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:* इंद्रियां जीवन की सेवा के लिए हैं पर मुर्ख अपने जीवन को ही उनकी सेवा में गुजर देते हैं।
:* मजबूती इंद्रियों को रोक लेने में हैं, महानता भी उसीमें है,दिव्यता भी।
:* इंद्रियों के आगे झुकने के पहले अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुन। अंतर से ईश्वर बोलता है, इंद्रियों से ईश्वर का दुश्मन।
:* इंद्रियों के आगे झुक जाने का अर्थ है कि तू अपनेको पहचान नहीं पाया है। अपने को पहचान, अपने स्वामित्व  को समझ और इसे देख कि इंद्रियों की हस्ती -- जिनके सामने तू  झुक गया है -- तेरे मुकाबिले क्या है।
:* इंद्रियों का गुलाम मन मृत है। उसे छोड़ कर नये को पैदाकर।
:* क्रोध तुझे आये ही नहीं  तो यह कोई गुण नहीं है, पर आये क्रोध को रोक लेना बहुत बड़ा गुण जरूर है।
:* अपने क्रोध की हत्या से बचा कि  आत्म -हत्या में लगा। मेरा विश्वास है कि क्रोध में जलना, नरक में जलने से किसी कदर  कम नहीं है।
:* क्रोध में कुछ भी न कर। यह जलती आग में - आंखे लिये -उतरना है।
:* क्रोध में जो सुस्त है, वह महान  हुये बिना  रुक ही नहीं सकता।
:* क्रोधित हो हम सब अपने उथलेपन को नंगा कर देते हैं। वह, जो क्रोध को पी सकताहै, अपनी गहराई का सुबूत देताहै।
:* मैंने बहुत से क्रोधित लोगो को देखा है, पर क्रोध में किसी को भी कपड़े पहने कभी नहीं देखा।
:* क्रोधित तुम जिस पर हो,वह तुम्हें जितनी चोट पहुँचा सकताहै, उससे ज्यादा चोट तुम्हारा क्रोध तुम्हें पहुँचायेगा। पोप  ने कहाहै "गुस्सा होना दूसरों की गल्तियों के लिये स्वयं अपने को सजा देना है।"
:* जब भी मैं किसीको अपने पड़ौसी के दोषों की "वैज्ञानिक खोज " में संलग्न पाता हूँ तो मुझे हमेशा उसपर दया होआती और मेरा मन होता है कि मैं कहुँ कि "ओह ! बेचारा किस भोलेपन से अपने  दोषों को छिपाने के प्रयत्न मेँ लगा है।"
:* अपने पड़ौसी को बदलना है तो पहले अपने को बदलो। अपने स्वयं के दोषों से बिना मुक्त हुए कोई भी अपने पड़ौसी के दोषों पर उंगली उठाने का हक़ नहीं पाता है।
:कन्फ्यूसियस  का वचन है कि "अपने पड़ौसी की छत पर पड़े हुए बर्फ की शिकायत न करो जबकि तुम्हारे खुद के दर्वाजे की सीढी गंदीहै।" 
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:"अंतर निरिक्षण " (नया साथी )
:गुलाबचंद जी "पुष्प" सिलवाली वाले
:वीरदरवाजा नया साथी भोपाल
:मुति कांति सागर
:भंडारी डेम के सामने वाली
:धर्मशाला
:भर बाड़ी रोड
:भोपाल
:अंतस्वाणी - (सरस्वती,अलाहाबाद )
:आत्मा के बोल (वर्धा, (जैन जगत )
:आत्मा के बोल (वर्धा, (चेतना, भोपाल )
:आत्मचिंतन के चरणों मे (ज्ञानोदय बनारस )
:"अंतर निरिक्षण " (नया साथी भोपाल )
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:* दूसरों के दोषों को खोजना स्वयं बहुत बड़ा दोष है। दोषोंसे मुक्ति  के पथ पर पहला हमला अपने इसी "दूसरों के दोषों को खोजने का दोष "पर करो।
:* चरित्र बनाने का अर्थ है ; निरत अपने दोषों की खोज में लगे रहना।
:* अपने दोष को स्वीकार करना दोष का आधा सुधार है।
:* तुम उस क्षण तक किसी दोष से कभी मुक्त नहीं हो सकते; जब तक विश्वास किये जाते हो कि वह तुममें नहीं, किसी दूसरे में हैं।
:* परिस्थितियों या दूसरों को दोषी ठहराकर बैठ मत रहो। यह तो अपने दोषों को करते ही चले जाने की जिद है।
:* तू यदि अपने दस जीवन मिटाकर भी एक जीवन बचा सकता है तो बचा।
:* तू जो कुछ दूसरों के साथ करता है, ईश्वर वही तेरे साथ करेगा।
:* दया के विचार तक ही मत रुके रहो, उसे कार्य तक पहुँचने दो।
:* अपनी दया को क्रियात्मक बनाओ। जबतक तुम्हारे आंसुओं से दूसरों के आंसू नहीं सूखते, तुम्हारा आंसू बहाना व्यर्थ है।
:* इतना कहो जितने से ज्यादा तुम कर सकते हो।
:* मैं उसे प्यार करताहूँ जो अपने को भूलकर अपने पड़ौसियों के दुखदर्द में खोगया है।
:* जबतक तू समझताहै  कि तेरा पड़ौसी तूझसे भिन्न है, तबतक तू उसे चोट पहुंचाने से नहीं रुक सकता।
:* अपनी तकलीफ कोई भी समझ सकताहै, पड़ौसी की तकलीफ सिर्फ  "आदमी" समझ सकताहै। सादी ने कहाहै -"अगर तू दूसरों की तकलीफ नहीं समझता तो तुझे इंसान नहीं कहा जासकता। "
:* मैं अपने पड़ौसी को प्यार करता हूँ इसलिये नहीं कि अपने पड़ौसी को प्यार करना चाहिए बल्कि इसलिए कि ऐसा कौन है जो अपने आप को प्यार नहीं करता ?
:* मैं उन मूर्ख धार्मिकों के लिए क्या कहूँ जो आदमी आदमी के बीच घृणा फ़ैलाने को ईश्वरतक पहुँचने का रास्ता समझते हैं। आदमी जबतक आदमीको प्रेम करना नहीं सीखेगा वह किसी को भी प्रेम करना नहीं सीख सकता।
:* ईश्वर की तरफ प्रेम है तो सिवाय पड़ौसीकीं तरफ प्रगट करले, तू उसे कैसे प्रगट कर सकताहै ?
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:* श्रम से शरमाना अपने को आदमी कहने से इंकार करना है।
:आदमी सिर्फ  उन्हीं क्षणों में आदमी होता है, जब वह श्रमिक  होता है। विनोबा ने कहाहै " श्रम करने में ही मानव की मानवताहै। "
:* हर छोटा आदमी श्रम से नफरत करता है, और इसलिए ही छोटा होता है।
:* कोई भी सफलता ऐसी नहीं है, जिसके पहले श्रम की जरुरत न हो।
:* बिना श्रम किये कुछ चाहना, चोरी है।
:* श्रम से घबड़ाते हो तो सफलता की आशायें भी छोड़ दो।
:* तुम गुलाम हो यदि अपना पेट भी अपने हाथ से भरने की सामर्थ्य तुम में नहीं है।
:* ईश्वर प्रेमहै, प्रेम में मिलताहै। हम प्रेममयहैं, वह स्वयं प्रेमहै।
:* ईश्वर के प्रति प्रेम नहीं है, तो आदमी के प्रति भी प्रेम नहीं होगा।
:* घृणा में शैतान का अनुभव होताहै, प्रेम में ईश्वर का।
:* ईश्वर एकमात्र सत्य भीहै, असत्य भी, क्योँकि उसके सिवाय और किसी की सत्ता ही नहीं है।
:* ईश्वर दूर नहीं है, पर दुर्लभ जरूर है। तू स्वयं जो ईश्वर है, इसलिए उसे खोजताहै पर उसे पाता नहीं ! 
