Letter written on 3 May 1966: Difference between revisions
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प्यारी सोहन,<br> | |||
तेरा पत्र। पागल ! अकेला रहना तो बड़ा आनंद है। सच्चाई भी यही है कि हम सब अकेले हैं। भीड़भाड़में कबतक स्वयं के सत्य को भुलाया जासकता है ? एक दिन तो अकेला -- बिल्कुल अकेला होना ही पड़ता है। उसके पूर्व हो जो अकेला होने में आनंद अनुभव करने लगता है उसकी जीवन-यात्रा बहुत सरल और शांतिपूर्ण होजाती है। | |||
उस एकांत घर में -- भीड़ का विचार न कर, मन को भी शांत और शून्य | |||
में लेजाया कर। मौन बैठा कर। आकाश को देखा कर। फिर धीरे धीरे | |||
एक अभिनव आनंद प्रगट होगा और तेरे प्राणों को स्वर्गीय संगीत | |||
से भर देगा। शांति में, मौन में ही तो परमात्मा के संगीत की अनुभूति | |||
होती है। | |||
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माणिक बाबू को प्रेम। | |||
बच्चों को शुभाशीष। | |||
रजनीश के प्रणाम | |||
३/५/१९६६ | |||
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Revision as of 15:00, 5 March 2020
Letter written to Ma Yoga Sohan on 3 May 1966. It is unknown if it has been published or not.
प्यारी सोहन, उस एकांत घर में -- भीड़ का विचार न कर, मन को भी शांत और शून्य में लेजाया कर। मौन बैठा कर। आकाश को देखा कर। फिर धीरे धीरे एक अभिनव आनंद प्रगट होगा और तेरे प्राणों को स्वर्गीय संगीत से भर देगा। शांति में, मौन में ही तो परमात्मा के संगीत की अनुभूति होती है।
माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को शुभाशीष। रजनीश के प्रणाम ३/५/१९६६ |
- See also
- Letters to Sohan ~ 066 - The event of this letter.
- Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.