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Hindi transcript
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- आनंद कौन नहीं चाहता पर आनंद क्या है इसे कौन जनता है ?
- मुझसे एक बार पूछागया कि आनंद क्या है ? " मैंने कहा " आनंद न चाहने कि स्थिति पैदा कर लेना। "
- आनंद ईश्वर को अपने में खोज लेना है। जबतक तू अलग है, तेरा ईश्वर अलग, तबतक तू आनंदित नहीं हैं।
- एक शर्त के साथ दुनियां की हर चीज में आनंद है की तेरी आंखों में दुख न हो।
- शरीर आसक्क्ति को छोड और इस सचाई को जान ले कि आनंद अपने स्वाभाव में लीन होजाने के सिवाय और कुछ भी नहीं है।
- आनंद पूर्ण संतोष है। उसके कण कण से एक ही वाणी निकलती है कि -- " मुझे कुछ नहीं चाहिए। "
- आनंद मस्त कौन है। "वह जिससे सारा आनंद छिनलो, तो भी आनंद का आभाव न खटके।"
- परमात्मा को क्या ध्याता है। अबे ! अपने भूले स्वरुप को याद कर तू तो स्वयं की परमात्मा है।
- ज्ञान चाहता है तो तुझे अपना पथ इससे शुरू करना होगा कि " मैं " कुछ जानता “
- जिस विधा से तुझे अपने का ज्ञान नहीं आता है वह फिजूल है।
- किसी भी धर्म की मान मुझे कहना है पर जिसे तू मान उसपर चल भी सिर्फ उसे मंटा ही मत रह।
- एकबार मुझसे पूछा गया की " धर्म मर क्यों रहा है?" मैंने कहा - "क्योंकि धर्म आज मान्यता भर ही रह गया है, व्यव्हार नहीं।"
- मेरा विश्वास है की धर्म को बचाना है तो उसे मान्यता से उठाकर व्यव्हार बनाना होगा। आज लोग एक दूसरे से पूछते है की "आप किस धर्म को "मानते" हैं, पर मैं उस दिन को लाना चाहता हूँ, जब लोग इसे छोड़कर इसकी जगह पूछें की आप किस धर्म को "व्यव्हार" में लाते हैं"।
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- अविवेक धर्म नहीं हैं, विवेक धर्म हैं, अविवेक अधर्म ! राजचन्द्र ने कहा है "विवेक अंधेरेमे पड़ी हुई आत्मा को पहचानने का दिया है।"
- धर्मो के लिए लड़ो मत। जब तुम धर्मो के लिए लड़ते हो तो बताते हो की, तुम धर्मो को समझते नहीं।
- धर्म पालने की चीज़ है, लड़ने की नहीं। यंग ने कहा है -- " मजहब का झगड़ा और मजहब का पालन कभी साथ नहीं चलते।"
- धर्म का अर्थ है अपने लिए नहीं, अपने ईश्वर के लिए जियो।
- भक्ति क्या है ? "ईश्वर को अपनी तारक खींचना ?" मैंने कहा "नहीं"। भक्ति स्वयं अपने को ईश्वर बना लेना है।"
- भक्ति द्वैत से शुरू होती हैं, पूर्ण होती है द्वैत के अंत पर।
- "ईश्वर एक दर्पण है " जिसमे तू अपने को देख सके। आत्म दर्शन पर तू ही तू रह जाता है, न तब दर्पण रहता है, न कोई ईश्वर।
- भक्ति की पूर्णता क्या है? "भक्ति और जरुरत का न रह जाना। "
- खुद खुदा में मिट, खुदा को खुद में मिटा ले, बस यही भक्ति की पूर्णता है।
- मुक्ति के रस्ते एक से ज्यादा नहीं हो सकते यद्यपि नाम उसके कितनेभी रखे जा सकते है।
- राजचंद्र ने कहा है -- "मोक्ष के रास्ते दो नहीं है।"
- ईश्वर एक है और उसतक पहुंचने का रास्ता भी एक है -- " अपनी आत्मा को उसतक उठाना। "
- तू किसी भी धर्म में हो अपने को ईश्वर तक क्योंकि कोई भी अन्य दूसरा मार्ग उसतक नहीं जाता है।
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- इंद्रियां जीवन की सेवा के लिए हैं पर मुर्ख अपने जीवन को ही उनकी सेवा में गुजर देते हैं।
- मजबूती इंद्रियों को रोक लेने में हैं, महानता भी उसीमें है,दिव्यता भी।
- इंद्रियों के आगे झुकने के पहले अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुन। अंतर से ईश्वर बोलता है, इंद्रियों से ईश्वर का दुश्मन।
- इंद्रियों के आगे झुक जाने का अर्थ है कि तू अपनेको पहचान नहीं पाया है। अपने को पहचान, अपने स्वामित्व को समझ और इसे देख कि इंद्रियों की हस्ती -- जिनके सामने तू झुक गया है -- तेरे मुकाबिले क्या है।
- इंद्रियों का गुलाम मन मृत है। उसे छोड़ कर नये को पैदाकर।
- क्रोध तुझे आये ही नहीं तो यह कोई गुण नहीं है, पर आये क्रोध को रोक लेना बहुत बड़ा गुण जरूर है।
- अपने क्रोध की हत्या से बचा कि आत्म -हत्या में लगा। मेरा विश्वास है कि क्रोध में जलना, नरक में जलने से किसी कदर कम नहीं है।
- क्रोध में कुछ भी न कर। यह जलती आग में - आंखे लिये -उतरना है।
- क्रोध में जो सुस्त है, वह महान हुये बिना रुक ही नहीं सकता।
- क्रोधित हो हम सब अपने उथलेपन को नंगा कर देते हैं। वह, जो क्रोध को पी सकताहै, अपनी गहराई का सुबूत देताहै।
- मैंने बहुत से क्रोधित लोगो को देखा है, पर क्रोध में किसी को भी कपड़े पहने कभी नहीं देखा।
- क्रोधित तुम जिस पर हो,वह तुम्हें जितनी चोट पहुँचा सकताहै, उससे ज्यादा चोट तुम्हारा क्रोध तुम्हें पहुँचायेगा। पोप ने कहाहै "गुस्सा होना दूसरों की गल्तियों के लिये स्वयं अपने को सजा देना है।"
- जब भी मैं किसीको अपने पड़ौसी के दोषों की "वैज्ञानिक खोज " में संलग्न पाता हूँ तो मुझे हमेशा उसपर दया होआती और मेरा मन होता है कि मैं कहुँ कि "ओह ! बेचारा किस भोलेपन से अपने दोषों को छिपाने के प्रयत्न मेँ लगा है।"
- अपने पड़ौसी को बदलना है तो पहले अपने को बदलो। अपने स्वयं के दोषों से बिना मुक्त हुए कोई भी अपने पड़ौसी के दोषों पर उंगली उठाने का हक़ नहीं पाता है।
- कन्फ्यूसियस का वचन है कि "अपने पड़ौसी की छत पर पड़े हुए बर्फ की शिकायत न करो जबकि तुम्हारे खुद के दर्वाजे की सीढी गंदीहै।"
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![](/images/thumb/a/a5/Niklank_5.jpg/200px-Niklank_5.jpg) |
- "अंतर निरिक्षण " (नया साथी )
- गुलाबचंद जी "पुष्प" सिलवाली वाले
- वीरदरवाजा नया साथी भोपाल
- मुति कांति सागर
- भंडारी डेम के सामने वाली
- धर्मशाला
- भर बाड़ी रोड
- भोपाल
- अंतस्वाणी - (सरस्वती,अलाहाबाद )
- आत्मा के बोल (वर्धा, (जैन जगत )
- आत्मा के बोल (वर्धा, (चेतना, भोपाल )
- आत्मचिंतन के चरणों मे (ज्ञानोदय बनारस )
- "अंतर निरिक्षण " (नया साथी भोपाल )
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![](/images/thumb/c/cd/Niklank_6.jpg/200px-Niklank_6.jpg) |
- दूसरों के दोषों को खोजना स्वयं बहुत बड़ा दोष है। दोषोंसे मुक्ति के पथ पर पहला हमला अपने इसी "दूसरों के दोषों को खोजने का दोष "पर करो।
- चरित्र बनाने का अर्थ है ; निरत अपने दोषों की खोज में लगे रहना।
- अपने दोष को स्वीकार करना दोष का आधा सुधार है।
- तुम उस क्षण तक किसी दोष से कभी मुक्त नहीं हो सकते; जब तक विश्वास किये जाते हो कि वह तुममें नहीं, किसी दूसरे में हैं।
- परिस्थितियों या दूसरों को दोषी ठहराकर बैठ मत रहो। यह तो अपने दोषों को करते ही चले जाने की जिद है।
- तू यदि अपने दस जीवन मिटाकर भी एक जीवन बचा सकता है तो बचा।
- तू जो कुछ दूसरों के साथ करता है, ईश्वर वही तेरे साथ करेगा।
- दया के विचार तक ही मत रुके रहो, उसे कार्य तक पहुँचने दो।
- अपनी दया को क्रियात्मक बनाओ। जबतक तुम्हारे आंसुओं से दूसरों के आंसू नहीं सूखते, तुम्हारा आंसू बहाना व्यर्थ है।
- इतना कहो जितने से ज्यादा तुम कर सकते हो।
- मैं उसे प्यार करताहूँ जो अपने को भूलकर अपने पड़ौसियों के दुखदर्द में खोगया है।
- जबतक तू समझताहै कि तेरा पड़ौसी तूझसे भिन्न है, तबतक तू उसे चोट पहुंचाने से नहीं रुक सकता।
- अपनी तकलीफ कोई भी समझ सकताहै, पड़ौसी की तकलीफ सिर्फ "आदमी" समझ सकताहै। सादी ने कहाहै -"अगर तू दूसरों की तकलीफ नहीं समझता तो तुझे इंसान नहीं कहा जासकता। "
- मैं अपने पड़ौसी को प्यार करता हूँ इसलिये नहीं कि अपने पड़ौसी को प्यार करना चाहिए बल्कि इसलिए कि ऐसा कौन है जो अपने आप को प्यार नहीं करता ?
- मैं उन मूर्ख धार्मिकों के लिए क्या कहूँ जो आदमी आदमी के बीच घृणा फ़ैलाने को ईश्वरतक पहुँचने का रास्ता समझते हैं। आदमी जबतक आदमीको प्रेम करना नहीं सीखेगा वह किसी को भी प्रेम करना नहीं सीख सकता।
- ईश्वर की तरफ प्रेम है तो सिवाय पड़ौसीकीं तरफ प्रगट करले, तू उसे कैसे प्रगट कर सकताहै ?
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![](/images/thumb/4/45/Niklank_7.jpg/200px-Niklank_7.jpg) |
- श्रम से शरमाना अपने को आदमी कहने से इंकार करना है।
- आदमी सिर्फ उन्हीं क्षणों में आदमी होता है, जब वह श्रमिक होता है। विनोबा ने कहाहै " श्रम करने में ही मानव की मानवताहै। "
- हर छोटा आदमी श्रम से नफरत करता है, और इसलिए ही छोटा होता है।
- कोई भी सफलता ऐसी नहीं है, जिसके पहले श्रम की जरुरत न हो।
- बिना श्रम किये कुछ चाहना, चोरी है।
- श्रम से घबड़ाते हो तो सफलता की आशायें भी छोड़ दो।
- तुम गुलाम हो यदि अपना पेट भी अपने हाथ से भरने की सामर्थ्य तुम में नहीं है।
- ईश्वर प्रेमहै, प्रेम में मिलताहै। हम प्रेममयहैं, वह स्वयं प्रेमहै।
- ईश्वर के प्रति प्रेम नहीं है, तो आदमी के प्रति भी प्रेम नहीं होगा।
- घृणा में शैतान का अनुभव होताहै, प्रेम में ईश्वर का।
- ईश्वर एकमात्र सत्य भीहै, असत्य भी, क्योँकि उसके सिवाय और किसी की सत्ता ही नहीं है।
- ईश्वर दूर नहीं है, पर दुर्लभ जरूर है। तू स्वयं जो ईश्वर है, इसलिए उसे खोजताहै पर उसे पाता नहीं !
- प्रीति की जितनी गहराई, ईश्वर की उतनी ही निकटता।
- अनासक्ति = ईश्वर की तरफ आसक्ति !
- पूर्ण सुखी वह है,जो पूर्ण अनासक्त है।
- अपने को पहचान और एक बार दुनियां को आंखे खोलकर देख, अनासक्ति तो अपने आप आती है।
- जो अब नहीं है, उसके लिए रोने मत लग। उसे उसी तरह भूलजा, जैसे वह कभी था ही नहीं। अनासक्ति यही है।
- तू जबतक वस्तुओं का मालिक बना हुआहै, आसक्त नहीं होसकता।
- दुनियां से कामले, उसे प्रेम कर पर उसका गुलाम मत बन।
- अनासक्ति आत्मा का प्रेमहै, आसक्ति शरीर का।
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![](/images/thumb/9/9f/Niklank_8.jpg/200px-Niklank_8.jpg) |
- अनासक्ति सिखाती है -- "शरीर में अपना उचित आसन ग्रहणकर। उसका सेवक नहीं, मालिक बनकर रह। शरीर के शाशन से मुक्त हो, स्व-राज्य प्राप्त कर। "
- अनासक्ति आसक्ति का विरोध नहीं है, आसक्ति का सुधर है। वह आसक्ति ही जिसके अंत में दुख का निवास नहीं है, अनासक्ति है।
- मेरी इच्छा के प्रतिकूल कुछ न हों और मेरी इच्छा एक हिहै कि मेरी सारी इच्छायें मिट जायें !
- प्रयत्नों की पूर्णता सिद्धि न लाये, यह नहीं होसकता। सिद्धि आने में देर होसकती है, पर देर से आने से ही वह अप्राप्यहै, ऐसा मान लेना कमजोरी है।
- असिद्धि सिर्फ इतना ही बताती है कि साधना पूरी नहीं थी।
- सिद्धि का रास्ता एक ही नहीं है, यदि एक बंद होगया है तो दूसरा खोज। बैठा ही मत रह। बैठने का रास्ता असिद्धि को छोड़ और कहीं नहीं जाता।
- जबतक तू मंदिर जाता है साधक है, जब मंदिर तेरे पास आने लगे तो तू सिद्ध होगा।
- पुरुष से पुरुषोत्तम हो जाना यही सिद्धि है।
- साधना के बिना क्या मिलताहै ? ईश्वर तो मिल ही नहीं सकता।
- ध्येय तो ध्यान पर निर्भर है, अडिग ध्यान, अंत में ध्येय को पा ही लेगा।
- मरना भी बिना ध्येय के नहीं होसकता, जीना तो हो ही कैसे सकताहै।
- ध्येय के बिना शरीर भला चले, आत्मा मृत ही रहेगी।
- ध्येय हमेशा ऊँचे चुन क्योंकि ध्येय जहां होताहै ध्यान भी वहीं रहताहै।
- हमारे विचार हमारा जीवन भीहैं। विचार वस्तुयें हैं, अर्नेस्ट ई. मंडे ने लिखाहै ;"वे अपने को रक्त-मांस में परिणित करते हैं, " इसलिए कुछ भी सोचने के पहले यह ठीक से विचारलो कि हमारे सारे विचार अंत में हमारा जीवन भी बनने को हैं।
- तुम जिन विचारोँ में आज हो एक दिन पाओगे कि तुम वही होगये हो। रामकृष्ण कहते थे "जो जैसा सोचताहै, वैसा ही बन जाताहै। "
- तुम्हारे विचार तुम्हारे जीवन के भविष्य के अग्रसूचक बनकर आतेहैं।
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- उन्हीं विचारों को ग्रहण करो जिन्हें ग्रहण करने के लिए तुम्हें कभी पछताना न पड़े।
- अपने को छोटा विचार कर कोई भी महत नहीं बन सकता। मिट्टी अपने को सोचते हो तो मिट्टी ही होरहोगे।
- दुनियां तेरे विचरों को तभी जान पायेगी, जब वे अपने को कार्यरूप में बदल लेंगे।
- राह देख और जो सोच रहाहै उसे पुरे विश्वास से सोचता जा और धीरे धीरे तू पायेगा कि तू उसे करने में भी लग गयाहै।
- विचार, प्रत्येक क्रियात्मक होताहै, सवाल तो तेरी कर्मण्यता या अकर्मण्यता काहै।
- विश्वास रख और विचार की पटरियां अंत में तुझे कार्य तक पहुँचा ही देंगी। बॉइस ने कहाहै, " विचार अमल में आकर ही रहताहै। "
- विचार से गहरा परिचय होने पर यह पता चलताहै कि उसका असली नाम विचार नहीं आचार है।
- अमल तो विचारों का है, वह नहीं जाताहै जहां विचार जाताहैं जहां विचार जातेहैं।
- सत्य मरता नहीं, उसे रौंधो, वह दुगनी ताकत से उठताहै। असत्य जीवित ही नहीं होता, उसे उठाओ वह भरभराकर मिट्टी में गीर जायेगा।
- सत्य पर चलो और ईश्वर की फिक्र छोड़ दो, क्योंकि ईश्वर सत्य को छोड़ कर कुछ भी नहीं है।
- मुझसे एक बार पूछा गया - "सत्य और ईश्वर में बड़ा कौनहै ? " मैंने कहा - " सत्य। क्योंकि ईश्वर न भीहो तोभी सत्य रहेगा, पर सत्य नहोतो ईश्वर किसी भी तरह नहीं रह सकता। "
- तुम्हरा वह मित्र तुम्हारा सब से बड़ा दुश्मनहै, जो तुमसे बार बार पूछताहै कि " क्या तुम आज बीमार हो ? तुम्हारी शकल तो देखो कैसी पीली पीली लगती है। "
- अर्नेस्ट ई मंडे ने लिखा है, " किसी मनुष्य से कभी यह मत कहो कि तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ सा मालूम देताहै, कुछ न कुछ खराबी अवश्यहै, . . (हां !) यदि तुम उसे मार ही ड़ालना चाहो तो बात दूसरीहै। "
- शरीर का अस्वास्थ्य चौगुना होजाताहै, जब अचेतन मन में हम उसे स्वीकार कर लेतेहैं। कभी स्वीकार मत करों कि तुम अस्वस्थ हो। सोचो की तुमतो स्वयं आरोग्य हो बीमारी तुम्हें छू ही कैसे सकती है।
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- अपने आपको अपने हाथ में रखो और अनुभव करो कि तुम क्याहो। शरीर के हाथ अपने को मत बेचो। शरीर के नखरों पर मन की स्वीकृति कभी मत दो। मन को स्वस्थ रख सकते हो तो यह शरीर की सामर्थ्य के बाहर है कि वह अस्वस्थ होजाये !