:* प्रीति की जितनी गहराई, ईश्वर की उतनी ही निकटता।
:* अनासक्ति = ईश्वर की तरफ आसक्ति !
:* पूर्ण सुखी वह है,जो पूर्ण अनासक्त है।
:* अपने को पहचान और एक बार दुनियां को आंखे खोलकर देख, अनासक्ति तो अपने आप आती है।
:* जो अब नहीं है, उसके लिए रोने मत लग। उसे उसी तरह भूलजा, जैसे वह कभी था ही नहीं। अनासक्ति यही है।
:* तू जबतक वस्तुओं का मालिक बना हुआहै, आसक्त नहीं होसकता।
:* दुनियां से कामले, उसे प्रेम कर पर उसका गुलाम मत बन।
:* अनासक्ति आत्मा का प्रेमहै, आसक्ति शरीर का।
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:* अनासक्ति सिखाती है -- "शरीर में अपना उचित आसन ग्रहणकर। उसका सेवक नहीं, मालिक बनकर रह। शरीर के शाशन से मुक्त हो, स्व-राज्य  प्राप्त कर। "
:* अनासक्ति आसक्ति का विरोध नहीं है, आसक्ति का सुधर है। वह आसक्ति ही जिसके अंत में दुख का निवास नहीं है, अनासक्ति है।
:* मेरी इच्छा के प्रतिकूल कुछ न हों और मेरी इच्छा एक हिहै कि मेरी सारी इच्छायें मिट जायें !
:* प्रयत्नों की पूर्णता सिद्धि न लाये, यह नहीं होसकता। सिद्धि आने में देर होसकती है, पर देर से आने से ही वह अप्राप्यहै, ऐसा मान लेना कमजोरी है।
:* असिद्धि सिर्फ इतना ही बताती है कि साधना पूरी नहीं थी।
:* सिद्धि का रास्ता एक ही नहीं है, यदि एक बंद होगया है तो  दूसरा खोज। बैठा ही मत रह। बैठने का रास्ता असिद्धि को छोड़ और कहीं नहीं जाता।
:* जबतक तू मंदिर जाता है साधक है, जब मंदिर तेरे पास आने लगे तो तू सिद्ध होगा।
:* पुरुष से पुरुषोत्तम हो जाना यही सिद्धि है।
:* साधना के बिना क्या मिलताहै ? ईश्वर तो मिल ही नहीं सकता।
:* ध्येय तो ध्यान पर निर्भर है, अडिग  ध्यान, अंत में  ध्येय को पा ही लेगा।
:* मरना भी बिना ध्येय के नहीं होसकता, जीना तो हो ही कैसे सकताहै।
:* ध्येय के बिना शरीर भला चले, आत्मा मृत ही रहेगी।
:* ध्येय हमेशा ऊँचे चुन क्योंकि  ध्येय जहां होताहै  ध्यान भी वहीं रहताहै।
:* हमारे विचार हमारा जीवन भीहैं। विचार वस्तुयें हैं, अर्नेस्ट ई. मंडे ने लिखाहै ;"वे अपने को रक्त-मांस में परिणित करते  हैं, " इसलिए कुछ भी सोचने के पहले यह ठीक से विचारलो कि हमारे सारे विचार अंत में हमारा जीवन भी बनने को  हैं।
:* तुम जिन विचारोँ में आज हो एक दिन पाओगे कि तुम वही होगये हो। रामकृष्ण कहते थे "जो जैसा सोचताहै, वैसा ही बन जाताहै। "
:* तुम्हारे विचार तुम्हारे जीवन के भविष्य के अग्रसूचक बनकर आतेहैं। 
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:* उन्हीं विचारों को ग्रहण करो जिन्हें ग्रहण करने के लिए तुम्हें कभी पछताना न पड़े।
:* अपने को छोटा विचार कर कोई भी महत नहीं बन सकता। मिट्टी अपने को सोचते हो तो मिट्टी ही होरहोगे।
:* दुनियां तेरे विचरों को तभी जान पायेगी, जब वे अपने को कार्यरूप में बदल लेंगे।
:* राह देख और जो सोच रहाहै उसे पुरे विश्वास से सोचता जा और धीरे धीरे तू पायेगा कि तू उसे करने में भी लग गयाहै।
:* विचार, प्रत्येक क्रियात्मक होताहै, सवाल तो तेरी कर्मण्यता या अकर्मण्यता काहै।
:* विश्वास रख और विचार की पटरियां अंत में तुझे कार्य तक पहुँचा ही देंगी। बॉइस ने कहाहै, " विचार अमल में आकर ही रहताहै। "
:* विचार से गहरा परिचय होने पर यह पता चलताहै कि उसका असली नाम विचार नहीं आचार है।
:* अमल तो विचारों का है, वह नहीं जाताहै जहां विचार जाताहैं जहां विचार जातेहैं।
:* सत्य मरता नहीं, उसे रौंधो, वह दुगनी ताकत से उठताहै। असत्य जीवित ही नहीं होता, उसे उठाओ वह भरभराकर मिट्टी में गीर जायेगा।
:* सत्य पर चलो और ईश्वर की फिक्र छोड़ दो, क्योंकि ईश्वर सत्य को छोड़ कर कुछ भी नहीं है।
:* मुझसे एक बार पूछा गया - "सत्य और ईश्वर में बड़ा कौनहै ? " मैंने कहा - " सत्य।  क्योंकि ईश्वर न भीहो तोभी सत्य रहेगा, पर सत्य नहोतो  ईश्वर किसी भी तरह नहीं रह सकता। "
:* तुम्हरा वह मित्र तुम्हारा सब से बड़ा दुश्मनहै, जो तुमसे बार बार पूछताहै कि " क्या तुम आज बीमार हो ? तुम्हारी शकल तो देखो कैसी पीली पीली लगती है। "
:* अर्नेस्ट ई मंडे ने लिखा है, " किसी मनुष्य  से कभी यह मत कहो कि तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ सा मालूम देताहै, कुछ न कुछ खराबी अवश्यहै, . . (हां !) यदि तुम उसे मार  ही ड़ालना चाहो तो बात दूसरीहै। "
:* शरीर का अस्वास्थ्य चौगुना होजाताहै, जब अचेतन मन में हम उसे स्वीकार कर लेतेहैं। कभी स्वीकार मत करों कि तुम अस्वस्थ हो। सोचो की तुमतो स्वयं आरोग्य हो बीमारी तुम्हें छू ही कैसे सकती है।
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:* अपने आपको अपने हाथ में रखो और अनुभव करो कि तुम क्याहो। शरीर के हाथ अपने को मत बेचो। शरीर के नखरों पर मन की स्वीकृति कभी मत दो। मन को स्वस्थ रख सकते हो तो यह शरीर की सामर्थ्य के बाहर है कि वह अस्वस्थ होजाये !
