Letter written on 30 Oct 1961 am
This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parekh. It was written in the morning of 30th October 1961. The letterhead has a simple "रजनीश" (Rajneesh) in the top left area, in a heavy but florid font, and "115, Napier Town, Jabalpur (M.P.) in the top right, in a lighter but still somewhat florid font.
Osho's salutation in this letter is a simple "मां", Maan, Mom or Mother. It has a few of the hand-written marks that have been observed in other letters: a blue number (29) in a circle in the top right corner, a red tick mark, and a second number (55) in the bottom right corner.
रजनीश प्रभात: मां, मैं बस बैठा हूँ : कोई विचार नहीं है और देखता हूं कि समय ठहर गया है। जीवन की गति उसमें बाधा नहीं है। गति दिखती है पर जैसे कोई प्रवाह नहीं है। सब चल रहा है और सब ठहरा हुआ है। मन रुक जाये तो सब रुक जाता है। मन की गति ही संसार है : मन का ठहर जाना ही मोक्ष है। यह सारा खेल मन का है : यह सब अद्भुत लीला सारी मन की है। मन रुककर कैसा निर्मल झील-सा बन जाता है। सब झलकता है और कुछ भी विघ्न नहीं बनता है। चित्र आते हैं और चले जाते हैं : मन दौड़ता नहीं और हम देखते रह जाते हैं। सब सुन्दर होआता है : मन की दौड़ गई कि सब आनंद होआता है। मैं कल ही किसी से कहा हूँ : “मित्र! रुको और देखो। रुकते ही संसार नया है। रुकते ही देखने का – दर्शन का जन्म होता है और क्रान्ति हो जाती है। तब ज्ञान होता है कि जिसकी खोज थी वह आंख के सामने ही था। आंख न थी इसलिए देखना न हो सकाथा। मन का न ठहरना ही आंख का न होना है। मन ठहरा कि दृष्टि मिली और फिर एक नये आनंद लोक का उद्घाटन होता है। आनंद निकट है : दौड़ छोडें और वह उपलब्ध है। रजनीश के प्रणाम |
- See also
- (?) - The event of this letter.
- Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.