- शरीर तबतक कभी अपनी जराओं - जीर्णताओं को लेकर तुम पर नहीं छा सकता, जबतक अपने आप पर का अपना अधिकार तुमने खो नहीं दियाहै।
- मकान में घुसा पानी सुचना देताहै कि छप्पड़ टुटा हुआहै शरीर में घुसी बीमारियां बतातीहैं कि तुम्हारा मन उन्हें रोकने को अभी काफी मजबूत नहीं है।
- मन सेहीजो बीमार नहीं है, उसे मैंने कभी बीमार नहीं देखा।
- ऐकाग्रता सफलता के हजार मंत्रों का एक मंत्र है। तुम प्रत्येक वस्तु के बिना सफल होसकते हो, पर एकाग्रता के बिना कभी नहीं।
- अपनी सारी शक्ति को एक ही जगह इकठ्ठा करो। बहुतसे बिंदुओं पर बिखराकर तुम उसे नष्ट भला करलो कुछ पा नहीं सकते।
- एक ही कार्य पर जिसने अपने सारे जीवन को लगा दिया है उसकी सफलता अशक्य है।
- अपने सामने एक ही निशान रखो। जबतक उसे बेध नहीं लेते हो, तबतक उसके सिवाय अपने को कुछ मत दिखने दो। विवेकानंद कहते थे " रातदिन सपने तक में -उसी की धुन रहे, तभी सफलता मिलती है। "
- मन जबतक अशांत है तबतक एकाग्रता नहीं होती और जबतक एकाग्रता नहीं होती तुम व्यर्थ ही अपनी शक्ति को खोते हो।
- अमर जीवन के लिए अमृत चाहिए, सफलता के लिए एकाग्रता।
- कर्ज जबतक तूने नहीं लियाहै, तू गरीब नहीं है।
- कर्ज की जगह गरीबी ही बर्दाश्त कर। गरीबी उतनी बुरी कभी नहीं होती जितना कि कर्ज होता है।
- कर्ज का शक्कर चढ़ी जहर की गोली है, सिर्फ पहले ही मीठी लगती है।
- बाहर और भीतर एक बन। कपट ऐसी बुराई है जिसे कोई भी प्रेम नहीं कर सकता।
- बाहर और भीतर की एकता, ईश्वर की तरफ एक कदमहै।
- कथनी और करनी के विरोध को मिटा। इतना भी नहीं कर सकता तो अपने जीवन को मिटता देखने के लिए तैयार रह।
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- जिसकी जबान के पीछे हाथों की ताकत नहीं है, उसे मैं कभीभी जीवितों की श्रेणी में नहीं रख पाता हूँ।
- केवल शाब्दिक उपदेश हमेशा कमजोरी के प्रतीक होते हैं ] क्योंकि जो कर सकताहै वह कभी भी सिर्फ कहने तक ही नहीं रुका रहेगा।
- एक इटालियन कहावत है कि " कृतियां पुल्लिंग है, शब्द स्त्रीलिंग। " पौरुष का संबध कार्य से है। अपनी कृतियों से -- शब्दों से नहीं -अपनी बात दुनियां तक पहुँचना पौरुष है और महानता है। नेपोलियन कहता था कि " लफ्जों को जाने दो और कृतियों को जबाब देने दो। "
- दुनियां शब्दों से तूल सकती है, झुक नहीं सकती।
- दुनियां को झुकाने का रहस्य है कि अपने एक एक शब्द को स्याही से नहीं, अपने लहू की सुर्खी से लिखो।
- मेरा मन होता है कि मैं भी नेपोलियन के लहजे मेँ कहुँ कि " स्याही को जाने दो और लहू को जबाब देने दो। "
- लहू की एक बूंद, वह कर सकती है जो स्याही की लाख बूंदे भी नहीं कर सकती।
- बोलने मेँ अपनी शक्ति मत खो, जो करना है उसे करने मेँ लगजा।
- हजार बड़े पत्थरों से एक छोटा हीरा कीमती है, हजार बड़ी बातों से एक छोटा कार्य।
- मेरे एक साथी ने एक दिन सड़क से गुजरती अर्थी को देखकर मुझसे पूछा कि " आदमी मरते क्यों है ?
- "मैंने कहा -- " इसलिए कि जो शेष बचें वे भूल न जायें कि एक दिन उन्हेँ भी मरना होगा। "
- मौत जीवन का अर्थ है, मौत न होती तो जीवन भी अर्थहीन होता।
- मौत से घबड़ाओ मत। घबड़ाने से मृत्यु के आने के पहलेही जीवन मिट जाता है।
- जीवन का निनन्यावे प्रतिशत अस्तित्व मन मेँ है, सोचोगे कि " जीवन रहने के योग्य है तो रहने के योग्य होगा, नहीं तो रहने योग्य जीवन ही रहने योग्य नहीं हो सकता। "
- मेरे मन मेँ एक दिन ख्याल उठा कि " मैं नरक जाऊँ तो ? " आत्मा ने कहा " जीवित रहना जानते हो तो वहां भी शान से रह सकते हो।
- जितनों को जीवन मिलताहै काश ! उन्हेँ साथ मेँ जीवित रहने की कला भी मिली होती !
- ईश्वर न्यायी है, मैं इसे कैसे मानूँ ? उसने हमें जीवन दियाहै पर यह नहीं बताया कि जीवित कैसे रहा जाय ?
- कैसा दुख है कि जीवित रहने की कला सिखने मेँ ही जीवन पूरा
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![](/images/thumb/1/1c/Niklank_12.jpg/200px-Niklank_12.jpg) |
- हो जाता है।
- इमरसन ने कहाहै कि " जिंदगी बरबाद होती जातीहै जबकि हम जीने की तैयारी ही करते रहतेहैं। "
- जीवन की बुनियाद दो ईंटों पर है-उनमेँ एकका नाम प्रेम है, एक का आशा।
- मेरा विश्वास है कि आदमी जितने दिन दूसरों के लिए जिंदा रहताहै, उतने दिनों की बढ़ती उसकी उम्र में होजातीहै।
- अपनी इच्छाओं के वशीभूत होकर रहेगा तो कभी धनी नहीं होसकता अपनी इच्छाओं का मालिक बनकर रह गरीबी तेरे पास कभी नहीं फटगकेगी।
- निराश न हो। आज और कोशिश कर। ख़ुशी कहां छुपीहै इसे कौन जनताहै।
- अपने प्रत्येक " आज " को बना, नहीं तो अपने प्रत्येक " कल " को भी नष्ट हुआ समझ।
- जीवन कितना ही बुराहो पर वह एक स्कूल जरूर है और उनके लिए जो उससे फायदा उठा सकते हैं इतना ही कुछ काम नहीं है ! मेरा संकल्प है की जीवन कितना ही बुरा हो पर यदि मुझे कुछ सिखा सकताहै तो मैं कभी भी मरना पसंद नहीं करूँगा।
- जीवन की उदासी, जीवन मेँ नहीं तेरे मन में होतीहै क्योंकि उसी जीवन में, मैं दूसरों कों मुस्कुराते भी देखता हुँ।
- जीवन जिस स्वर्ण सूत्र से जीवित रहताहै उसका नाम उदासी नहीं, मुसकान है। जीवित रहना है, तो प्रत्येक मुश्किल पर मुसकराने की आदत ड़ाल।
- क्रोध जब सिर पर होताहै, विवेक धूल में गिर जाताहै।
- प्लूटकि ने लिखाहै कि " क्रोध समझ दारी को घर से बहार निकल देता है और दरवाजे की चटकनी बंद करदेताहै। "
- क्रोधित होना अपने ही हाथ से अंधा और बहरा होजानाहै क्योंकि क्रोध न अपने सिवाय किसी और की सुनताहै और न किसी अन्य को देखताहै।
- शेक्सपियर ने लिखा है कि " आदमी क्रोध मेँ समुन्दर की तरह बहरा और आग की तरह उतावला होजाताहै। "
- क्रोध से बच और फिर नरक तेरे लिए नहीं होसकता, कयोंकि नरक का ताला सिर्फ क्रोध की चाबी से ही खुलताहै।
- क्रोध आना ही नही जड़ताहै, क्रोध को रोक लेना ईश्वरीयत है।
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- दूसरों पर भरोसा मुर्खताहै। भरोसा सिर्फ अपने पर रखो। अपने पर भरोसा ही ईश्वर पर भरोसा है।
- ईश्वर सहायता सिर्फ उसकी करेगा, जो सहायता के लिए किसीका मुहताज नहीं है।
- वह तेरे भीतर है जो तेरी सहायता करेगा, एकबार तमाम बाहरी सहायता से आंखें फेरकर उसे देख।
- सहायता कौन किसी कर सकता है ? सभी तो यहां भिखमंगेहैं !
- अपने शेयर जबतक तू नहीं खड़ाहै, तू गिरे होने की हालतसे भी बदतर हालत में है।
- जो अपने सहारे खड़ाहै, उसके लिए असंभव क्याहै ?
- वह, जो पूर्णतः स्वावलम्बीहै, पूर्णतः स्वतंत्र भीहै।
- ऊपर उठताहै तो खुद ही अपने को अपनी सीढ़ी बना। किसी दूसरे के मरने से तुझे स्वर्ग नहीं मिलेगा।
- जिन्दगी उनके लिए, जो दूर से खड़े स्वप्निल आंखों से उसे देखते हैं, एक मीठा संगीत है पर वे जिनपर से अपने कांटों को लिए वह गुज़रतीहै, अच्छी तरह जानते हैं कि उसकी धार कितनी जहरीली और पैनी है !
- होरेस वाल्पूल के एक पत्र मेँ एक पंक्ति है कि --"यह दुनियां उनके लिए है जो सोचते हैं एक "कॉमेडी "है और उनके लिए जो अनुभव करते हैं एक "ट्रेजेडी " ! "
- मुझे विश्वास है की जिंदगी आज जो कुछ है, मौत उससे बदतर नहीं हो सकती।
- जिन्दगी पूछकर नहीं आती, नहीं तो उसे लेने तैयार कौन होता !
- हम जिंदा रहते हैं कयोंकि मरने की हिम्मत हममें नहीं होती।
- मुझसे एकबार पूछा गया "जिंदगी क्याहै ? मैंने कहा --" मौत से बदतर जो कुछ है ! "
- दुनियां में जिंदगीहै, पर जिंदा रहने की सुविधायें नहीं हैं।
- मदद करने का सामर्थ्य आदमी का सबसे बड़ा धनहै और कोई भी आदमी इतना गरीब नहीं है कि वह जरूरत के समय किसी की मदद न कर सके।
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![](/images/thumb/9/95/Niklank_14.jpg/200px-Niklank_14.jpg) |
- मदद के बदले में कुछ मांगना मदद देना नहीं है।
- दूसरों की मदद में तू ईश्वर के मंडीर के बहुत निकट होताहै।
- ईश्वर देखताहै। तूने दूसरों को कितनी सहायता दी, उतनी ही सहायता तुझे भी मिलेगी।
- समाज की आत्मा में अपनी आत्मा को देखे बिना तू किसी की सहायता नहीं कर सकता।
- सहायता दे पर सहायता मांग मत ! खुद भिखमंगा होकर तू दूसरों को क्या देगा ?
- ज्ञान को नहीं अपने अज्ञान को याद रखो क्योंकि उसे मिटाना है। अपने अज्ञान को भूल जाना उसे कभी न मिटाने की कसम लेना है।
- दुनियां को बहुत याद रखना, ईश्वर को भूल जाने से ही संभव होताहै। अपने आप को याद रखने के लिए दुनियां को भूलभी जाना पड़े, तोभी मेरी सलाह है की उसे भूल जा।
- दुनियां से जबतक तू नहीं मुड़ेगा, अपने आप को नहीं देख सकता।
- स्वर्ग पीठ के पीछेहै, उसे देखने के लिए इस दुनियां की तरफ पीठ करनीही होतीहै।
- ईश्वर ने आदमी को एक ही तरफ आंखें दीहै। इसलिए यह नहीं होसकता की तू बाजार भी देखे और " उसे " भी देखे। एक ही कुछ होगा। ईश्वर की दुनियां चुन या इस दुनियां को चुनले।
- उस सबको स्मृति में लिये फिरना जो व्यर्थ तुम्हें चिंतित बनाये निहायत मूर्खतापूर्णहै। मेरी सलाह है, कि चिंताओं को छोड्ने की आदत डालो क्योंकि मैंने देखाहै जो चिंताओं को छोड़ देते हैं, चिंताये भी उन्हें छोड़ देतीहैं।
- बिस्तर पर चिंताओं को लेजाना, अपने को चिता पर लेजाने की तैयारी करने से भी बुराहै।
- चिंता जीवन में ही मृत्यु का स्वाद देतीहै !
- तेरे पास चिंतायें नहीं हैं, भला तेरे पास और कुछ भी न हो तो भी तेरा जीवन बहुत ज्यादा सुखी होगा जिनकी तिजोड़ियां सोने से भरीहैं और मन चिंताओं से।
- एक बहुत सुन्दर अरबी कहावत है कि " बेफिक्र दिल, भरी थैली से हमेशा अच्छा है। "
- चिंता धीमी आत्महत्या है। चिता और चिंता में एकही अंतर है, चिता एकदम जलातीहै, चिंता धीरे धीरे।
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![](/images/thumb/8/81/Niklank_15.jpg/200px-Niklank_15.jpg) |
- दुनियां का नियम आदमी की असफलतायें और दोष खोजता है। ईश्वर न भूलें गिनताहै, न दोष, न असफलतायें -- उसकी दॄष्टि लगन और अध्यवसाय पर रहतीहै।
- श्रम और आत्मविश्वास से बड़ी प्रार्थना ईश्वर की दूसरी नहीं है।
- एक डग और किसी ने कहा है " होसकताहै तेरा मोती एक और गोते इंतजार कर रहा हो ! "
- असफलता आधी दूर से ही लौट आने के सिवाय और कुछ भी नहीं है।
- लगन का जादू मन में हो तो इस कठिन दुनियां में भी असहज - असंभव कुछ भी नहीं है।
- असंभवों को संभव बनाना है तो मन में लगन पैदा कर।
- अथक लगन नहीं तो पागल! तेरे पास है क्या, जिसे तू जिंदगी कहेगा ?
- अध्यवसाय के बिना आशायें "मुर्ख के स्वर्ग " को छोड़कर क्याहैं ?
- उस मनुष्य या समाज को सभ्य कभी नहीं माना जासकता जिसकी दॄष्टि में अपनी उन्नति करने का अर्थ अपने पड़ौसी के अनिष्ट की कल्पना पर आधारित हो।
- मेरी दुष्टि में सभ्यता का एक ही रूपहै कि हर व्यक्ति अपने पड़ौसी के स्वार्थों के लिए अपने स्वार्थों को कुर्बान करना सीख जाये।
- मैं जब भी आज की "सभ्यता "को देखताहूँ तो मुझे लगताहै की असभ्यता सभ्यता नहीं हुईहै, सिर्फ असभ्यता करने के रास्तेपर "सभ्य" होगयेहैं !
- आत्मा, ईश्वर है - माया में अपनी इच्छा से भुला हुआ, भटका हुआ। प्रत्येक घर उसका ड़ेराहै, पर कोई भी ड़ेरा उसका घर नहीं है।
- " मैं आत्माहूँ " यह विचार नहीं है, अनुभव है।
- आत्मा से बड़ा क्याहै ? कुछ भी नहीं।
- विक्टर ह्यूगो ने लिखा है - "समुद्रों से बड़ी एक चीजहै और वह है आकाश, आकाश से बड़ी एक चीजहै, वह है मनुष्य की आत्मा।"
- आत्मा बातों से नहीं, कार्यों से प्रगट होतीहै।
- विनोबा ने कहाहै - "आत्मा का अस्तित्व" ये शब्द पुनरुक्त हैं कारण कि आत्मा माने, अस्तित्व। "
- आत्मा बड़ी न हो तो शरीर का न होना ही बेहतर। गेटे ने कहाहै " आत्मायें जिनकी छोटी होतीहैं, पाप उनके बड़े होते हैं। "
- शरीर सबका दीखताहै पर आत्मा कम की ही दिखतीहै।
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15 |
![](/images/thumb/1/13/Niklank_16.jpg/200px-Niklank_16.jpg) |
- आत्मा सक्रियहै,चल है तो उसके सामने पहाड़ भी अचल नहीं हो सकते।
- आत्मा क्या नहीं कर सकती ? और जिसे आत्मा नहीं कर सकती उसे फिर आखीर करेगा कौन ?
- कार्य जिस दरवाजे से बहार होताहै, शैतान उसी दरवाजे से भीतर आताहै।
- कर्मण्ता महानता भी है। दिव्यता भी।
- तेरा मूल्य उतना नहीं है जितने तेरे विचार हैं, तेरा मूल्य उतना हीहै,जितनें तेरे कार्य हैं।
- वही कह जो करताहै और वही सोच जो कर सकताहै।
- सुन्दर रूप से कोई श्रेष्ठ नहीं होजाताहै। श्रेष्ठता आत्मा की चीजहै शरीर की नंहीं।
- इब्न -उल -वर्दी कहते थे कि "तलवारें फलों से परखी जाती हैं,म्यानों से नहीं। मनुष्य की श्रेष्ठता को ग्रहण कर न कि उसके वस्त्रों को।"
- दर्पण के सामने कौन सुन्दर नहीं होता और कौन मुर्ख नहीं होता !
- अपने आप को सुन्दर समझने का जबंतक संबंधहै, कोई गधा अपने को असुन्दर नहीं समझता होगा।
- श्रेष्ठतम चरित्र ही, एकमात्र सौंदर्य है।
- तेरे पास जो कुछ है उससे असंतोष और तू जो कुछ है उससे संतोष, दोनों ही घनी मूर्खता के चिन्ह हैं।
- असंतुष्ट आत्मा विकास की मां है।
- गलती करने वाले के प्रति कठोर होना, उसकी गलती को और बढ़ावा देना है।
- कठोरता स्वयं की बीमारीहै और कोई भी बीमारी किसी अन्य बीमारी को अलग नहीं कर सकती।
- गलती करने वाले के प्रति यदि तू कठोर है तो तू स्वयं ही एक गलती कर रहाहै।
- कठोर होना तो सबसे पहले अपने दोषों की तरफ हो।
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16 |
![](/images/thumb/7/76/Niklank_17.jpg/200px-Niklank_17.jpg) |
- कठिनाइयां शरीर को भला तोड़तीहों, आत्मा को मजबूत ही करतीहैं।
- कठिनाइयां उसी मात्रा में कठिन होतीहैं, जिस मात्रा में हम कमजोर होते हैं।
- कठिनाइयों के बिना कौन जान सकताहै कि उसके शरीर में भुस भरी है या फौलाद ?
