Talk:Pad Ghunghru Bandh (पद घुंघरू बांध): Difference between revisions
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| 1. अहं अज्ञान है प्रेम ज्ञान है || -- || Sadhvi Chandana | | 1. अहं अज्ञान है--प्रेम ज्ञान है || -- || Sadhvi Chandana | ||
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| 2. प्यास की पीड़ा ही अंततः प्राप्ति बन जाता है || Jul 6, 1966 || Sadhvi Chandana | | 2. प्यास की पीड़ा ही अंततः प्राप्ति बन जाता है || Jul 6, 1966 || Sadhvi Chandana | ||
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| 4. सत्य के पथ पर अडिग और अदम्य साहस आवश्यक || Aug 17, 1966 || Sadhvi Chandana | | 4. सत्य के पथ पर अडिग और अदम्य साहस आवश्यक || Aug 17, 1966 || Sadhvi Chandana | ||
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| 5. नये जन्म की प्रसव-पीड़ा रिक्तता व अभाव का साक्षात || Sep 10, 1966 || Sadhvi Chandana | | 5. नये जन्म की प्रसव-पीड़ा--रिक्तता व अभाव का साक्षात || Sep 10, 1966 || Sadhvi Chandana | ||
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| 6. मन के घास-फसों की सफाई || Oct 10, 1966 || Sadhvi Chandana | | 6. मन के घास-फसों की सफाई || Oct 10, 1966 || Sadhvi Chandana | ||
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| 7. धन | | 7. धन का अंधापन || Oct 7, 1967 || Sadhvi Chandana | ||
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| 8. विश्वास-अविश्वास के द्वंद्व से शून्य मन || Aug 10, 1968 || Sadhvi Chandana | | 8. विश्वास-अविश्वास के द्वंद्व से शून्य मन || Aug 10, 1968 || Sadhvi Chandana | ||
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| 9. साधुता कांटों में रह कर फल बने रहने की क्षमता || Sep 10, 1968 || Sadhvi Chandana | | 9. साधुता--कांटों में रह कर फल बने रहने की क्षमता || Sep 10, 1968 || Sadhvi Chandana | ||
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| 10. समय के साथ नया होना ही जीवन है || Jan 9, 1969 || Sadhvi Chandana | | 10. समय के साथ नया होना ही जीवन है || Jan 9, 1969 || Sadhvi Chandana | ||
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| 11. | | 11. ‘जो है’ उसी का नाम ईश्वर है || Mar 5, 1969 || Sri Pushkar Gokani, Dwarka GJ | ||
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| 12. असुरक्षा का स्रोत सुरक्षा की अति आतुरता || Jan 5, 1971 || [[Ma Yoga Kranti]], Jabalpur | | 12. असुरक्षा का स्रोत--सुरक्षा की अति आतुरता || Jan 5, 1971 || [[Ma Yoga Kranti]], Jabalpur | ||
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| 13. जीओ पल-पल न टालो कल पर || Jan 7, 1971 || [[Ma Yoga Kranti]], Jabalpur | | 13. जीओ पल-पल न टालो कल पर || Jan 7, 1971 || [[Ma Yoga Kranti]], Jabalpur | ||
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| 14. ज्ञान-सूत्र ‘यह भी बीत | | 14. ज्ञान-सूत्र--‘यह भी बीत जाएगा’ || Jan 10, 1971 || [[Ma Yoga Kranti]], Jabalpur | ||
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| 15. प्रार्थना में शब्द नहीं सुने जाते हैं भाव || Jan 14, 1972** || [[Sw Yoga Chinmaya]], Bombay | | 15. प्रार्थना में शब्द नहीं--सुने जाते हैं भाव || Jan 14, 1972** || [[Sw Yoga Chinmaya]], Bombay | ||