:* शरीर तबतक कभी अपनी जराओं - जीर्णताओं को लेकर तुम पर नहीं छा सकता, जबतक अपने आप पर का अपना अधिकार तुमने खो नहीं  दियाहै।
:* मकान  में घुसा पानी सुचना देताहै कि छप्पड़ टुटा हुआहै शरीर में घुसी बीमारियां बतातीहैं कि तुम्हारा मन उन्हें रोकने को अभी काफी मजबूत नहीं है।
:* मन सेहीजो बीमार नहीं है, उसे मैंने कभी बीमार नहीं देखा।
:* ऐकाग्रता सफलता के हजार मंत्रों का एक मंत्र है। तुम प्रत्येक वस्तु के बिना सफल होसकते हो, पर एकाग्रता के बिना कभी नहीं।
:* अपनी सारी शक्ति को एक ही जगह इकठ्ठा करो। बहुतसे बिंदुओं पर बिखराकर तुम उसे नष्ट भला करलो कुछ पा नहीं सकते।
:* एक ही कार्य पर जिसने अपने सारे जीवन को लगा दिया है उसकी सफलता अशक्य है।
:* अपने सामने एक ही निशान रखो। जबतक उसे बेध नहीं लेते हो, तबतक उसके सिवाय अपने को कुछ मत दिखने दो। विवेकानंद कहते थे  " रातदिन सपने तक में -उसी की धुन रहे, तभी सफलता मिलती  है। "
:* मन जबतक अशांत है तबतक एकाग्रता नहीं होती और जबतक एकाग्रता नहीं होती तुम व्यर्थ ही अपनी शक्ति को खोते हो।
:* अमर जीवन के लिए अमृत चाहिए, सफलता के लिए एकाग्रता।
:* कर्ज जबतक तूने नहीं लियाहै, तू गरीब नहीं है।
:* कर्ज की जगह गरीबी ही बर्दाश्त कर। गरीबी उतनी बुरी कभी नहीं होती जितना कि कर्ज होता है।
:* कर्ज का शक्कर चढ़ी जहर की गोली है, सिर्फ पहले ही मीठी लगती है।
:* बाहर और भीतर एक बन। कपट ऐसी बुराई है जिसे कोई भी प्रेम नहीं कर सकता।
:* बाहर और भीतर की एकता, ईश्वर की तरफ एक कदमहै।
:* कथनी और करनी के विरोध को मिटा। इतना भी नहीं कर सकता तो अपने जीवन को मिटता देखने के लिए तैयार रह।
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:* जिसकी जबान के पीछे हाथों की ताकत नहीं है, उसे मैं कभीभी जीवितों की श्रेणी में नहीं रख पाता हूँ।
:केवल शाब्दिक उपदेश हमेशा कमजोरी के प्रतीक  होते हैं ] क्योंकि जो कर सकताहै  वह कभी भी सिर्फ कहने तक ही नहीं रुका रहेगा।
:एक इटालियन कहावत है कि " कृतियां पुल्लिंग है, शब्द स्त्रीलिंग। " पौरुष का संबध कार्य से है। अपनी कृतियों से -- शब्दों से नहीं -अपनी बात दुनियां तक पहुँचना पौरुष है और महानता  है। नेपोलियन कहता  था कि " लफ्जों को जाने दो और कृतियों को जबाब देने दो। "
:दुनियां शब्दों से तूल  सकती है, झुक नहीं सकती।
:दुनियां को झुकाने का रहस्य है कि अपने एक एक शब्द को स्याही से नहीं, अपने लहू की सुर्खी से लिखो।
:मेरा मन  होता है कि मैं भी नेपोलियन के लहजे मेँ कहुँ कि " स्याही को जाने दो और लहू को जबाब देने दो। "
:* लहू की एक बूंद, वह कर सकती है जो स्याही की लाख बूंदे भी नहीं कर सकती।
:* बोलने मेँ अपनी शक्ति मत खो, जो करना है उसे करने मेँ लगजा।
:* हजार बड़े पत्थरों से एक छोटा हीरा कीमती है, हजार बड़ी बातों से एक छोटा कार्य।
:* मेरे एक साथी ने एक दिन सड़क से गुजरती अर्थी को देखकर मुझसे पूछा कि " आदमी मरते क्यों है ?
:"मैंने कहा -- " इसलिए कि जो शेष बचें वे  भूल न जायें कि एक दिन उन्हेँ भी मरना होगा। "
:* मौत जीवन का अर्थ है, मौत न होती तो जीवन भी अर्थहीन होता।
:* मौत से  घबड़ाओ मत।  घबड़ाने से मृत्यु के आने के पहलेही जीवन मिट  जाता है।
:* जीवन का निनन्यावे  प्रतिशत अस्तित्व मन मेँ है, सोचोगे कि " जीवन रहने के योग्य है तो रहने के योग्य होगा, नहीं तो रहने योग्य जीवन ही रहने योग्य नहीं हो सकता। "
:* मेरे मन मेँ एक दिन ख्याल उठा कि " मैं नरक जाऊँ तो ? " आत्मा ने कहा  " जीवित रहना  जानते  हो तो वहां भी शान से रह सकते हो।
:* जितनों को जीवन मिलताहै काश ! उन्हेँ साथ मेँ जीवित रहने की कला भी मिली  होती !
:* ईश्वर न्यायी है, मैं इसे कैसे मानूँ  ? उसने हमें जीवन दियाहै पर यह नहीं बताया कि जीवित कैसे रहा जाय ?
:* कैसा दुख है कि जीवित रहने की कला सिखने मेँ ही जीवन पूरा
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:हो जाता है।
:इमरसन ने कहाहै कि " जिंदगी बरबाद होती जातीहै जबकि हम जीने की तैयारी ही करते रहतेहैं। "
:* जीवन की बुनियाद दो ईंटों पर है-उनमेँ एकका नाम प्रेम है, एक का आशा।
:* मेरा विश्वास है कि आदमी जितने दिन दूसरों के लिए जिंदा रहताहै, उतने दिनों की बढ़ती उसकी उम्र में होजातीहै।
:* अपनी इच्छाओं के वशीभूत होकर रहेगा तो कभी धनी नहीं होसकता अपनी इच्छाओं का मालिक बनकर रह गरीबी तेरे पास कभी नहीं फटगकेगी।
:* निराश न हो। आज और कोशिश कर। ख़ुशी कहां छुपीहै इसे कौन जनताहै।
:* अपने प्रत्येक " आज " को बना, नहीं  तो अपने प्रत्येक " कल " को भी नष्ट हुआ समझ।
:* जीवन कितना ही बुराहो पर वह एक स्कूल  जरूर है  और  उनके लिए जो उससे फायदा उठा सकते हैं इतना ही कुछ काम नहीं है ! मेरा संकल्प है की जीवन कितना ही बुरा हो पर यदि मुझे कुछ सिखा सकताहै तो मैं कभी भी मरना पसंद नहीं करूँगा।
:* जीवन की उदासी, जीवन मेँ नहीं तेरे मन में होतीहै क्योंकि उसी जीवन में,  मैं दूसरों कों मुस्कुराते भी देखता हुँ।
:* जीवन जिस स्वर्ण सूत्र से जीवित रहताहै उसका नाम उदासी नहीं, मुसकान  है। जीवित रहना है, तो प्रत्येक मुश्किल  पर मुसकराने की आदत ड़ाल।
:* क्रोध जब सिर पर होताहै, विवेक धूल में गिर जाताहै।
:प्लूटकि ने लिखाहै कि  " क्रोध समझ दारी को घर से बहार निकल देता है और दरवाजे की चटकनी बंद करदेताहै। "
:* क्रोधित होना अपने ही हाथ से अंधा और बहरा होजानाहै  क्योंकि क्रोध न अपने सिवाय किसी और की सुनताहै  और न किसी अन्य को देखताहै।
:शेक्सपियर ने लिखा है कि  " आदमी क्रोध मेँ समुन्दर की तरह बहरा और आग की तरह उतावला होजाताहै। "
:* क्रोध से बच और फिर नरक तेरे लिए नहीं होसकता, कयोंकि नरक का ताला सिर्फ क्रोध की चाबी से ही खुलताहै।
:* क्रोध आना ही नही जड़ताहै, क्रोध को रोक लेना ईश्वरीयत है।
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:* दूसरों पर भरोसा मुर्खताहै। भरोसा सिर्फ अपने पर रखो। अपने पर भरोसा ही ईश्वर पर भरोसा है।
:* ईश्वर सहायता सिर्फ उसकी करेगा, जो सहायता के लिए किसीका मुहताज नहीं है।
:* वह तेरे भीतर है जो तेरी सहायता करेगा, एकबार तमाम बाहरी सहायता से आंखें फेरकर उसे देख।
:* सहायता कौन किसी कर सकता है ? सभी तो यहां भिखमंगेहैं !
