Letter written on 26 May 1962 om: Difference between revisions

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This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 26 May 1962 afternoon in Gadarwara.


This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parekh. It was written on 26 May 1962 afternoon in Gadarwara.
This letter has been published, in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 128-129 (2002 Diamond edition). PS is missing in the book.


This letter has been published, in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 128-129 (2002 Diamond edition). We are awaiting a transcription and translation.
The PS of this letter from Gadarwara, reads: "I will be at Gadarwara till 5 June. Since when I have come from Chanda there is no news from you. Drop even a single card. Sometimes feeling that how much did I renounce by not telling you to drop a letter!"


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And see also [[Letters to Anandmayee]]
रजनीश
 
११५, नेपियर टाउन<br>
जबलपुर (म.प्र.)
 
गाडरवारा<br>
दोपहर: २६ मई १९६२
 
मां,<br>
रात्रि कल बादल घिरे थे। आकाश अंधेरा था : केवल पूर्व में कुछ तारे दिखाई देते थे। एक वृद्ध सज्जन मेरे साथ थे : मैं उनसे कहा कि आज का आकाश बड़ा प्रतीकताम्क है। सारा जगत्‌ अंधेरे में खोगया है : पूरब में ही थोड़े तारे शेष रहे हैं। मनुष्य का भविष्य पूरब के हाथ है – यह थोडे से तारे भी डूब गये तो सब नष्ट होजाने को है। पूर्व कोई कोई भौगोलिक इकाई नहीं है। यह आत्मिक जीवन, प्रकाश और सूर्योदय का प्रतीक है। पूरब ने अपना पूरा इतिहास मनुष्य में जो छिपा बैठा सत्य है उसके उद्‌घाटन में व्यय किया है। आत्मा का, चैतन्य का आविष्कार ही उसका एकमात्र आविष्कार और निधि है।
 
मनुष्य देह नहीं है। यह पूर्वीय संस्कृति का निष्कर्ष है। और यह बात केन्द्रीय अर्थ की है। इस पर ही मनुष्य का सारा जीवन-दर्शन निर्भर होता है। मनुष्य देह से भिन्न दिव्य चेताना है : यह आस्था, यह दृष्टि जीवन में जो क्रांति लाती है वह अभूतपूर्व होती है। सारे मूल्य ही फिर बदल जाते हैं।
 
मैं अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा सम्मेलन में यही कहा हूँ। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य एक अखंड आत्म-दर्शन के परिणाम हैं। उन्हें अलग से नहीं लाया जासकता है। अहिंसा की आत्म ज्ञान से अतिरिक्त कोई सत्ता नहीं होसकती है। इसलिए सबसे प्रथम और सर्वोपरि विज्ञान आत्म-उद्‌घाटन का है। इस उद्‌घाटन के बाद शेष सब अपने आप उपलब्ध होजाता है : उसके बाद फिर कुछ और साधने की अलग से आवश्यकता नहीं जाती है। जीसस क्राइस्ट ने २० सदीयों पूर्व यही कहा था : ‘पहले जो भीतर है उसे खोज लो फिर शेष सब अपने आप उपलब्ध होजाता है।‘
 
यह मूल की बात, यह जड़ की बात पूरब ने पहचान ली थी। आधुनिक सभ्यता इसे भूल गई है और इसीलिए इतनी बाह्य समृद्धि के बीच भी भीतर सब दरिद्र और दुखद होगया है।
 
पूरब के थोडे से चमकते तारों को मान लें तो इस अंधेरे के बाहर मार्ग मिल सकता है।
 
रजनीश के प्रणाम
 
 
पुनश्च: मैं ५ जुन तक गाडरवारा हूँ। जब से चांदा से आया हूँ आपका कोई समाचार नहीं है। एकाध कार्ड डाल दें। कभी कभी ऐसा लगता है कि पत्र न डालने को कहकर कितना बड़ा त्याग किया हूँ!
 
