Letter written on 12 Jun 1965 om: Difference between revisions
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आचार्य रजनीश | |||
प्रेम ! जोर की हवायें बह रही है। बदलियां उड़ी जाती हैं और छिपा सूरज बाहर प्रिय सोहन, निकल आया है। अभी अभी आकाश कैसा ढंका था ? ऐसा ही मनुष्य - मन है। साधना की हवायें उसकी सारी धूल को उड़ा लेजाती हैं और दर्पण स्वच्छ होजाता है। दर्पण मिटता तो है नहीं, बस ढंक जाता है। मन के दर्पण की धूल से भरे होने की बात तूने लिखी है। वह धूल हट जावेगी। धूल कोई शक्ति नहीं है। एक बार उसे हटाने का स्मरण भर आजाने की बात है। | |||
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माणिक बाबू को मेरा स्मरण दिलाना और बच्चों को भी। | |||
रजनीश के प्रणाम | |||
दोपहरः १२ जून १९६५ | |||
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Revision as of 16:32, 25 February 2020
Letter written to Ma Yoga Sohan on 12 Jun 1965 in the afternoon. It is unknown if it has been published or not.
आचार्य रजनीश प्रेम ! जोर की हवायें बह रही है। बदलियां उड़ी जाती हैं और छिपा सूरज बाहर प्रिय सोहन, निकल आया है। अभी अभी आकाश कैसा ढंका था ? ऐसा ही मनुष्य - मन है। साधना की हवायें उसकी सारी धूल को उड़ा लेजाती हैं और दर्पण स्वच्छ होजाता है। दर्पण मिटता तो है नहीं, बस ढंक जाता है। मन के दर्पण की धूल से भरे होने की बात तूने लिखी है। वह धूल हट जावेगी। धूल कोई शक्ति नहीं है। एक बार उसे हटाने का स्मरण भर आजाने की बात है।
माणिक बाबू को मेरा स्मरण दिलाना और बच्चों को भी। रजनीश के प्रणाम दोपहरः १२ जून १९६५ |
- See also
- Letters to Sohan ~ 014 - The event of this letter.
- Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.