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| 16. धर्म अभिव्यक्ति की सतत रूपांतरण प्रक्रिया || Jan 25, 1971 || [[Sw Yoga Chinmaya]], Bombay | | 16. धर्म अभिव्यक्ति की सतत रूपांतरण प्रक्रिया || Jan 25, 1971 || [[Sw Yoga Chinmaya]], Bombay | ||
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| 18. यही जवाब है इसका कि कुछ जवाब नहीं || -- || Sri Indraraj Anand, Bombay | | 18. यही जवाब है इसका कि कुछ जवाब नहीं || -- || Sri Indraraj Anand, Bombay | ||
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| 19. स्वीकार से शांति, शून्यता और रूपांतरण || Jan 28, 1971 || Sri Indraraj Anand, Bombay | | 19. स्वीकार से--शांति, शून्यता और रूपांतरण || Jan 28, 1971 || Sri Indraraj Anand, Bombay | ||
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Rest titles from TOC of Shailendra's e-book: | |||
<pre> | |||
20/ प्रतीक्षारत तैयारी--विस्फोट को झेलने की | |||
21/ अहंकार चुराने वाले चोर | |||
22/ मिटने की तैयारी रख | |||
23/ एक ही भासता है अनेक | |||
24/ स्वीकार से दुख का विसर्जन | |||
25/ जन्मों का अंधेरा और ध्यान का दिया | |||
26/ प्रार्थना, श्रद्धा, समर्पण--बाह्य नहीं आंतरिक घटनाएं | |||
27/ आनंद का राज--न चाह सुख की, न भय दुख का | |||
28/ शब्दों की यात्रा में सत्य की मृत्यु | |||
29/ जीवन है--दुर्लभ अवसर | |||
30/ एकमात्र संपत्ति--परमात्म--श्रद्धा | |||
31/ प्रकाश-किरण से सूर्य की ओर | |||
32/ सुवास--आंतरिक निकटता की | |||
33/ ध्यान की सरलता--निःसंशय, निर्णायक व संकल्पवान चित्त के लिए | |||
34/ अदृश्य, अरूप, निराकार की खोज | |||
35/ आनंदमग्न भाव से नाचती, गाती, निर्भार चेतना का ही ध्यान में प्रवेश | |||
36/ शून्य, शांत व मौन में--वर्षा अनुकंपा की | |||
37/ चमत्कार--‘न-होने’ पर भी ‘होने’ का | |||
38/ असार्थक की अग्नि-परीक्षा | |||
39/ श्रद्धा के दुर्लभ अंकुर | |||
40/ ध्यान में प्रभु--इच्छा का उदघाटन | |||
41/ प्रतीक्षा में ही राज है परम उपलब्धि का | |||
42/ स्वयं को तैयार करना--श्रद्धा से, शांति से, संकल्प से | |||
43/ अभिशाप में भी वरदान खोजो | |||
44/ अवलोकन--वृत्तियों की उत्पत्ति, विकास व विसर्जन का | |||
45/ सिद्धांत--क्रांति का अंत है | |||
46/ प्रतिक्रियावादी तथाकथित क्रांतिकारी | |||
47/ सत्ता सदा ही क्रांति विरोधी है | |||
48/ ध्यान है--द्रष्टा, अकर्ता, अभोक्ता रह जाना | |||
49/ समग्र जिज्ञासा में प्रश्न का गिर जाना | |||
50/ खोना ही ‘उसे’ खोजने की विधि है | |||
51/ धैर्यपूर्वक पोषण--क्रांति के गर्भाधान का | |||
52/ आत्म-विश्वास से खटखटाओ--प्रभु के द्वार को | |||
53/ अनजाना समर्पण | |||
54/ तुम्हारी समस्त संभावनाएं मेरे समक्ष साकार हैं | |||
55/ सूक्ष्म और अदृश्य कार्य | |||
56/ प्रभु-मंदिर की झलकें--ध्यान के द्वार पर | |||
57/ अनुभूति में बुद्धि के प्रयास बाधक | |||
58/ कामना दुख है, क्योंकि कामना दुष्पूर है | |||
59/ प्रभु-कृपा की अमृत वर्षा और हृदय का उलटा पात्र | |||
60/ जन्मों का पुराना--विस्मृत परिचय | |||
61/ आनंद के आंसुओं से परिचय | |||
62/ प्रभु-प्रेम को पागल मानने वाले लोगों से | |||