- नेहरू ने लिखा है - "कठनाइयां हमें आत्म ज्ञान करातीहैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं। "
- मैंने ऐसी कोई कठिनाई नहीं देखी जो इतनी कठिन हो कि हल हो ही न सके।
- तुम महज " खेत के धोखे " ही तो नहीं हो, मुश्किलें तुम्हें इसका ज्ञान करा देंगी।
- सोचते जो कुछ हो वही कहो भी। सोचना कुछ और कहना कुछ अपना ईमान खोना है।
- एक फ्रांसीसी कहावत है - जो निश्चय ही किसी बेईमान मस्तिष्क की उपज है -जो कहतीहै कि " सोचो जाहे जो कुछ, कहो वही जो तुम्हें कहना चाहिए ! "
- मेरी सलाह है कि सोचो भी वही जो तुम कह सकते हो। उसे सोचो ही मत जिसे तुम कह नहीं सकते और जिसे तुम समझते हो कि कहना नहीं चाहिए, उसे सोचना तो निश्चय ही पापहै।
- एक शब्द भी अपने मुँह से ऐसा मत निकालो, जिसे तुम अपनी मां के सामने नहीं निकाल सकते।
- कुछ भी बोलो तो याद रखो कि ईश्वर बहरा नहीं है !
- अपशब्द आत्मा की सडांध से पैदा होते हैं, जब कोई उनका उपयोग करताहै तो अपनी छुपी गंदगी को प्रगट कर देताहै।
- तेरे शब्द तेरी आत्मा की गहराई को बताते हैं। उनका उपयोग बहुत सोच समझकर, कर।
- तेरे शब्द बता सकते हैं कि तेरे शत्रु ज्यादा हैं या मित्र !
- कोई दिल इतना पत्थर नहीं है, कि मीठे शब्द उसे छुयें और उसमें संगीत न भर आये।
- जीवन में बहुत अकड़कर मत चलो। मुतनब्बी ने लिखाहै कि " हर आदमी को अपनी कब्र में ऐसे लेटना होताहै कि वह अपनी जगह पर करवट भी नहीं ले सकता ! "
- जीवन पर जब बहुत फूलने की उमंग उठे, तो उनको याद कर जो अब कब्रों में हैं !
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17 front |
![](/images/thumb/6/6b/Niklank_18.jpg/200px-Niklank_18.jpg) |
- गुलामी भय की दूसरी शक्लहै, जो किसीसेड़रताहै, वह आजाद नहीं होसकता। मैंने एक पत्र में लिखाहै "आजादी याने अभय। "
- स्वच्छंदता स्वतंत्रता नहीं है, वह हमेश सबको, एक की गुलामी की तरफ ले जाती है।
- सच्ची आजादी का अर्थहै, भीतर के बंधनों से आजादी,इन्द्रियों की गुलामी से मुक्ति।
- सबके लिए आजादी का अर्थहै प्रत्येक के लिए उतनी ही आजादी जितने से किसी दूसरे की आजादी को चोट न पहुँचे।
- लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या जिंदगी रहने के योग्यहै। मैं अपना जबाव हमेशा एक दूसरे प्रश्न में देताहूँ कि " क्या कभी तुमने जिंदगी को रहने योग्य बनाने की कोशिश कीहै ! "
- जिंदगी उसकी है जो जिंदगी के लिए मर सकताहै।
- जिंदगी क्या है ? हम उसे बसर करते हैं, पर जानते नहीं !
- जिंदगी जब गुजर जातीहै तब जीने की कला का ज्ञान आताहै !
- मुसकरा सकते हो तो जिंदगी बहुत छोटीहै नहीं तो बहुत लम्बी।
- बेकन ने कहाहै - " ऐ जिंदगी, दुखी के लिए तू एक युगहै, सुखी के लिए एक क्षण ! "
- जिन्दा रहनहै तो इसतरह जिंदा रहो कि जैसे तुम्हें कभी मिटना ही न हो !
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17 back |
![](/images/thumb/b/ba/Niklank_18_back.jpg/200px-Niklank_18_back.jpg) |
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18 |
![](/images/thumb/5/59/Niklank_20.jpg/200px-Niklank_20.jpg) |
- दूसरों की बुराई कहने से भी होसकतीहै पर भलाई बिना किये कभी नहीं होसकती।
- सुनने वाले बुरा सुनना बंद करदें, बुरा बोलने वाले अपने आप बंद होजायेंगे। जबतक यह नहीं होताहै, बुरा बोलने वालों की फसल भी कम नहीं होसकती।
- बुरा करने की प्रवृति ही इतनी बुरीहै कि उस अकेली नेही जितना बुरा तुम्हारा कियाहै, उतना बुरा भी तुम दूसरों का उससे नहीं कर सकते !
- अपने को भी खरोंच पहुँचाये बिना किसी का बुरा कियाही नहीं जा सकता।
- देसमहिस ने कहाहै - "हम खुद अपना बुरा किये बगैर किसी का बुरा नहीं कर सकते। "
- दूसरे हमारा बुरा करते हैं, करने दो, सवाल तो हमें उसका बुरा लगने या न लगने काहै !
- बुराई के बदले बुराई का अर्थहै, भोंकने के लिए भोंकना। कुत्तों के साथ कुत्ते होजाना।
- बुराई के बदले में बुराई दोगे तो बुराई दुगनी होकर लौटेगी।
- बुराई के आने का दरवाजा, बुराई के बदले में भलाई किये बगैर कभी भी बंद नहीं किया जासकता।
- बुराई किसके साथ? बुराई के लिए सोचने का अर्थहै, हम अपने को नहीं जानते, ईश्वर को नहीं जानते !
- बुराई झूठीहै तो उसकी फिक्र क्या ? सचहै तो वह बुराई ही नहीं है !
- सबसे बड़ी बुराई आदमी तब करताहै, जब सारी दुनियां की कीमत पर भी अपनी भलाई चाहताहै।
- आदमी जब भलाई में होताहै, ईश्वरमें होताहै।
- सिसरो ने कहाहै कि " मनुष्य देवों से किसीबात में इतने ज्यादा नहीं मिलते जुलते, जितने की लोगों की भलाई करने में।"
- भला होना भगवन होनाहै, भला दिखना शैतानियत है !
- जो किसी का भला नहीं कर सकता, वह बुरा करने से भी नहीं रुकेगा।
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![](/images/thumb/a/a6/Niklank_21.jpg/200px-Niklank_21.jpg) |
- उपदेश देने की बजाय, उपदेश ग्रहण करने की शक्ति अपने में पैदा करना, ज्यादा श्रेष्ठ और उपयोगीहै।
- ईश्वर ने भी आदमी को जब एक ज़बान और दो कान दिए थे तो उसकी इच्छा यही रही होगी कि बोलना कम और सुनना ज्यादा !
- जिसका साथ उसकी स्वयं की ज़बान नहीं देती उसका साथ इस दुनियां में कौन देगा ?
- अपनी ज़बान के गुलाम मत बनो, ज़बान वश में न हो तो इस दुनियां में आदमी की तरह जिंदा रहना बहुत मुश्किलहै !
- लुकमान कहते थे कि " पशु का कष्ट है की वह बोल नहीं सकता और आदमी का कि वह बोल सकताहै ! "
- बहुत बोलना ताकत का नहीं हमेशा कमजोरी का प्रतिक है, जो थोड़े में अपनी बात कहने का सामर्थ्य रखते हैं, वे कभी ज्यादा नहीं बोलते।
- मुँह से निकली बात कभीभी वापिस नहीं लौटाई जासकती इसलिए हमेशा कुछ भी बोलने के पहले दो क्षण सोच लेना बुरा नहीं है।
- ज़बान जब एक बार फिसल जातीहै तो यह आदमी की ताकत के बहार है कि वह उसे वापिस लौटाले।
- मूर्ख और बुद्धिमान में सिर्फ ज़बान के नियंत्रण का अंतर है। मूर्ख की जबान उस जंगली जानवर की तरह होतीहै, जिसका लगाम से कोई परिचय ही नहीं है!
- उतना ही बोलो, जितना बोले बिना बन ही न सके।
- ईश्वर ने जब खाली दिमाग का निर्माण किया तो उसकी रक्षा के लिए मरी ज़बान का निर्माण भी उसे करना पड़ा !
- बोथा दिमागहो और संयत ज़बान हो - ऐसा कभीहोही नहीं सकता।
- मूर्ख बोला कि बाजार में आया। मूर्ख के लिए मौन से बड़ा साथी कोई भी नहीं है।
- ज़बान ज्यादा चली कि हाथों को भी चलवा देगी!
- ज़बान एक अजीब चीजहै, उसमें एक तरफ धार है, एक तरफ मलहम चाहो तो जख्म कर भी सकते हो, चाहो तो मिटा भी सकते हो !
- ज़बानकी कुल लम्बाई कितनी है? पर उससे मजबूत से मजबूत दिल भी टुकड़े टुकड़े किया जा सकता है!
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![](/images/thumb/f/f5/Niklank_22.jpg/200px-Niklank_22.jpg) |
- घृणा स्वर्ग को नरक बना देगी। प्रेम नरक को स्वर्ग।
- वह, जो प्रेम से भी नहीं किया जासकता, किया ही नहीं जासकता।
- ईश्वर का आदेश एक हीहै कि दूसरों को भी अपनीही तरह प्रेमकर।
- प्रेम में मिलकर जहर भी अमृत होजाताहै।
- प्रेम-रहित जीवन, जीवन रहित शरीर है।
- अनासक्ति अप्रेम नहीं है। अनासक्ति प्रेम है सब की तरफ, एकसा, एकसमान। आसक्ति एक को छोड़ सबकी तरफ अप्रेम है।
- प्रेम की भाषा सारी दुनियां में एक हीहै, कुर्बानी की।
- तुम उसे घृणा नहीं कर सकते जो तुम्हें प्रेम करताहै।
- ईश्वर को जानेवाला रास्ता कौनसा है? " अपने आप को छोड़कर सबको प्रेमकर। "
- एकान्त मन से होताहै। मन में वासनाओं की भीड़ रखकर ईश्वर के ह्रदय मेंभी एकान्त नहीं पाया जासकता।
- एकान्त यदि तेरी वासनाओं को उभाढ़ताहै,तो उससे तो भीड़ में रहना ही भला !
- एकान्त अपने आप में वांछनीय नहीं है क्योंकि वह तुम्हें जानवर भी बना सकताहै और ईश्वर भी।
- किसी ने कहा है कि "जो एकांत में खुश रहताहै वह या तो पशु है या देवता ! "
- मेरा मन जब एकांत में होताहै तो बाजारों में भीड़ मुझे दिखती ही नहीं !
- एकांत में तू जो कुछ होताहै, वही तेरा सच्चा स्वरूप है।
- आत्मा से जब किसी का उपदेश का जन्म होताहै, तो उसके साथ कार्य भी पैदा होताहै। निष्क्रिय उपदेशों ने कभी भी आत्मा से जन्म नहीं पाया।
- आत्मा की ताकत जिस उपदेश के पीछे होतीहै, वही आत्माओं पर असर कर सकताहै।जबान से जन्म पाये सिद्धांतों की दौड़ कानों से आगे तक कभी नहीं होती।
- उपदेशक लोगों से कहेगा कि थोड़ा बोलो यही बुद्धिमानीहै और स्वयं इतना बोलेगा कि लोगों को स्वयं उसकी बुद्धिमानी पर शक होउठे !
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![](/images/thumb/b/b1/Niklank_23.jpg/200px-Niklank_23.jpg) |
- जीवन का उद्देश्य आदमी को यह ज्ञात कराना है कि वह जानवर नहीं है, अदमीहै,पर उसे आदमी ही नहीं रहना है। ईश्वर बनने का रास्ता उसके सामने खुला पड़ाहै।
- आदमी का अंतिम उद्देश्य ऐसे जीवन की खोजहै जहां और उद्देश्य नहीं रह जाते !
- सीढ़ी ऊपर भी लेजातीहै और नीचे भी। रास्ता भी दोनों काम कर सकताहै सवाल यह है कि आदमी का मुँह किस तरफ है!
- जिस रास्ते तेरा ईश्वर चले, उसी रास्ते तू भी चल।
- सारे रास्तें व्यर्थहैं,केवल आत्मविश्वास का मार्ग ही ईश्वर तक जाता है।
- आत्मविश्वास नहीं तो कुछ भी नहीं।आत्मविश्वासहै तो कोई भी रास्ता तुझे उसतक पहुँचा देगा।
- रास्ते स्वयं तो निर्जीव हैं,आत्मविश्वासही उनमें प्राण ड़ालताहै।
- तुझे सबसे सरल मार्ग वही होगा, जो तेरा मन तुझे सुझाये।
- तुम मुझे चाहे जितनी गालियां दो मैं हमेशा उनका स्वागत करूँगा क्योंकि गालियां यदि झूठी भी हों तो भी उनमें झूठी प्रशंसा की तरह नीचे लेजाने का दुर्गण नहीं होता।
- गाली देना हितना जितना बड़ा दुर्गण हैं, गाली लें उससे छोटा नहीं।
- गाली दे सभी सकते हैं,सुन सिर्फ ईश्वर सकताहै !
- हाथ जहां कमजोर होते हैं, जबान सामने आजातीहै। मैंने कभी किसी ताकतवर को गाली देते नहीं देखा।
- दुर्वचन बोलकर तू अपनी गहराई बताताहै, सहकर मैं अपनी बताताहूँ।
- बुद्ध ने कहाहै कि " दुर्वचन पशुओं तक को नागवार होते हैं। " मेंरा विश्वास है की दुर्वचन सिर्फ "पशुओं "को ही नागवार होते हैं - जो जितना पशुहै उसी मात्रा में दुर्वचन भी उसे असहनीय होंगे !
- आदमियत पशुता पर जितनी जीत चलतीहै, दुर्वचन सहने की ताकत का भी विकास होता है।
- दुर्वचन इसलिए मत सहो कि तुम कमजोर हो। कमजोरी के कारण दुर्वचन सहना, दुर्वचनों को "ईंट का जवाब पत्थर" की भाषा में देने से, कहीं लाख दर्जे बुरा कामहै !
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![](/images/thumb/0/00/Niklank_24.jpg/200px-Niklank_24.jpg) |
- जीवन ठीक वैसा ही होताहै जैसा तुम उसे बनाते हो। भाग्य की रेखाओं से मैं इंकार नहीं करता,पर तुम्हारे अपने भाग्य की रेखाओं के निर्माता तुम स्वयं होते हो, अन्य कोई दूसरा नहीं।
- भाग्य की चाल तुमसे जयादा कभी नहीं होसकती। तुम सुस्तहो तो भाग्य तुमसे दुगना सुस्त होगा।
- अभाग्य एक ही है, कुछ न करके, भाग्य की रेखाओं से ही सब कुछ चाहना।
- अभागों को देखो,तुम उन्हें हमेशा भाग्य में विश्वास करते पाओगे !
- जवानी का उम्र कोई रिस्ता नहीं है। जवानी अपने कार्य में दृढ़ता और कुर्बानी का नाम है।
- तुम उतने ही जवान हो या बुढ्ढे, जितना तुम अपने को सोचते हो।
- भूलें सभी से होतीहैं। महान व्यक्ति भी भूलें करते हैं पर वे उनसे इंकार नहीं करते। भूलें करके उनसे इंकार करना अपने विकास का पथ रोकना है।
- सबसे बड़ी भूल क्याहै ? भूलों के ड़रसे कार्य में हो न उतरना।
- प्रकाश को प्रेम करना सीखो। अंधेरे से नफरत पापों से नफरत है। प्रकाश का प्रेम तुम्हें प्रकाश की तरफ लेजायेगा।
- इंजील कहतीहै कि "मनुष्य अंधकार को प्रकाश से अच्छा समझते हैं क्योंकि उनके कर्म दूषित हैं ; प्रत्येक बुरा आदमी प्रकाश से घृणा करता है जिससे उसके बुरे कर्म प्रगट न हों। "
- प्रकाश बढ़ताहै, "मैं " मिट चलताहै। "मैं " अंधकार है, "वह" प्रकाशहै।
- प्रकाश तू स्वयं है, बाहर की खोज में अंधकार ही मिलेगा क्योंकि बाहर "वह " है ही नहीं।
- रात्रि से सुबह की तरफ बढ़। ईश्वर तेरी तरफ बढ़ेगा।
- दुनियां के दीप के बुझे बिना,ईश्वर का दीप नहीं जलता।
- छोटी आत्मायें प्रकाश में भी नहीं दिखतीं, महान अंधेरे में भी चमकती हैं।
- विश्वास जीवन का प्राण है। नास्तिक भी विश्वास से बच नहीं पाता " ईश्वर नहीं है " इसमें उसे उतना ही अंधा विश्वास होताहै जितना किसी नास्तिक को इसमें कि " ईश्वर है। "
- विश्वास होता है,इसलिए हम होतें हैं, विश्वास नहीं होगा तो
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![](/images/thumb/6/6e/Niklank_25.jpg/200px-Niklank_25.jpg) |
- हम भी नहीं होंगे।
- ईश्वर जब मन में भर आताहै, अविश्वास अपने आप मिट जाते हैं।
- विश्वास बीजहै, सफलता फलहै।
- ईश्वर का विश्वास यदि अपने पर अविश्वास बनताहो तो इससे जहरीली बात और कोई नहो होसकती। अपने ईश्वर के विश्वास को अपनी आत्मा का विश्वास बनाओ।
- अपने आप पर जिसने विश्वास खोदियाहै, दुनियां भी उसपर विश्वास खो देगी।
- अपने पर अविश्वास ही एकमात्र नास्तिकताहै।
- काम नहीं करना है तो उसका सबसे सीधा रास्ताहै कि उसे अपने साथी पर छोड़ दो।
- आदमी की पहचान है कि बिना ड़र और भय के जो सत्यहै उसे कहदे।
- ज्ञान जबतक कार्य में नहीं बदलता तबतक व्यर्थहै। निष्क्रिय ज्ञान और अज्ञान में अंतर ही क्याहै ? मेरी दृष्टी में क्रियात्मक ज्ञान ही एकमात्र ज्ञान है।
- दो वस्तुओं का बहिष्कार जरुरी है - क्रियात्मक अज्ञान का और निष्क्रिय ज्ञान का।
- जबतक ज्ञेय और तू भिन्न है, तबतक ज्ञान का आभास मात्रहै, ज्ञान नहीं।
- ज्ञान में ज्ञाता और ज्ञेय अलग नहीं रह पाते।
- ज्ञान सत्य को और तुझे एक कर देगा। जो यह न कर सके और सत्य में और तुझमें अंतर शेष रखे,वह और कुछ भीहो, ज्ञान नहीं होसकता।
- ज्ञान अंत नहीं है, ज्ञान पथहै, अंत ईश्वर है।
- ईश्वर का ज्ञान ईश्वर के लिएहै, उससे दुकान कभी नहीं चल सकती।
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![](/images/thumb/4/4c/Niklank_26.jpg/200px-Niklank_26.jpg) |
- मैं किसी को क्या उपदेश दूँ। मैं किसीसे कुछ कहने में भी ड़रताहूँ क्योंकि मैं इतना भी तो नहीं जानता कि मैं स्वयं कौन हूँ ?
