Letter written on 27 Jan 1971 (YSamadhi): Difference between revisions
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acharya rajneesh | |||
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प्रेम। शरीर चक्रों पर कार्य शुरू हुआ है। | |||
अनायास और अकारण ही किसी चक्र पर पीड़ा होने लगेगी। | |||
उससे न भयभीत होना और न ही उसकी चिकित्सा में ही पड़ना। | |||
उसके प्रति साक्षी-भाव रखकर ध्यान जारी रखना। | |||
जब भी ऐसी पीड़ा हो तो पीड़ा के कारण ध्यान स्थगित नहीं करना। | |||
पीड़ा का कार्य है, वह होते ही वह जैसे आई थी वैसे ही विदा होजायेगी। | |||
चक्र पड़े हैं बंद वर्षों से -- जन्मों से। | |||
उनमे पुनः सक्रियता के कारण पीड़ा होती है। | |||
कानों में से कभी गर्म वायु निकलेगी। | |||
रीढ़ में कभी कोई सर्प जैसी शक्ति सरकेगी। | |||
शरीर में अपरिचित कंपन होंगे। | |||
भीड़ में भी सन्नाटे की आवाज सुनाई पड़ेगी। | |||
नींद कभी अचानक टूट जायेगी और अशरीरी भाव का अनुभव होगा। | |||
ध्यान में नाद सुनाई पड़ेंगे। | |||
जो भी हो उसे देखना -- चिन्ता में नहीं पड़ना। | |||
मृत्यु भी आती मालूम हो तो उसे भी स्वीकार करना और साक्षी रहना। | |||
क्योंकि, ध्यान में मृत्यु की अनुभूति ही अमृतत्व का व्दार है। | |||
रजनीश के प्रणाम | |||
२७/१/१९७१ | |||
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A photocopy of letter written to Ma Yoga Samadhi on 27 Jan 1971. It has been published in Dhai Aakhar Prem Ka (ढ़ाई आखर प्रेम का), as letter 136.
acharya rajneesh A-1 WOODLAND PEDDAR ROAD BOMBAY-26 PHONE: 382184 प्यारी समाधि, अनायास और अकारण ही किसी चक्र पर पीड़ा होने लगेगी। उससे न भयभीत होना और न ही उसकी चिकित्सा में ही पड़ना। उसके प्रति साक्षी-भाव रखकर ध्यान जारी रखना। जब भी ऐसी पीड़ा हो तो पीड़ा के कारण ध्यान स्थगित नहीं करना। पीड़ा का कार्य है, वह होते ही वह जैसे आई थी वैसे ही विदा होजायेगी। चक्र पड़े हैं बंद वर्षों से -- जन्मों से। उनमे पुनः सक्रियता के कारण पीड़ा होती है। कानों में से कभी गर्म वायु निकलेगी। रीढ़ में कभी कोई सर्प जैसी शक्ति सरकेगी। शरीर में अपरिचित कंपन होंगे। भीड़ में भी सन्नाटे की आवाज सुनाई पड़ेगी। नींद कभी अचानक टूट जायेगी और अशरीरी भाव का अनुभव होगा। ध्यान में नाद सुनाई पड़ेंगे। जो भी हो उसे देखना -- चिन्ता में नहीं पड़ना। मृत्यु भी आती मालूम हो तो उसे भी स्वीकार करना और साक्षी रहना। क्योंकि, ध्यान में मृत्यु की अनुभूति ही अमृतत्व का व्दार है। रजनीश के प्रणाम २७/१/१९७१ |
- See also
- Dhai Aakhar Prem Ka ~ 136 - The event of this letter.