:* अपने शेयर जबतक तू नहीं खड़ाहै, तू गिरे होने की हालतसे भी बदतर हालत में है।
:* जो अपने सहारे खड़ाहै, उसके लिए असंभव क्याहै ?
:* वह, जो पूर्णतः स्वावलम्बीहै, पूर्णतः स्वतंत्र भीहै।
:* ऊपर उठताहै तो खुद ही अपने को अपनी सीढ़ी बना। किसी दूसरे के मरने से तुझे स्वर्ग नहीं मिलेगा।
:* जिन्दगी उनके लिए, जो दूर से खड़े स्वप्निल आंखों से उसे देखते हैं, एक मीठा संगीत है पर वे जिनपर से अपने कांटों को लिए वह गुज़रतीहै, अच्छी तरह जानते हैं कि उसकी धार कितनी जहरीली और पैनी है !
:*होरेस वाल्पूल  के एक पत्र मेँ एक पंक्ति है कि --"यह दुनियां उनके लिए है जो सोचते हैं  एक "कॉमेडी "है और उनके लिए जो अनुभव करते हैं एक "ट्रेजेडी " ! "
:* मुझे विश्वास है की जिंदगी आज जो कुछ है, मौत उससे बदतर नहीं हो सकती।
:* जिन्दगी पूछकर नहीं आती, नहीं तो उसे लेने तैयार कौन होता !
:* हम जिंदा रहते हैं कयोंकि मरने की हिम्मत हममें नहीं होती।
:* मुझसे एकबार पूछा गया "जिंदगी क्याहै ?  मैंने कहा --" मौत से बदतर जो कुछ है ! "
:* दुनियां में जिंदगीहै, पर जिंदा रहने की सुविधायें नहीं हैं।
:* मदद करने का सामर्थ्य आदमी का सबसे बड़ा धनहै और कोई भी आदमी इतना गरीब नहीं है कि वह जरूरत के समय किसी की मदद न कर सके।
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:* मदद के बदले में कुछ मांगना मदद देना नहीं है।
:* दूसरों की मदद में तू ईश्वर के मंडीर के बहुत निकट होताहै।
:* ईश्वर देखताहै। तूने दूसरों को कितनी सहायता दी, उतनी ही सहायता तुझे भी मिलेगी।
:* समाज की आत्मा में अपनी आत्मा को देखे बिना तू किसी की सहायता नहीं कर सकता।
:* सहायता दे पर सहायता मांग मत ! खुद भिखमंगा होकर तू दूसरों को क्या देगा ?
:* ज्ञान को नहीं अपने अज्ञान को याद  रखो क्योंकि उसे मिटाना है। अपने अज्ञान को भूल जाना उसे कभी न मिटाने की कसम लेना है।
:* दुनियां को बहुत याद  रखना, ईश्वर को भूल जाने से ही संभव होताहै। अपने आप को याद रखने के लिए दुनियां को भूलभी  जाना पड़े,  तोभी मेरी  सलाह है की उसे भूल जा।
:दुनियां से जबतक तू नहीं मुड़ेगा, अपने आप को नहीं देख सकता।
:* स्वर्ग  पीठ के पीछेहै, उसे देखने के लिए इस दुनियां की तरफ पीठ करनीही होतीहै।
:* ईश्वर ने आदमी को एक ही तरफ आंखें दीहै। इसलिए यह नहीं होसकता की तू बाजार भी देखे और " उसे " भी देखे। एक ही कुछ होगा। ईश्वर की दुनियां चुन या इस दुनियां को चुनले।
:* उस सबको स्मृति में लिये फिरना जो व्यर्थ तुम्हें चिंतित बनाये निहायत मूर्खतापूर्णहै। मेरी सलाह  है, कि चिंताओं को छोड्ने की आदत डालो क्योंकि मैंने देखाहै जो चिंताओं को छोड़ देते हैं, चिंताये  भी उन्हें छोड़ देतीहैं।
:* बिस्तर पर चिंताओं को लेजाना, अपने को चिता  पर  लेजाने की  तैयारी करने से भी बुराहै।
:* चिंता जीवन में ही मृत्यु का स्वाद देतीहै !
:* तेरे पास चिंतायें नहीं हैं, भला तेरे पास और कुछ भी न हो तो भी तेरा जीवन बहुत ज्यादा सुखी होगा जिनकी तिजोड़ियां सोने से भरीहैं और मन चिंताओं से।
:एक बहुत सुन्दर अरबी कहावत है कि " बेफिक्र दिल, भरी थैली से हमेशा अच्छा है। "
:* चिंता धीमी आत्महत्या है। चिता और चिंता में एकही अंतर है, चिता एकदम जलातीहै, चिंता धीरे धीरे। 
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Revision as of 05:35, 28 January 2020

year
?
notes
63 sheets plus 1 written on reverse.
Unpublished.
This collection of sheets has been shared with us by Osho's brother Sw Niklank Bharti in Dec 2019.
see also
Osho's Manuscripts


sheet no photo Hindi transcript
cover
1
  • आनंद कौन नहीं चाहता पर आनंद क्या है इसे कौन जनता है ?
