The letter is dated 3rd November 1966, recipient is Ma Yoga Geeta. The letterhead is very similar to that used in Letter written on 2 Dec 1966, also addressed to Geeta, except that the paisley-like image used for a logo and the address at right angles below it are much further from the edge, oddly so for a letterhead. The fact that the text and image are slightly different colours in the other letter and not in this suggests that what has been imaged here is a photocopy.
At any rate, it is not known to have been previously published.
Acharya Rajnish
115, Napier Town, Yogesh Bhavan, Jabalpur (M.P.)
प्यारी बहिन,
प्रेम। तेरा पत्र। ह्रदय में जो हो रहा है, उसे जानकर आनंदित हूँ। ध्यान गहरी से गहरी शांति लायेगा। अच्छे लक्षण प्रगट हो रहे हैं। लेकिन स्मरण रहे कि शांति भी दो प्रकार की होती हैः एक जीवित की और एक मृत की। मैं दूसरी प्रकार की शांति के पक्ष में नहीं हूँ क्योंकि वह वस्तुतः शांति ही नहीं है। जीवन से भागकर जो शांति मिलती है, वह झूठी है। वह शांति नहीं, वरन् अशांति को पैदा और प्रगट करनेवाले सम्बंधों का आभाव मात्र है। इसलिए, यदि वास्तविक शांति चाहती हो तो जीवन से मुख मोड़ने वाली भूल से बचना। जीवन के संघर्ष में जो शांति सत्य है, बस वही सत्य है। जीवन-युद्ध को छोड़कर भागना नहीं है, वरन् उसमे ही खड़े होकर स्वयं को जीतना है। भागना संन्यास नहीं,निपट कायरता है। संन्यास तो स्वयं का इतना आमूल परिवर्तन है कि फिर संसार रह ही नहीं जाता है। भागने में तो संसार का भय है। और संन्यास तो चित्त की वह दशा है जब संसार स्वप्न ही रह जाता है -- न भोगने योग्य, न भागने योग्य। संसार तो बस जागने योग्य है। श्री. नंदानी जी को मेरे प्रणाम।