Letter written on 18 Jul 1968 (Shobhana)

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Letter written to Shobhana (Ma Yoga Shobhana) on 18 Jul 1968. It has been published in Dhai Aakhar Prem Ka (ढ़ाई आखर प्रेम का) as letter 1 and also in Wah Pati Ab! Wah Kahan! (वह पाती अब! वह कहाँ!) (p.60).

ACHARYA RAJNISH

115, NAPIER TOWN : JABALPUR (M. P.)

प्यारी शोभना,
प्रेम। मेरा दूसरा पत्र।
तू मेरी कितनी अपनी है--इसे कहने का कोई भी मार्ग नहीं है।
इसलिए तू पूछे ही न तो अच्छा है?

और पागल! मुझे देने के लिए तू कुछ भी न खोज पायेगी--क्योंकि तेरे पास है ही क्या जो तूने नहीं दे दिया है?

प्रेम पूर्ण से कम कुछ भी नहीं लेना है।
इसलिए ही तो वह मुक्ति है।
क्योंकि वह पीछे शून्य कर जाता है।
या कि पूर्ण? वैसे--शून्य या पूर्ण एक ही सत्य को कहने के लिए दो शब्द हैं।
शब्दकोश में वे विरोधी हैं, लेकिन सत्य में पर्यायवाची।

मैं तेरे द्वारा पर किसी भी दिन उपस्थित हो जाऊंगा। लेकिन वह तेरे द्वार जैसा मेरे मन में नहीं आता है। लगता है: मेरा घर--मेरा द्वार! 'मेरी शोभना' के कारण ही सब गड़बड़ हो गई है!

रजनीश के प्रणाम

१८/७/१९६८


See also
Dhai Aakhar Prem Ka ~ 001 - The event of this letter.