Letter written on 2 Nov 1961: Difference between revisions

From The Sannyas Wiki
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
No edit summary
Line 5: Line 5:
Osho's salutation in this letter is a simple "मां", Maan, Mom or Mother. It has a few of the hand-written marks that have been observed in other letters: a blue number (30) in a circle in the top right corner, a red tick mark, and a second number (56) in the bottom right corner.  
Osho's salutation in this letter is a simple "मां", Maan, Mom or Mother. It has a few of the hand-written marks that have been observed in other letters: a blue number (30) in a circle in the top right corner, a red tick mark, and a second number (56) in the bottom right corner.  


We are awaiting a transcription and translation.
{| class = "wikitable" style="margin-left: 50px; margin-right: 100px;"
|-
|[[image:|right|300px]]
 
रजनीश<br>
११५, नेपियर टाउन<br>
जबलपुर (म. प्र.)
 
गाडरवारा.<br>
२ नव. १९६१
 
मां,<br>
जगत एक प्रवाह है : अनादि अनंत प्रवाह – एक क्षण भी कुछ ठरा हुआ नहीं है। सदियों पूर्व एक यूनानी ने कहा था : एक ही नदी में दो बार नहीं उतरा सकता है। मैं कहता हूँ एक भी बार उतरना क्या असान है – उतरते उतरते ही बह जाती है। सब बह रहा है : विश्राम नहीं है : विराम्‌ नहीं है। ‘ठहराव मनुष्य का कल्पित शब्द है। विज्ञान ने अब उसे अपनी भाषा से अलग कर दिया है। जेम्स जीन्स कहे हैं : ‘स्थायी’ जैसी वस्तु जगत्‌ में कहीं है ही नहीं। इस अद्भूत गति में हम हैं।
 
एक प्रश्न सहज उठ आता है कि हम भी गति के अंग हैं या पृथक्‌ हैं।
 
वह जो गति को जान रहा है, और जो गति का दृष्टा और साक्षी है, वह गति का अंग नहीं होसकता है। वह गति में है पर गति के बाहर है।
 
सब बदल जाता है पर स्व-बोध नहीं बदलता है। कल बालक था, आज युवा हूँ – क्या बचा है अपरिवर्तित – शरीर वही नहीं है – मन वही नहीं है, विचार वही नहीं है पर ‘मैं’ वही हूँ।
 
मैं – आत्मा संपूर्ण जगत्‌ में एक अकेला नित्य तत्व है।
 
इस एक को जान लेने से जन्म और मृत्यु मिट जाते हैं क्योंकि जन्म और मृत्यु परिवर्तन के जगत्‌ के अंग है। नित्य को जान लेने से अनित्य से मुक्ति होजाती है।
 
इस एक को पा लेने से सब पालिया जाता है।
 
रजनीश के प्रणाम
 
|}





Revision as of 05:28, 16 February 2020

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parekh. It was written on 2nd November 1961 from Gadarwara. The letterhead has a simple "रजनीश" (Rajneesh) in the top left area, in a heavy but florid font, and "115, Napier Town, Jabalpur (M.P.) in the top right, in a lighter but still somewhat florid font.

Osho's salutation in this letter is a simple "मां", Maan, Mom or Mother. It has a few of the hand-written marks that have been observed in other letters: a blue number (30) in a circle in the top right corner, a red tick mark, and a second number (56) in the bottom right corner.

[[image:|right|300px]]

रजनीश
११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म. प्र.)

गाडरवारा.
२ नव. १९६१

मां,
जगत एक प्रवाह है : अनादि अनंत प्रवाह – एक क्षण भी कुछ ठरा हुआ नहीं है। सदियों पूर्व एक यूनानी ने कहा था : एक ही नदी में दो बार नहीं उतरा सकता है। मैं कहता हूँ एक भी बार उतरना क्या असान है – उतरते उतरते ही बह जाती है। सब बह रहा है : विश्राम नहीं है : विराम्‌ नहीं है। ‘ठहराव मनुष्य का कल्पित शब्द है। विज्ञान ने अब उसे अपनी भाषा से अलग कर दिया है। जेम्स जीन्स कहे हैं : ‘स्थायी’ जैसी वस्तु जगत्‌ में कहीं है ही नहीं। इस अद्भूत गति में हम हैं।

एक प्रश्न सहज उठ आता है कि हम भी गति के अंग हैं या पृथक्‌ हैं।

वह जो गति को जान रहा है, और जो गति का दृष्टा और साक्षी है, वह गति का अंग नहीं होसकता है। वह गति में है पर गति के बाहर है।

सब बदल जाता है पर स्व-बोध नहीं बदलता है। कल बालक था, आज युवा हूँ – क्या बचा है अपरिवर्तित – शरीर वही नहीं है – मन वही नहीं है, विचार वही नहीं है पर ‘मैं’ वही हूँ।

मैं – आत्मा संपूर्ण जगत्‌ में एक अकेला नित्य तत्व है।

इस एक को जान लेने से जन्म और मृत्यु मिट जाते हैं क्योंकि जन्म और मृत्यु परिवर्तन के जगत्‌ के अंग है। नित्य को जान लेने से अनित्य से मुक्ति होजाती है।

इस एक को पा लेने से सब पालिया जाता है।

रजनीश के प्रणाम


See also
(?) - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.