Letter written on 30 Jun 1962 om: Difference between revisions

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This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 30 June 1962 in afternoon.

This letter has been published, in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 141 (2002 Diamond edition). It seems date in the book 25 June 1962 is incorrect.

आचार्य रजनीश
दर्शन विभाग
महाकोशल महाविद्यालय

निवास,
११५, नेपियर टाउन,
जबलपुर (मध्यप्रदेश)

प्रिय मां,
कल कोई पूछता था : ‘प्रभु को पाना है क्या करूँ? कहां जाऊँ कि उसे पालूँ? क्या हिमालय जाना ठीक है?’

मैं यह सब सुनता हूँ और मुझे हंसी आती है। जो प्रति क्षण यहां ही है उसे खोजने भी क्या कहीं जाना होता है?

एक बार एक परिवार में गया था। उस परिवार की गृहणि बोली थीं : ‘घर में बिल्कुल भी स्थान नहीं है : स्थान अब कहां से लायें!’ मैंने कहा था : ‘स्थान तो बहुत है पर सब सामान से घिरा है।’ उस घर में सामान ही सामान दीखता था। घर क्या था कबाडी की दुकान मालुम होती थी। स्थान बहुत था पर सब घिरा था। स्थान को कहीं से लाना नहीं था केवल व्यर्थ का सामान अलग करने से ही स्थान उपलब्ध हो जाता था।

ऐसा ही मनुष्य है। उसमें ही प्रभु है पर व्यर्थता से घिरा है। उसमें ही मोक्ष है पर बंधन से दबा है। उसमें ही शांति है, मौन है पर विचारों की भीड़ से घिरी है। इसलिए कुछ पाना क्या है – कुछ निकालना ही है। स्थान पाने के लिए इस भीड़ को हटाना ही आवश्यक है और जगह तो कहीं बाहर से लानी नहीं है।

प्रभु को खोजने अज्ञानी जाते हैं जो जानते हैं वे केवल अपने को खाली – रिक्त – शून्य कर लेते हैं और इस भांति जो कहीं जाने से नहीं मिलता है वह वहीं उपलब्ध होजाता है जहां जो है।

रजनीश के प्रणाम

दोपहर:
३० जून १९६२


See also
Bhavna Ke Bhojpatron ~ 069 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.