Letter written on 6 Mar 1968 am

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Letter written to Shobhana (Ma Yoga Shobhana) on 6 Mar 1968 in the morning. It has been published in Dhai Aakhar Prem Ka (ढ़ाई आखर प्रेम का) as letter 16 and also in Wah Pati Ab! Wah Kahan! (वह पाती अब! वह कहाँ!) (p.42).

Acharya Rajnish

115, Napier Town, Yogesh Bhavan, Jabalpur (M. P.)

प्रभात:
६/३/१९६८

प्यारी शोभना,
प्रेम। क्या तुझे पता नहीं है कि ऐसी मुक्ति भी है जो बंधन है और ऐसे बंधन भी हैं जो कि मुक्ति हैं? क्या तूने ऐसे सत्य नहीं देखे जो कि स्वप्न हैं और ऐसे स्वप्न नहीं देखे जो कि सत्य हैं?
जीवन इसलिए ही तो पहेली है!
और पहेली वह नहीं है जो कि सुलझ जाये--पहेली तो वही है जो कि सुलझ ही न सके, क्योंकि वस्तुत: तो वह सुलझी ही हुई है!
जैसे कि सोये हुये को जगाया जा सकता है, लेकिन जो जागा ही हुआ है, उसे कैसे जगाया जा सकता है?
जैसे कि बंद द्वार खोले जा सकते हैं, लेकिन जो द्वार खुले ही हैं, वे कैसे खोले जा सकते हैं?
मैं तुझे जरूर ऐसी पहेली दूंगा जो कि इसीलिए पहेली है कि पहेली नहीं है।
प्रेम और क्या है?
प्रभु और क्या है?
मैं तुझे ऐसे बंधन दूंगा जो कि मुक्ति हैं और ऐसे स्वप्न जो कि सत्य हैं।
प्रेम और क्या है?
प्रभु और क्या है?
और, तू पूछती है कि कविता क्या है?

रजनीश के प्रणाम


See also
Dhai Aakhar Prem Ka ~ 016 - The event of this letter.