Letter written on 24 Dec 1965 pm: Difference between revisions
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संध्याः<br> | संध्याः<br> | ||
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प्रिय सोहन,<br> | प्रिय सोहन,<br> | ||
तेरा पत्र कल मिल गया है। मैं पत्र न आने की शिकायत लिखकर पत्र डलवाया ही था कि तेरी प्यारी चिट्ठी आ पहुँची। | तेरा पत्र कल मिल गया है। मैं पत्र न आने की शिकायत लिखकर पत्र डलवाया ही था कि तेरी प्यारी चिट्ठी आ पहुँची। | ||
मैं आज ही संध्या प्रवास पर निकल रहा हूँ। मौनू भी तेरी तरफ आरही है। | मैं आज ही संध्या प्रवास पर निकल रहा हूँ। मौनू भी तेरी तरफ आरही है। | ||
तू तो बम्बई में मिलेगी गी ही ? | तू तो बम्बई में मिलेगी गी ही ? | ||
इस पत्र के साथ नए विचार पत्रों की श्रंखला को प्रारंभ कर रहा हूँ। | इस पत्र के साथ नए विचार पत्रों की श्रंखला को प्रारंभ कर रहा हूँ। | ||
माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष।इस पत्र के पहुँचते पहुँचते तो मौनू भी वहां ही होगी। उसे भी प्रेम। | माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष।इस पत्र के पहुँचते पहुँचते तो मौनू भी वहां ही होगी। उसे भी प्रेम। | ||
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:[[Letters to Sohan ~ 051]] - The event of this letter. | :[[Letters to Sohan ~ 051]] - The event of this letter. | ||
:[[Letters to Sohan and Manik]] - Overview page of these letters. | :[[Letters to Sohan and Manik]] - Overview page of these letters. |
Revision as of 07:52, 3 March 2020
Letter written to Ma Yoga Sohan on 24 Dec 1965 in the evening. It is unknown if it has been published or not.
Acharya Rajnish Jeevan Jagruti Kendra, 115, Napiar Town, Jabalpur (M.P.) संध्याः प्रिय सोहन, मैं आज ही संध्या प्रवास पर निकल रहा हूँ। मौनू भी तेरी तरफ आरही है। तू तो बम्बई में मिलेगी गी ही ? इस पत्र के साथ नए विचार पत्रों की श्रंखला को प्रारंभ कर रहा हूँ। माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष।इस पत्र के पहुँचते पहुँचते तो मौनू भी वहां ही होगी। उसे भी प्रेम। रजनीश के प्रणाम ( कृपया पृष्ठ पलटे ) |
Note: last phrase in brackets written not by Osho.
- See also
- Letters to Sohan ~ 051 - The event of this letter.
- Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.