Letter written on 21 Dec 1961 om: Difference between revisions

From The Sannyas Wiki
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[image:Letters to Anandmayee 871.jpg|right|300px]]
This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parekh. It was written on 21st December 1961 in the afternoon. The letterhead has a simple "रजनीश" (Rajneesh) in the top left area, in a heavy but florid font, and "115, Napier Town, Jabalpur (M.P.) in the top right, in a lighter but still somewhat florid font.
This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parekh. It was written on 21st December 1961 in the afternoon. The letterhead has a simple "रजनीश" (Rajneesh) in the top left area, in a heavy but florid font, and "115, Napier Town, Jabalpur (M.P.) in the top right, in a lighter but still somewhat florid font.


Osho's salutation in this letter is "प्रिय मां", Priya Maan, Dear Mom, Beloved Mother. It has a couple of the hand-written marks that have been observed in other letters: a blue number (43) in a circle in the top right corner and a second, pale and mirror-image number (68) in the bottom right corner, but no red tick mark.
Osho's salutation in this letter is "प्रिय मां", Priya Maan, Dear Mom, Beloved Mother. It has a couple of the hand-written marks that have been observed in other letters: a blue number (43) in a circle in the top right corner and a second, pale and mirror-image number (68) in the bottom right corner, but no red tick mark.


We are awaiting a transcription and translation.
{| class = "wikitable" style="margin-left: 50px; margin-right: 100px;"
|-
|[[image:Letters to Anandmayee 871.jpg|right|300px]]
 
रजनीश<br>
११५, नेपियर टाउन<br>
जबलपुर (म. प्र.)
 
प्रिय मां,<br>
प्रणाम। आपके दोनों पत्र मिल गए हैं। यह जानकर हैरान हूँ कि बीच में मेरा डाला गया पत्र क्यों नहीं मिला है। मैं पत्र तो दिया था; संभवत: पोस्ट-आफिस की ही भूल से गड़बड़ हुई है। पत्र जिस समय दिया था, उस समय स्वास्थ्य मेरा कुछ ठीक नहीं था। अब तो ठीक है लेकिन छुट्टीयों में कहीं भी बाहर जाउँ तो पुन: गड़बड़ न हो यह डर है। इस कारण श्री पारख जी के निमंत्रण को नहीं मान सकूँगा। उनसे मेरी ओर से क्षमा याचना करलें।
जयपुर अधिवेशन टल गया सो ठीक ही हुआ अन्यथा मैं बड़ी कठिनाई में पड़ जाता : जाता तो मुश्किल थी, न जाता तो मुश्किल थी। बुलढ़ाना से श्री भीखमचन्द जी देशलहारा का पत्र भी आया है। उन्होंने २०-२१ जनवरी की तारीखें वहां के कार्यक्रम के लिए सुझाईं हैं। उनके सुझाव को माने लेरहा हूँ। स्वास्थ्य ठीक होता तो अभी निपटाना आसान था। स्वास्थ्य कैसे गड़बड़ हुआ यह भी समझ में नहीं आता है।
एक दिन रात्रि में अचानक कै-दस्त शुरु होगये। कोई २ बजे होंगे सब लोग घबड़ा आए। समझे कालरा है; कारण एक बार १०-११ पूर्व मैं ऐसे ही कालरा से परेशान होचुका था। पर कालरा नहीं था : कोई ८ कै ८ दस्त के बाद दूसरे दिन दोपहर तक तबियत ठीक होगई। डाक्टरों का ख़याल है कि पानी की खराबी से ऐसा हुआ है। मेरी समझ से गैस के रुक जाने से ऐसा हुआ है। आप की सोंठ भी ले चुका हूँ पर उससे कोई परिणाम नहीं हुआ है अब एलोपेथी का ईलाज लेरहा हूँ।  शेष सब शुभ है। कोई चिन्ता न करें अब तबियत बिल्कुल ठीक है।
 