मुझसे एक बार पूछागया कि आनंद क्या है  ? " मैंने कहा " आनंद न चाहने कि स्थिति पैदा कर लेना। "
  • आनंद ईश्वर को अपने में खोज लेना है। जबतक तू अलग है, तेरा ईश्वर अलग, तबतक तू आनंदित नहीं हैं।
  • एक शर्त के साथ दुनियां की हर चीज में आनंद है की तेरी आंखों में दुख न हो।
  • शरीर आसक्क्ति को छोड और इस सचाई को जान ले कि आनंद अपने स्वाभाव में लीन होजाने के सिवाय और कुछ भी नहीं है।
  • आनंद पूर्ण संतोष है। उसके कण कण से एक ही वाणी निकलती है कि -- " मुझे कुछ नहीं चाहिए। "
  • आनंद मस्त कौन है। "वह जिससे सारा आनंद छिनलो, तो भी आनंद का आभाव न खटके।"
  • परमात्मा को क्या ध्याता है। अबे ! अपने भूले स्वरुप को याद कर तू तो स्वयं की परमात्मा है।
  • ज्ञान चाहता है तो तुझे अपना पथ इससे शुरू करना होगा कि " मैं " कुछ जानता “
  • जिस विधा से तुझे अपने का ज्ञान नहीं आता है वह फिजूल है।
  • किसी भी धर्म की मान मुझे कहना है पर जिसे तू मान उसपर चल भी सिर्फ उसे मंटा ही मत रह।
एकबार मुझसे पूछा गया की " धर्म मर क्यों रहा है?" मैंने कहा - "क्योंकि धर्म आज मान्यता भर ही रह गया है, व्यव्हार नहीं।"
मेरा विश्वास है की धर्म को बचाना है तो उसे मान्यता से उठाकर व्यव्हार बनाना होगा। आज लोग एक दूसरे से पूछते है की "आप किस धर्म को "मानते" हैं, पर मैं उस दिन को लाना चाहता हूँ, जब लोग इसे छोड़कर इसकी जगह पूछें की आप किस धर्म को "व्यव्हार" में लाते हैं"।
2
  • अविवेक धर्म नहीं हैं, विवेक धर्म हैं, अविवेक अधर्म ! राजचन्द्र ने कहा है "विवेक अंधेरेमे पड़ी हुई आत्मा को पहचानने का दिया है।"
  • धर्मो के लिए लड़ो मत। जब तुम धर्मो के लिए लड़ते हो तो बताते हो की, तुम धर्मो को समझते नहीं।
धर्म पालने की चीज़ है, लड़ने की नहीं। यंग ने कहा है -- " मजहब का झगड़ा और मजहब का पालन कभी साथ नहीं चलते।"
  • धर्म का अर्थ है अपने लिए नहीं, अपने ईश्वर के लिए जियो।
  • भक्ति क्या है ? "ईश्वर को अपनी तारक खींचना ?" मैंने कहा "नहीं"। भक्ति स्वयं अपने को ईश्वर बना लेना है।"
  • भक्ति द्वैत से शुरू होती हैं, पूर्ण होती है द्वैत के अंत पर।
  • "ईश्वर एक दर्पण है " जिसमे तू अपने को देख सके। आत्म दर्शन पर तू ही तू रह जाता है, न तब दर्पण रहता है, न कोई ईश्वर।
  • भक्ति की पूर्णता क्या है? "भक्ति और जरुरत का न रह जाना। "
खुद खुदा में मिट, खुदा को खुद में मिटा ले, बस यही भक्ति की पूर्णता है।
  • मुक्ति के रस्ते एक से ज्यादा नहीं हो सकते यद्यपि नाम उसके कितनेभी रखे जा सकते है।
राजचंद्र ने कहा है -- "मोक्ष के रास्ते दो नहीं है।"
ईश्वर एक है और उसतक पहुंचने का रास्ता भी एक है -- " अपनी आत्मा को उसतक उठाना। "
तू किसी भी धर्म में हो अपने को ईश्वर तक क्योंकि कोई भी अन्य दूसरा मार्ग उसतक नहीं जाता है।
3
  • इंद्रियां जीवन की सेवा के लिए हैं पर मुर्ख अपने जीवन को ही उनकी सेवा में गुजर देते हैं।
  • मजबूती इंद्रियों को रोक लेने में हैं, महानता भी उसीमें है,दिव्यता भी।
  • इंद्रियों के आगे झुकने के पहले अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुन। अंतर से ईश्वर बोलता है, इंद्रियों से ईश्वर का दुश्मन।
  • इंद्रियों के आगे झुक जाने का अर्थ है कि तू अपनेको पहचान नहीं पाया है। अपने को पहचान, अपने स्वामित्व को समझ और इसे देख कि इंद्रियों की हस्ती -- जिनके सामने तू झुक गया है -- तेरे मुकाबिले क्या है।
  • इंद्रियों का गुलाम मन मृत है। उसे छोड़ कर नये को पैदाकर।
  • क्रोध तुझे आये ही नहीं तो यह कोई गुण नहीं है, पर आये क्रोध को रोक लेना बहुत बड़ा गुण जरूर है।
  • अपने क्रोध की हत्या से बचा कि आत्म -हत्या में लगा। मेरा विश्वास है कि क्रोध में जलना, नरक में जलने से किसी कदर कम नहीं है।
  • क्रोध में कुछ भी न कर। यह जलती आग में - आंखे लिये -उतरना है।
  • क्रोध में जो सुस्त है, वह महान हुये बिना रुक ही नहीं सकता।
  • क्रोधित हो हम सब अपने उथलेपन को नंगा कर देते हैं। वह, जो क्रोध को पी सकताहै, अपनी गहराई का सुबूत देताहै।
  • मैंने बहुत से क्रोधित लोगो को देखा है, पर क्रोध में किसी को भी कपड़े पहने कभी नहीं देखा।
  • क्रोधित तुम जिस पर हो,वह तुम्हें जितनी चोट पहुँचा सकताहै, उससे ज्यादा चोट तुम्हारा क्रोध तुम्हें पहुँचायेगा। पोप ने कहाहै "गुस्सा होना दूसरों की गल्तियों के लिये स्वयं अपने को सजा देना है।"
  • जब भी मैं किसीको अपने पड़ौसी के दोषों की "वैज्ञानिक खोज " में संलग्न पाता हूँ तो मुझे हमेशा उसपर दया होआती और मेरा मन होता है कि मैं कहुँ कि "ओह ! बेचारा किस भोलेपन से अपने दोषों को छिपाने के प्रयत्न मेँ लगा है।"
  • अपने पड़ौसी को बदलना है तो पहले अपने को बदलो। अपने स्वयं के दोषों से बिना मुक्त हुए कोई भी अपने पड़ौसी के दोषों पर उंगली उठाने का हक़ नहीं पाता है।
कन्फ्यूसियस का वचन है कि "अपने पड़ौसी की छत पर पड़े हुए बर्फ की शिकायत न करो जबकि तुम्हारे खुद के दर्वाजे की सीढी गंदीहै।"
4
"अंतर निरिक्षण " (नया साथी )
गुलाबचंद जी "पुष्प" सिलवाली वाले
वीरदरवाजा नया साथी भोपाल
मुति कांति सागर
भंडारी डेम के सामने वाली
धर्मशाला
भर बाड़ी रोड
भोपाल
अंतस्वाणी - (सरस्वती,अलाहाबाद )
आत्मा के बोल (वर्धा, (जैन जगत )
आत्मा के बोल (वर्धा, (चेतना, भोपाल )
आत्मचिंतन के चरणों मे (ज्ञानोदय बनारस )
"अंतर निरिक्षण " (नया साथी भोपाल )
5
  • दूसरों के दोषों को खोजना स्वयं बहुत बड़ा दोष है। दोषोंसे मुक्ति के पथ पर पहला हमला अपने इसी "दूसरों के दोषों को खोजने का दोष "पर करो।
  • चरित्र बनाने का अर्थ है ; निरत अपने दोषों की खोज में लगे रहना।
  • अपने दोष को स्वीकार करना दोष का आधा सुधार है।
  • तुम उस क्षण तक किसी दोष से कभी मुक्त नहीं हो सकते; जब तक विश्वास किये जाते हो कि वह तुममें नहीं, किसी दूसरे में हैं।
  • परिस्थितियों या दूसरों को दोषी ठहराकर बैठ मत रहो। यह तो अपने दोषों को करते ही चले जाने की जिद है।
  • तू यदि अपने दस जीवन मिटाकर भी एक जीवन बचा सकता है तो बचा।
  • तू जो कुछ दूसरों के साथ करता है, ईश्वर वही तेरे साथ करेगा।
  • दया के विचार तक ही मत रुके रहो, उसे कार्य तक पहुँचने दो।
  • अपनी दया को क्रियात्मक बनाओ। जबतक तुम्हारे आंसुओं से दूसरों के आंसू नहीं सूखते, तुम्हारा आंसू बहाना व्यर्थ है।
  • इतना कहो जितने से ज्यादा तुम कर सकते हो।
  • मैं उसे प्यार करताहूँ जो अपने को भूलकर अपने पड़ौसियों के दुखदर्द में खोगया है।
  • जबतक तू समझताहै कि तेरा पड़ौसी तूझसे भिन्न है, तबतक तू उसे चोट पहुंचाने से नहीं रुक सकता।
  • अपनी तकलीफ कोई भी समझ सकताहै, पड़ौसी की तकलीफ सिर्फ "आदमी" समझ सकताहै। सादी ने कहाहै -"अगर तू दूसरों की तकलीफ नहीं समझता तो तुझे इंसान नहीं कहा जासकता। "
  • मैं अपने पड़ौसी को प्यार करता हूँ इसलिये नहीं कि अपने पड़ौसी को प्यार करना चाहिए बल्कि इसलिए कि ऐसा कौन है जो अपने आप को प्यार नहीं करता ?