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;See also
:[[Bhavna Ke Bhojpatron ~ 060]] - The event of this letter.
:[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters.
 
[[Category:Manuscripts|Letter 1962-05-26-om]] [[Category:Manuscript Letters (hi:पांडुलिपि पत्र)|Letter 1962-05-26-om]]
[[Category:Newly discovered since 1990|Letter 1962-05-26-om]]

Latest revision as of 03:59, 25 May 2022

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 26 May 1962 afternoon in Gadarwara.

This letter has been published, in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 128-129 (2002 Diamond edition). PS is missing in the book.

The PS of this letter from Gadarwara, reads: "I will be at Gadarwara till 5 June. Since when I have come from Chanda there is no news from you. Drop even a single card. Sometimes feeling that how much did I renounce by not telling you to drop a letter!"

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म.प्र.)

गाडरवारा
दोपहर: २६ मई १९६२

मां,
रात्रि कल बादल घिरे थे। आकाश अंधेरा था : केवल पूर्व में कुछ तारे दिखाई देते थे। एक वृद्ध सज्जन मेरे साथ थे : मैं उनसे कहा कि आज का आकाश बड़ा प्रतीकताम्क है। सारा जगत्‌ अंधेरे में खोगया है : पूरब में ही थोड़े तारे शेष रहे हैं। मनुष्य का भविष्य पूरब के हाथ है – यह थोडे से तारे भी डूब गये तो सब नष्ट होजाने को है। पूर्व कोई कोई भौगोलिक इकाई नहीं है। यह आत्मिक जीवन, प्रकाश और सूर्योदय का प्रतीक है। पूरब ने अपना पूरा इतिहास मनुष्य में जो छिपा बैठा सत्य है उसके उद्‌घाटन में व्यय किया है। आत्मा का, चैतन्य का आविष्कार ही उसका एकमात्र आविष्कार और निधि है।

मनुष्य देह नहीं है। यह पूर्वीय संस्कृति का निष्कर्ष है। और यह बात केन्द्रीय अर्थ की है। इस पर ही मनुष्य का सारा जीवन-दर्शन निर्भर होता है। मनुष्य देह से भिन्न दिव्य चेताना है : यह आस्था, यह दृष्टि जीवन में जो क्रांति लाती है वह अभूतपूर्व होती है। सारे मूल्य ही फिर बदल जाते हैं।

मैं अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा सम्मेलन में यही कहा हूँ। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य एक अखंड आत्म-दर्शन के परिणाम हैं। उन्हें अलग से नहीं लाया जासकता है। अहिंसा की आत्म ज्ञान से अतिरिक्त कोई सत्ता नहीं होसकती है। इसलिए सबसे प्रथम और सर्वोपरि विज्ञान आत्म-उद्‌घाटन का है। इस उद्‌घाटन के बाद शेष सब अपने आप उपलब्ध होजाता है : उसके बाद फिर कुछ और साधने की अलग से आवश्यकता नहीं जाती है। जीसस क्राइस्ट ने २० सदीयों पूर्व यही कहा था : ‘पहले जो भीतर है उसे खोज लो फिर शेष सब अपने आप उपलब्ध होजाता है।‘

यह मूल की बात, यह जड़ की बात पूरब ने पहचान ली थी। आधुनिक सभ्यता इसे भूल गई है और इसीलिए इतनी बाह्य समृद्धि के बीच भी भीतर सब दरिद्र और दुखद होगया है।

पूरब के थोडे से चमकते तारों को मान लें तो इस अंधेरे के बाहर मार्ग मिल सकता है।

रजनीश के प्रणाम


पुनश्च: मैं ५ जुन तक गाडरवारा हूँ। जब से चांदा से आया हूँ आपका कोई समाचार नहीं है। एकाध कार्ड डाल दें। कभी कभी ऐसा लगता है कि पत्र न डालने को कहकर कितना बड़ा त्याग किया हूँ!


See also
Bhavna Ke Bhojpatron ~ 060 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.