63/ हृदय है अंतर्द्वार--प्रभु-मंदिर का | |||
64/ पात्रता का बोध--सबसे बड़ी अपात्रता | |||
65/ प्रमाद है भ्रूण-हत्या--विराट संभावनाओं की | |||
66/ चाह और अपेक्षा हैं जननी दुख की | |||
67/ रूपांतरण के पूर्व की कसौटियां | |||
68/ ज्ञानी का शरीर भी मंदिर हो जाता है | |||
69/ भेद है अज्ञान में | |||
70/ जीवन सत्य की ओर केवल मौन इशारे संभव | |||
71/ स्वयं रूपांतरण से गुजर कर ही समझ सकोगी | |||
72/ ज्ञान की गति है--अनूठी, सूक्ष्म और बेबूझ | |||
73/ शुभ आशीषों की शीतल छाया में | |||
74/ ऊर्जा-जागरण से देह-शून्यता | |||
75/ संन्यास है--मन से मनातीत में यात्रा | |||
76/ ध्यान--रूपांतरण की विधायक खोज | |||
77/ द्वंद्व अज्ञान में ही है | |||
78/ काम-ऊर्जा का रूपांतरण--संभोग में साक्षीत्व से | |||
79/ आत्म-सृजन का श्रम करो | |||
80/ मन का भिखमंगापन | |||
81/ स्वयं का मिटना ही एकमात्र तप है | |||
82/ वही दे सकते हैं--जो कि हम हैं | |||
83/ स्वर्ग और नरक--एक ही तथ्य के दो छोर | |||
84/ अधैर्य से साधना में विलंब | |||
85/ नासमझदारों की समझ | |||
86/ आदमी ऐसा ही जीता है--तिरछा-तिरछा | |||
87/ समग्रता से किया गया कोई भी कर्म अतिक्रमण बन जाता है | |||
88/ चाह से मुक्ति ही मोक्ष है | |||
89/ अंतर-अभीप्सा ही निर्णायक है | |||
90/ सत्य की खोजः लंबी यात्रा, अशेष यात्री | |||
91/ अज्ञात को ज्ञात से समझने की असफल चेष्टा | |||
92/ हर पल जीता हूं पूरा | |||
93/ जिंदगी तर्क और गणित से बहुत अधिक है | |||
94/ जीवन की धन्यता है--अभिव्यक्ति में--स्वयं की, स्वधर्म की | |||
95/ सम-चित्त में अद्वैत स्वरूप का बोध | |||
96/ संकल्प पूर्ण हुआ कि शून्य हुआ | |||
97/ साक्षी की प्रत्यभिज्ञा (रिकग्निशन) ही ध्यान है | |||
98/ साधन के मार्ग पर शत्रु भी मित्र है | |||
99/ शांत साक्षीभाव में ही डूब | |||
100/ आदमी की कुशलता--वरदानों को भी अभिशाप में बदलने की | |||
101/ गहरा खेल शब्दों का | |||
102/ पवित्र प्रार्थना--आंसुओं में नहाई | |||
103/ पीड़ा को भी उत्सव बना लेने की कला | |||
104/ वही है, वही है--सब ओर वही है | |||
105/ संकल्प के पंख--साधना में उड़ान | |||
106/ मुझसे मिलने की निकटतम द्वार--गहरा ध्यान | |||
107/ अंतः संन्यास का संकल्प | |||
108/ क्रोध के दर्शन से क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण | |||
109/ स्वरहीन-संगीत में डूबो | |||
110/ समष्टि को बांट दिया ध्यान ही समाधि बन जाता है | |||
111/ प्रभु द्वार पर हुई देर भी शुभ है | |||
112/ समझ (अंडरस्टैंडिंग) ही मुक्ति है | |||
113/ संन्यास--रूपांतरण की कमियां | |||
114/ उसका होना ही उसका ज्ञान भी है | |||
115/ जागे बिना सत्य से परिचय नहीं | |||
116/ साधना को तो सिद्धि तक पहुंचाना ही है | |||
117/ सदा स्मरण रखें--जीवन है एक खेल | |||
118/ साहस--अज्ञात में छलांग का | |||
119/ जिन खोजा तिन पाइयां | |||
120/ अथक श्रम--और परीक्षा धैर्य की | |||
121/ जीवन को उत्सव बना लेने की कला संन्यास है | |||
122/ प्रभु-पथ से लौटना नहीं है | |||
123/ स्वयं को खोकर ही पा सकोगे सर्व को | |||
124/ शून्य में नृत्य और स्वरहीन संगीत | |||
125/ ‘न-करना’ है करने की अंतिम अवस्था | |||
126/ अहंकार की सीमा | |||
127/ स्वयं को समझो | |||
128/ एकमात्र यात्रा--अंतस की | |||
129/ पर करो--कुछ तो करो | |||
130/ पहले समझो ही | |||