  • मैं उन मूर्ख धार्मिकों के लिए क्या कहूँ जो आदमी आदमी के बीच घृणा फ़ैलाने को ईश्वरतक पहुँचने का रास्ता समझते हैं। आदमी जबतक आदमीको प्रेम करना नहीं सीखेगा वह किसी को भी प्रेम करना नहीं सीख सकता।
  • ईश्वर की तरफ प्रेम है तो सिवाय पड़ौसीकीं तरफ प्रगट करले, तू उसे कैसे प्रगट कर सकताहै ?
6
  • श्रम से शरमाना अपने को आदमी कहने से इंकार करना है।
आदमी सिर्फ उन्हीं क्षणों में आदमी होता है, जब वह श्रमिक होता है। विनोबा ने कहाहै " श्रम करने में ही मानव की मानवताहै। "
  • हर छोटा आदमी श्रम से नफरत करता है, और इसलिए ही छोटा होता है।
  • कोई भी सफलता ऐसी नहीं है, जिसके पहले श्रम की जरुरत न हो।
  • बिना श्रम किये कुछ चाहना, चोरी है।
  • श्रम से घबड़ाते हो तो सफलता की आशायें भी छोड़ दो।
  • तुम गुलाम हो यदि अपना पेट भी अपने हाथ से भरने की सामर्थ्य तुम में नहीं है।
  • ईश्वर प्रेमहै, प्रेम में मिलताहै। हम प्रेममयहैं, वह स्वयं प्रेमहै।
  • ईश्वर के प्रति प्रेम नहीं है, तो आदमी के प्रति भी प्रेम नहीं होगा।
  • घृणा में शैतान का अनुभव होताहै, प्रेम में ईश्वर का।
  • ईश्वर एकमात्र सत्य भीहै, असत्य भी, क्योँकि उसके सिवाय और किसी की सत्ता ही नहीं है।
  • ईश्वर दूर नहीं है, पर दुर्लभ जरूर है। तू स्वयं जो ईश्वर है, इसलिए उसे खोजताहै पर उसे पाता नहीं !
  • प्रीति की जितनी गहराई, ईश्वर की उतनी ही निकटता।
  • अनासक्ति = ईश्वर की तरफ आसक्ति !
  • पूर्ण सुखी वह है,जो पूर्ण अनासक्त है।
  • अपने को पहचान और एक बार दुनियां को आंखे खोलकर देख, अनासक्ति तो अपने आप आती है।
  • जो अब नहीं है, उसके लिए रोने मत लग। उसे उसी तरह भूलजा, जैसे वह कभी था ही नहीं। अनासक्ति यही है।
  • तू जबतक वस्तुओं का मालिक बना हुआहै, आसक्त नहीं होसकता।
  • दुनियां से कामले, उसे प्रेम कर पर उसका गुलाम मत बन।
  • अनासक्ति आत्मा का प्रेमहै, आसक्ति शरीर का।
7
  • अनासक्ति सिखाती है -- "शरीर में अपना उचित आसन ग्रहणकर। उसका सेवक नहीं, मालिक बनकर रह। शरीर के शाशन से मुक्त हो, स्व-राज्य प्राप्त कर। "
  • अनासक्ति आसक्ति का विरोध नहीं है, आसक्ति का सुधर है। वह आसक्ति ही जिसके अंत में दुख का निवास नहीं है, अनासक्ति है।
  • मेरी इच्छा के प्रतिकूल कुछ न हों और मेरी इच्छा एक हिहै कि मेरी सारी इच्छायें मिट जायें !
  • प्रयत्नों की पूर्णता सिद्धि न लाये, यह नहीं होसकता। सिद्धि आने में देर होसकती है, पर देर से आने से ही वह अप्राप्यहै, ऐसा मान लेना कमजोरी है।
  • असिद्धि सिर्फ इतना ही बताती है कि साधना पूरी नहीं थी।
  • सिद्धि का रास्ता एक ही नहीं है, यदि एक बंद होगया है तो दूसरा खोज। बैठा ही मत रह। बैठने का रास्ता असिद्धि को छोड़ और कहीं नहीं जाता।
  • जबतक तू मंदिर जाता है साधक है, जब मंदिर तेरे पास आने लगे तो तू सिद्ध होगा।
  • पुरुष से पुरुषोत्तम हो जाना यही सिद्धि है।
  • साधना के बिना क्या मिलताहै ? ईश्वर तो मिल ही नहीं सकता।
  • ध्येय तो ध्यान पर निर्भर है, अडिग ध्यान, अंत में ध्येय को पा ही लेगा।
  • मरना भी बिना ध्येय के नहीं होसकता, जीना तो हो ही कैसे सकताहै।
  • ध्येय के बिना शरीर भला चले, आत्मा मृत ही रहेगी।
  • ध्येय हमेशा ऊँचे चुन क्योंकि ध्येय जहां होताहै ध्यान भी वहीं रहताहै।
  • हमारे विचार हमारा जीवन भीहैं। विचार वस्तुयें हैं, अर्नेस्ट ई. मंडे ने लिखाहै ;"वे अपने को रक्त-मांस में परिणित करते हैं, " इसलिए कुछ भी सोचने के पहले यह ठीक से विचारलो कि हमारे सारे विचार अंत में हमारा जीवन भी बनने को हैं।
  • तुम जिन विचारोँ में आज हो एक दिन पाओगे कि तुम वही होगये हो। रामकृष्ण कहते थे "जो जैसा सोचताहै, वैसा ही बन जाताहै। "
  • तुम्हारे विचार तुम्हारे जीवन के भविष्य के अग्रसूचक बनकर आतेहैं।
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  • उन्हीं विचारों को ग्रहण करो जिन्हें ग्रहण करने के लिए तुम्हें कभी पछताना न पड़े।
  • अपने को छोटा विचार कर कोई भी महत नहीं बन सकता। मिट्टी अपने को सोचते हो तो मिट्टी ही होरहोगे।
  • दुनियां तेरे विचरों को तभी जान पायेगी, जब वे अपने को कार्यरूप में बदल लेंगे।
  • राह देख और जो सोच रहाहै उसे पुरे विश्वास से सोचता जा और धीरे धीरे तू पायेगा कि तू उसे करने में भी लग गयाहै।
  • विचार, प्रत्येक क्रियात्मक होताहै, सवाल तो तेरी कर्मण्यता या अकर्मण्यता काहै।
  • विश्वास रख और विचार की पटरियां अंत में तुझे कार्य तक पहुँचा ही देंगी। बॉइस ने कहाहै, " विचार अमल में आकर ही रहताहै। "
  • विचार से गहरा परिचय होने पर यह पता चलताहै कि उसका असली नाम विचार नहीं आचार है।
  • अमल तो विचारों का है, वह नहीं जाताहै जहां विचार जाताहैं जहां विचार जातेहैं।
  • सत्य मरता नहीं, उसे रौंधो, वह दुगनी ताकत से उठताहै। असत्य जीवित ही नहीं होता, उसे उठाओ वह भरभराकर मिट्टी में गीर जायेगा।
  • सत्य पर चलो और ईश्वर की फिक्र छोड़ दो, क्योंकि ईश्वर सत्य को छोड़ कर कुछ भी नहीं है।
  • मुझसे एक बार पूछा गया - "सत्य और ईश्वर में बड़ा कौनहै ? " मैंने कहा - " सत्य। क्योंकि ईश्वर न भीहो तोभी सत्य रहेगा, पर सत्य नहोतो ईश्वर किसी भी तरह नहीं रह सकता। "
  • तुम्हरा वह मित्र तुम्हारा सब से बड़ा दुश्मनहै, जो तुमसे बार बार पूछताहै कि " क्या तुम आज बीमार हो ? तुम्हारी शकल तो देखो कैसी पीली पीली लगती है। "
  • अर्नेस्ट ई मंडे ने लिखा है, " किसी मनुष्य से कभी यह मत कहो कि तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ सा मालूम देताहै, कुछ न कुछ खराबी अवश्यहै, . . (हां !) यदि तुम उसे मार ही ड़ालना चाहो तो बात दूसरीहै। "
  • शरीर का अस्वास्थ्य चौगुना होजाताहै, जब अचेतन मन में हम उसे स्वीकार कर लेतेहैं। कभी स्वीकार मत करों कि तुम अस्वस्थ हो। सोचो की तुमतो स्वयं आरोग्य हो बीमारी तुम्हें छू ही कैसे सकती है।
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  • अपने आपको अपने हाथ में रखो और अनुभव करो कि तुम क्याहो। शरीर के हाथ अपने को मत बेचो। शरीर के नखरों पर मन की स्वीकृति कभी मत दो। मन को स्वस्थ रख सकते हो तो यह शरीर की सामर्थ्य के बाहर है कि वह अस्वस्थ होजाये !