सब को मेरे विनम्र प्रणाम।
 
दोपहर:<br>
२१.१२.६१
 
रजनीश के प्रणाम
(पुनश्च: एक पुस्तक पढ़ रहा हूँ : इसे आप बुलालें बाल मंदिर के बच्चों के इलाज में बहुत उपयोगी हो सकती है। पता नीचे है:<br>
“आरोग्य का अमूल्य साधन : स्वमूत्र” (हिंदी)<br>
लेखक : डॉ. रावजी भाई मणि भाई पटेल.<br>
पता – भारत सेवक समाज, लालभाई सेठ का वंडा, पानकोर नाका, अहमदाबाद)
 
|}





Revision as of 07:07, 16 February 2020

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parekh. It was written on 21st December 1961 in the afternoon. The letterhead has a simple "रजनीश" (Rajneesh) in the top left area, in a heavy but florid font, and "115, Napier Town, Jabalpur (M.P.) in the top right, in a lighter but still somewhat florid font.

Osho's salutation in this letter is "प्रिय मां", Priya Maan, Dear Mom, Beloved Mother. It has a couple of the hand-written marks that have been observed in other letters: a blue number (43) in a circle in the top right corner and a second, pale and mirror-image number (68) in the bottom right corner, but no red tick mark.

रजनीश
११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म. प्र.)

प्रिय मां,
प्रणाम। आपके दोनों पत्र मिल गए हैं। यह जानकर हैरान हूँ कि बीच में मेरा डाला गया पत्र क्यों नहीं मिला है। मैं पत्र तो दिया था; संभवत: पोस्ट-आफिस की ही भूल से गड़बड़ हुई है। पत्र जिस समय दिया था, उस समय स्वास्थ्य मेरा कुछ ठीक नहीं था। अब तो ठीक है लेकिन छुट्टीयों में कहीं भी बाहर जाउँ तो पुन: गड़बड़ न हो यह डर है। इस कारण श्री पारख जी के निमंत्रण को नहीं मान सकूँगा। उनसे मेरी ओर से क्षमा याचना करलें। जयपुर अधिवेशन टल गया सो ठीक ही हुआ अन्यथा मैं बड़ी कठिनाई में पड़ जाता : जाता तो मुश्किल थी, न जाता तो मुश्किल थी। बुलढ़ाना से श्री भीखमचन्द जी देशलहारा का पत्र भी आया है। उन्होंने २०-२१ जनवरी की तारीखें वहां के कार्यक्रम के लिए सुझाईं हैं। उनके सुझाव को माने लेरहा हूँ। स्वास्थ्य ठीक होता तो अभी निपटाना आसान था। स्वास्थ्य कैसे गड़बड़ हुआ यह भी समझ में नहीं आता है। एक दिन रात्रि में अचानक कै-दस्त शुरु होगये। कोई २ बजे होंगे सब लोग घबड़ा आए। समझे कालरा है; कारण एक बार १०-११ पूर्व मैं ऐसे ही कालरा से परेशान होचुका था। पर कालरा नहीं था : कोई ८ कै ८ दस्त के बाद दूसरे दिन दोपहर तक तबियत ठीक होगई। डाक्टरों का ख़याल है कि पानी की खराबी से ऐसा हुआ है। मेरी समझ से गैस के रुक जाने से ऐसा हुआ है। आप की सोंठ भी ले चुका हूँ पर उससे कोई परिणाम नहीं हुआ है अब एलोपेथी का ईलाज लेरहा हूँ। शेष सब शुभ है। कोई चिन्ता न करें अब तबियत बिल्कुल ठीक है।

सब को मेरे विनम्र प्रणाम।

दोपहर:
२१.१२.६१

रजनीश के प्रणाम

(पुनश्च: एक पुस्तक पढ़ रहा हूँ : इसे आप बुलालें बाल मंदिर के बच्चों के इलाज में बहुत उपयोगी हो सकती है। पता नीचे है:
“आरोग्य का अमूल्य साधन : स्वमूत्र” (हिंदी)
लेखक : डॉ. रावजी भाई मणि भाई पटेल.
पता – भारत सेवक समाज, लालभाई सेठ का वंडा, पानकोर नाका, अहमदाबाद)


See also
(?) - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.