- अपने मैं को जान लेना, विश्व और ईश्वर को जानने की तरफ पहला और अंतिम चरण है।
- आदमी कभी निरुत्तर नहीं होता। उसने गणित के बड़े बड़े सवाल हल है किये हैं और आकाश की लम्बाइयां -चौड़ाइयां नाप ड़ालीहैं पर उससे जब कोई पूछ बैठताहै कि -"तू कौनहै ? " - तो उसका सारा ज्ञान व्यर्थ होजाता है !
- मैं एक ही प्रश्न को जानता हूँ और एकही उत्तर को नहीं जनता किं " मैं "कौन हूँ ?"
- आजादी बहुत दिन हुए तब मर गई, आज तो बस दो तरह की गुलामियां ही रह गई हैं,एक रंगीली-सजीली, एक रूखी स्पष्ट !
- आज की आजादी सिर्फ पेटभरों का नखराहै। गरीब कहीं भीहो, हर जगह गुलामहै।
- भूखा पेट सबसे बड़ी गुलामीहै। जबतक दुनियां में भूखे पेट हैं, आजादी नहीं आसकती।
- आर्थिक आजादी के बिना, राजनैतिक आजादी धोखा है।
- मेरी दृष्टी में उस आजादी से जिसका रास्ता गुलामी की तरफ जाताहो वह गुलामी लाख दर्जा बेहतर जिसका इशारा आजादी की तरफ होताहै !
- आदमी आजादी का इतना भूखाहै कि उसके लिए गुलाम भी होसकताहै !
- आदमी ने बुलबुल को पिंजड़े में बंद कर दिया और फिर उस गरीब से कहा कि गा ! अब तू अपने गीत गाने को बिल्कुल आजाद है !
- गुलामी और आजादी दोनों में से कोई भी बाहर से नहीं आती, जो तुम्हारे भीतर होतीहैं वही तुम्हें बाहर मिलतीहै।
- वे मूर्खहैं जो चिल्लाते हैं कि हमें आजाद करो क्योंकि स्वयं उनके सिवाय उन्हें कोई भी आजाद नहीं करसकता।
- जो आजाद होने की लिए भी दूसरों का सहारा खोजताहै,वह सिर्फ गुलामियां बदल सकताहै,आजाद नहीं होसकता।
- दुनियां में सिर्फ गुलाम ही, गुलाम होतेहैं, जो आजाद होतेहैं वे यातो आजाद होतेहैं या होतें ही नहीं !
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![](/images/thumb/9/94/Niklank_27.jpg/200px-Niklank_27.jpg) |
- जीवन का व्याकरण न हो तो शब्दों का व्याकरण व्यर्थ है। चरित्र जीवन का व्याकरण है - चरित्र स्वयं जीवन है !
- कन्फ्यूशियस कहा करते थे कि, " उत्तम व्यक्ति शब्दों में सुस्त होता है और चरित्र में चुस्त ! "
- शब्दों की सुस्ती से कुछ नहीं बिगड़ता पर चरित्र की सुस्ती वह सब कुछ व्यर्थ कर देती है जिसके लिए यह जीवनहै !
- चरित्र खोकर धनि बनना दो पैर से चार पैर की दुनियां की तरफ लौटना है !
- चरित्र में वह सबकुछ आजाताहै, जो मनुष्य में पूजनीयहै।
- चरित्र वह झरोखाहै, जहांसे ईश्वर आदमी में झांकताहै !
- चरित्र नहीं तो कुछ भी नहीं। चरित्र जीवनहै। चरित्र ही न रहा तो मेरे रहने का ही क्या अर्थ ?
- चरित्र के लिए सब कुछ खोना पड़े तो खो दो. पर चरित्र किसी के लिए मत खोओ।
- तुम आदमी हो -- क्यों ? -- सिर्फ इसलिए कि तुम जानते हो कि तुम्हें ईश्वर बनना है - और आदमियत तुम्हारी आखिरी मंजिल नहीं है !
- अपने दोष को बड़ा मानना उसे मिटाने का पहला प्रयत्नहै। महान व्यक्ति अपने किसी भी दोष को छोटा नहीं मानते।
- जो महानरूप से छोटों से छोटों के सेवक नहीं हैं, वे महान भी नहीं है !
- एक विचार, एक निश्चय, और जीवन के मूल्य पर, मिटकर भी उसे पूरा करने की लगन -- महानता इनके जोड़ से बनतीहै।
- सत्य महानतम है, महानता खोजनीहै तो उसे खोजो।
- महानता शत्रु नहीं ; शत्रुता मिटातीहै। आजतक कोई भी शत्रुताओं को मिटाकर महान नहीं बन सका !
- महानता अपने रूप से महान होने में ही है। "कॉर्बन कापिया " महान नहीं होसकतीं।
- जॉनसन ने कहाहै -- "आजतक कभी कोई आदमी नक़ल करके महान नहीं बना। "
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26 |
![](/images/thumb/0/04/Niklank_28.jpg/200px-Niklank_28.jpg) |
- निराशा को छोड़ महान व्यक्ति क्या नहीं जानता ? मैंने एक पत्र में लिखा है -- "महानता का अर्थ है, "निराशा से अपरिचय। "
- थॉमसन का कथनहै कि "महापुरुष की महानता इसीमें है कि वह हर्गिज हर्गिज निराश नहो ! "
- अपनी प्रत्येक असफलता को सफलता में बदलने के इच्छुकहो तो अपनी आशा को सोने का मौका कभी मत दो।
- महान व्यक्ति शरीर से संसार में होताहै, आत्मा से नहीं।
- आत्मा जिस दिन अपने को समझ लेतीहै, महान -(महात्मा )- होजाती है।
- तेरी महानता इसीमें है की उसका ज्ञान तुझे नहीं दूसरों कोहो।
- क्रोध मन के असंयम का प्रतिक है, जो संयमीहैं उन्हें क्रोध कभी नहीं आता।
- मै प्रायः कहताहूँ कि 'क्रोध, नग्न असंयम को छोड़ और कुछ भी नहीं है ! '
- सभ्यता छिलकाहै, क्रोध छिलके को फोड़ गूदे को प्रगट कर देताहै।
- क्रोध बताताहै कि भीतरसे हम अबभी आदमी नहीं है।
- क्रोध मानसिक बीमारी और बेवक़ूफीहै,कीजातीहै दूसरों के लिए जलाती है खुद ही को।
- क्रोध माने चोट खाया -- तड़पता अभिमान। क्रोध मिटाना हो तो यह बिना अहंभाव को मिटाये कभी नहीं होसकता।
- क्रोध आता है छोटेपन से, असमर्थता से। कमजोरी क्रोध की मांहै। तारे कभी जुगनुओं पर क्रोधित होतेनहीं देखे गये।
- क्रोध बड़ी अजीब सीढीहै, दूसरों पर लगाओ निचे लेजातीहै, खुद पर लगाओ ऊपर लेजातीहै !
- क्रोध उथलापनहै। पानी जितना कमहोताहै,पत्थर उतनेही ज्यादा दिखतें हैं !
- आदमी की गहराई नापनाहो तो क्रोधमें नापो, असमय कौन अपने सही रंग में नही होता ?
- क्रोध आत्म गौरव को बचाने के लिए होताहै, करता है उसे विनष्ट।
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![](/images/thumb/e/e0/Niklank_29.jpg/200px-Niklank_29.jpg) |
- मैंने कहा - 'ईश्वर सबमें समाया हुआहै। 'किसीने पूछा कि 'वह सबमें समा कैसे सकताहै ? '
- मैंने समझाया कि यह तो बहुत ही सरल है किसी एक ही में मत समाओ और तुमभी - उसी की तरह, अपने आप सबमें समा जाओगे !
- लोग कहतेहैं कि ईश्वर मर रहाहैं ! मैं सोचता हूँ कि होसकताहै कि ईश्वर मर रहा हो पर यदि ईश्वर मरा तो उसके बाद आदमी भी जिंदा न रह सकेगा।आदमी और जानवरों का अंतर ही क्याहै ?आदमी के मन में ईश्वर है, जानवरों के मन में नहीं है !
- आज की जरुरत ईश्वर को बचाने कीहै क्योंकि बिना उसे बचाये आदमी को भी नहीं बचाया जा सकता।
- ईश्वर से इंकार करना, अस्तित्व से इंकार करनाहै।
- ईश्वर तुम्हें लड़ाने के लिए नहीं, तुम्हें एक करने के लिएहै।
- ईश्वर मानने का अर्थहै विश्व के अस्तित्व को व्यर्थ न मानना।
- ईश्वर (लक्ष्य) से बचा नहीं जासकता यधपि यह होसकताहै कि पुराने ईश्वर की जगह हम कोई नया ईश्वर खोजलें !
- दिन उसके नहीं हैं जो सोता है, दिनों को खरीदने का मूल्य श्रमहै।
- समय सिर्फ उसके कामों में अलाली करताहै, जो स्वयं अलालहै !
- मूर्ख अपने दिनों को भी रातें बना लेतेहैं, बुद्धिमान वह है जो अपनी रातों को भी अपने दिनों में बदल ले।
- शतपथ ब्राम्हण में कहागयाहै कि ' दिन देवों काहै, रात्रि असुरों कीहै।'
- रोज सुबह एक नया जीवन शुरू होताहै। अतीत को भूलकर फिरसे नये संघर्ष में लगो यही उसका संदेशहै !
- दिन उसकाहै जो उसे अपना बनाने की हिम्मत रखताहै।
- किस्मत की लकीरें आंसुओं से नहीं मिटती उन्हें मिटाने के लिए कुदाली उठाना पड़तीहै !
- किस्मत उसका साथ कभी नहीं देती जो उसके सामने बैठकर रोताहै। किस्मत साथ देतीहै -- पर उसका, जो उसे अपने सामने बिठाकर रुला सकताहै।
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![](/images/thumb/0/02/Niklank_30.jpg/200px-Niklank_30.jpg) |
- आत्मा की आवाज न सुनना, पाप में उतरना है।
- मुहम्मद ने कहाहैं -- 'पाप क्याहै ? ' जो दिल में खटके। '
- एक पाप मिटताहै, दूसरे के लिए जगह कर जाताहै !
- पाप को पहचान लेने के बाद, कोई भी पापी नहीं होसकता।
- ल्युथर ने कहाहै -- 'पाप की पहचान मुक्ति की शुरुआत है।
- पाप अपनी सजा स्वयंहै, क्योकि उसमें लगेरह हम पुण्य का मजा लूटहीनहीं पाते !
- स्वेड़न वर्ग ने लिखाहै कि ' जो पाप में लगाहै, वह पाप की सजा भी भोग रहाहै। '
- ' एक पाप ' को छोटा समझने का रास्ता हमेशा। 'सारे पापों ' को छोटा समझने की मंजिल तक जाताहै !
- कोई पाप छोटा नहीं है और यदि कोई है, तो धीरे धीरे कोई पाप बड़ा नहीं रहेगा !
- एक पाप को एक बार करना उसे बार बार घर आने की इजाजत देनाहै।
- पाप करना शरीर को आत्मा से ज्यादा मूल्यवान समझनाहै।
- पाप में पड़ना मानवोचितहै, पर पाप में पड़े रहना नहीं।
- जिसे दूसरों के पाप दिखते हैं, उसे अपने पाप कभी नहीं दिखेंगे !
- पापों का निवास भीतर होताहै, इसलिए उन्हें देखने के लिए आत्मामें आँखों की जरुरत पड़ती है,शरीर की आँखें वहां काम नहीं देतीं।
- पाप करने से ड़र और फिर तुझे किसीसे ड़रने की जरुरत नहीं है।
- पाप अनिच्छा सेहो तो पाप नहीं होता, पर पाप अनिच्छा से कभीहोताही नहीं।
- मनुष्य जब स्वयं अपने को देख पाताहै तो फिर उसे संसार में कहीं कोई पापी नहीं रह जाता।
- मालिक दिनार कहता था कि ' इस मस्जिद से अगर सबसे बड़े पापी को निकलने को कहा जावे तो मैं ही सबसे पहले निकलूँगा ! '
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![](/images/thumb/d/de/Niklank_31.jpg/200px-Niklank_31.jpg) |
- सोना खरा उतरताहै कि खोटा यह सोने की कसौटी पर निर्भर नहीं होता। जीवन संघर्ष मेरी कसौटीहै, उसपर मैं खरा उतरुँगा या खोटा यह कसौटी पर नहीं, मेरे अपने ऊपर निर्भरहै।
- कसौटी निर्णय नहीं देती तुम्हारे भीतर के निर्णय को दूहरा भर देतीहै।
- यह सत्यहै कि मैं कसौटी का मालिक नहीं हूँ पर यह भी झूठ नहीं है कि मैं उस सोने का मालिक जरूर हूँ, जो अपने खरे खोटे पन के लिए किसी भी कसौटी का गुलाम नहीं है !
- आचरण भीतर के जीवन का प्रतीक होताहै। शैतान का सा आचरण और ईश्वर कीसी आत्मा साथ साथ नहीं रह सकते !
- तेरा आचरण भी वही होगा जो तू भीतर है।
- दूसरों के क़दमों पर आजतक दुनियां में कोई नहीं चल सका इसलिए दूसरों के क़दमों को देख, दूसरों के क़दमों से सीख, पर दूसरों के क़दमों के बल मंजिल पाने के मूर्खतापूर्ण स्वप्न में कभी मत उलझ।
- दूसरों पर जीवित होने से, न जीवित होनाहीअच्छा।
- परावलम्बन एकमात्र पराधीनता है।
- स्वावलम्बन याने अवलम्बन किसी का नहीं।
- स्वावलम्बी नहोना अपने हाथ से अपने लिए दुख खोजनाहै।
- तुम आदमी हो या बोझा कि अपने लिए दूसरों की पींठ खोजते फिरते हो !
- जिस आदमी ने दूसरों के पैरों पर विश्वास नहीं किया वह कभी किसीके सामने नहीं झुका।
- अपनी मेहनत से पाई गई रूखी रोटी भी, दूसरों की दया से प्राप्त मक्खन - रोटी से लाख गुना बेहतरहै। उससे कम से कम तुम आजाद तो रहोगे।
- फ्रेंकलिन ने कहा है कि ' अपने पैरों पर खड़ा हुआ किसान अपने घुटनों पर झुके हुए जेंटिल मेन से हमेशा ऊचाहै ! '
- रोटी कभी इतनी कीमती नहीं है कि तुम उसके लिए अपनी आजादी बेचो।
- खड़ा सिर्फ वहीहै,जो अपने पैरों पर खड़ाहै -- दूसरों के पैरों पर खड़ाहोता तो मीट जाने से भी ज्यादा शर्म की बात है !
- अपने मालिक बनना चाहते हो तो दूसरों का सहारा कभी मत खोजो।
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![](/images/thumb/0/0b/Niklank_32.jpg/200px-Niklank_32.jpg) |
- दुख दूसरों के पैरों पर खड़ा होनाहै, सुख अपनों पर।
- दुखी होने का अर्थ है कि हम अकर्मण्यहैं, सिर्फ रो सकतेहैं कर कुछ नहीं सकते।
- दुख का अर्थ है इन्द्रियों में सुख खोजना, जहां सुख है ही नहीं !
- कामना बीजहै, दुःख फल हैं।
- इच्छायें तो सुख की मात्र मृगमरीचकायें हैं -- उनके पीछे दौड़ो मत। सुख यदि आयेगा तो तब जब वे न रहेंगी !
- इमरसन कहता था कि ' हर आदमी एक बर्वाद परमात्मा है। '
- मैं कहता हूँ कि बर्वाद परमात्मा तो जानवर भीहै - तब आदमी क्या है ?
- आदमी उस बर्वाद परमात्मा को फिरसे आबाद करने का प्रयत्न है !
- हम आदमी चाहतेहैं, प्रकृति संख्याये पैदा करतीहै !
- आदमी जानवर से पैदाहोताहै पर जानवर ही नहीं है।
- सारे धर्म सारे दर्शन और प्रकृति का सारा विकास जो मांग करते हैं वह एक बहुत सीधी सादी मांग है -- वह है एक साबित आदमी की मांग !
- साबित आदमी याने परमात्मा।
- मुझसे कोई साबित आदमी का मूल्य पूछे तो मैं कहूँगा कि यदि तुम एक साबित आदमी दे सकते हो तो दुनियां में जो कुछ है वह सब भी यदि उसके मूल्य में देना पड़े तो भी मैं कहूँगा कि सौदा बहुत सस्ता है !
- सब कुछ भूलकर जिसे सिर्फ अपनी याद रहे वह जानवर है, जिसे अपनी भी रहे दूसरों की भीरहे वह आदमीहै, जिसे अपनी भूल सिर्फदूसरों की ही रहे,वह ईश्वर है !
- दुनियां निकृष्टतम सत्यहै, ईश्वर श्रेष्ठतम जो उसे समझ गया उसे फिर निकृष्ट की जरुरत नहीं !
- ईश्वर को आदमी तबतक नहीं समझ सकता जबतक कि वह आदमीहै -- उसे समझनाहो तो आदमी की खोल छोड़नी ही पड़ती है !
- ईश्वर बने बिना ईश्वर को समझना संभव नहीं है !
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![](/images/thumb/6/6d/Niklank_33.jpg/200px-Niklank_33.jpg) |
- ह्रदय की पवित्रता ही एकमात्र स्वर्ग है
- ईसा कहते थे की ' पवित्र ह्रदयवाले धन्यहैं, क्योंकि उन्हें ईश्वर का दर्शन होगा।
- पवित्रता आत्मा है, पवित्रता नहीं रहती तो आत्मा भी नहीं रहती !
- परमात्मा =आत्मा +पवित्रता।
- पवित्र रहो और फिर ईश्वर से भी ड़रने की जरुरत नहीं है !
