Asli-Nakli Dharm (असली-नकली धर्म): Difference between revisions
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Latest revision as of 18:30, 2 April 2022
असली-नकली धर्म - Asli-Nakli Dharm (Real & False religion)
- केवल सिक्के ही खोटे नहीं होते, नोट ही जाली नहीं छपते, धर्म भी असली और नकली होते हैं। असली धर्म व्यक्ति को जगाता है, अधिक संवेदनशील और चैतन्य बनाता है। नकली धर्म अफीम का नशा है, वह मनुष्य के चित्त को सुलाता है। क्योंकि धर्म के चालाक ठेकेदारों द्वारा लोगों का शोषण करना तभी संभव है। जागरूक व्यक्ति तो क्रांतिकारी होता है। हम जिन्हें धर्म कहते हैं, चिंतन-मनन की कसौटी पर उनकी असलियत परखना जरूरी है। भय, लोभ, अंधविश्वासपूर्ण धारणाओं, थोथे क्रियाकांडों एवं दार्शनिक सिद्धांतों पर आधारित धर्म खोटे सिक्के हैं। आंतरिक सत्य की खोज, ध्यान की साधना, समाधि की अनुभूति, तथा भक्ति-भाव पर केन्द्रित धर्म सच्चे सिक्के हैं। चेतना को विकसित करने वाले सत्यों को बचाना। व्यर्थ, हानिकारक, हमारे शोषण में सहायक तत्वों को त्यागना। जैसे बचपन के वस्त्र, बड़े हो जाने पर काम नहीं आते, ठीक वैसे ही हजारों साल पुराने धर्म के अधिकांश हिस्से अब इंसानियत के काम के नहीं रहे। देखते हैं, विज्ञान प्रतिदिन बदल जाता है, धर्म पिछले दस हजार साल में नहीं बदला। यह अवैज्ञानिकता का लक्षण है। सरिता बहती रहती है तो तरोताजा बनी रहती है। अध्यात्म भी निरंतर प्रगतिशील रहे तो जीवंत रहता है; अन्यथा वह सड़ा-गला तालाब बन जाता है। पिछले सौ साल में विज्ञान कहां से कहां पहुंच गया! क्योंकि पुराने के प्रति उसका आग्रह नहीं। लेकिन धर्म में बिल्कुल विकास नहीं हुआ। क्योंकि हमारे मन में पुराने की पकड़ है, प्राचीन को हम छोड़ना ही नहीं चाहते। जबकि निराग्रही व्यक्ति की चेतना में ही वास्तविक धर्म यानि ध्यान, समाधि, परमात्मा की अनुभूति संभव है। असली-नकली की पहचान करना हो तो यह पुस्तक अवश्य पढ़िए।
- author
- Sw Shailendra Saraswati (Osho Shailendra) लेखक- ओशो शैलेन्द्र
- language
- Hindi
- notes
- Available online as PDF on OshoDhara.
editions
असली-नकली धर्म
Cover back and spine (Spine is incorrect) |