Letter written on 2 Jan 1967 xm: Difference between revisions

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Letter written to [[Ma Yoga Sohan]] on 2 Jan 1967 in the evening. It is unknown if it has been published or not.


Letter written to [[Ma Yoga Sohan]] on 2 Jan 1967 in the evening. It is unknown if it has been published or not. We are awaiting a transcription and translation.
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Acharya Rajnish
 
115, Napier Town, Yogesh Bhavan, Jabalpur (M.P.)
 
रात्रिः<br>
२/१/१९६७
 
प्यारी सोहन।<br>
मैं चिकलदरा से लौटकर जल्दी ही पत्र लिखने की सोच रहा था कि कहीं तेरा पत्र पहले ही बाजी न मारले लेकिन जो होना होता है,वही होता है ! मैं लिखने बैठा ही था कि तेरा और माणिक बाबू का पत्र आपहुँचा है। अब तो बाजी जा ही चुकी है,इसलिए हार स्वीकार किये बिना कोई मार्ग नहीं है।शायद, इसलिए तूने एक्सप्रेस पत्र भी लिखा है ?
 
मेरा स्वास्थ्य अच्छा है। तीन माह के घातपात का अच्छा असर हुआ है। लेकिन अब पुराने भोजन पर लौट आया हूँ। कहना चाहिएः लौटना पड़ा है ! उसमे तेरा हाथ तो प्रमुख है। और लोगों की भी साजिश थी, किंतु सबसे ज्यादा कुसुरवार तो तू ही है !
 
चिकलदरा में बहुत याद आई। शिविर बहुत ही अच्छा हुआ। और चांद की रातें तो अलौकिक थीं।
 
माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष। मैं ४ जन. को जालना जारहा हूँ। ५, ६, ७, वहां बोलूंगा। फिर अहमदाबाद जाऊँगा। वहां गुजरात यूनिवर्सिटी में १६, १७ बोल रहा हूँ।
 
रजनीश के प्रणाम
 
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Revision as of 09:11, 9 March 2020

Letter written to Ma Yoga Sohan on 2 Jan 1967 in the evening. It is unknown if it has been published or not.

Acharya Rajnish

115, Napier Town, Yogesh Bhavan, Jabalpur (M.P.)

रात्रिः
२/१/१९६७

प्यारी सोहन।
मैं चिकलदरा से लौटकर जल्दी ही पत्र लिखने की सोच रहा था कि कहीं तेरा पत्र पहले ही बाजी न मारले लेकिन जो होना होता है,वही होता है ! मैं लिखने बैठा ही था कि तेरा और माणिक बाबू का पत्र आपहुँचा है। अब तो बाजी जा ही चुकी है,इसलिए हार स्वीकार किये बिना कोई मार्ग नहीं है।शायद, इसलिए तूने एक्सप्रेस पत्र भी लिखा है ?

मेरा स्वास्थ्य अच्छा है। तीन माह के घातपात का अच्छा असर हुआ है। लेकिन अब पुराने भोजन पर लौट आया हूँ। कहना चाहिएः लौटना पड़ा है ! उसमे तेरा हाथ तो प्रमुख है। और लोगों की भी साजिश थी, किंतु सबसे ज्यादा कुसुरवार तो तू ही है !

चिकलदरा में बहुत याद आई। शिविर बहुत ही अच्छा हुआ। और चांद की रातें तो अलौकिक थीं।

माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष। मैं ४ जन. को जालना जारहा हूँ। ५, ६, ७, वहां बोलूंगा। फिर अहमदाबाद जाऊँगा। वहां गुजरात यूनिवर्सिटी में १६, १७ बोल रहा हूँ।

रजनीश के प्रणाम


See also
Letters to Sohan ~ 084 - The event of this letter.
Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.