- पवित्रता पारस है उससे छूकर कुछ भी अपवित्र नहीं रह जाता।
- अपने आप को पहचान लेना पवित्र हो जाना है।
- पवित्रता की आंखें अपवित्रताके लिए अंधी हैं। तुम पवित्र हो तो तुम्हें अपवित्र कुछ भी नहीं होसकता।
- सेंट पॉल का कथन है कि ' पवित्रात्मा के लिए सभी वस्तुयें पवित्र हैं। '
- सुख पाने का एकमात्र स्वर्ण - सूत्र है की उसे अपने लिए चाहते हो तो दूसरों के लिए खोजो।
- मेरी दृष्टी में सुख और परोपकार दोनों एक ही अर्थ रखते हैं। महाकवि टैगोर ने लिखा है कि ' मैंने अमर जीवन को और प्रेम को वास्तविक पाया और यह कि अगर की मनुष्य निरन्तर सुखी बना रहना चाहताहै तो उसे परोपकार के लिए ही जीवित रहना चाहिए। '
- तुम व्यर्थ जीवित नहीं हो, यदि तुम दूसरों के लिए जीवित हो।
- परोपकार करते समय प्रत्युपकार की आशा रखना -अपनी आत्मा की ओछाई को जाहिर करताहै !
- किसी और के लिए जीवित रहने की ख़ुशी, दुनियां में मिलने वाली सारी खुशियों से महान है !
- केवल अपने लिए जीवित रहना अपनी आत्म-हत्या करनाहै।
- दुख का कानून सुख से उल्टाहै। उसे खोजो दूसरों के लिए वह आताहै, अपने पास !
- दुख पाने का अर्थ है कि तुम दूसरों को सुख देने से इंकार करते हो !
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![](/images/thumb/2/2c/Niklank_34.jpg/200px-Niklank_34.jpg) |
- प्रकृति सबकी है। उससे उत्पादित वस्तुयें भी उन सबकी हैं जिनने उसपर श्रम किया है और वह व्यक्ति चोर है जो दूसरों के श्रम पर जीवित है।
- क्रोपाटकिन ने लिखा है कि ' किसी का कोई अधिकार नहीं कि वह किसी वस्तु का टुकड़ा छीनकर कह सके कि यह मेरा है, तुम्हारा नहीं ! '
- मेरी दूष्टि में जो गुलामी और गैरइंसाफ़ी के सामने नतमस्तक होता है, वह अपने जीने का हक़ भी उसी क्षण से खोदेताहै।
- गुलामी के खिलाफ बगावत आदमीपन का चिन्ह है। लड़ो जरूर-भला कितनी ही ताकत हो और कितनी ही देर टिक सको।
- समय को कभी नष्ट मत करो। समय को नष्ट करने का अर्थहै जीवन को नष्ट करना। जीवन आखिर समय के जोड़ को छोड़कर और हैही क्या ?
- सफलता स्वर्ण-सूत्र है कि जब समय पुकार दे और अवसर हाथ दिखाये तो कभी भी रुको मत -- संसार की सारी दौलत और सारा सौंदर्य तुम्हारे चरणों को रोके तो भी नही !
- हम समझते हैं कि समय कर रहा है पर समय जानता है कि करता कौन है !
- घड़ी के कांटे मौत के दांत है तो हमारी हरक्षण मिटती जिंदगी की तरफ इशारे करते हैं।
- ईमानदारी का सबूत एक हीहै कि जो कुछ तुम कहते हो उसे कहने के पहले, लोगों को दिखा दो की तुम उसे कर भी सकते हो !
- झूठ साफ सीधे और सूक्ष्म रूप में कही ही नहीं जासकती।सत्य कहा जासकताहै इसलिए हमेशा ही संक्षेप में बोलो और व्यर्थ ही ज्यादा बोलकर लोगों को अपनी ईमानदारी पर शक करने का मौका न दो।
- गधे की तरह रेंकने से कोई अच्छा बोलने वाला नहीं होजाता।
- वाणी अंतर को बहार ले आतीहै। गधा, शेर की खाल में भी हो तो रेंकने से कितनी देर चुप रह सकताहै ?
- मैं कभी कभी सोचता हूँ कि क्या वैज्ञानिक अन्वेषण 'बोली' से भी ज्यादा मीठी चीज को खोज सकते हैं !
- कोई भी जिंदगी इतनी छोटी नहीं है कि वक़्त की बर्बादी को रोककर बड़ी न की जासके !
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![](/images/thumb/c/cd/Niklank_35.jpg/200px-Niklank_35.jpg) |
- वाणी वही उग़लतीहै जो मन में होताहै। गन्दा बोलकर तुम इतना ही बताते हो कि अपने मन में तुमने मंदिर नहीं, संडास बना रखी है !
- सत्य शब्दों में लम्बाई नहीं, गहराई चाहताहै।
- एक असफलता को छोड़कर शेष सारी असफलतायें सफलता में बदली जासकतीहैं। वह एक असफलता है ' कभी काम में ही न लगना। '
- असफलता से असफल मत बनो। असफलता इतनाही बताती है कि प्रयत्नों में कहीं कोई छेद है, उसे पूरा करलो।
- असफलता सिर्फ गलत प्रयत्न का अंत है, प्रयत्न का अंत ही उसे मत वनाओ।
- सफलता = श्रम +अघ्यवसाय +आत्मविश्वास।
- अपनी असफलताओं से सीखने का नाम सफलताहै।
- वह व्यक्ति कभी सफल होही नहीं सकता जिसने असफलतायें चखी ही नहीं !
- सफलता के रास्ते पर पहला मुकाम असफलताहै, जो उसपर ही रुक रहा, वह सफलता तक पहुँचेंगा कैसे ?
- बीचर ने लिखाहै कि 'जीवन का लक्ष्य सुख नहीं चरित्र है। ' मेरा कहनाहै कि जीवन का लक्ष्य चरित्र नहीं सुखहै यधपि यह सत्यहै कि प्रकृति ने चरित्र से श्रेष्ठतर सुख का निर्माण आजतक नहीं कियाहै !
- बातें किसीको भी एक इंचभी आगे नहीं बढ़ा सकतीं।
- सब विषयों पर बातकरो सिर्फ अपने को छोड़दो।
- स्वतंत्र कौनहै ? जिसने बाहर से कुछ भी मांगने की प्रकृति को त्याग दियाहै।
- मैं एक ही गुलामी को जानता हूँ जिसके खिलाफ आजतक कोई बगावत नहीं होसकी। उसे लोग ' प्रेम ' कहते हैं !
- दो चीजों का ख्याल मुझे हमेशा बना रहताहै एक कि मैं ऐसा कुछ न कह पाऊँ जिसे मैं स्वतः न कर सकूँ और दूसरी कि जो कुछ मैं कहुँ उसे करने को कहीं भूल न जाऊँ।
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![](/images/thumb/b/b7/Niklank_36.jpg/200px-Niklank_36.jpg) |
- दृष्टी आदमी के भीतर का प्रतिक है। दृष्टी कहाँ है -- वह बतायेगी कि तुम क्या हो और तुम्हारे भीतर क्या है ?
- बेलगाम आंखों के पीछे ऐसा कभी नहीं होता कि बेलगाम मन न हो !
- आत्मा अंधी हो तो बाहर की आंखों का न होना ही अच्छा है !
- दूसरों के दोष खोजने से आंखों का पता नहीं चलता - दूसरों के दोष तो अंधे भी खोज लेतेहैं !
- आंखें अपने दोषों को खोजने के लिए हैं।
- कालरिल कहते थे कि कोई आदमी दूर तक नहीं देखता, मुझे लगता है दूर तक देखने वाले तो मिल ही जायेगें पर अपने ' निकट तम ' को कौन देखताहै ?
- अपने ' निकट तम ' को देखो। आंखें जमीन पर फैले पत्थरों में लिपटी काई को देखने के लिए नहीं हैं !
- अंधापन क्याहै ? केवल दोषों को ही खोजने की ताकत !
- जिंदगी आजादी के लिएहै या आजादी जिंदगी के लिए ? दूसरे क्या कहेंगें मैं नहीं जानता पर मैं स्वयं उस जिदन्गी को जिंदगी नहीं कह सकता जो आजादी के लिए नहीं है !
- आजादी से सांसें लेना और आजादी में सांसें लेना दो अलहदा चीजें हैं !
- ईश्वर ने आदमी और आजादी को अलग अलग नहीं बनायाहै और इसलिए जब आदमी से आजादी अलग होजातीहै तो आदमी भी आदमी नहीं रह जाता !
- आजादी माने आदमियत के विकास की सुविधा।
- आजादी ही एकमात्र ऐसी वस्तु है जो बिना दूसरों को दिए तुम्हें नहीं मिल सकती।
- इस बात की गुलामी कि कोई किसीके अधिकारों पर हमला नहीं कर सकता !
- आजादी पसंद आदमी जीने के लिए हमेशा मरने को तैयार रहेगा। गुलाम इससे उल्टा होताहै, वह मरने के लिए हमेशा जिंदा रहताहै।
- गुलामी में अधिकार मांगना कर्तव्यहै, आजादी में कर्तव्य करना।
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![](/images/thumb/5/5c/Niklank_37.jpg/200px-Niklank_37.jpg) |
- मंजिलें दूसरों के चलने से तय नहीं होतीं। स्वर्ग अपने मरने से मिलताहै, रास्ता अपने चलने से तय होताहै।
- ईश्वर ने हाथ और पेटसाथ साथ दिएहैं इसलिए कि मेहनत करो और अपना पेट भरो।
- लेनिन ठीक कहते थे कि जो भ्रम नहीं करेगा उसे खाना पाने का अधिकार नहीं होगा।
- खुशियों के हर दूसरे पहलू पर दुख रहताहै। जब मेरी वर्षगांठ आतीहै तो मैं दुख से भर उठता हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरी मा की मौत भी मेरी वर्षगांठ के साथ एक साल करीब खिसक आई है !
- ईश्वर तुम्हारे कार्यों का जवाब तुम्हारे ही कार्यों में देगा। दूसरों के साथ उसीतरह बर्तो जिस तरह तुम चाहते हो कि ईश्वर तुम्हारे साथ बरते।
- गाँधी कहते थे कि ' वह हमारे साथ वही करताहै, जो हम अपने पड़ौसियों के साथ करते हैं। '
- ईश्वर में विश्वास अपने आप पर विश्वासहै और इस दृष्टी से कोई भी नास्तिक नास्तिक नहीं रह जाताहै।
- मेरी दृष्टी में जिसे अपने आप पर विश्वास है विश्वास है -- भला उसे ईश्वर में आस्था या नहो -- उसे नास्तिक कहना गलत है।
- अपने ससीम में असीम श्रद्धा ही आस्तिकताहै।
- प्रकृति के सत्य और हमारे ज्ञान के बिच इन्द्रियां दीवार का काम करतीहैं, उनसे ऊपर उठे बिना सत्य की अनुभूति नहीं होसकती।
- गाँधी कहते थे कि ' हमारे भीतर दैवी गान निरन्तर होरहाहै पर कोलाहल करने वाली इन्द्रियां उसे दबा देती है। '
- मेरे शरीर चुप रह,ताकि मैं अपनी आत्मा को सुन सकूँ।
- बुराई अच्छाई को जन्म देने के लिए बांझहै--उससे,उससे भी बड़ी बुराई के सिवा कभी कुछ नहीं उपजता।
- साध्य और साधन का संबंध वृक्ष और बीज का संबंध है।
- साध्य और साधन अलग अलग नहीं होते। साधन ही विकसित होकर साध्य बन जाताहै।
- गांधीजी कहते थे कि ' शैतान की उपासना करके कोई भी ईश्वर भजन का फल नहीं पासकता ! '
- दौड़ने का अर्थ है कि तुम घर से समय पर नहीं निकले और हारने का रहस्यहै कि तुम दौड़े -- आहिस्ते नहीं चले।
- लाकांते कहता था कि ' दौड़ने से कुछ नहीं होता, मुख्य बात समय पर निकलनाहै। '
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![](/images/thumb/4/40/Niklank_38.jpg/200px-Niklank_38.jpg) |
- यश इसमें नहीं है कि दुनियां तुझे जाने, यश इसमें है कि तू जाने कि दुनियां क्या है ?
- यश की लालसा अज्ञान का प्रतिकहै। टेसिटस् ने कहा है कि ' यश की चमक अंतिम वस्तु है जिसे ज्ञानी छोड़ताहै ! '
- नाम के लिए नहीं, काम के लिए जी, काम के लिए मर।
- तर्क जीवन की गति के साथहो तो ही उपयोगी होताहै। तर्क की अति हमेशा अव्यवहारिकता को जन्म देतीहै।
- तर्क जीवन के साथ चलना चाहिए। तर्क के साथ जीवन को चलाने का अर्थहै दुनियां को एक पागलखाने में बदल देना।
- तर्क पर दूरतक विश्वास नहीं किया जासकता। वह गढ्ढों के बाहर लेजासकताहै तो भीतर भी लेजा सकताहै !
- स्विफ़्ट कहता था कि ' तर्क बड़ा हल्का सवार है, कषायों के घोड़े उसे आसानी से पटक देते हैं। '
- पागल के हाथ में भरी बंदूक जो कर सकती है, अशांत मन में तर्क भी वही करताहै !
- केवल तर्क विनाशहै। निर्माण का जन्म भावना के बिना नहीं होता।
- तर्क और भावना नितांत विरोधी नहीं है प्रायः भावना अपने सहारे के लिए तर्क को खोज निकालतीहै !
- भावना एक अंधापनहै, तर्क दुसरा। जीवन का सम्बंध उनके अति विरोध से नहीं, उचित समन्वय सेहै।
- तर्क का संबंध जब किसी मूर्ख से होजाताहै, शैतान को एक नई सवारी मिल जातीहै !
- तू अपने रास्ते पर चल और दूसरों को अपनों पर चलने दे। रास्तों पर झगड़ा नहीं होना चाहिए। सभी को खुदा ने आंखें दीहैं और किसके लिए ठीक रास्ता कौनसा होगा इसे सभी देख सकते हैं।
- रास्तों के लिए झगड़ा असभ्यता के दिनों का सूचकहै/ मुहम्मद कहते थे कि ' ठीक रास्ता गलत रास्ते से अपने आप साफ होताहै।" उसके लिए जबरदस्ती की जरूरत ही क्या है ?
- टिमटिमा कर जिंदा रहना कोई जिंदा रहना नहीं है।
- रोजा लुकचेम्बुर्ग ने कहा है कि ' आदमी को मशाल की तरह जलना चाहिए। ' -- दोनों ओर से जलो -- एक क्षण जलो भला -- पर ऐसा जलो कि कहीं अंधेरा टिक न पाए !
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![](/images/thumb/c/cc/Niklank_39.jpg/200px-Niklank_39.jpg) |
- दूसरों के लिए किये गये कार्य श्मशान के आगे भी साथ जाते है।
- भावना सही न हो तो बुद्धि का न होना ही बेहतर है !
- अज्ञान क्या है ? जो तुम्हें अपने आप से दूर रखे।
- इतिहास उन घटनाओं का नाम है जो अब कभी नहीं घटेंगी।
- उपनिषद कहते हैं कि ' तू ' ब्रम्हहै। मैं सोचता था तो लगा कि जबतक 'तू ' शेषहै तब तक ब्रम्ह होगा ही कैसे और जब ब्रम्ह ही होगया तो फिर यह "तू ' खोजने पर भी मिलेगा कहां ?
- ' तू ' ब्रम्ह नहीं है, ' तू ' का अन्त ब्राम्ह्है !
- विश्व का वस्तु सत्य विनाशहीन और अनिर्मित है क्योंकि न तो वह किसी कार्य का कारण है और न किसी कारण का कार्य।
- मोह, संसार का स्वर्ण - प्रलोभन है -- उसमें उलझ मत जाना - उसने ही ब्रम्ह के पूर्णतम पवित्र रूपों को मिट्टी के घेरों में बांध रखा है !
- प्रेम माया का सर्वोत्तम रूपहै, (चाहे वह ईश्वर सेही क्यों नहो !)--यथार्थ प्रेम संभवही नहीं है क्योकि व्दैत में प्रेम नहीं है और अव्दैत में तो उसके लिए स्थान ही नहीं रह जाता !
- मजहब और पन्थ सत्य को परिचित बनातेहैं पर मैं तो उसे अपने अरिचित रूप में ही देखना चाहता हूँ इसलिए सारे धर्म तो जरुर मेरे होगयेहैं पर मैं स्वयं उनमें से किसीका नहीं रहा हूँ !
- लोहा लोहे से कटताहै -- आसक्ति के मोह पाश को तोड़नाहै तो विरक्ति से मोह पैदा करो !
- आदमी और ईश्वर में थोड़ा ही अन्तर है, आदमी काम न भी करे तो भी आसक्त है, ईश्वर काम करते हुए भी आसक्त नहीं है।
- अनासक्ति का अर्थ भागना नहीं है -- भागने ने में तो आसक्ति छुपी ही है। पानी में ही,पर कमल-पत्तों की तरह, उससे अछूता रहने का नाम अनासक्ति है।
- शरीर आसक्ति से,आत्म-आसक्ति महान् है, आत्म आसक्ति से महान है पूर्ण अनासक्ति -- शरीर से भी,आत्मा से भी।
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![](/images/thumb/4/45/Niklank_40.jpg/200px-Niklank_40.jpg) |
- पूर्ण अनासक्ति का अर्थहै,अनासक्ति से भी आसक्ति नहीं !
- अनासक्त याने "कुछ नहीं ", "कुछ नहीं "याने " सब का मूल ", " सब का मूल "याने ईश्वर !
- शरीर में आसक्ति रखना, आत्मा को खोदेना है।
- अनासक्ति अप्रेम नहीं है, अनासक्ति अनंत प्रेमहै, प्रत्येक स्थितिमें भाव में भी, अभाव में भी।
- अनासक्ति का अर्थ है वस्तुओं के अभाव में भी दुख की अनुभूति का भाव नहीं।
- ईश्वर कुछ नहीं, एक साबित आदमी की कल्पना है।
- बेईमानी का चुम्बक भीतर न हो, तो बाहर का बेईमानी कभी पास नहीं आती।
- ईमानदार आदमीका लक्षण है दूसरों में ईमान देखना, बेईमान का है बेईमानी देखना।
- ईमानदार आदमी जमीन पर ईश्वर का प्रतिबिम्ब है।
- ईश्वर से जब कुछ मांगे तो जो अपने लिए मांगे वही सबके लिए भी मांग।
- क्रोध के प्रतिशोध में क्रोध करके हम बताते हैं कि दूसरे ने हमसे जो किया है वह ठीक है क्योंकि उसके जवाब में हम स्वतः भी वही कर रहे हैं !
- क्रोध का जवाब क्रोध से देना, भोंकते कुत्तों के साथ कुत्ते होजाना है।
- एक नियम बनाओं कि क्रोध करना ही पड़ेगा तो एक क्षण रूककर करूँगा। तैनेका ने कहा है कि -'क्रोध का सबसे बड़ा इलाज विलम्ब है। '
- मन में विवेक हो तो क्रोध कभी नहीं आता। कन्फूशियस कहाते थे कि ' जब क्रोध ही उठे तो उसके नतीजों पर विचार करो। '
- अविवेक क्रोध की आत्माहै, अविवेक नहीं तो क्रोध भी नहीं।
- क्रोध आत्मा की रात है, विवेक का प्रकाश पास न हो तो जहां हो वहीं रुक जाओ, आगे कभी मत बढ़ो।
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![](/images/thumb/9/95/Niklank_41.jpg/200px-Niklank_41.jpg) |
- दूसरों की मूर्खता पर दया खाओ और उसे मिटाने का प्रत्यन करो -- हंसकर तो तुम भी अपने को उन्हीं की पंक्ति में मिला लेते हो !