131/ अति सूक्ष्म हैं--अहंकार के रास्ते | |||
132/ अपनी चिंता पर्याप्त है | |||
133/ फूल, कांटे और साधना | |||
134/ जीवन है एक चुनौती | |||
135/ छलांग--बाहर--शरीर के, संसार के, समय के | |||
136/ स्वयं की खोज ही संन्यास है | |||
137/ पागल होने की विधि है यह--लेकिन प्रज्ञा में | |||
138/ प्रभु-प्रकाश की पहली किरण | |||
139/ अस्वस्थता को भी अवसर बना लो | |||
140/ दिन-रात की धूप-छांव में स्वयं को भूल मत जाना | |||
141/ नियति का बोध परम आनंद है | |||
142/ स्वनिर्मित कारागृहों में कैद आदमी | |||
143/ समय रहते जाग जाना आवश्यक है | |||
144/ अमूर्च्छा का आक्रमण--मूर्च्छा पर | |||
145/ कुछ भी हो--ध्यान को नहीं रोकना है | |||
146/ देखो स्थिति और हो जाने दो समर्पण | |||
147/ नाचो--गाओ और प्रभु की धुन में डूबो | |||
148/ आनंद है महामंत्र | |||
149/ जीवन नृत्य है | |||
150/ पद घुंघरू बांध | |||
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--DhyanAntar 18:03, 27 September 2018 (UTC) |
Revision as of 18:03, 27 September 2018
TOC and other info
(supplied by Shailendra)
Title | Date | Recipient |
1. अहं अज्ञान है--प्रेम ज्ञान है | -- | Sadhvi Chandana |
2. प्यास की पीड़ा ही अंततः प्राप्ति बन जाता है | Jul 6, 1966 | Sadhvi Chandana |
3. मृत परंपराओं व दासताओं से मुक्ति | Jul 15, 1966 | Sadhvi Chandana |
4. सत्य के पथ पर अडिग और अदम्य साहस आवश्यक | Aug 17, 1966 | Sadhvi Chandana |
5. नये जन्म की प्रसव-पीड़ा--रिक्तता व अभाव का साक्षात | Sep 10, 1966 | Sadhvi Chandana |
6. मन के घास-फसों की सफाई | Oct 10, 1966 | Sadhvi Chandana |
7. धन का अंधापन | Oct 7, 1967 | Sadhvi Chandana |
8. विश्वास-अविश्वास के द्वंद्व से शून्य मन | Aug 10, 1968 | Sadhvi Chandana |
9. साधुता--कांटों में रह कर फल बने रहने की क्षमता | Sep 10, 1968 | Sadhvi Chandana |
10. समय के साथ नया होना ही जीवन है | Jan 9, 1969 | Sadhvi Chandana |
11. ‘जो है’ उसी का नाम ईश्वर है | Mar 5, 1969 | Sri Pushkar Gokani, Dwarka GJ |
12. असुरक्षा का स्रोत--सुरक्षा की अति आतुरता | Jan 5, 1971 | Ma Yoga Kranti, Jabalpur |
13. जीओ पल-पल न टालो कल पर | Jan 7, 1971 | Ma Yoga Kranti, Jabalpur |
14. ज्ञान-सूत्र--‘यह भी बीत जाएगा’ | Jan 10, 1971 | Ma Yoga Kranti, Jabalpur |
15. प्रार्थना में शब्द नहीं--सुने जाते हैं भाव | Jan 14, 1972** | Sw Yoga Chinmaya, Bombay |
16. धर्म अभिव्यक्ति की सतत रूपांतरण प्रक्रिया | Jan 25, 1971 | Sw Yoga Chinmaya, Bombay |
17.ईर्ष्या के सूक्ष्म हैं यात्रा-पथ | Jan 27, 1971 | Sw Yoga Chinmaya, Bombay |
18. यही जवाब है इसका कि कुछ जवाब नहीं | -- | Sri Indraraj Anand, Bombay |
19. स्वीकार से--शांति, शून्यता और रूपांतरण | Jan 28, 1971 | Sri Indraraj Anand, Bombay |
Pre-info speculation
There are two sources testifying as to the existence (at least sometime) of this book. Shailendra has it as one of a number of books of Osho's Hindi letters missing from the wiki. He says there are 100 letters.
Neeten's Osho Source Book (in the Appendix) mentions it among several books of Osho's Hindi letters, says it has 150 letters and dates it 1966 - 1971.
