Letter written on 5 Aug 1965 om: Difference between revisions
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[[ | Letter written to [[Ma Yoga Sohan]] on 5 Aug 1965 in the afternoon. It is unknown if it has been published or not. | ||
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फोन नं० १३९ | |||
तार : 'राजा' | |||
स त् सं ग | |||
(मनुष्य के आध्यात्मिक पुनरुत्थान के लिए समर्पित-मासिक) | |||
प्रेरकः<br> | |||
आचार्य श्री रजनीश<br> | |||
संपादकः<br> | |||
डा (सेठ) डा (सेठ)गोविदन्दास | |||
राजा गोकुलदास महल<br> | |||
जबलपुर (म.प्र.) | |||
प्रिय सोहन,<br> | |||
प्रेम। आज सुबह से तेरे पत्र की राह देख रहा हूँ । संभव है की संध्या तक आवे। | |||
कार्यव्यस्तता का कारण अभी अमरावती नहीं जासका। जाता तो वहां मां से मिलना हो जाता। | |||
शेष शुभ। माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष। यशा का पत्र आया है। वह बम्बई में कह रही था कि पूना जाकर सोहन का नया मकान सजाना है। मैंने उसे कहा है कि उसमें मेरे कमरे को विशेष रूप से सजा देना ! | |||
रजनीश के प्रणाम | |||
दोपहरः ५ अगस्त १९६५ | |||
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Revision as of 04:34, 26 February 2020
Letter written to Ma Yoga Sohan on 5 Aug 1965 in the afternoon. It is unknown if it has been published or not.
फोन नं० १३९ तार : 'राजा' स त् सं ग (मनुष्य के आध्यात्मिक पुनरुत्थान के लिए समर्पित-मासिक) प्रेरकः राजा गोकुलदास महल प्रिय सोहन, कार्यव्यस्तता का कारण अभी अमरावती नहीं जासका। जाता तो वहां मां से मिलना हो जाता। शेष शुभ। माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष। यशा का पत्र आया है। वह बम्बई में कह रही था कि पूना जाकर सोहन का नया मकान सजाना है। मैंने उसे कहा है कि उसमें मेरे कमरे को विशेष रूप से सजा देना ! रजनीश के प्रणाम दोपहरः ५ अगस्त १९६५ |
- See also
- Letters to Sohan ~ 031 - The event of this letter.
- Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.