Manuscripts ~ Assorted
- year
- ?
- notes
- 63 sheets plus 1 written on reverse.
- Unpublished.
- This collection of sheets has been shared with us by Osho's brother Sw Niklank Bharti in Dec 2019.
- see also
- Osho's Manuscripts
sheet no photo Hindi transcript cover 1 - आनंद कौन नहीं चाहता पर आनंद क्या है इसे कौन जनता है ?
- मुझसे एक बार पूछागया कि आनंद क्या है ? " मैंने कहा " आनंद न चाहने कि स्थिति पैदा कर लेना। "
- आनंद ईश्वर को अपने में खोज लेना है। जबतक तू अलग है, तेरा ईश्वर अलग, तबतक तू आनंदित नहीं हैं।
- एक शर्त के साथ दुनियां की हर चीज में आनंद है की तेरी आंखों में दुख न हो।
- शरीर आसक्क्ति को छोड और इस सचाई को जान ले कि आनंद अपने स्वाभाव में लीन होजाने के सिवाय और कुछ भी नहीं है।
- आनंद पूर्ण संतोष है। उसके कण कण से एक ही वाणी निकलती है कि -- " मुझे कुछ नहीं चाहिए। "
- आनंद मस्त कौन है। "वह जिससे सारा आनंद छिनलो, तो भी आनंद का आभाव न खटके।"
- परमात्मा को क्या ध्याता है। अबे ! अपने भूले स्वरुप को याद कर तू तो स्वयं की परमात्मा है।
- ज्ञान चाहता है तो तुझे अपना पथ इससे शुरू करना होगा कि " मैं " कुछ जानता “
- जिस विधा से तुझे अपने का ज्ञान नहीं आता है वह फिजूल है।
- किसी भी धर्म की मान मुझे कहना है पर जिसे तू मान उसपर चल भी सिर्फ उसे मंटा ही मत रह।
- एकबार मुझसे पूछा गया की " धर्म मर क्यों रहा है?" मैंने कहा - "क्योंकि धर्म आज मान्यता भर ही रह गया है, व्यव्हार नहीं।"
- मेरा विश्वास है की धर्म को बचाना है तो उसे मान्यता से उठाकर व्यव्हार बनाना होगा। आज लोग एक दूसरे से पूछते है की "आप किस धर्म को "मानते" हैं, पर मैं उस दिन को लाना चाहता हूँ, जब लोग इसे छोड़कर इसकी जगह पूछें की आप किस धर्म को "व्यव्हार" में लाते हैं"।
2 - अविवेक धर्म नहीं हैं, विवेक धर्म हैं, अविवेक अधर्म ! राजचन्द्र ने कहा है "विवेक अंधेरेमे पड़ी हुई आत्मा को पहचानने का दिया है।"
- धर्मो के लिए लड़ो मत। जब तुम धर्मो के लिए लड़ते हो तो बताते हो की, तुम धर्मो को समझते नहीं।
- धर्म पालने की चीज़ है, लड़ने की नहीं। यंग ने कहा है -- " मजहब का झगड़ा और मजहब का पालन कभी साथ नहीं चलते।"
- धर्म का अर्थ है अपने लिए नहीं, अपने ईश्वर के लिए जियो।
- भक्ति क्या है ? "ईश्वर को अपनी तारक खींचना ?" मैंने कहा "नहीं"। भक्ति स्वयं अपने को ईश्वर बना लेना है।"
- भक्ति द्वैत से शुरू होती हैं, पूर्ण होती है द्वैत के अंत पर।
- "ईश्वर एक दर्पण है " जिसमे तू अपने को देख सके। आत्म दर्शन पर तू ही तू रह जाता है, न तब दर्पण रहता है, न कोई ईश्वर।
- भक्ति की पूर्णता क्या है? "भक्ति और जरुरत का न रह जाना। "
- खुद खुदा में मिट, खुदा को खुद में मिटा ले, बस यही भक्ति की पूर्णता है।
- मुक्ति के रस्ते एक से ज्यादा नहीं हो सकते यद्यपि नाम उसके कितनेभी रखे जा सकते है।
- राजचंद्र ने कहा है -- "मोक्ष के रास्ते दो नहीं है।"
- ईश्वर एक है और उसतक पहुंचने का रास्ता भी एक है -- " अपनी आत्मा को उसतक उठाना। "
- तू किसी भी धर्म में हो अपने को ईश्वर तक क्योंकि कोई भी अन्य दूसरा मार्ग उसतक नहीं जाता है।
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