- ज्ञान का अर्थहै कि अपनी मूर्खता से भी कुछ सीखो -- उसे भी अपने ज्ञान विस्तार का एक साधन बनालो।
- मूर्ख सदा दूसरों की गंदगी को खोज में रहते हैं।
- मूर्ख ने आजतक कभीनहींसमझा कि वह मूर्ख है।
- मूर्ख सबकुछ कर सकताहै पर अपने को दोष कभी नहीं देसकता !
- मूर्खता एक हीहै, अपनी मूर्खता पर टिके रहने की जिद्द करना।
- कुत्तें कुत्तों की बातें सुन सकतेहैं, मूर्ख न मूर्ख की बात सुन सकता है, न सह सकताहै।
- अपनी मूर्खता का ज्ञान बुद्धिमानी है, अपनी बुद्धिमानी का मूर्खता।
- वह मूर्खता असाध्य है,जिसे अपने आप पर गौरव भी हो !
- तुम अपनी आत्मा का अपमान न करो तो दुनियां में किसी की सामर्थ्य नहीं कि तुम्हारा अपमान कर सके -- तुम स्वयं अपना अपमान करते हो और सिर्फ इसलिए हो अपमानित हो।
- मेरा कोई अपमान करताहै तो सोचताहुँ कि भीतर कहीं कुछ गड़बड़ है, उसे ठीक करना होगा।
- अपमान को पीजाने का बल अपने में पैदा करो क्योंकि असभ्यता को असभ्यता के सिक्कों में हो जवाब देना, कोई सभ्यता तो नहीं होसकती ?
- अपमान को जबतक तुम अपमान की तरह नहीं लेतेहो तबतक वह अपमान होही नहीं सकता !
- अपमान यदि झूठाहै तो तुम्हें नीचे नहीं गिरा सकता, तब घबड़ाते क्यों हो ?
- अभिमान ही करना है तो शरीर का क्या ? आत्मा का करो, पर भूलो मत कि जो आत्मा तुममें है, वह दूसरों में भीहै !
- अभिमान करने के पहले एक बार सोच तो लो कि ' इसके पहले भी अभिमान किसी का रहा है क्या ? '
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![](/images/thumb/c/ca/Niklank_42.jpg/200px-Niklank_42.jpg) |
- एक एक इंच अभिमान आदमी को ईश्वर से एक एक मील दूर करताहै।
- अभिमान अपनी पूर्णता पर पहुँचता है जब कहने लगता है कि ' मुझे अभिमान है ही कहाँ ? '
- अपरिग्रह के नियम से स्वयं आत्मा भी बरी नहीं है -- आत्मा का अपरिग्रह ही ब्रम्ह हो रहना है।
- मेरा दुश्मन मेरे "मैं "को छोड़ और कोई नहीं है।
- खुदी को छोड़ दे, तू खुदा बन जायेगा !
- खुदा क्या है ? खुदी का आभाव !
- मैं की दिवार तुझे दूसरों का होने से और दूसरों को तेरा होने से रोकती है --उसे मिटा की सब तेरे हुए और तू सबका हुआ।
- ह्रदय में दो के लिए जगह नहीं है या तो उसमें ' शान्ति " ही रहेगी या फिर ' मैं ' ही रहले !
- शैतान तेरे भीतर नहीं घुस सकता जब तक तेरे 'मैं ' का दरवाजा खुला न पड़ाहो !
- सुखी वह है जो सब भूल गया और उस एक को जान गया जो वह स्वयं है।
- बाहर की ठोकरों को भीतर लेजाने वाला दरवाजा जिसने बंद कर लियाहै, उसे दुख पहुँचाया ही नहीं जासकता।
- मैं अपने सुख की एक ही गारंटी समझताहूँ कि मेरे पड़ौसी दुखी न हों।
- प्रेम का अर्थ है -- अपने अधिकारों को त्याग देना -- अपना अस्तित्व विलीन करदेना।
- मैंने एक पत्र में लिखाहै कि ' आत्मा जब प्रेम में होतीहै, तो होती ही नहीं ! '
- एक बार मुझसे पूछा गया ' मुक्ति का अर्थ ? '
- मैंने कहा -- "सभी तरह की आसक्तीयोंसे - मुक्ति की आसक्ति सेभी -- ऊपर उठना ! '
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![](/images/thumb/4/42/Niklank_43.jpg/200px-Niklank_43.jpg) |
- अपने दोषों को न देख दूसरों की गल्तियों को खोजते फिरना मूर्खताहै, बुद्धिमान अपने दोषों को और दूसरों के गुणों को खोजताहै।
- गलती करना कोई मूर्खता नहीं है -- गलती तो सभी करतेहैं, मूर्खता तो गलती को गलती जानते हुए भी दुहराने का नामहै।
- मूर्ख बहुत होतेहैं, पर जड़ मूर्ख वही होताहै जो अपने को ज्ञानी भी समझताहै !
- अज्ञान का विकास आदमी को बताताहै कि उसमें ज्ञान ही ज्ञान है, ज्ञान का विकास बताताहै कि आत्मा में अंधेरा कहां कहां है ?
- आत्मा और ईश्वर कभी नहीं मिलते -- जबतक तुम उन्हें जानते नहीं, तबतक वे मिले नहीं हैं और जब तुम उन्हें जान गये तो तुमही वह होरहे !
- ज्ञान का तो एक ही सूत्रहै कि आत्मा को जानो, क्योंकि जो आत्म को ही नहीं जानता वह अनात्म को जानेगा ही कैसे ?
- जड़ -- जीवन -- शरीर में जीवन, आत्मा की निद्रा का रूपहै, जड़ मृत्यु -- शरीर बुद्धि की मृत्यु, आत्मा की जाग्रति है।
- जबतक इंद्रियां जागती रहती हैं, आत्मा सोई रहती है।
- आत्मा भटके परमात्मा का नामहै।
- अस्तित्व की सीमाओं में आत्मा को मत बांधो -- उसका अस्तित्व नहीं होता क्योंकि वह स्वयं अस्तित्व है !
- आज के युग की मुसीबत न भूखहै न गरीबी, मुसीबत यह है कि आदमी ने अपनी आत्मा को कहीं खोदिया है !
- असफलता का अर्थ है कि जब तुम कार्य करते हो तो यह नहीं भूल पाते कि कार्य -- 'मैं कर रहाहूँ ! '
- सफलता की इच्छा पर सफल होना, सबसे बड़ीं सफलताहै।
- सुख में जो हंसेगा, दुख में जो रोना भी पड़ेगा -- परम आनंद तो उस समभाव का नामहै जो सुख दुख दोनों में समान रहताहै।
- शांति भीतरहै, जो उसे बाहर खोजता, उसे वह नहीं मिलेगी।
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![](/images/thumb/5/54/Niklank_44.jpg/200px-Niklank_44.jpg) |
- संसार तेरी सहायता को दौड़ पड़ेगा -- एक बार तू अनुभव तो कर कि तू स्वयं संसार है।
- सत्य में अपने को देखो और सत्य अपने को तुममें देखेगा -- इसके सिवाय अन्य कोई राह नहीं है -- सत्य में खोरहो और सत्य तुम्हें मिल जायेगा।
- सत्य को सिद्धान्त नहीं, जीवन बनाओ। जीवन यदि उसपर नहीं बनताहै तो ऐसा सत्य बांझहै।
- कोई मुझसे पूछे की धर्म क्याहै ? -- तो मैं कहुँगा कि अपने में सरलता पैदा करो -- ऋजुता धर्म है, वक्रता अधर्म।
- महाभारत का आदेशहै कि ' सरल मनुष्य ही धर्मात्मा होसकते हैं। '
- सम्हल के चल -- जिस जमीन पर तू आजहै, वह जमीन एक दिन तुझपर होगी -- उस दिन की लिए उससे दोस्ती बनाले, झगड़ मत।
- इतना अहं मत करो -- भूल गये क्या कि आदम का निर्माण सिर्फ खाक से हुआहै !
- सारे बंधनों और अमुक्ति का मूल देह बुद्धि है -- उसे छोड़ दो और फिर तुम कहीं भी रहो किसी भी धर्म और किसी भी मत में -- मुक्ति तुम्हारा रास्ता पूछती स्वयम् तुम्हारे घर चली आयेगी।
- देह में रहो पर देह बनकर मत रहो ।
- विकास करना है तो अपने को मिटाना सीखो -- अंकुरों में फूटकर वृक्ष बनने के लिए बीज यदि न मिटे तो निस्तार संभव नहीं है !
- मेरा घर कहांहै मैं नहीं जानता पर इतना मैं जानताहूँ कि शरीर मेरा घर नहीं है !
- तू स्वयं न तो प्रकाशहै न अंधकार, न चेतन न अचेतन, न आत्मा न शरीर -- तू उन सबमें प्रगट पर उन सबसे परे है।
- मुझसे लोगों ने पूछाहै कि मैं किस धर्म का हूँ ?
- मैं उन्हें किस धर्म का अपने को बताऊँ -- धर्म मुझे मिल गयाहै -- मेरा होगयाहै, इसलिए मैं स्वयं अब किसी धर्म का नहीं रह गया हूँ -- धर्म की जरुरत बाहर से तो तभीतकहै जबतक भीतर का धर्म नहीं मिलताहै !
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![](/images/thumb/0/05/Niklank_45.jpg/200px-Niklank_45.jpg) |
- मैं एक गुरुद्धारे में बोलने गया। मुझसे पूछा गया कि मेरा धर्म क्या है ? मैंने एक दूसरे प्रश्न में जवाब दिया-कि ' ईश्वर का धर्म क्या होता हैं ? '
- मुझे आश्चर्य होताहै कि लोग आत्मा का धर्म क्यों पूछते हैं ? धर्मों का सबंध तो शरीर से है, सारे धर्म आत्मा के हो सकते हैं, पर आत्मा कैसे किसी धर्म की हो सकतीहै ?
- - मेरे दृष्टि में तो आत्मा चिरधर्म -अधर्म विहीन है।
- एक मत में खड़ा होना, शेष मतों के विरोध से ही संभव होताहै -- मैं तो किसी मत का विरोधी नहीं हूँ, इसलिए कैसे किसी एक मत में बड़ा होसकता हूँ ?
- सारे मत - धर्म, सत्य के भिन्न भिन्न अंशों को ही प्रगट करते हैं इसलिए वे सब तो मुझमें हैं पर मैं उनमें से किसी एक में ढूंढ़कर भी अपने को नहीं पकड़ पाता।
- अंश तो अंशी में होता हीहै पर अंशी स्वयं में अंश में प्रगट होते हुए भी अंश तो नहीं होसकता।
- अहं शांति नहीं देता, उसकी दौड़ का कोई अंत नहीं है -- संतोष और शांति उसके विनाश पर आते हैं ।
- आटें की गोली देख मछली फसती है मछुये के जाल में -- आवश्यकताओं को देख हम फसते है असंतोष के।
- पाप दूसरों के अधिकारों की सीमा में घुसने का नामहै। अपनी सीमाओं में रहो और दूसरों को अपनी सीमाओं में रहने दो, यही कुछ कम पुण्य नहीं है !
- धर्म बात नहीं बर्तने की चीज है -- बर्तो तो ही उपयोग है बातें तो कोई भी कर सकता है !
- मत तुम्हारा सत्यहै तो इतने चिल्लाने की जरुरत नहीं -- ' वेजिटेबल ' जहां बिकताहै वहीं मैंने 'शुद्ध घी' की तख्तियां देखी हैं !
- बाहर ही मत लड़ते रहो एक बार भीतर मुड़कर भी देखो -- रोग की जड़ भीतर है, बाहर तो उसके फल भर प्रगट होरहे हैं।
- मन, वाणी और कार्य तेरे लिए तीन न रहें -- ईमानदारी इतना ही चाहती है।
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![](/images/thumb/1/15/Niklank_46.jpg/200px-Niklank_46.jpg) |
- बच्चों को अपने पर छोड़ दो। वे अपनी राह खुद ही ढूढ़ लेंगे -- धर्म वह है जो भीतर से स्वयं उभरता है, बाहर से ढूसे कूड़े कचरे का नाम धर्म नहीं है !
- सुबह जब घूमकर लौट रहाथा, छोटे भाई ने गिरजे पर बने क्रास को देखकर पूछा कि ' यह क्याहै ? '
- मैंने कहा -- ' सूली का चिन्ह है, जो पास से निकलते हैं उनसे कहताहै कि अपने को अमर बनाना है तो जीवन में ही मरना सीखो।
- मौत से डरना ही मृत्यु है। बहादुर इसे जानते हुए भी कि मौत आयेगी जिंदा रहता है और इसीका नाम जिन्दगीहै।
- 'जीने ' और ' जीवन ' में बहुत अंतर है -जीते तो सभीहैं पर जीवन कम कोही नसीब होताहै !
- ईमानदारी वह चीजहै जिसे लोग व्यवहार में मूर्खता कहते हैं !
- जीना यानी मौज -- रोना नहीं और मौज भी वह कि जिसका अंत नहो, इन्द्रियों की मौज का अंत तो एक न एक आता हीहै !
- जॉनसन कहते थे कि 'यह बात कुछ महत्व नहीं रखती कि आदमी मरता किस तरह है, महत्व की बात यह है कि वह जीता किस तरह है। '
- मैं सोचता हूँ कि इस बात का पता कि आदमी जिया किसतरह सिवाय इसके लग ही नहीं सकता कि वह मरा किस तरह !
- जीवन को तिजौड़ी बनाओ -- तिजौड़ी में दौलत भला कितनी ही हो वह आखिर है तिजौड़ी ही है ! जीवन का अर्थ है देना -- छोड़ना -- त्याग करना। त्याग से जीवन भरताहै, अत्याग से मृत्यु आती है ; नदी देतीहै तो सारी प्रकृति उसे भरने में लगी रहतीहै, ड़बरे देने से इंकार करते हैं, मृत होजाते हैं।
- अकर्म त्याग नहीं है, त्याग है फलासक्ति विहीन कर्म।
- त्याग वही कर सकताहै जो प्रत्येक को अपने में देखताहै और अपने को प्रत्येक में।
- त्याग का अर्थहै हम अपने हम अपने लिए नहीं, ईश्वर के लिए जीना सीखें ।
- इकठ्ठा करने की कला आदमियत नहीं, भिखमंगापन है।
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![](/images/thumb/3/36/Niklank_47.jpg/200px-Niklank_47.jpg) |
- राम कहते थे -- " मैं ब्रम्ह हूँ! ' बीती रात सोच रहाथा तो लगा कि इसमें तो ' मैं " शेष रह ही गया, तब मैंने कहा कि न, -- न तो मैं ही हूँ और न कुछ और ही -- बस जो कुछ है, ब्रम्ह ही ब्रम्ह है !
- काम जिनने किया है उन्हें हर क्षण अपने काम के लिए उपयुक्त था। अवसर आते नहीं हैं, समय में छुपे रहते हैं, उन्हें निकलना पड़ताहै !
- अवसर के लिए मत बैठरहो, नहीं तो तुम हमेशा ही बैठे रहोगे। विधाता ने सब क्षण ही क्षण बनाये हैं ' विशेष अवसर ' की सील उसने किसी पर नहीं लगाई है, वह तो तुम्हें अपनी ही मेहनत से लगानी होगी।
- मन की दौलत को इकठ्ठा कर -- धातु के ठीकरों को जोड़ने के लिए यदि जिन्दगी है, तो मैं कहुँगा कि खुदा ने मुझे पैदाकर मेरा अपमान किया है !
- मालिक तो तुम सिर्फ उस दौलत के हो जिसे तुम दूसरों को देते हो -- रोककर पहरा देना रखवारे का काम है, मालिक का नहीं !
- निर्धनता धन के न होने का नाम नहीं है -- वह तो उस स्थिति का नाम है जब धन तो हो पर पासमें सत् उपयोग का मन न हो !
- समाज में आदर का धन नहीं, श्रम का होना चाहिए।
- मेरी दृष्टि में धनी व्यक्ति, वह व्यक्ति है जिसे अपनी आवश्यक्ताओं से ज्यादा उनकी तुष्टि के साधन उपलब्ध हैं, और यदि यह सच है तब तो कोई भी व्यक्ति बिना धन इकठ्ठा किये ही सिर्फ अपनी आवश्यकताओं को कम कर धनी बन सकता है।
- भूख के इस युग में मैं एक ही पाप को जानता हूँ कि 'जब तुम्हारा पड़ौसी भूखा हो तब अपने पेट को ठूंस ठूंसकर मत भरो।
- आज के युग को जरुरत हाथों की है जबानों की नहीं। आदमी यदि कभी मरेगा तो इस कारण ही कि वह ज़बान ही जबान रह जायेगा, हाथ बिल्कुल नहीं !
- मूर्ख न सुन सकताहै, न सह सकताहै और न रुक सकताहै -- इन तीनों से बचने का नाम बुद्धिमानी है।
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![](/images/thumb/8/87/Niklank_48.jpg/200px-Niklank_48.jpg) |
- मैंने पूछा -- "तुम उस नियन्ता, उस निर्माता को जानते हो ?
- आस्तिक बोला " हां "
- मैंने कहा --" तुम्हें अभी उसे जानना होगा। अभीतक जान नहीं सके हो ! "
- लड़का अध्यन के बाद घर लौटा। विव्दान् बाप ने पूछा की ' जानता है, ब्रम्ह क्याहै ? '
- लड़का मौन था, मौन ही रहा।
- बाप की आत्मा बोल उठी -- ' वह जानताहै -- वह जानताहै ! '
- जन्म जीवन का प्रारंभ नहीं है और न मौत ही जीवन का अंत है।
- जन्म उसका ज्वार है, मौत भाटाहै।
- अनंत जन्म और अनंत मरण में गुथा यह खेल क्याहै? अर्थहीन मूर्खता या जैसा लोग कहते हैं -- ' जिन्दगी ! '
- दूर के लक्ष्य पर पहुँचने के रास्ते बहुत सहल हैं -- पर ' वह ', वह मेरे इतने निकट है, इतने निकट कि ' वह ' बिल्कूल मेरा ' मैं ' है -- तब तू ही बता मैं उसे समझूँ भी तो कैसे समझूँ ?
