Letter written on 25 Apr 1962 xm: Difference between revisions
Dhyanantar (talk | contribs) No edit summary |
Dhyanantar (talk | contribs) No edit summary |
||
(5 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
[[ | This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 25 Apr 1962 in midnight. | ||
This | This letter has been published, in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 115 (2002 Diamond edition). | ||
The PS reads: "My card must have been received. I will be reaching in the evening on 1 May, by G. T. Rest, OK. My pranam to Yashoda Bai and all." | |||
{| class = "wikitable" style="margin-left: 50px; margin-right: 100px;" | |||
|- | |||
|[[image:Letters to Anandmayee 989.jpg|right|300px]] | |||
रजनीश | |||
११५, नेपियर टाउन<br> | |||
जबलपुर (म.प्र.) | |||
अर्धरात्रि<br> | |||
२५ अप्रैल १९६२ | |||
प्रिय मां,<br> | |||
आकाश तारों से भरा है। रात्रि स्वप्न सी मालुम हो रही है। दिनभर धरती तपी है पर अब सब ठंडा होआया है। | |||
रजनी-गंधा में फूल आए हैं और उनकी सुवास हवा में तैर रही है। एक कोयल बोलते बोलते चुप होगई है पर उसकी प्रतिध्वनि मन में है और लगता है कि वह बोले ही जारही है! | |||
मैं ध्यान में था; अब उठा हूँ पर ध्यान से अब उठना नहीं होता है। मैं उठ जाता हूँ पर ध्यान चलता ही जाता है। मैं कुछ भी करूँ पर ध्यान बना ही रहता है। ध्यान तो अब स्वांस जैसा होआया है। उसे करना नहीं पड़ता है वह तो अब ‘है’। कल ही एक जगह कहा हूँ कि ध्यान क्रिया नहीं है। वह तो चेतना की स्वरूप-स्थिति है। इसलिए उसे कुछ करने से नहीं पाया जाता है वरन् जब सब करना छूट जाता है तब पाया जाता है कि वह तो सदा से ही था। | |||
कैसा दुर्भाग्य है कि जो स्वरूप है, उसे ही खोकर मनुष्य दरिद्र होगया है : जो खोया ही नहीं जासकता है उसे ही खोकर मनुष्य दीन-हीन होगया है! | |||
कैसा नाटक कि अभिनेता स्वयं को भूल गया है और अपने को अभिनय का पात्र मात्र समझ रहा है? | |||
इस अभिनय से जागना ध्यान है और जब यह जाग आती है तो कितना आश्चर्य होता है – कितनी हंसी आती है! | |||
भारत इस समस्त सृष्टि को जो लीला कहता है सो ठीक ही कहता है! | |||
रजनीश<br> | |||
के<br> | |||
प्रणाम | |||
पुनश्च: मेरा कार्ड तो मिल ही गया होगा। मैं १ मई को संध्या जी. टी. से पहुँच रहा हूँ। शेष शुभ। यशोदा बाई और सबको मेरे प्रणाम। | |||
|} | |||
;See also | ;See also | ||
: | :[[Bhavna Ke Bhojpatron ~ 051]] - The event of this letter. | ||
:[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters. | :[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters. | ||
[[Category:Manuscripts|Letter 1962-04-25-xm]] [[Category:Manuscript Letters (hi:पांडुलिपि पत्र)|Letter 1962-04-25-xm]] | |||
[[Category:Newly discovered since 1990|Letter 1962-04-25-xm]] |
Latest revision as of 03:48, 25 May 2022
This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 25 Apr 1962 in midnight.
This letter has been published, in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 115 (2002 Diamond edition).
The PS reads: "My card must have been received. I will be reaching in the evening on 1 May, by G. T. Rest, OK. My pranam to Yashoda Bai and all."
रजनीश ११५, नेपियर टाउन अर्धरात्रि प्रिय मां, रजनी-गंधा में फूल आए हैं और उनकी सुवास हवा में तैर रही है। एक कोयल बोलते बोलते चुप होगई है पर उसकी प्रतिध्वनि मन में है और लगता है कि वह बोले ही जारही है! मैं ध्यान में था; अब उठा हूँ पर ध्यान से अब उठना नहीं होता है। मैं उठ जाता हूँ पर ध्यान चलता ही जाता है। मैं कुछ भी करूँ पर ध्यान बना ही रहता है। ध्यान तो अब स्वांस जैसा होआया है। उसे करना नहीं पड़ता है वह तो अब ‘है’। कल ही एक जगह कहा हूँ कि ध्यान क्रिया नहीं है। वह तो चेतना की स्वरूप-स्थिति है। इसलिए उसे कुछ करने से नहीं पाया जाता है वरन् जब सब करना छूट जाता है तब पाया जाता है कि वह तो सदा से ही था। कैसा दुर्भाग्य है कि जो स्वरूप है, उसे ही खोकर मनुष्य दरिद्र होगया है : जो खोया ही नहीं जासकता है उसे ही खोकर मनुष्य दीन-हीन होगया है! कैसा नाटक कि अभिनेता स्वयं को भूल गया है और अपने को अभिनय का पात्र मात्र समझ रहा है? इस अभिनय से जागना ध्यान है और जब यह जाग आती है तो कितना आश्चर्य होता है – कितनी हंसी आती है! भारत इस समस्त सृष्टि को जो लीला कहता है सो ठीक ही कहता है! रजनीश
|
- See also
- Bhavna Ke Bhojpatron ~ 051 - The event of this letter.
- Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.