Jeevan Ki Kala (जीवन की कला): Difference between revisions

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Revision as of 08:37, 14 January 2019


"यह भाव कि मैं हूं, अनिवार्यतया इस भाव से जुड़ा होगा कि ईश्वर नहीं है। ये दोनों संयुक्त घटनाएं हैं। जिस सदी में मनुष्यों को ऐसा लगेगा मैं हूं, उस सदी में उन्हें लगेगा ईश्वर नहीं है। जितना तीव्र प्रकाश अपने व्यक्तित्व के घरों में अहंकार का जलेगा, उतना ही परमात्मा के प्रकाश से हम वंचित हो जाएंगे। तो जब मैं कह रहा हूं, विचार को छोड़ दें; तो मैं कह रहा हूं, अपने भीतर, घर के भीतर जलती हुई टिमटिमाती मोमबत्ती को बुझा दें और फिर देखें। फिर जो मैं कह रहा हूं कोई इस वजह से नहीं कि मैं कहता हूं इसलिए मान लें; मैं कहता हूं, करें और देखें। यह कोई सैद्धांतिक बातचीत नहीं है, यह कोई लफ्फाजी नहीं है, यह कोई तार्किक मामला नहीं है कि कोई चीज तर्क से मैं सिद्ध कर रहा हूं। मैं तो एक अत्यंत प्रयोगात्मक, एक्सपेरिमेंटल, एक ऐसी व्यावहारिक बात कह रहा हूं--जिसे करें और देखें। एक बार बुझा कर देखें अपने घर के दीये को, तो पता चलेगा कि चांद की रोशनी भीतर प्रविष्ट हो जाती है। एक सड़ा सा टिमटिमाता दीया चांद को रोके रखता है। वैसे ही जरा ‘मैं’ को बुझा कर देखें। और ‘मैं’ नहीं बुझेगा जब तक विचार हैं। क्योंकि विचार ही दीये का तेल है। विचार ही उस दीये की अग्नि है जो ‘मैं’ को जलाए हुए रहती है। विचार को अलग करें, क्रमशः दीया बुझता जाएगा अहंकार का। सारा विचार अलग हो जाए, आप पाएंगे, वहां कोई दीया नहीं है। और जिस घड़ी आप निर्विचार और निर-अहंकार होकर देखेंगे, आपको पता चलेगा ‘मैं’ कभी नहीं था। जो सदा से था वह अब भी है और आगे भी होगा। ‘मैं’ मेरा भ्रम था। और जिस मनुष्य को यह ज्ञात हो जाए कि ‘मैं’ मेरा भ्रम था, वह सत्य को उपलब्ध हो जाता है। वैसा सत्य ही जीवन में अनंत आनंद को और सौंदर्य को प्रकट करता है। तो विचार छोड़ कर आप जड़ नहीं होंगे। हां, अगर विचार के पीछे ही चले जाएं, तो निश्चित जड़ हो जाएंगे। विचार को छोड़ कर ही आप में परिपूर्ण चेतना प्रकट होगी। और यह इतनी सरल बात है, अगर एक बार स्पष्ट रूप से खयाल में आ जाए, इतनी सरल बात है, इतनी सरल क्योंकि छायाओं को मिटा देना बहुत कठिन नहीं होता, और भ्रमों को तोड़ देना बहुत कठिन नहीं होता, और सपनों को मिटा देना बहुत कठिन नहीं होता। ये सब स्वप्न हैं हमारे, जो तोड़े जा सकते हैं।" —ओशो
notes
Nine or ten talks, unknown date and location, apparently not available as a book, only partially available in audio and as an e-book. See discussion for an audio TOC.
time period of Osho's original talks/writings
unknown : timeline
number of discourses/chapters
10


editions