- राम कहते थे कि तू तो वह अनंत है जिसकी ज्योति से तारों के प्राण जगते हैं -- मैं सोचता हूँ कि ' तू ' अनंत नहीं, ' तू ' तो ' त-अन्त' ही है और जिस दिन अनंत बनेगा उस दिन ' तू ' तू न रह जायेगा !
- अनंत की राह की अवस्थायें स्वयं अनंत नहीं हैं। तू अनंत नहीं है उसकी राह की एक अवस्था मात्रहै।
- मिट्टी का दिया रातभर जलता रहा, सुबह हुई, उसकी टिमटिमाती ज्योति सूरज की रोशनी में विलीन होगई।
- उसका तेल चुक गया था --दिन पुरे हो चुकेथे -- शून्य का पुत्र शून्यके पास वापिस लौट गया।
- मैं उसकी मरण शय्या के किनारे खड़ा सोचता रहा ....जीवन की ज्योति भी मिट्टी के दिये की टिमटिमाहट है .... कब उसके दिन पुरे होजायेगें और शून्य उसे वापिस आने की पुकार देगा इसे कौन जानताहै ?
- हम शून्य से जन्म पाते हैं और शून्य को लौट जातेहैं।
- नींद से बच -- अभी समय सोने का नहीं है, फिर कब्र में जितना चाहे सो लेना -- तुझे कोई जगाने न आयेगा !
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![](/images/thumb/c/cf/Niklank_49.jpg/200px-Niklank_49.jpg) |
- अज्ञान अपने को न जानने का नामहै, ज्ञान अपने को जानने का।
- खुद को जान लेने पर, न खुदा अनजाना रहताहै न कुछ और।
- अज्ञान अनेकता पैदा करता है, ज्ञान एकता।
- ज्ञान के प्रकाश के फैलने पर यह कहना कि मैं अलग हूँ और तू अलग संभव नहीं होता।
- ' तू ' और ' मैं ' की सीमाओं का निर्माण अज्ञान के अंधेरे से होताहै। ज्ञान का गणित एक की संख्या को छोड़ और संख्याओं से परिचित ही नहीं है।
- पापहीन अज्ञान, पापी ज्ञान से श्रेष्ठ होताहै।
- ज्ञान अपने आप में पुण्य नहीं है, तुम उससे जान बचाते हो या जान लेते हो, इसपर ही उसका पाप या पुण्य होना निर्भर होताहै।
- प्लेतोन का कथन है कि ' ज्ञान पाप होजाता है, यदि उद्देश शुभ न हो। '
- ज्ञान इन्द्रियों को बाहर से भीतर ले जाने का मार्गहै।
- सुख बाहर है, यह अज्ञान है, सुख भीतर है यह ज्ञान है।
- अज्ञान दुख से बचना चाहताहै, ज्ञान सुख-दुख दोनों से।
- सुख-दुख से निरपेक्ष होजाना -- परे होजाना, जीवन को ज्ञान से भर लेना है।
- कहीं भी खोज वह तुझे मिलेगा, क्योंकि वह हर जगह है। ज्ञान प्रत्येक क्षण में है और तेरी राह देखता है कि तू उसे उठाये और उसका आलिंगन करे !
- अज्ञान शरीर पर विश्वास है।
- ज्ञान शरीर-बुद्धि की मृत्यु और आत्म-बुद्धि की घोषणा करता है।
- जीवन का अंतिम लक्ष्य ईश्वर को खोजना नहीं, स्वयं ईश्वर बन जानाहै।
- आस्तिकता का अंत नास्तिक्ताहै और नास्तिक्ता की पूर्णतः है स्वयं ईश्वर हो रहना।
- अस्तित्व, अनस्तित्व की अभिव्यक्तिहै।
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![](/images/thumb/3/35/Niklank_50.jpg/200px-Niklank_50.jpg) |
- सत्य श्रेष्ठतम धर्महै पर यदि सत्य कहकर तुम किसीसे बदला लेना चाहते हो तो यह झूठ से भी बदतर पापहै।
- सत्य निष्पक्ष हो -- न किसी की तरफ घृणा से, न किसी की तरफ प्रेम से -- तो ही सत्य, सत्य और धर्म होताहै।
- कुछ काम न करना त्याग नहीं है।
- काम छोड़ने से त्याग नहीं होता। त्याग काम करने में ही करना होताहै।
- त्याग का अर्थहै काम -- आत्मा के लिए, शरीर के लिए नहीं, विश्वात्मा के लिए -- अपने लिए नहीं।
- त्याग में जो महान् नहीं होता, वह महान् हो ही नहीं सकता।
- भावनाओं में अपने को खोदेना दिव्यता है।
- नेपोलियन कहता था कि ' भावना बच्चों और स्त्रियों की चीजहै ! ' मैं पूछता हूँ कि दिव्यता बच्चों और स्त्रियोंको छोड़ और मिलती ही कहां है ?
- अपने बचपन को न मिटने देना, अपनी दिव्यता को संरक्षित रखना है।
- इब्न -उल-वर्दी ने दर्द से कहाहै कि ' बचपन के समय की चर्चा छोड़,क्योंकि उस समय का तारा अब टूट चूका है। '
- बचपन के अपने तारे को बनाये रख और तुझे तेरे ईश्वर को खोजने की जरुरत नहीं पड़ेगी, कयोंकि तब तू स्वयं ही ईश्वर होगा !
- बचपन को हरक्षण ताजा बनाये रखना, भावनाओं में डूबे रहना है और भावनाओं में डूबे रहना ईश्वरीयत है।
- सच्चा आदमी धर्म के प्रेत से मुक्त होताहै, क्योंकि धर्म का संबंध पाप से है, पुण्य से नहीं।
- धर्म अधार्मिकों के लिए होताहै, जो स्वयं धर्म हैं उन्हें धर्म की जरुरत नहीं होती।
- धर्म दवा है, बीमारी हो तो ही उसका उपयोग है, बीमारी न हो तो वह व्यर्थ है।
- अपने को धार्मिक कहना और अपने को पापी कहना दो भिन्न चीजें नहीं हैं ! दुनियां में धर्म को बनाये रखने की जिद्द, दुनियां में पापों को बनाये रखने की जिद्द है।
- मुझे जिस तरह दवाओं से प्रेम नहीं है क्योंकि मुझे बिमारियों से नफरत है, उसी तरह मुझे धर्म से भी नफरत है कयोंकि मुझे पापों को बनाये रखने का आग्रह नहीं है।
- मैं कहना चाहता हूँ कि मैं धर्म नहीं चाहता, क्योंकि मैं अधर्म भी नहीं चाहता हूँ।
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![](/images/thumb/1/16/Niklank_51.jpg/200px-Niklank_51.jpg) |
- विधाता सभी को किस्मत देताहै पर साथ में उसकी नकेल भी देता है -- मुश्किल यहीहै कि तुम किस्मत को तो याद रखते हो पर उसकी नकेल को भूल जाते हो !
- सफलता की तीन सीढ़ियां हैं -- परिश्रम, परिश्रम और परिश्रम। अपने काम से जौंक की तरह चिपक रहो, यही सफलता का रहस्य है।
- बेन जानसन कहताथा कि ' मैं जिस काम को हाथ में लेता हूँ उसमे सुई की तरह गड़ जाता हूँ। '
- ' समय मेरी पूंजी है और हाथ मेरे श्रमिक हैं फिर सफलता कहीं भी हो मैं उसे खोज लूँगा। ' जो यह कह सकताहै उसे यह कहने का मौका कभी नहीं आयेगा कि -- ' मुझे सफलता नहीं मिलतीहै। '
- जो काम तुम स्वतः अपने हाथ से कर सकते हो -- और ऐसा कौनसा काम है जो तुम नहीं कर सकते -- उसके लिए दूसरों का आसरा खोजना, अपनी आजादी को बेचना है।
- जब मार्ग तय ही करना है,--तो रोने से क्या ? -- हंसते मुस्कुराते हुए करो।
- आंसू साफ सुथरे रास्तों पर भी कांटे बन जाते हैं।
- मुस्कराहट जिन्दगीहै, आंसू मौत हैं। मुस्कराओं ! क्योंकि जो मुस्करायेगा नहीं वह जीवित रहते हुए भी जीवन नहीं पायेगा।
- मुस्कान की किरण मौत को भी जीत सकतीहै ।
- ओठों पर मुस्कराहट न हो तो मैं निवास के लिए महलों की बजाय कब्र को चुनना पसंद करूँगा।
- मैं आसुओं से भरे हजार महलों को कब्र पर खिले कटीले फूलों की एक मुस्कराहट पर निछावर कर सकताहुँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि आंसू और जिंदगी का, मुस्कान और मौत का आपस में कोई वास्ता ही नहीं है।
- आसूं जिन्दगी को मौत में बदल सकते हैं, मुस्कराहट मौत को जिन्दगी में बदल सकती है।
- अपने दोषों को स्वीकार करना सीख और एक दिन तू देखेगा कि तेरे पास अब दोष ही नहीं रहे जिन्हें तू स्वीकार करे !
- अपने दोषों से इंकार करना, दोषों को बढ़ाते जाना है।
- झूठ की जिन्दगी बहुत थोड़ी होतीहै, वह अपनी मौत को हमेशा अपने बगल में ही लिए फिरताहै।
- असत्य अकेला नहीं चलता, असत्यों की कतार चलतीहै !
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![](/images/thumb/6/6c/Niklank_52.jpg/200px-Niklank_52.jpg) |
- लोग जब ईश्वर से प्रार्थना करते हैं तो अक्सर यही चाहतेहैं कि वह न होपाये जो ईश्वर चाहतहै !
- रुको मत। प्रतिक्षण चलते रहो इसलिए नहीं कि तुम्हें स्वर्ग पहुँचनाहै, वल्कि इसलिए कि कहीं नर्क तुम्हारे पास न पहुँच जाये !
- स्वर्ग और नर्क में यही एक अन्तरहै, स्वर्ग तुम चलोगे तोही मिलेगा, नर्क तुम नहीं भी चले तो भी तुम्हारे पास आजायेगा।
- गुलामी का निर्माण दूसरों के लहू पर होताहै, आजादी का अपने।
- आजादी में सांसे लेने के लिए हजारों सांसों को कुर्बान होना पड़ताहै।
- जो आदमी आजादी के लिए मर नहीं सकता, वह हमेशा गुलामी के लिए जिंदा रहेगा।
- आजादी हमेश अपने लहू से खरीदो।
- घुटने टक्कर लीगई आजदी, गुलामी से भी बदतरहै।
- जो सिर्फ अपने लिए आजादी चाहता है वह आजादी और दूसरों का दुश्मन है, उसे उठने से पहले ख़त्म कर दो।
- आजादी ही एकमात्र ऐसी वस्तु है जो बिना दूसरों को दिये तुम्हें नहीं मिल सकती।
- गुलामी -- कोई दूसरा किसतरह चाहताहै, उसतरह करने का नियंत्रण है।
- आजादी -- तुम्हें किस तरह करना चाहिए, इसका प्रेमपूर्ण आग्रह है।
- यह एक आश्चर्य की बात है कि गुलामी ने हमेशा अपने गुलाम से कहा कि उठ ! और दुश्मन से अपनी अपनी आजादी छिनले !
- अपने पास अपने जैसा कुछ भी न रखो -- कुछ रखा कि तुम दुख से नहीं बच सकते !
- संतोष अपने आपसे संतुष्ट होने से मिलताहै, जो अपने आपसे ही संतुष्ट नहीं है, वह दुनियां से संतुष्ट कैसे होसकताहै ?
- आनंद और इच्छाओं में जन्म से ही विरोधहै, वे साथ साथ कभी नहीं रह सकते।
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![](/images/thumb/9/95/Niklank_53.jpg/200px-Niklank_53.jpg) |
- आदमी ने बहुत से काम करने शुरू कर दिए हैं, पर वह काम -- मनुष्य बनने का काम,उसने छोड़ दिया है, जो सबसे मत्वपूर्ण था !
- ईश्वर को खोजो मत -- उसकी खोज व्यर्थ है क्योंकि वह हर जगह है और इसलिए कहीं भी नहीं है।
- ईश्वर को जिनने सिर्फ खोजा, उन्होंने उसे कभी नहीं पाया; जिनने पाया, उन्हें स्वयम् ईश्वर बनना पड़ा था।
- ईश्वर बनो और ईश्वर तुम्हें मिल जायेगा।
- सारे नियम बदल सकते हैं, पर एक नियम नहीं बदल सकता कि 'ईश्वर बने बिना ईश्वर नहीं मिलता है। '
- तुम उसे जानकर सबकुछ जान लोगे पर यह भूल जाओगे कि तुम कुछ जानते हो !
- ईश्वर का ज्ञान आताहै, तो ' मैं ज्ञानी हूँ ' ऐसा दंभ मिट जाता है।
- शैतान का ज्ञान शोरगुल से भराहै, उसका ज्ञान शांत है।
- वह सबकुछ जानता है और कुछ नहीं जानता क्योंकि वह स्वयं अपना ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान है।
- उससे मिलने का रास्ता अपने को उसमें खो देने का रास्ता है -- दो की संख्या उसे पसंद नहीं है, वह ' एक ' चाहता है।
- मेरी दृष्टी की अनेकता जिस दिन मिट जायेगी,मैं ईश्वर होजाउँगा।
- अनेकता ' एक ' बिना नहीं रह सकती। अनेकताहै, तो वह ' एक ' भी होगाही। उस ' एक ' का नाम ही ब्रम्ह है।
- दिनों के गुलाम मत बनो -- दिन उसके हैं जो जो उनसे संघर्ष करता है।
- मेरी दृष्टी में जीवन का एक ही अर्थ है कि हम रोज रात से सुबह की तरफ बढ़े चलें।
- जो यह कह सकताहै कि मैं हमेशा समय से आगे चलताहूँ उसे यह कहने मौका कभी नहीं आयेगा कि ' मेरी किस्मत में विधाता ने सफलता नहीं लिखी है। '
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![](/images/thumb/9/99/Niklank_54.jpg/200px-Niklank_54.jpg) |
- सत् असत् में छुपा है -- उसके नित्य प्रगट होने का प्रयत्न ही जीवन और गति का मूल है।
- १२ बजते हैं। घड़ी के कांटें अपना एक और दौर पूरा कर लेतेहैं, तब उनमें व्देत नहीं रह जाता।
- अपूर्णता के एक दौर के अन्त पर व्देत के भाव का आभास कहां ? -- कांटे एक होजाते हैं -- मैं और यह विश्व दोहैं ऐसी भिन्नता की एक संघ भी नहीं पाती।
- व्देत अपूर्णताहै, पूर्णता अव्देत है।
- सत्य को समझा कि सत्य हुए। रामकृष्ण कहते थे कि नमक का एक पुतला समुद्र की थाह लेने गया पर फिर कभी लौटा नहीं कि आकर समुद्र की थाह बताता।
- सत्य को सत्य हुए बिना नहीं समझा जा सकता।
- मैं नास्तिक हूँ। मेरे लिए विश्व में कोई ईश्वर नहीं है।
- तुम आसमान को जानते हो क्योंकि तुम स्वयं आसमान नहीं हो, पर बेचारा आसमान नहीं जानता कि कहीं ' एक आसमान ' भीहै !
- नास्तिक होरहना, ईश्वर होजानाहै।
- मैं नास्तिक हूँ। मेरे लिए कहीं कोई ईश्वर नहीं है क्योंकि मैं स्वयं ईश्वर हूँ !
- ईश्वर, यदि कहीं है, तो वह निश्चितही नास्तिक होगा।
- ईश्वर में विश्वास का अर्थहै कि तुम अभीतक ईश्वर को पहचाने ही नहीं हो !
- तुम यदि अपना मजहब लौटाना चाहते हो तो लौटा लो -- समय मजहब नहीं चाहता, समय इंसान चाहतहै।
- इंसान ही नहीं रहा तो मजहब कहां रहेगा? इंसान रहेंगे तो मजहब बहुत आसकते हैं।
- लहरों में वृत बनते हैं, और वृत बिगड़ते हैं।
- जिंदगी एक सागर है -- मैं एक वृत हूँ, वृतकी तरह आता हूँ और वृत की तरह ही मुझे जाना पड़ताहै !
- जिन्दगी के फंनिल उभर पर मोह से पागल होउठाना -- जिंदगी की क्षण भंगुरता की तरफ अपना अज्ञान जाहिर करनाहै।
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![](/images/thumb/9/93/Niklank_55.jpg/200px-Niklank_55.jpg) |
- पागल मत बनो ! दुनियां प्रेम करने की चीज नहीं है।
- यदि तुझे कुछ करना है तो उठ उसे और उसे अभी करले -- मौत किसीके अधूरे स्वप्नों के पुरे होने तक कभी इंतजार नहीं करती।
- तू एक आश्चर्य है -- तेरा विरह भी आश्चर्य है और तेरा मिलन भी।
- विरह में भी तू दूर नहीं होता और मिलन में भी तू मिलता नहीं !
- गाड़ी में बहुत भीड़ थी। मुझे कष्ट में भी पढ़ते देख उन बुजुर्ग ने कहा ' कि ' किताब तो आपकी हीहै, घर जाकर पढ़ लीजिए ? '
- मैंने कहा --" आप ठीक कहते हैं, किताब तो जरूर मेरी है पर समय -- समय जो हरक्षण तेजी से गुजर रहा है वह फिर मेरा नहीं रहेगा ! "
- मुर्ख चिन्ता करते हैं मंजिल की -- बुद्धिमान करताहै रास्ते की और उसपर चलने की।
- भागो मत ! लम्बे चलने का रहस्य भागना नहीं, आहिस्ते चलनाहै ।
- प्रकाश को अंधेरा नहीं मिलता -- ईमान तुम्हारे भीतर हो तो तुम्हारे लिए दुनियां में कहीं भी कोई बेईमान नहीं होसकता।
- मुझे जब कोई बेईमान मिलता है तो मैं समझ जाता हूँ कि मेरे भीतर कहीं कोई बेईमानीहै जो सुधार की मांग कर रहीहै।
- दुनियां न बुरी है न भली,बुरा हूँ तो मैं हूँ, भला हूँ तो मैं हूँ। इकहार्ट उस समय सही था जब उसने घोषित किया था कि कौन कहताहै कि ईश्वर भला है ! ईश्वर भला नहीं है, भला मैं हूँ !
- जीवन की सबसे बड़ी प्रार्थना जीवन का कार्य है।
- एनन ने लिखा है कि ' तुम यदि समुद्र में गिर जाओ और तैर न सको तो सारी प्रार्थनायें और पन्थ भी तुम्हें नहीं बचा सकते। '
- ईश्वर सिर्फ उन प्रार्थनाओं को ही सुनताहै जो दूसरों के लिए कीजातीहैं -- अपने लिए कीगई प्रार्थनाओं के लिए वह नितांत बहरा है !
