Letter written on 22 Mar 1965 xm: Difference between revisions

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Letter written to [[Ma Yoga Sohan]] on 22 Mar 1965 in the evening. It has been published in ''[[Prem Ke Phool (प्रेम के फूल)]]'' as letter #10. PS does not published in the book.
 
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प्रिय सोहन,<br>
तू इतने सारे पत्र लिखेगी, यह कभी सोचा भी नहीं था !और ऊपर से लिखती है कि मैं अपढ़ हूँ ! प्रेम से बड़ा कोई ज्ञान नहीं है -- और जिनके पास प्रेम न हो, वे अभागे ही केवल अपढ़ होसकते हैं। जीवन में असली बुद्धि नहीं, ह्रदय है -- क्योंकि आनंद और आलोक के फूल बुद्धि से नहीं, ह्रदय से ही उत्पन्न होते हैं। और, वह ह्रदय तेरे पास है और बहुत है। क्या मेरी गवाही से बड़ी गवाही भी तू खोज सकती है ?
 
यह तूने क्या लिखा है कि तुझसे कोई भूल हुई हो तो मैं लिखूँ ? प्रेम ने आजतक जमीन पर कभी कोई भूल नहीं की है। सब भूलें अप्रेम में होती हैं। मेरे देखे तो जीवन में प्रेम का आभाव ही एकमात्र भूल है। वह जो मैंने लिखा था कि ' प्रभु मेरे प्रति ईर्ष्या पैदा करे ; वह किसी भूल के कारण नहीं, वरन् ; 'जो अनंत आनंद मेरे ह्रदय में फलित हुआ है ', उसे पाने की प्यास तेरे भीतर भी गहरी से गहरी हो, इसलिए। ' मेवतडी रानी ' ! उसमें तेरे लिए चिंतित होने का कोई कारण नहीं था।
 
माणिक बाबू को मेरा प्रेम। बच्चों को स्नेह।
 
रजनीश के प्रणाम
 
रात्रिः २२ मार्च १९६५
 
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Letter written to [[Ma Yoga Sohan]] on 22 Mar 1965 in the evening. It has been published in ''[[Prem Ke Phool (प्रेम के फूल)]]'' as letter #10. PS does not published in the book. We are awaiting a transcription and translation.
पुनश्च : में १२अप्रैल को कलकत्ता मेल (वाया, अलाहाबाद )से बंबई पहुँच रहा हूँ। तुझे कल्याण मिलना ही है। संभवतः, १३ अप्रैल की रात्रि पूना भी बोलूंगा। १३ की सुबह बंबई और १४ की संध्या पुनः बंबई बोलना है। १५ की संध्या बम्बई से वापिस होऊँगा। इस बीच तुझे मेरी ' सेवा ' में होना होगा ! विस्तृत कार्यक्रम २-४ दिन बाद तय होने पर लिखूंगा। होसकता है मेरे ' सारथी' माणिक बाबू की भी सेवा लूं। हां, तेरे अंगूर सकुशल पहुँच गये थे। पर अभी और मत भेजना। मैं तो स्वयं ही आ रहा हूँ।
 
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Revision as of 14:50, 19 February 2020

Letter written to Ma Yoga Sohan on 22 Mar 1965 in the evening. It has been published in Prem Ke Phool (प्रेम के फूल) as letter #10. PS does not published in the book.

प्रिय सोहन,
तू इतने सारे पत्र लिखेगी, यह कभी सोचा भी नहीं था !और ऊपर से लिखती है कि मैं अपढ़ हूँ ! प्रेम से बड़ा कोई ज्ञान नहीं है -- और जिनके पास प्रेम न हो, वे अभागे ही केवल अपढ़ होसकते हैं। जीवन में असली बुद्धि नहीं, ह्रदय है -- क्योंकि आनंद और आलोक के फूल बुद्धि से नहीं, ह्रदय से ही उत्पन्न होते हैं। और, वह ह्रदय तेरे पास है और बहुत है। क्या मेरी गवाही से बड़ी गवाही भी तू खोज सकती है ?

यह तूने क्या लिखा है कि तुझसे कोई भूल हुई हो तो मैं लिखूँ ? प्रेम ने आजतक जमीन पर कभी कोई भूल नहीं की है। सब भूलें अप्रेम में होती हैं। मेरे देखे तो जीवन में प्रेम का आभाव ही एकमात्र भूल है। वह जो मैंने लिखा था कि ' प्रभु मेरे प्रति ईर्ष्या पैदा करे ; वह किसी भूल के कारण नहीं, वरन् ; 'जो अनंत आनंद मेरे ह्रदय में फलित हुआ है ', उसे पाने की प्यास तेरे भीतर भी गहरी से गहरी हो, इसलिए। ' मेवतडी रानी ' ! उसमें तेरे लिए चिंतित होने का कोई कारण नहीं था।

माणिक बाबू को मेरा प्रेम। बच्चों को स्नेह।

रजनीश के प्रणाम

रात्रिः २२ मार्च १९६५


पुनश्च : में १२अप्रैल को कलकत्ता मेल (वाया, अलाहाबाद )से बंबई पहुँच रहा हूँ। तुझे कल्याण मिलना ही है। संभवतः, १३ अप्रैल की रात्रि पूना भी बोलूंगा। १३ की सुबह बंबई और १४ की संध्या पुनः बंबई बोलना है। १५ की संध्या बम्बई से वापिस होऊँगा। इस बीच तुझे मेरी ' सेवा ' में होना होगा ! विस्तृत कार्यक्रम २-४ दिन बाद तय होने पर लिखूंगा। होसकता है मेरे ' सारथी' माणिक बाबू की भी सेवा लूं। हां, तेरे अंगूर सकुशल पहुँच गये थे। पर अभी और मत भेजना। मैं तो स्वयं ही आ रहा हूँ।


See also
Prem Ke Phool ~ 010 - The event of this letter.
Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.