Letter written on 20 Nov 1965: Difference between revisions
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[[ | Letter written to [[Sw Chaitanya Veetaraga]] on 20 Nov 1965. It is unknown if it has been published or not. | ||
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|[[image:Chaitanya Veetaraga, letter 20-Nov-1965.jpg|right|300px]] | |||
Acharya Rajnish | |||
Jeevan Jagruti Kendra, 115, Napiar Town, Jabalpur (M.P.) | |||
मेरे प्रिय,<br> | |||
प्रेम। पत्र पाकर आनंदित हूँ। और मेरे प्रति ह्रदय को इतनी सहजता से खोला है इसलिए अनुगृहीत भी। | |||
:* जीवन-सत्य कभी भी चिंतन से उपलब्ध नहीं होताहै। क्योंकि, चिंतन वस्तुतः दूसरों के विचारों की जुगाली है। वह मौलिक नहीं है। समस्या अपनी और समाधान दूसरों का -- यही सबसे बड़ी समस्या होजाती है। समस्या भी अपनी और समाधान भी अपना ही चाहिए। यह समाधान ध्यान से आता है। ध्यान का अर्थ है -- शून्य-जागरूकता (contentless-consiousness) । जो विचार में पड़तेहैं, वे नरक जाते हैं। इसलिए ही दर्शन-शास्त्र (Philosophy)कोल्हू के बैल की भांति घूमता है लेकिन कही पहुँचता नहीं है । मैं कहता हूँ: विचारों से सावधान। निश्चय ही अविचार को नहीं कहता हूँ। वस्तुतः तो जो विचारों में पड़ा रहता है उसका जीवन है अविचार का होता है और जो निर्विचार को पालेता है उसके जीवन में विचार आजाताहै। | |||
:* मैं किसी के व्यक्तित्व को कभी नहीं आंकता हूँ। और न ही आकलन का कोई आधार है। प्रत्येक अव्दितीय (Unique) है। जो जैसा है -- जो है -- वैसा ही है। तुलना ही वस्तुतः असंभव है। सब तुलनायें हमारी क्षुद्र बुद्धि से उत्पन्न होतीहैं। मूल सत्ता में न कोई नीचे है, न ऊपर -- न शुभ है, न अशुभ। स्वयं से अहंकार के जाते ही समस्त तुलनायें और निर्णय विलीन होजाते हैं। अहंकार को छोड़ो और देखो; तब जो दिखाई देता है वही सत्य है। | |||
:* मनुष्य जब स्वयं को सृष्टि के बाहर रख लेता है तो सृष्टी का प्रयोजन क्या है ? आदि प्रश्न पैदा होते हैं। और सृष्टि के बाहर खड़े होकर सृष्टि को देखना भूल है। क्योंकि जो भी है - वह सृष्टी है। उसमें डूबते ही न कोई उद्देश्य है -- न प्रयोजन है। वही तो बस जीवन है और जीवन सच्चिदानंद है। उसके बाहर कुछ भी नहीं है और इसलिए वह स्वयं ही अपना लक्ष्य है। | |||
:* असत् विचारों से छुटकारा नहीं मिलता क्योंकि हम सत् विचारों को बचाना चाहते हैं। यह प्रयास वैसा ही मूर्खतापूर्ण है जैसे कि कोई किसी सिक्के के एक पहलू को छोड़ना चाहे और एकको बचाना। दोनों को जाने दो और तब जो शेष रह जाता है, उसे ही मैंने मोक्ष जाना है। | |||
कभी मिलो तभी गहरे में बातें होसकती हैं। | |||
रजनीश के प्रणाम | |||
२०/११/१९६५ | |||
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:[[Letters to Veetaraga ~ 01]] - The event of this letter. | :[[Letters to Veetaraga ~ 01]] - The event of this letter. |
Revision as of 09:44, 2 March 2020
Letter written to Sw Chaitanya Veetaraga on 20 Nov 1965. It is unknown if it has been published or not.
Acharya Rajnish Jeevan Jagruti Kendra, 115, Napiar Town, Jabalpur (M.P.) मेरे प्रिय,
कभी मिलो तभी गहरे में बातें होसकती हैं। रजनीश के प्रणाम २०/११/१९६५ |
- See also
- Letters to Veetaraga ~ 01 - The event of this letter.