Letter written to Manik Babu, husband of Ma Yoga Sohan, on 14 Jun 1965 in afternoon. It is unknown if it has been published or not.
आचार्य रजनीश
प्रिय माणिक बाबू,
प्रेम ! आपका पत्र मिला है। उसे पाकर ह्रदय आनंद से भर गया है। शब्द जो नहीं कह पाते हैं, वह शब्दों के बीच के रिक्त स्थान कह देते हैं !उसकी भी अपनी भाषा है। उस भाषा को आपके पत्र में देख रहा हूँ। वस्तुतः, प्रेम को कुछ कहने की आवश्यकता भी नहीं है। वह तो बिना कहे ही समझ लिया जाता है। उसकी तरंगे तो किसी अज्ञात आकाश पथ से ह्रदय को आंदोलित कर ही जाती हैं। आपने जो पत्र लिखने चाहे हैं और नहीं लिखे, वे भी पहुँच ही गये हैं !