Athato Bhakti Jigyasa, Bhag 2 (अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग 2)
- Talks on the Bhakti Sutras of Shandilya, way ancient verses expounding on the path of devotion.
- अथातोभक्तिजिज्ञासा अब भक्ति की जिज्ञासा। सोचा, विचारा, पर उससे जिज्ञासा पूरी नहीं होती। जिज्ञासा तो तभी पूरी होती है जब रोम-रोम में समा जाए, धड़कन-धड़कन में धड़के, श्वास-प्रश्वास में डोले। इन सूत्रों पर विचार और मनन करके ही जो रुक गया, वह जल सरोवर के पास पहुंचा और प्यासा रह गया। ये सूत्र ऐसे हैं कि तुम्हारे जीवन को सदा-सदा के लिए तृप्त कर दें।
- इनकी महिमा अपार है। पर इनके हाथ में भी नहीं है कि यदि तुम सहयोग न करो तो तुम्हें तृप्त कर सके। तुम्हारे सहयोग के बिना कुछ भी न हो सकेगा। तुम्हारी स्वतंत्रता परम है।
- प्रस्तुत पुस्तक ‘अथातोभक्ति जिज्ञासा’ भाग-2 में ओशो द्वारा ॠषिवर शांडिल्य के भक्ति सूत्रों पर दिए गए चालीस अमृत प्रवचनों में से दूसरे बीस प्रवचनों का संकलन
- notes
- see discussion for notes on ISBNs and other ephemeral editions.
- First 10 chapters published as Bhakti: Dhyan Ki Madhushala (भक्ति : ध्यान की मधुशाला), and last 10 chapters - as Bhakti: Virat Se Maitri (भक्ति : विराट से मैत्री).
- time period of Osho's original talks/writings
- Mar 11, 1978 to Mar 30, 1978 : timeline
- number of discourses/chapters
- 20
editions
Athato Bhakti Jigyasa, Bhag 2 (अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग 2)शांडिल्य-सूत्र Shandilya-Sutra
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