Guru Hai Dwar Prahbu Ka (गुरु है द्वार प्रभु का)
Jump to navigation
Jump to search
- अध्यात्म में गुरु-शिष्य संबंध का महत्व निरूपित करने वाली पुस्तक।यदि दरवाजा न हो, तो मंदिर का होना या न होना हमारे लिए बराबर हो जाए। अगर मार्ग न हो, तो मंजिल का होना भी नहीं होने के तुल्य हो जाए। ठीक ऐसे ही यदि गुरु न हो, तो प्रभु का अस्तित्व हमारे लिए अनस्तित्व के समान हो जाए। तब धर्म का कोई उपाय ही शेष न बचे। ईसा मसीह का वचन है- ‘आई एम दि गेट’ अर्थात मैं एक द्वार हूं। ओशो ने इस सारगर्भित वचन को अपनी एक अंग्रेजी प्रवचनमाला के शीर्षक रूप में चुना है। सिक्ख अपने उपासनागृह को गुरुद्वारा ठीक ही कहते हैं। संत कबीर ने तो गुरु-महिमा गाते हुए यहां तक कहा है- तीन लोक नौ खंड में, गुरु ते बड़ा न कोय। करता करै न करि सकै, गुरु करै सो होय।। सदगुरु ओशो ने इस दोहे का भावार्थ इस प्रकार समझाया है- अस्तित्व में गुरु से बड़ा कोई भी नहीं। इसलिए हम गुरु कहते हैं। गुरु का अर्थ है, जिससे भारी और कुछ भी नहीं। परमात्मा भी करना चाहे, तो न कर पाए। और गुरु जो करना चाहे, वह हो जाए। कबीर अतिशयोक्ति करते मालूम पड़ते हैं। नहीं, कबीर यह कह रहे हैं कि साधन साध्य से बड़ा है। साधन के बिना तुम साध्य तक तभी
- author
- Osho Shailendra
- language
- Hindi
- notes
- Available online as PDF on OshoDhara.
editions
गुरु है द्वार प्रभु का
|