And that's all there is for now! -- doofus-9 06:44, 20 January 2017 (UTC)
Rest titles from TOC of Shailendra's e-book:
20/ प्रतीक्षारत तैयारी--विस्फोट को झेलने की 21/ अहंकार चुराने वाले चोर 22/ मिटने की तैयारी रख 23/ एक ही भासता है अनेक 24/ स्वीकार से दुख का विसर्जन 25/ जन्मों का अंधेरा और ध्यान का दिया 26/ प्रार्थना, श्रद्धा, समर्पण--बाह्य नहीं आंतरिक घटनाएं 27/ आनंद का राज--न चाह सुख की, न भय दुख का 28/ शब्दों की यात्रा में सत्य की मृत्यु 29/ जीवन है--दुर्लभ अवसर 30/ एकमात्र संपत्ति--परमात्म--श्रद्धा 31/ प्रकाश-किरण से सूर्य की ओर 32/ सुवास--आंतरिक निकटता की 33/ ध्यान की सरलता--निःसंशय, निर्णायक व संकल्पवान चित्त के लिए 34/ अदृश्य, अरूप, निराकार की खोज 35/ आनंदमग्न भाव से नाचती, गाती, निर्भार चेतना का ही ध्यान में प्रवेश 36/ शून्य, शांत व मौन में--वर्षा अनुकंपा की 37/ चमत्कार--‘न-होने’ पर भी ‘होने’ का 38/ असार्थक की अग्नि-परीक्षा 39/ श्रद्धा के दुर्लभ अंकुर 40/ ध्यान में प्रभु--इच्छा का उदघाटन 41/ प्रतीक्षा में ही राज है परम उपलब्धि का 42/ स्वयं को तैयार करना--श्रद्धा से, शांति से, संकल्प से 43/ अभिशाप में भी वरदान खोजो 44/ अवलोकन--वृत्तियों की उत्पत्ति, विकास व विसर्जन का 45/ सिद्धांत--क्रांति का अंत है 46/ प्रतिक्रियावादी तथाकथित क्रांतिकारी 47/ सत्ता सदा ही क्रांति विरोधी है 48/ ध्यान है--द्रष्टा, अकर्ता, अभोक्ता रह जाना 49/ समग्र जिज्ञासा में प्रश्न का गिर जाना 50/ खोना ही ‘उसे’ खोजने की विधि है 51/ धैर्यपूर्वक पोषण--क्रांति के गर्भाधान का 52/ आत्म-विश्वास से खटखटाओ--प्रभु के द्वार को 53/ अनजाना समर्पण 54/ तुम्हारी समस्त संभावनाएं मेरे समक्ष साकार हैं 55/ सूक्ष्म और अदृश्य कार्य 56/ प्रभु-मंदिर की झलकें--ध्यान के द्वार पर 57/ अनुभूति में बुद्धि के प्रयास बाधक 58/ कामना दुख है, क्योंकि कामना दुष्पूर है 59/ प्रभु-कृपा की अमृत वर्षा और हृदय का उलटा पात्र 60/ जन्मों का पुराना--विस्मृत परिचय 61/ आनंद के आंसुओं से परिचय 62/ प्रभु-प्रेम को पागल मानने वाले लोगों से 63/ हृदय है अंतर्द्वार--प्रभु-मंदिर का 64/ पात्रता का बोध--सबसे बड़ी अपात्रता 65/ प्रमाद है भ्रूण-हत्या--विराट संभावनाओं की 66/ चाह और अपेक्षा हैं जननी दुख की 67/ रूपांतरण के पूर्व की कसौटियां 68/ ज्ञानी का शरीर भी मंदिर हो जाता है 69/ भेद है अज्ञान में 70/ जीवन सत्य की ओर केवल मौन इशारे संभव 71/ स्वयं रूपांतरण से गुजर कर ही समझ सकोगी 72/ ज्ञान की गति है--अनूठी, सूक्ष्म और बेबूझ 73/ शुभ आशीषों की शीतल छाया में 74/ ऊर्जा-जागरण से देह-शून्यता 75/ संन्यास है--मन से मनातीत में यात्रा 76/ ध्यान--रूपांतरण की विधायक खोज 77/ द्वंद्व अज्ञान में ही है 78/ काम-ऊर्जा का रूपांतरण--संभोग में साक्षीत्व से 79/ आत्म-सृजन का श्रम करो 80/ मन का भिखमंगापन 81/ स्वयं का मिटना ही एकमात्र तप है 82/ वही दे सकते