 19min
|
audio
|
63
|
परमात्मा को जन्म देना है
- ९०. आंखों को हलके से छुओ
९१. अपने आकाश-शरीर को अनुभव करो
|
4 Jul 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 24min
|
audio
|
64
|
आनंद है अचुनाव में
- १. अधिक लोग दुख और पीड़ा का जीवन ही क्यों चुनते हैं?
२. हम एक प्रबुद्ध समाज की आशा कैसे कर सकते हैं?
|
5 Jul 1973 pm
|
Woodlands, Bombay
|
1h 20min
|
audio
|