  • शरीर तबतक कभी अपनी जराओं - जीर्णताओं को लेकर तुम पर नहीं छा सकता, जबतक अपने आप पर का अपना अधिकार तुमने खो नहीं दियाहै।
  • मकान में घुसा पानी सुचना देताहै कि छप्पड़ टुटा हुआहै शरीर में घुसी बीमारियां बतातीहैं कि तुम्हारा मन उन्हें रोकने को अभी काफी मजबूत नहीं है।
  • मन सेहीजो बीमार नहीं है, उसे मैंने कभी बीमार नहीं देखा।
  • ऐकाग्रता सफलता के हजार मंत्रों का एक मंत्र है। तुम प्रत्येक वस्तु के बिना सफल होसकते हो, पर एकाग्रता के बिना कभी नहीं।
  • अपनी सारी शक्ति को एक ही जगह इकठ्ठा करो। बहुतसे बिंदुओं पर बिखराकर तुम उसे नष्ट भला करलो कुछ पा नहीं सकते।
  • एक ही कार्य पर जिसने अपने सारे जीवन को लगा दिया है उसकी सफलता अशक्य है।
  • अपने सामने एक ही निशान रखो। जबतक उसे बेध नहीं लेते हो, तबतक उसके सिवाय अपने को कुछ मत दिखने दो। विवेकानंद कहते थे " रातदिन सपने तक में -उसी की धुन रहे, तभी सफलता मिलती है। "
  • मन जबतक अशांत है तबतक एकाग्रता नहीं होती और जबतक एकाग्रता नहीं होती तुम व्यर्थ ही अपनी शक्ति को खोते हो।
  • अमर जीवन के लिए अमृत चाहिए, सफलता के लिए एकाग्रता।
  • कर्ज जबतक तूने नहीं लियाहै, तू गरीब नहीं है।
  • कर्ज की जगह गरीबी ही बर्दाश्त कर। गरीबी उतनी बुरी कभी नहीं होती जितना कि कर्ज होता है।
  • कर्ज का शक्कर चढ़ी जहर की गोली है, सिर्फ पहले ही मीठी लगती है।
  • बाहर और भीतर एक बन। कपट ऐसी बुराई है जिसे कोई भी प्रेम नहीं कर सकता।
  • बाहर और भीतर की एकता, ईश्वर की तरफ एक कदमहै।
  • कथनी और करनी के विरोध को मिटा। इतना भी नहीं कर सकता तो अपने जीवन को मिटता देखने के लिए तैयार रह।
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  • जिसकी जबान के पीछे हाथों की ताकत नहीं है, उसे मैं कभीभी जीवितों की श्रेणी में नहीं रख पाता हूँ।
केवल शाब्दिक उपदेश हमेशा कमजोरी के प्रतीक होते हैं ] क्योंकि जो कर सकताहै वह कभी भी सिर्फ कहने तक ही नहीं रुका रहेगा।
एक इटालियन कहावत है कि " कृतियां पुल्लिंग है, शब्द स्त्रीलिंग। " पौरुष का संबध कार्य से है। अपनी कृतियों से -- शब्दों से नहीं -अपनी बात दुनियां तक पहुँचना पौरुष है और महानता है। नेपोलियन कहता था कि " लफ्जों को जाने दो और कृतियों को जबाब देने दो। "
दुनियां शब्दों से तूल सकती है, झुक नहीं सकती।
दुनियां को झुकाने का रहस्य है कि अपने एक एक शब्द को स्याही से नहीं, अपने लहू की सुर्खी से लिखो।
मेरा मन होता है कि मैं भी नेपोलियन के लहजे मेँ कहुँ कि " स्याही को जाने दो और लहू को जबाब देने दो। "
  • लहू की एक बूंद, वह कर सकती है जो स्याही की लाख बूंदे भी नहीं कर सकती।
  • बोलने मेँ अपनी शक्ति मत खो, जो करना है उसे करने मेँ लगजा।
  • हजार बड़े पत्थरों से एक छोटा हीरा कीमती है, हजार बड़ी बातों से एक छोटा कार्य।
  • मेरे एक साथी ने एक दिन सड़क से गुजरती अर्थी को देखकर मुझसे पूछा कि " आदमी मरते क्यों है ?
"मैंने कहा -- " इसलिए कि जो शेष बचें वे भूल न जायें कि एक दिन उन्हेँ भी मरना होगा। "
  • मौत जीवन का अर्थ है, मौत न होती तो जीवन भी अर्थहीन होता।
  • मौत से घबड़ाओ मत। घबड़ाने से मृत्यु के आने के पहलेही जीवन मिट जाता है।
  • जीवन का निनन्यावे प्रतिशत अस्तित्व मन मेँ है, सोचोगे कि " जीवन रहने के योग्य है तो रहने के योग्य होगा, नहीं तो रहने योग्य जीवन ही रहने योग्य नहीं हो सकता। "
  • मेरे मन मेँ एक दिन ख्याल उठा कि " मैं नरक जाऊँ तो ? " आत्मा ने कहा " जीवित रहना जानते हो तो वहां भी शान से रह सकते हो।
  • जितनों को जीवन मिलताहै काश ! उन्हेँ साथ मेँ जीवित रहने की कला भी मिली होती !
  • ईश्वर न्यायी है, मैं इसे कैसे मानूँ  ? उसने हमें जीवन दियाहै पर यह नहीं बताया कि जीवित कैसे रहा जाय ?