हैं--जो कि हम हैं 83/ स्वर्ग और नरक--एक ही तथ्य के दो छोर 84/ अधैर्य से साधना में विलंब 85/ नासमझदारों की समझ 86/ आदमी ऐसा ही जीता है--तिरछा-तिरछा 87/ समग्रता से किया गया कोई भी कर्म अतिक्रमण बन जाता है 88/ चाह से मुक्ति ही मोक्ष है 89/ अंतर-अभीप्सा ही निर्णायक है 90/ सत्य की खोजः लंबी यात्रा, अशेष यात्री 91/ अज्ञात को ज्ञात से समझने की असफल चेष्टा 92/ हर पल जीता हूं पूरा 93/ जिंदगी तर्क और गणित से बहुत अधिक है 94/ जीवन की धन्यता है--अभिव्यक्ति में--स्वयं की, स्वधर्म की 95/ सम-चित्त में अद्वैत स्वरूप का बोध 96/ संकल्प पूर्ण हुआ कि शून्य हुआ 97/ साक्षी की प्रत्यभिज्ञा (रिकग्निशन) ही ध्यान है 98/ साधन के मार्ग पर शत्रु भी मित्र है 99/ शांत साक्षीभाव में ही डूब 100/ आदमी की कुशलता--वरदानों को भी अभिशाप में बदलने की 101/ गहरा खेल शब्दों का 102/ पवित्र प्रार्थना--आंसुओं में नहाई 103/ पीड़ा को भी उत्सव बना लेने की कला 104/ वही है, वही है--सब ओर वही है 105/ संकल्प के पंख--साधना में उड़ान 106/ मुझसे मिलने की निकटतम द्वार--गहरा ध्यान 107/ अंतः संन्यास का संकल्प 108/ क्रोध के दर्शन से क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण 109/ स्वरहीन-संगीत में डूबो 110/ समष्टि को बांट दिया ध्यान ही समाधि बन जाता है 111/ प्रभु द्वार पर हुई देर भी शुभ है 112/ समझ (अंडरस्टैंडिंग) ही मुक्ति है 113/ संन्यास--रूपांतरण की कमियां 114/ उसका होना ही उसका ज्ञान भी है 115/ जागे बिना सत्य से परिचय नहीं 116/ साधना को तो सिद्धि तक पहुंचाना ही है 117/ सदा स्मरण रखें--जीवन है एक खेल 118/ साहस--अज्ञात में छलांग का 119/ जिन खोजा तिन पाइयां 120/ अथक श्रम--और परीक्षा धैर्य की 121/ जीवन को उत्सव बना लेने की कला संन्यास है 122/ प्रभु-पथ से लौटना नहीं है 123/ स्वयं को खोकर ही पा सकोगे सर्व को 124/ शून्य में नृत्य और स्वरहीन संगीत 125/ ‘न-करना’ है करने की अंतिम अवस्था 126/ अहंकार की सीमा 127/ स्वयं को समझो 128/ एकमात्र यात्रा--अंतस की 129/ पर करो--कुछ तो करो 130/ पहले समझो ही 131/ अति सूक्ष्म हैं--अहंकार के रास्ते 132/ अपनी चिंता पर्याप्त है 133/ फूल, कांटे और साधना 134/ जीवन है एक चुनौती 135/ छलांग--बाहर--शरीर के, संसार के, समय के 136/ स्वयं की खोज ही संन्यास है 137/ पागल होने की विधि है यह--लेकिन प्रज्ञा में 138/ प्रभु-प्रकाश की पहली किरण 139/ अस्वस्थता को भी अवसर बना लो 140/ दिन-रात की धूप-छांव में स्वयं को भूल मत जाना 141/ नियति का बोध परम आनंद है 142/ स्वनिर्मित कारागृहों में कैद आदमी 143/ समय रहते जाग जाना आवश्यक है 144/ अमूर्च्छा का आक्रमण--मूर्च्छा पर 145/ कुछ भी हो--ध्यान को नहीं रोकना है 146/ देखो स्थिति और हो जाने दो समर्पण 147/ नाचो--गाओ और प्रभु की धुन में डूबो 148/ आनंद है महामंत्र 149/ जीवन नृत्य है 150/ पद घुंघरू बांध
--DhyanAntar 18:03, 27 September 2018 (UTC)