This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parekh. It was written in on 16th March 1961 on his personal letterhead stationery of the day: The top left corner reads: Rajneesh / Darshan Vibhag (Philosophy Dept) / Mahakoshal Mahavidhalaya (Mahakoshal University). The top right reads: Nivas (Home) / Yogesh Bhavan, Napiertown / Jabalpur (M.P.).
This letter does not have Osho's usual salutation, "प्रिय मां", Priya Maan, Dear Mom, but instead "पूज्य मां", Pujya Maan, Revered Mother. There are none of the handwritten marks of various colours found on most earlier letters. The date is written at the top.
पूज्य मां,
प्रणाम। पत्र मिले : खूब खुशी हुई। मैं स्वस्थ और प्रसन्न हूँ : पर पत्रों से दीखता है कि आप मेरे स्वास्थ्य के लिए चिंतित हैं। शरीर तो स्वयं ही व्याधि है। वह पूर्ण कभी नहीं होता है क्योंकि मरणधर्मा है। अमृत जो है केवल वही पूर्ण होसकता है। मेरी आस्था मूलत: उस अमृत में ही है। उसमें उपस्थित होना ही सच्चा स्वास्थ्य पाना है। इसलिए मेरे शरीर की चिन्ता में समय न लगायें। वह ठीक होलेगा : अब मिलूँगा तो बिल्कुल ठीक होकर मिलूँगा। फिर वह ठीक हो या नहीं – बहुत विचारणीय वह नहीं है। एक प्रयोग मैं प्रारंभ किया हूँ : शरीर को आदेश देकर सोने का : वह फलदायी दीखता है। प्रभु सहायक है इसलिए मुझे चिन्ता नहीं है। इसके बाद भी त्रुटि बची तो आपका प्रयोग करूँगा – पर दिखता है कि जरूरत पड़ने की नहीं है।
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श्री भीखमचंद जी देशलहरा के निमंत्रण पर मैं अपनी असमर्थता के लिए क्षमा मांग लिया था। आज उनका दूसरा पत्र आया है कि मैं आपको पहुँचने के लिए लिख दूँ। महावीर जयंती पर आप बुलडाना चली जायें तो अच्छा हो। मेरी कमी पूरी होजाएगी। मैं फिर कभी बुलडाना आने को उन्हें लिख दिया हूँ।
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पचमढ़ी में बंगला तय करने को आपने लिखा है। पारखजी का सुझाव ठीक है। लेकिन बिना पचमढ़ी जाए बंगला कैसे तय होगा? आप शील को लिखें तो अच्छा है। बरेली से पचमढ़ी एकदम निकट है। वह जाकर बंगला तय कर ले। मैं भी उसे लिखने की सोचता हूँ। बरेली से पुन: बहुत आग्रहपूर्ण निमंत्रण आया है पर अभी तो जाना नहीं हो सकता है। महावीर जयंती के बहुत से आमंत्रणों में एक जयपुर का आमंत्रण भी है। अब तो बंबई के बंध गया हूँ। अन्यथा आपके साथ एक सुखद यात्रा हो सकती थी और वनस्थली जाकर सुशीला से भी मिलना हो सकता था।