  • कैसा दुख है कि जीवित रहने की कला सिखने मेँ ही जीवन पूरा
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हो जाता है।
इमरसन ने कहाहै कि " जिंदगी बरबाद होती जातीहै जबकि हम जीने की तैयारी ही करते रहतेहैं। "
  • जीवन की बुनियाद दो ईंटों पर है-उनमेँ एकका नाम प्रेम है, एक का आशा।
  • मेरा विश्वास है कि आदमी जितने दिन दूसरों के लिए जिंदा रहताहै, उतने दिनों की बढ़ती उसकी उम्र में होजातीहै।
  • अपनी इच्छाओं के वशीभूत होकर रहेगा तो कभी धनी नहीं होसकता अपनी इच्छाओं का मालिक बनकर रह गरीबी तेरे पास कभी नहीं फटगकेगी।
  • निराश न हो। आज और कोशिश कर। ख़ुशी कहां छुपीहै इसे कौन जनताहै।
  • अपने प्रत्येक " आज " को बना, नहीं तो अपने प्रत्येक " कल " को भी नष्ट हुआ समझ।
  • जीवन कितना ही बुराहो पर वह एक स्कूल जरूर है और उनके लिए जो उससे फायदा उठा सकते हैं इतना ही कुछ काम नहीं है ! मेरा संकल्प है की जीवन कितना ही बुरा हो पर यदि मुझे कुछ सिखा सकताहै तो मैं कभी भी मरना पसंद नहीं करूँगा।
  • जीवन की उदासी, जीवन मेँ नहीं तेरे मन में होतीहै क्योंकि उसी जीवन में, मैं दूसरों कों मुस्कुराते भी देखता हुँ।
  • जीवन जिस स्वर्ण सूत्र से जीवित रहताहै उसका नाम उदासी नहीं, मुसकान है। जीवित रहना है, तो प्रत्येक मुश्किल पर मुसकराने की आदत ड़ाल।
  • क्रोध जब सिर पर होताहै, विवेक धूल में गिर जाताहै।
प्लूटकि ने लिखाहै कि " क्रोध समझ दारी को घर से बहार निकल देता है और दरवाजे की चटकनी बंद करदेताहै। "
  • क्रोधित होना अपने ही हाथ से अंधा और बहरा होजानाहै क्योंकि क्रोध न अपने सिवाय किसी और की सुनताहै और न किसी अन्य को देखताहै।
शेक्सपियर ने लिखा है कि " आदमी क्रोध मेँ समुन्दर की तरह बहरा और आग की तरह उतावला होजाताहै। "
  • क्रोध से बच और फिर नरक तेरे लिए नहीं होसकता, कयोंकि नरक का ताला सिर्फ क्रोध की चाबी से ही खुलताहै।
  • क्रोध आना ही नही जड़ताहै, क्रोध को रोक लेना ईश्वरीयत है।
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  • दूसरों पर भरोसा मुर्खताहै। भरोसा सिर्फ अपने पर रखो। अपने पर भरोसा ही ईश्वर पर भरोसा है।
  • ईश्वर सहायता सिर्फ उसकी करेगा, जो सहायता के लिए किसीका मुहताज नहीं है।
  • वह तेरे भीतर है जो तेरी सहायता करेगा, एकबार तमाम बाहरी सहायता से आंखें फेरकर उसे देख।
  • सहायता कौन किसी कर सकता है ? सभी तो यहां भिखमंगेहैं !
  • अपने शेयर जबतक तू नहीं खड़ाहै, तू गिरे होने की हालतसे भी बदतर हालत में है।
  • जो अपने सहारे खड़ाहै, उसके लिए असंभव क्याहै ?
  • वह, जो पूर्णतः स्वावलम्बीहै, पूर्णतः स्वतंत्र भीहै।
  • ऊपर उठताहै तो खुद ही अपने को अपनी सीढ़ी बना। किसी दूसरे के मरने से तुझे स्वर्ग नहीं मिलेगा।
  • जिन्दगी उनके लिए, जो दूर से खड़े स्वप्निल आंखों से उसे देखते हैं, एक मीठा संगीत है पर वे जिनपर से अपने कांटों को लिए वह गुज़रतीहै, अच्छी तरह जानते हैं कि उसकी धार कितनी जहरीली और पैनी है !
  • होरेस वाल्पूल के एक पत्र मेँ एक पंक्ति है कि --"यह दुनियां उनके लिए है जो सोचते हैं एक "कॉमेडी "है और उनके लिए जो अनुभव करते हैं एक "ट्रेजेडी " ! "
  • मुझे विश्वास है की जिंदगी आज जो कुछ है, मौत उससे बदतर नहीं हो सकती।
  • जिन्दगी पूछकर नहीं आती, नहीं तो उसे लेने तैयार कौन होता !
  • हम जिंदा रहते हैं कयोंकि मरने की हिम्मत हममें नहीं होती।
  • मुझसे एकबार पूछा गया "जिंदगी क्याहै ? मैंने कहा --" मौत से बदतर जो कुछ है ! "
  • दुनियां में जिंदगीहै, पर जिंदा रहने की सुविधायें नहीं हैं।
  • मदद करने का सामर्थ्य आदमी का सबसे बड़ा धनहै और कोई भी आदमी इतना गरीब नहीं है कि वह जरूरत के समय किसी की मदद न कर सके।
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  • मदद के बदले में कुछ मांगना मदद देना नहीं है।
  • दूसरों की मदद में तू ईश्वर के मंडीर के बहुत निकट होताहै।
  • ईश्वर देखताहै। तूने दूसरों को कितनी सहायता दी, उतनी ही सहायता तुझे भी मिलेगी।
  • समाज की आत्मा में अपनी आत्मा को देखे बिना तू किसी की सहायता नहीं कर सकता।
  • सहायता दे पर सहायता मांग मत ! खुद भिखमंगा होकर तू दूसरों को क्या देगा ?
  • ज्ञान को नहीं अपने अज्ञान को याद रखो क्योंकि उसे मिटाना है। अपने अज्ञान को भूल जाना उसे कभी न मिटाने की कसम लेना है।
  • दुनियां को बहुत याद रखना, ईश्वर को भूल जाने से ही संभव होताहै। अपने आप को याद रखने के लिए दुनियां को भूलभी जाना पड़े, तोभी मेरी सलाह है की उसे भूल जा।
दुनियां से जबतक तू नहीं मुड़ेगा, अपने आप को नहीं देख सकता।
  • स्वर्ग पीठ के पीछेहै, उसे देखने के लिए इस दुनियां की तरफ पीठ करनीही होतीहै।
  • ईश्वर ने आदमी को एक ही तरफ आंखें दीहै। इसलिए यह नहीं होसकता की तू बाजार भी देखे और " उसे " भी देखे। एक ही कुछ होगा। ईश्वर की दुनियां चुन या इस दुनियां को चुनले।
  • उस सबको स्मृति में लिये फिरना जो व्यर्थ तुम्हें चिंतित बनाये निहायत मूर्खतापूर्णहै। मेरी सलाह है, कि चिंताओं को छोड्ने की आदत डालो क्योंकि मैंने देखाहै जो चिंताओं को छोड़ देते हैं, चिंताये भी उन्हें छोड़ देतीहैं।
  • बिस्तर पर चिंताओं को लेजाना, अपने को चिता पर लेजाने की तैयारी करने से भी बुराहै।
  • चिंता जीवन में ही मृत्यु का स्वाद देतीहै !
  • तेरे पास चिंतायें नहीं हैं, भला तेरे पास और कुछ भी न हो तो भी तेरा जीवन बहुत ज्यादा सुखी होगा जिनकी तिजोड़ियां सोने से भरीहैं और मन चिंताओं से।
एक बहुत सुन्दर अरबी कहावत है कि " बेफिक्र दिल, भरी थैली से हमेशा अच्छा है। "
  • चिंता धीमी आत्महत्या है। चिता और चिंता में एकही अंतर है, चिता एकदम जलातीहै, चिंता धीरे धीरे।
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