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- मैं एक सफर पर था। मेरे एक साथी-यात्री ने पूछा कि - 'मेरी पेटी में ताला क्यों नहीं है ?
- मैंने कहा कि--'अपनी पेटी में ताला ड़ालना अपनी पड़ौसी की ईमानदारी पर शक कर, उसे अपमानित करना है। '
- आदमी का मोह -- रात हो या दिन -- चक्रवृद्धि व्याज की तरह बढ़ताहै। एक बार पैर फिसला कि फिर बचना मुश्किल होजाताहै !
- सुख पाने का हक़ सबको सामान है -- जब इसमें असमानता आ जातीहै तो समाज में हिंसात्मक संघर्षों का जन्म होताहै।
- लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि ' इस हिंसा को रोका कैसे जाये ? ' मैं 'जॉन ' का जवाब दोहरा देता हूँ --
- लोगोने जब जॉन से पूछा कि 'अब हम क्या करे? ' तो उसने सूक्ष्म और स्पष्ट रूप से जवाब दिया कि - ' जिसके पास दो कोट हों वह एक उसे दे दे जिसके पास एक भी नहीं है। '
- स्वप्नों को देखकर सोये मत रहो।स्वप्नों को देखो और फिर उन्हें पूरा करने के लिए पागल बन जाओ।
- मेहनत स्वप्नों की असलियत में बदल सकती है
- मैं रास्तों में विश्वास नहीं करता। मेरा विश्वास चलने में है क्योंकि मैं जानता हूँ कि जहां भी मैं चलूँगा, रास्ता वहां अपने आप बन जायेगा।
- जिन्दगी रास्तों पर नहीं चलती, जिन्दगी जहां चलतीहै रास्ते वहां होते हैं।
- रास्ता रोने से बढ़ताहै, चलने से कटताहै।
- महानता बड़े अवसरों की राह देखने में नहीं है।
- महानता हर छोटे से टिक टिक वाले क्षण को महान् अवसर बना लेने में है।
- आपत्तियां कमजोरों के लिए श्राप होतीहैं पर हिम्मत और लगातार श्रम से उन्हें आशीर्वादों में बदला जासकता है।
- जीवन की सफलता का रहस्य श्रमहै।
- मुसीबतों को जीतो और आपत्तियों को देखकर रोने मत लगो। आपत्तियां सीढ़ियांहै जिनसे सफलता तुम्हें ऊपर बुलाती है।
- बाईबिल से पूछो और ईश्वर उससे बोलेगा कि ' जो मुसीबतों पर विजय प्राप्त करताहै, अपने तख्त पर मैं उसके लिए जगह करताहूँ। '
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- आनंद न गुलामी में है न किसीको गुलाम बनाने में। आनंदित रहना चाहताहै तो न किसी का गुलाम बन और न किसी को गुलाम बना।
- किसी को गुलाम बनाकर तू कभी आजाद नहीं रह सकताहै -- आजादी चाहता है तो दूसरों को आजादी दे, गुलामी चाहता है गुलामी दे। तू जो कुछ दूसरों को देगा, वही वापिसी में ईश्वर तुझे देगा।
- पड़ौसी के दुख के समय भी यदि तू अपने ख़ुशी में मस्तहै तो तू आदमी नहीं जानवर है, पर यदि अपने दुख के समय में भी तू पड़ौसी की ख़ुशी में मस्त है तो तू आदमी नहीं देवता है !
- आदमी या तो देवता बनाना चाहेगा या फिर जानवर होजायेगा जैसे आदमी बनना उसने सीखा ही नहीं है !
- जीवन में कार्य करने एक ही अमर सूत्र है कि कार्य करो पर फल की इच्छा पर विजयी बनना सीखो।
- कार्य कारण से उपजता है -- फल कार्य है, श्रम कारण -- श्रम नहीं कियाहै तो फल की इच्छा का कोई अर्थ नहीं है और यदि श्रम कियाहैं तब तो फल आयेगा ही और उसकी चिंता बिल्कुल ही मूर्खतापूर्ण है।
- सुखी वह है जो सब भूल गया और उस एक को जान गया जो वह स्वयं है।
- दुख अपनी आत्मा का अज्ञान है।
- बंधनों का कारण इच्छायें हैं -- वे दोनों साथ साथ जन्म पाते हैं और साथ ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं -- यह संभव नहीं है कि तुम बंधन तो न चाहो पर इच्छाओं में लिप्त रहो !
- एक इच्छा का अन्त हमेशा दूसरी इच्छा के जन्म में होताहै और उनकी अंतहीन श्रृंखला में किसी भी कड़ी का नाम तुष्टि नहीं है।
- आत्मा ! तेरी उड़ने की जगह तो मौन आकाश है पर इच्छाओं की कड़ियां तुझे जमीन के धुरों से बांधे रहती है !
- ऊँचे उड़ना सीखो पर उसके लिए पंखों की बोझिलता कम करनी होती है।
- शरीर नीचे भी रहे तो कुछ हर्ज नहीं है सवाल तो दृष्टी का -- आत्मा की उड़ान का -- है ।
- इन्द्रिय दृष्टी की मृत्यु पर यही जमीन स्वर्ग बन जातीहै।
- रामकृष्ण कहते थे--कि 'चील ऊपर भी उड़ती है तो क्या ? दृष्टि तो उसकी निचे की सड़ी गली चीजों पर ही लगी रहतीहै ! '
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- ज्ञान हर काम शुरू नहीं कर देता और जब करताहै तो उन्हें पूरा करता है।
- अज्ञान हर काम को शुरू कर देगा पर उससे पूरा होगा एक भी नहीं। कामों को अधूरा छोड़ने की आदत मूर्खता की बहुत पुरानी आदत है।
- मुर्ख नहीं बनना है तो कामों को सोच समझकर हाथ में लो और जब उन्हें ले ही लो तो कभी अधूरा मत छोड़ो।
- कोरा ज्ञान जिसमें ह्रदय का अंश न हो तो हमेशा खतरनाक होता है क्योंकि ऐसे ज्ञान से शैतान को दोस्ती बढ़ाने में कभीभीदेरी नहीं लगती।
- ह्रदय विहीन तर्क-बुद्धि शैतान की सवारी है।
- ज्ञान सिर्फ अपने को छोड़ साडी दुनियां से नर्मी से पेश आताहै।
- अज्ञान सारी दुनियां को छोड़ सिर्फ अपने से !
- विव्दान् जिस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं उसका प्रतिपादन करते हैं, मूर्ख जिसका प्रतिपादन करना चाहते हैं उसी निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं।
- अकेले रहना बुरा नहीं है पर ' अकेले अपने लिए रहना ' बहुत बुरा है।
- अकेले रहो एकांत से महानता जन्म पाती है पर अकेले अपने लिए कभी मत रहो--सिर्फ अपने लिए जो जिंदाहै, वह आदमी नहीं जानवर है।
- जवान से निकले उपदेश थोथे होते हैं।उपदेश जब आत्मा से निकलताहै तो उसमें वह जादू होताहै जिससे पहाड़ हिल उठते हैं।
- कुछ न कर और सबकुछ पाने की आशाकर और तू हमेशा दुख में डूबा रहेगा।
- हम सब दुखी हैं सिर्फ इसलिए कि हम लोग चाहते सबकुछ हैं पर बदले में देना कुछ भी नहीं चाहते।
- भय एकमात्र पाप है और सारे पाप तो सिर्फ इसलिए ही पापहैं कि उनसे आत्मा में भय पैदा होताहै।
- भय ही खाना है तो सिर्फ अपनी भीरुता से खाओ क्योंकि भीरुता से भयभीत होने के बाद दुनियां में अन्य कोई भय है ही नहीं।
- भलाई अपने आप में अपना फलहै। भलाई करके कुछ और पाने की आशा करना किये कराये पुण्य पर पानी फेरनाहै।
- संत कन्फ्यूशियस् का कथनहै ' कि ' जो दूसरों की भलाई करना चाहता है, उसने अपना भला तो कर ही लिया। '
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- अपने पड़ौसी के घर में आग लगी देख यदि तू मुस्कराता है तो ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता जो हमेशा से तेरे लिए खुला था, तू अपने हाथों से ही बंद कर रहाहै।
- अपने ही भाई की लास पर मुस्कराकर कभी कोई अपने पिता का आशीर्वाद नहीं पा सका है !
- चरित्र सबसे श्रेष्ठ है पर वह ज्ञान उससे भी श्रेष्ठहै जो तुम्हें उस तक पहुंचताहै।
- तुम्हें यदि लोग दुष्ट लगते हों तो उन दुष्टों की फ़िक्र छोड़कर अपनी आंखों को बदलने में लग जाओ, क्योंकि लोग दुष्ट नहीं होते, दुष्ट देखने वाली आंखें होतीहैं।
- दुर्योधन को यज्ञ के सारे ब्राम्हण दुष्ट दिखते थे और धर्मराज को ईश्वर स्वरुप क्योंकि दोनों के पास दो अलग अलग किस्म की आखें थी।
- आदमी स्वयं जैसा होताहै उससे भिन्न वह दुनियां को कभी नहीं देख सकता, इसलिए दुनियां को भला बनाने का रास्ता -- मेरी दृष्टि में -- स्वयं अपने आपको भला बना लेना है।
- गलती आदमी एक ही जगह करता है -- अपनी गलती छिपाकर।
- मैं समझ ही नहीं पाता कि गलती को छिपाने से क्या होता है ? गलती सुधारने से सुधरतीहै, छिपाने से तो और बढ़ जातीहै।
- नम्रता आदमी को ऐसी बादशाहत देतीहै जिसके खिलाफ बगावत होही नहीं सकती। इसकी हुकूमत नम्र पर भी चलतीहै और कठोर पर भी !
- टेगोर का कथन है कि ' हम महानता के निकटतम होते हैं जब हम नम्रता में महान् होतेहैं। '
- बुराई को बुराई से हराने का विश्वास बहुत मूर्खतापूर्णहै। अंधेरे को अंधेरे से हटाने की बात जब आदमी सोचताहै, तो मैं आंखें फैलाये खड़ा रह जाता हूँ !
- आदमी को मारकर क्या आदमी को बचाया जासकताहै ? मौत मौत से नहीं मिटती -- जीवन से मिटतीहै। बुराई भी बुराई से नहीं मिटेगी।
- मुहम्मद ने कहाहै कि ' बुराई को उस तरीके से हटाओ जो बुराई से अधिक अच्छा हो। '
- तलवार और सलीब दो विरोधी छोर हैं जो कभी मिल नहीं सकते। कमजोर तलवार उठाता है, बहादुर सलीब चुनताहै !
- गुलाम अपनी गुलामी की जंजीरों से भी प्यार करने लगताहै। आदमी जब मरने से ड़रताहै तो वह इसीका सबूत देताहै !
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- करना जवानीहै, सोचना और सिर्फ सोचते ही रहना बुढ़ापाहै।
- जवानी हमेशा आज की बात सोचती है, बुढ़ापा हमेशा कल की दहशत में डूबा रहताहै।
- सोचो और करने में लग जाओ। जिंदगीका आधार आज की आज की चट्टान है -- कल अपनी सारी मुश्किलों के साथ न आजतक कभी आयाहै और न कभी आयेगा।
- राह खोजने की बात मत करो। राह बनाने की बात करो क्योंकि राहें उन्हें ही मिलतीहैं जो अपनी राह आप बना सकते हैं।
- ' मैं अपनी राह स्वयं बना लुँगा ! '- जब कोई यह हुँकार भरता है तो सफलता के सारे रास्ते उसकी तरफ दौड़ पड़ते हैं।
- ' मुझे रास्ता नहीं मिलता। '- ऐसा कहना निहायत नीचे दर्जेकी कमजोरीहै।
- रास्ते मिलने की चीजें नहीं है, रास्ते अपने लहू से बनाने पड़ते हैं।
- जवानी एक नशाहै, नशा जिंदगी है, जिंदगी से नशा अलग हुआ कि जिंदगी भार होजाती है।
- बोझिलता बुढ़ापाहै, बुढ़ापा आधी मौत है और आधी मौत पुरी मौत से बदतर होतीहै।
- जिंदा रहना है तो जवानी को ताजा बनाये रखो -- नहीं रहनाहै तो मरो, पर आधे कभी मत मरना।
- बूढ़े या जवान तुम उतने हीहोते हो जितना तुम सोचते हो।
- जवानी मन की ताजगी की चीजहै, उर्म से उसका कोई वास्ता नहीं है।
- किसीसे कुछ मांगो मत क्योंकि किसी से कुछ मांगा कि फिर तुम आजाद नहीं रह सकते।
- आदमी ने अपनी गुलामी का आरंभ उस दिन किया जिस दिन उसने सीखा कि जिंदगी दूसरों पर निर्भर रहकर भी काटी जासकतीहै !
- मैं जब सड़क पर सिपाही को देखताहूँ तो मेरा दिल आदमी के लिए दया से भर जाता है।
- सिपाही इस बात का प्रतीक है कि अभी आदमी को आदमी बनने में बहुत देर है !
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- स्कूल के सबक सब भूल जाते हैं पर जिन्दगी के सबक कभी नहीं भूलते। जिंदगी की भूले जो कुछ सिखाती हैं वह स्मृति पर अमिट होरहता है, उसका भुलाना आदमी को संभव नहीं होता।
- मैंने अपने एक पत्र में लिखाहै कि ' स्कूल और जिंदगी के स्कूल में एक ही फर्क है, वह है स्कूल में सबक सिखने पड़ते हैं, जब जिंदगी स्वयं हीएकसबक होती है। '
- जिंदगी भूलों के जरिये सबक देतीहै, गढ्ढों में डालकर बताती है कि गढ्ढों में नहीं जाना चाहिए ! आखिर इसे कोई भूल कैसे सकताहै ?
- भूलों से ड़रो मत -- भूलें करो और बार बार करो पर एक ही भूल दुबारा मत करो -- जिन्दगी का शिक्षक तुमसे बस इतना ही चाहताहै।
- भूल करना पाप नहीं है अकर्तव्य भी नहीं -- भूल करना आदमी का जन्मसिद्ध अधिकार है, उसका अर्थ है, प्रयोग की स्वतंत्रता -- प्रयोग की आजादी।
- भूलें जहर भीहैं, अमृत भी -- एक ही भूल को बार बार करो जिन्दगी मरेगी, नई नई भूलें रोज करो, पुरानों को छोड़ते चलो, जिंदगी उभरेगी -- जिंदगी ऊपर उठेगी।
- रोज नई भूलें करने का अर्थहै कि हम आगे बढ़ रहे हैं और कोल्हु के बैल नहीं है।
- नई भूल यानी नया सबक, नया सबक यानी नई जिंदगी।
- भूलों में एकमात्र हानिकर भूल है अपनी भूलों को भूल जाना। महान् व्यक्ति भी भूलें करते हैं पर अपनी भूलों को भूलते नहीं और उनसे सबक लेते हैं।
- महानता का उद् भव भूलों की अपनी सिखों में बदल लेने की कला से होताहै। मैं आजतक की खोजों में सबसे महान् खोज इसीको समझता हूँ।
- आदमी लोहे को सोने में बदलने की कीमिया नहीं खोज पाया है पर अपनी भूलों को अपने पाठों में बदलने की कला में उसने वह शानदार कीमिया खोज निकाली है जो आदमी को ईश्वर में बदलने का सामर्थ्य रखतीहै !
- भूलें सिर्फ मुर्दों सेहीनहीं होतीं क्योंकि वे कुछ करते ही नहीं। मुझसे कोई पूछे कि जिंदगी का दूसरा नाम क्याहै तो मैं कहुँगा कि ' भूलें करने का अधिकार और भूलों से सिखने का कर्तव्य। '
- महान् गल्तियां महान् व्यक्तित्व को जन्म दे सकतीहैं -- सवाल है सिर्फ उनसे सिखने का।
- कोई अगर कहताहै कि मैंने कोई गलती कीही नहीं तो मैं उससे इतना ही कहुँगा कि वह जीवित ही नहीं रहा।
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- दया कंरना सबसे ऊँची बात है पर अपनी दया पर अभिमान करना सबसे नीची।
- दया करो और उसी क्षण भूल जाओ कि तुमने कुछ किया है।
- मुझे जब किसी पर दया आतीहै तो व्यक्त करने में बड़ा डर लगता है क्योंकि मैं किसी को भी छोटा दिखाकर अपमानित नहीं करना चाहता।
- कौन जानताहै कि दया का मजा -- किसी को अपमानित करने का घृणित मजा ही हो ?
- ईश्वर को धोखा मत दो। तुम बिना आदमी को प्यार किये उसे प्यार नहीं कर सकते।
- जिस आदमी को पानी की बूंद से घृणा है उसे सागर से प्यार होगा ही कैसे ?
- ईश्वर-प्रेम की पहली शर्तहै मानव से प्रेम -- अपने प्रत्येक पड़ौसी से अपने जैसा प्रेम।
- आचरण का मेरी दृष्टी में इतना ही अर्थ है कि मैं बिना इस दुनियां की गंदगी में उलझे, इस दुनियां से उसी तरह जा भी सकूँ जिस तरह एक दिन इसमें आया था।
- जीवन के संघर्षों और मुश्किलों से मत घबरा और याद रख कि छेनी हीरों पर ही चलती है कंकड़ों पर नहीं।
- चरित्र जीवन के लिए नहीं है, स्वयं जीवन का निर्माण चरित्र के लिए हुआहै।
- चरित्र-हीन जीवन उस बांझ वृक्ष की तरह है जिसमें वे फूल कभी लगे ही नहीं जिनके लिए वह खड़ा हुआ था।
- चरित्र उस दृढ़ता का नाम है जो मौत के मुकाबिले में भी तुमसे कहे जाती है कि अपने काम में लगे रहो।
- सिद्धान्त जो आचरण में नहीं आते उनका अस्तित्व व्यर्थ है -- एक बड़े सिद्धांत के पोषण की अपेक्ष किसी छोटे से सिद्धांत पर अपने जीवन को ढालना कहीं ज्यादा मूल्यवान और श्रेयस्कर है।
- संसार को अपने साथ करने का रहस्य मुस्कुराहट में है -- मुस्कुराओ ! और जिन्दगी पर तुम्हारा जादू छा उठेगा और उसकी सफलतायें तुम्हारे पैरों में झुक आयेगीं।
- आंसुओं से आजतक सिवाय एक कोरी और अपमान जनक सहानुभूतिके और कुछ भी नहीं जीता गया है।
- आंसू प्रतिकहै हार के, मुस्कुराहट जीती जागती जीत है।
- एला विलकाक्स का कथन है कि 'हंसो और देखो संसार तुम्हारे साथ हंसता है रोओ और तुम अकेले बैठकर रोओगे ! '
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